ईडी के चाल-चलन तथा काम से खफा है सुप्रीम कोर्ट, लगाई डांट

Ppp 2
Supreme Court
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 10:25 PM
bookmark

Supreme Court : भारत का सुप्रीम कोर्ट प्रवर्तन निदेशालय (ED) के चाल-चलन तथा काम से खफा है। सुप्रीम कोर्ट का मत है कि ED का काम करने का तरीका बहुत ही गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने ED के दोषसिद्धि के प्रतिशत को बहुत ही खराब स्तर का बताते हुए कहा है कि ED लोगों को गिरफ्तार करके जबरन जेल में रखने का अभियान चला रही है। ED का दोषिसिद्धि प्रतिशत मात्र एक प्रतिशत के आसपास है। इस आधार पर अदालत ED द्वारा गिरफ्तार किए गए नागरिकों को अधिक समय तक जेल में रखने की इजाजत नहीं दे सकती।

ED का दोषसिद्धि प्रतिशत बेहद खराब है

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से पहले ED के दोषिसिद्धि प्रतिशत को जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है। आप सवाल कर सकते हैं कि यह दोषसिद्धि क्या है? दरअसल किसी आरोप में आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद उसके ऊपर दोष (अपराध) को सिद्ध करना जरूरी होता है। कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है तथा उनमें से कितने लोगों का अपराध साबित किया गया है। इसके आधार पर दोषिसिद्धि का प्रतिशत तय किया जाता है। हाल ही में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया कि वर्ष-2024 से लेकर वर्ष-2024 तक ED ने कुल 5297 मामले दर्ज किए हैं। इन 5297 मामलों में से केवल 40 मामलों में आरोपियों को दोषी सिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार ED का दोषसिद्धि प्रतिशत एक प्रतिशत से भी कम है जो कि बहुत ही खराब है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने ED को दोषसिद्धि प्रतिशत पर ED को खूब खरी-खोटी सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि ED का दोषसिद्धि प्रतिशत 60 या 70 प्रतिशत तक होता तो चिंता की बात नहीं थी, किन्तु ED का दोष प्रतिशत बेहद खराब है। इस कारण ED द्वारा गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को लगातार जेल में नहीं रखा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने राजनेताओं को भी फटकार लगाई

बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनेताओं को भी खूब फटकार लगाई है। सुनवाई के दौरान  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनेताओं के खिलाफ हर मामला दुर्भावनापूर्ण नहीं होता, क्योंकि उनके लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होना और फिर खुद को निर्दोष बताना बहुत आसान होता है। नकदी के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि चटर्जी दो साल से अधिक समय से हिरासत में हैं, अभी मुकदमा शुरू होना बाकी है। चटर्जी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता को बीते महीने सीबीआई ने भी गिरफ्तार किया, जिसके समय को लेकर संदेह है क्योंकि यह विशेष अनुमति याचिका दायर करने के समय हुआ। ईडी की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने दलील दी, यह उच्च पदस्थ मंत्री का मामला है, जो 50 हजार लोगों के जीवन व आजीविका से जुड़ा है।रोहतगी ने अदालत को बताया कि चटर्जी को ईडी ने 23 जुलाई, 2022 को गिरफ्तार किया था। मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है। 183 गवाह हैं। चार पूरक अभियोजन शिकायतें दर्ज की हैं। याचिकाकर्ता की उम्र 73 साल है अन्य सभी आरोपियों की जमानत हो चुकी है। धनशोधन रोधी कानून में अधिकतम सात साल की सज है। ढाई साल से अधिक हिरासत में काट चुके हैं। जिस महिला के घर से पैसे बरामद हुए, उसे ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दी। इस पर पीठ ने कहा, आरोपी एक मंत्र रहे हैं और अपने घर पर पैसे नहीं रखने वाले हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा बड़ा सवाल

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ED के वकील एस.वी. राजू से बड़ा सवाल भी पूछा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राजू से पूछा कि सामान्य सिद्धांत लागू करें। हम याचिकाकर्ता को कितने समय तक रख सकते हैं। अगर यह ऐसा मामला है जिसमें मुकदमा तीन या छह महीने में पूरा हो जाएगा, तो हम इसे जारी रखेंगे। यह ऐसा मामला है जिसमें दो साल चार महीने बीत चुके हैं और अभी तक मुकदमा शुरू नहीं हुआ है। पीठ ने यह भी कहा, कोर्ट इस गंभीर आरोप को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि कोई मंत्री रिश्वत ले रहा है, किसी फैक्टरी या करीबी सहयोगियों से नकदी बरामद कर रहा है, लेकिन हमें संतुलन बनाना होगा। हिरासत में दो साल चार महीने कोई छोटी अवधि नहीं है। पीठ अब इस मामले में सोमवार को सुनवाई करेगी। Supreme Court

उत्तर प्रदेश सरकार की बड़ी पहल, विकास की दिशा में किया बड़ा काम

ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें। 

देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।

 
अगली खबर पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, आरक्षण के लिए धर्म परिवर्तन बर्दाश्त नहीं

Supreme court 2
Supreme Court
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 12:20 PM
bookmark
Supreme Court : भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कानून के सभी जानकार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस ताजे फैसले को बहुत बड़ा फैसला बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसले के कारण अनेक मामलों का निपटारा बहुत आसानी से हो जाएगा। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला धर्म परिवर्तन करके दूसरा धर्म अपनाने वालों के मुंह पर भी बहुत बड़ा तमाचा है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बहुत बड़ा फैसला सुनाया है। अपने बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आरक्षण का लाभ पाने के लिए बिना सच्ची आस्था के धर्म परिवर्तन करना संविधान के साथ धोखाधड़ी के समान है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा, ऐसा करने से आरक्षण नीति के सामाजिक मूल्य भी नष्ट होंगे। जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के 24 जनवरी, 2023 के आदेश के खिलाफ सी सेल्वरानी की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश देने की मांग वाली महिला की याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। पीठ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने और मानने का अधिकार है। यदि धर्म परिवर्तन का मकसद मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ प्राप्त करना हो, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे छिपे हुए मकसद वाले लोगों को आरक्षण का लाभ देने से आरक्षण की नीति के सामाजिक लोकाचार को नुकसान पहुंचेगा। पीठ ने कहा, वर्तमान मामले में पेश साक्ष्यों से स्पष्ट पता चलता है कि अपीलकर्ता ईसाई धर्म को मानती है और नियमित रूप से चर्च में जाकर  इसका सक्रिय रूप से पालन करती है। इन सब के बावजूद, वह हिंदू होने का दावा करती है और रोजगार के मकसद से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र चाहती है। उनका यह दोहरा दावा स्वीकार करने के काबिल नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा

अपना बड़ा फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, अपीलकर्ता ने दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का दावा किया है लेकिन इस पर विवाद है। धर्मांतरण किसी समारोह या आर्य समाज के माध्यम से नहीं हुआ था। कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की गई थी। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि उसने या उसके परिवार ने हिंदू धर्म में पुनः धर्मांतरण किया है। इसके विपरीत, एक तथ्यात्मक निष्कर्ष यह है कि अपीलकर्ता अब भी ईसाई धर्म को मानती है।  अपीलकर्ता बपतिस्मा के बाद भी खुद को हिंदू के रूप में पहचानना जारी नहीं रख सकती। इसलिए, उसे अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करना, आरक्षण के मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा और संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी। अपीलकर्ता ने दावा किया, उसकी मां ईसाई थी और शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था। उसके पिता, दादा-दादी और परदादा-परदादी हिंदू धर्म को मानते थे और वल्लुवन जाति से थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश, 1964 के तहत अनुसूचित जाति में मान्यता प्राप्त है। उसने यह भी कहा, द्रविड़ कोटे के तहत रियायतों का लाभ उठाकर स्कूली शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इस पर पीठ ने कहा, यह मानते हुए भी कि अपीलकर्ता की मां ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था, उसे अपने बच्चों को चर्च में बपतिस्मा नहीं देना चाहिए था। इसलिए अपीलकर्ता का बयान अविश्वसनीय है। कोर्ट ने यह भी कहा कि, फील्ड सत्यापन से स्पष्ट है कि भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत अपीलकर्ता के माता- पिता का विवाह पंजीकृत था। अपीलकर्ता और उसके भाई का बपतिस्मा हुआ था और यह भी तथ्य था कि वे नियमित रूप से चर्च जाते थे। अदालत ने कहा कि, तथ्यों के निष्कर्षों में कोई भी हस्तक्षेप अनुचित है, जब तक कि निष्कर्ष इतने विकृत न हों कि अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दें। Supreme Court

भारत के संविधान की आत्मा को सात महान आत्माओं ने दिया था आकार

ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।
देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
अगली खबर पढ़ें

भारत के संविधान की आत्मा को सात महान आत्माओं ने दिया था आकार

The Constitution of INDIA 1
Samvidhan Divas
locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Nov 2024 08:25 PM
bookmark
Samvidhan Divas : मंगलवार 26 नवंबर 2024 को भारत ने अपना 75वां संविधान दिवस (Constitution Day) मनाया है। संविधान दिवस मात्र एक औपचारिकता नहीं है। संविधान दिवस (Constitution Day) के मौके पर हमें भारत के महान संविधान के इतिहास, संविधान की विशेषताओं तथा संविधान के निर्माताओं के विषय में जानने का बड़ा अवसर मिलता है। तमाम व्यवस्तताओं के कारण हम भारत के महान संविधान को हर रोज याद नहीं रख पाते हैं। संविधान दिवस (Constitution Day) हमें संविधान की याद दिलाता है तथा संविधान की मूल भावना की कदर करना भी सिखता है। इस आलेख में हम आपको बता रहे हैं कि भारत के संविधान (Constitution of India) की आत्मा यानि कि उसका मूल स्वरूप कैसे तैयार हुआ? साथ ही आम बोलचाल की भाषा में संविधान का पूरा इतिहास और महत्व भी आपको बताते हैं।

भारतीय संविधान को संविधान मसौदा समिति ने दिया था आकार

भारतीय संविधान का जो लिखित प्रारूप हमारे सामने आज मौजूद है। संविधान का वह स्वरूप संविधान मसौदा समिति ने हमें दिया था। भारतीय संविधान  को अंतिम रूप देने के लिए संविधान मसौदा समिति का गठन किया गया था। संविधान मसौदा समिति का गठन डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) की अध्यक्षता में किया गया था। संविधान मसौदा समिति ने ही संविधान का लिखित प्रारूप तैयार किया था तथा उस समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। इसी कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक (Father of Indian Constitution) माना जाता है। संविधान दिवस के मौके पर जितनी चर्चा संविधान की हुई है उतनी ही चर्चा संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष डा. भीमराव अंबेडकर की भी हुई है। डा. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में गठित संविधान मसौदा समिति में कुल सात सदस्य थे। संविधान मसौदा समिति के सात सदस्य इस प्रकार थे- डॉ. भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष), अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर, के.एम. मुंशी, एन. गोपालस्वामी आयंगर, मौहम्मद साहुल्ला, देबी प्रसाद खेतान तथा एन माधव राव समिति के सदस्य थे।

संविधान मसौदा समिति ने ही डाली थी संविधान में आत्मा

संविधान दिवस पर हमें उन लोगों को जरूर याद करना चाहिए जिन्होंने भारतीय संविधान के अंदर आत्मा विकसित की थी। हम आपको संविधान मसौदा (Constitution Drafting Committee) समिति के साथ सदस्यों के नाम बता चुके हैं। यहां संविधान मसौदा समिति के सदस्यों का संक्षिप्त परिचय भी अवश्य जान लेते हैं। भारतीय संविधान की मसौदा समिति के सदस्यों का परिचय इस प्रकार है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर (सभापति)  (Dr. B.R. Ambedkar)

मुख्य रचनाकार डॉ. अंबेडकर विद्वान, समाज सुधारक और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। सामाजिक न्याय के कट्टर समर्थक के तौर पर उन्होंने सुनिश्चित किया कि संविधान में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाए और दबे-कुचले समुदायों के अधिकारों की रक्षा हो सके।

अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर (Alladi Krishnaswamy Iyer)

प्रख्यात न्यायविद और अधिवक्ता, कानूनी-सांविधानिक ढांचे को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने संघवाद को एकात्मक ढांचे के साथ संतुलित करने और न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

के.एम. मुंशी (K.M. Munshi)

लेखक, वकील और राजनेता, मसौदे में एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य रखा। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों और भाषाई व सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित प्रावधानों को शामिल करने का समर्थन किया।

एन. गोपालस्वामी अयंगर (N. Gopalaswami Iyengar)

जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री, प्रशासनिक पहलुओं को आकार देने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। जम्मू-कश्मीर के लिए संसदीय ढांचे और विशेष प्रावधानों को तैयार करने में उनकी अंतर्दृष्टि महत्वपूर्ण रही। जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 का मसौदा अयंगर ने तैयार किया।

मोहम्मद सादुल्ला (Mohammed Saadullah)

असम के रहने वाले बकील और राजनेता, अल्पसंख्यक अधिकारों और संघवाद पर चर्चा में योगदान दिया, पूर्वोत्तर क्षेत्र को अहमियत के साथ शासन ढांचे में समावेश सुनिश्चित किया।

देवी प्रसाद खेतान (Devi Prasad Khaitan)

बंगाल के प्रतिष्ठित वकील और विधायक, शुरुआती चरणों में अहम योगदान दिया। 1948 में असामयिक निधन ने एक शून्य उत्पन्न कर दिया, लेकिन उनके काम ने कई प्रगतिशील प्रावधानों की नींव रखी।

एन. माधव राव (N. Madhava Rao)

बतौर प्रशासक अपनी विशेषज्ञता का लाभ पहुंचाया। प्रशासनिक सुधारों और संस्थागत ढांचे से संबंधित प्रावधानों को आकार देने में भूमिका निभाई।

भारतीय संविधान का इतिहास भी जानना जरूरी है

संविधान दिवस पर भारतीय संविधान के इतिहास को भी जानना जरूरी है। आपको बता दें कि भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष ने एक ऐसे शासन ढांचे की आवश्यकता को उजागर किया जो सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित कर सके। संविधान सभा का गठन दिसंबर 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ। इसमें 389 सदस्य शामिल थे, जो विभाजन के बाद घटकर 299 हो गए। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की। डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमिटी ने संविधान का मसौदा तैयार किया। इस पर 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों तक 11 सत्रों में विचार-विमर्श किया गया। अंतत: 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया, और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। अपने प्रारंभ में इसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं (जो बाद में संशोधित हुईं)। यह संविधान कठोरता और लचीलापन का अनोखा मिश्रण है, जो विभिन्न वैश्विक संविधानों से प्रेरणा लेकर तैयार किया गया है।

भारतीय संविधान के परिचय में कहे गए यादगार वाक्य

भारतीय संविधान की तारीफ में दुनिया भर में बहुत कुछ कहा गया है। यहां संविधान दिवस के मौके पर भारतीय संविधान को लेकर कहे गए कुछ यादगार वॉक्य यानि कि इंस्पिरेशनल कोट्स आपको बता रहे हैं। "संविधान महज वकीलों का दस्तावेज नहीं है; यह जीवन का माध्यम है, और इसकी आत्मा हमेशा युग की आत्मा है।" - डॉ. बी.आर. अंबेडकर "हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं।" - डॉ. बी.आर. अंबेडकर "संविधान की भावना प्रत्येक नागरिक को दर्जा और अवसर की समानता प्रदान करना है।" - सरदार वल्लभभाई पटेल "स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को त्रिमूर्ति में अलग-अलग वस्तुओं के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। वे इस अर्थ में त्रिमूर्ति का एक संघ बनाते हैं कि एक को दूसरे से अलग करना लोकतंत्र के मूल उद्देश्य को पराजित करना है। - डॉ. बीआर अंबेडकर "संविधान केवल काले और सफेद रंग का दस्तावेज़ नहीं है। यह एक जीवंत दस्तावेज़ है जो राष्ट्र के साथ विकसित होता है।" - न्यायमूर्ति पीएन भगवती "लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से सहभागी जीवन जीने का एक तरीका है, संयुक्त संचारित अनुभव का।" - डॉ. बी.आर. अंबेडकर "किसी राष्ट्र की महानता उसके संविधान के प्रति निष्ठा और कानून के शासन के प्रति उसके पालन में निहित है।" - प्रणब मुखर्जी "संविधान की पवित्रता अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की इसकी क्षमता में निहित है।" - अज्ञात "संविधान हमें बड़े सपने देखने और उन्हें साकार करने की स्वतंत्रता देता है।" - नरेन्द्र मोदी "जनता की इच्छा ही किसी भी सरकार का एकमात्र वैध आधार है, और उसकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति की रक्षा करना हमारा पहला उद्देश्य होना चाहिए।" - डॉ. राजेंद्र प्रसाद

कौड़ियों के भाव में बिकेगी आपकी पर्सनल डिटेल, SIM कार्ड हैक होते ही…

ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।
देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।