“जग चले उस घाट कौन जाय । नहिं समजत इर-इर गोते खाय ।।”
Sant Tukaram : भारत की भक्ति धारा के महान संतों की श्रेणी में संत तुकाराम का नाम सदैव आदर पूर्वक लिया जाता रहा है. भगवान की भक्ति के साथ साथ सामाजिक स्तर पर कुरुतियों का विरोध करते हुए संत तुकाराम जी ने सभी के हृदय में अपना स्थान स्थापित कर लिया था . साहित्य में मराठी शैली में उन्होंने कई तरह के प्रयोग भी किए.
Sant Tukaram :
संत तुकाराम वैष्णव संप्रदाय के महान संतों में से एक थे. भगवान श्री कृष्ण के विठ्ठल स्वरुप के उपासक हो कर इन्होंने कई काव्यों को रचा और अपनी कविताओं को समाज में बदलाव लाने के लिए विशेष आधार भी बनाया. संत तुकाराम जी ने अपना संपूर्ण जीवन भक्ति और समाज के सुधार हेतु व्यतीत किया
आध्यात्मिक विषयों के साथ लोक कथाओं को अपनी रचनाओं में शामिल किया. संत तुकाराम जी ने अपनी वाणी को अभ्यंग साहित्य का रुप दिया था. संत एवं कवि तुकाराम जी की रचनाओं में नामदेव, ज्ञानेश्वर, संत कबीर और एकनाथ जी का भी उल्लेख मिलता है.
संत तुकाराम जी के विचारों का पड़ा गहरा असर
संत तुकाराम जी ने धर्म एवं सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव छोड़ा था. सभी के मध्य समानता के सिद्धांत को स्थापित करने की कोशिशें वे सदैव ही किया करते थे. जाति व्यवस्था की कठोरता को तोड़ने के लिए इन्होंने सदैव कोशिशें बनाए रखीं.
छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी संत तुकाराम जी की बातों को महत्व दिया. संत तुकाराम जी द्वारा सभी वर्गों को एक सूत्र में बांधने के लिए कविता को सहारा बनाया. भक्ति के द्वारा लोगों के भीतर के अलगाव को दूर करने की कोशिशें की. संत तुकाराम की शिक्षाओं में उनकी रचनाओं में जातिविहीन समाज के संदेश को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. संत तुकाराम जी की रचनाओं ने ब्राह्मणवादी प्रभुत्व के खिलाफ एक मजबूत हथियार के रूप में काम किया.
समाज को प्रदान की नई चेतना
अभंग की रचना करने के कारण तुकाराम जी को समाज में मौजूद उच्च वर्गों का विरोध झेलना पड़ा. उन्हें ब्राह्मणों के क्रोध का सामना करना पड़ा, जो खुद को धर्म का एकमात्र सच्चा संरक्षक मानते थे. तुकाराम जी ने मराठी में अपनी रचनाओं को खूब लिखा. तुकाराम जी का अधिकांश जीवन महाराष्ट्र में पुणे के पास एक शहर देहू में व्यतीत हुआ.
BEL Vacancy 2023 भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (Bharat Electronics Limited) RECRUITMENT
अपनी काव्य रचनाओं में संत तुकाराम जी ने सामाजिक जन चेतना को विकसित करने का प्रयास किया. तुकाराम की शिक्षाएं वेदों पर आधारित मानी जाती हैं.उन्होने संत समाज की समानता को प्रथम स्थान देने का प्रयास किया. अपनी रचनाओं में उन्होंने जात-पात जैसी बातों को समाप्त करने की बात कही. वह सभी को एक प्रभु की संतान के रुप में देखते थे.