Special lunch In parliament: संसद में मिलेट्स सहभोज में शामिल हुए उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री

Pm tomar rajnath
Special lunch In parliament:
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 08:50 PM
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Special lunch In parliament: नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा आज संसद परिसर में सांसदों के लिए 'विशेष मिलेट्स लंच' आयोजित कर देश-दुनिया में मिलेट्स को बढ़ावा देने की बड़ी पहल की गई। वर्ष 2023 में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष मनाने की तैयारी की दृष्टि से आयोजन में उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश, पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीरंजन चौधरी, राज्यसभा में सदन के नेता व केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल सहित अन्य मंत्रियों व राज्यसभा व लोकसभा के सदस्यों ने शामिल होकर ज्वार, बाजरा, रागी जैसे पोषक-अनाज से तैयार व्यंजनों का स्वाद लिया, और दिल खोलकर इनकी तथा समग्र आयोजन की तारीफ की व मिलेट्स ईयर का स्वागत किया। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा राज्य मंत्री कैलाश चौधरी व शोभा करंदलाजे ने इस अवसर पर सभी का स्वागत किया।

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प्रधानमंत्री मोदी की पहल तथा भारत सरकार के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया है, जिसे देश भर के साथ ही वैश्विक स्तर पर उत्साह के साथ मनाया जाएगा। इसकी तैयारियां राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोरों पर चल रही है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, मिलेट्स की मांग और स्वीकार्यता बढ़ाने के उद्देश्य से, इसके विषय में जागरूकता के प्रसार के लिए सभी के साथ मिलकर अनेक कदम उठा रहा है। केंद्रीय मंत्री तोमर का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं हमारे प्राचीन पोषक-अनाज को भोजन की थाली में पुनः सम्मानजनक स्थान मिलें। साथ ही, यह पहल दीर्घकाल में मिलेट्स की खेती करने वाले किसानों को लाभकारी प्रतिफल सुनिश्चित करेगी। यह उत्सवीय वर्ष मनाने की पूर्व तैयारी के मद्देनजर मिलेट्स से बने सुस्वा‍दु व्यंजनों के साथ संसद परिसर में सहभोज का आयोजन किया गया, जिसमें उपराष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के विशेष सान्निध्य में मंत्रियों-सांसदों सहित दोनों सदनों में विभिन्न दलों के नेताओं ने मिलेट्स का स्वादानुभव किया। लंच में भारतीय पोषक-अनाज से बनाए गए विभिन्न प्रकार के शानदार व्यंजनों को प्रदर्शित करने के लिए क्यूरेटेड मिलेट्स-आधारित बुफे के तहत कई आयटम्स परोसी गई। संसद के प्रांगण को मिलेट्स आधारित रंगोली से खूबसूरती से सजाया गया था और देश भर की प्राथमिक पोषक-अनाज फसलों को यहां प्रदर्शित किया गया, जिसका अवलोकन उप राष्ट्रपति धनखड़ व प्रधानमंत्री मोदी ने किया। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और अन्य संबंधित हितधारकों द्वारा अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के लिए विभिन्न प्रचार कार्यक्रमों का एक चित्र कोलाज भी यहां प्रदर्शित किया गया। कर्नाटक व राजस्थान के रसोइयों के समूहों ने आयोजन के लिए विभिन्न व्यंजन बनाएं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा हाल ही में रोम (इटली) में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष का शुभारंभ समारोह आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में भारतीय प्रतिनिधिमंडल शामिल हुआ था। मिलेट्स प्राचीन व शुष्क भूमि की महत्वपूर्ण फसलें हैं। छोटे दाने वाली इन अत्यधिक पौष्टिक अनाज-खाद्य फसलों को कम वर्षा में सीमांत मिट्टी/कम उपजाऊ मिट्टी व उर्वरक तथा कीटनाशक जैसे इनपुट की कम मात्रा में उगाया जाता है। मिलेट्स का मूल भारत है, जिनकी पोषक-अनाज के रूप लोकप्रियता रही है, क्योंकि सामान्य कामकाज के लिए ये आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं। मिलेट्स एशिया एवं अफ्रीका में कृषि के रूप में अपनाई जाने वाली पहली फसल थी, जो बाद में विश्वभर में विकसित सभ्यता के लिए महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत के रूप में फैल गई।

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Political News : हमारे प्रधानमंत्री यानि PM के मायने पैकेजिंग एंड मार्केटिंग है : जयराम रमेश

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The meaning of our Prime Minister PM is packaging and marketing: Jairam Ramesh
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 04:57 PM
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जयपुर। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तल्ख टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम के मायने बदल दिए हैं। अब पीएम के मायने प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि पैकेजिंग एंड मार्केटिंग हो गया है।

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भारत जोड़ो यात्रा का राजस्थान में मंगलवार को अंतिम दिन था। राजस्थान में राहुल गांधी 500 किलोमीटर से अधिक पैदल चले। इस दौरान उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन सहित 60 से अधिक महत्वपूर्ण संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। राहुल गांधी ने इस मुलाकात के दौरान इन प्रतिनिधियों से देश की जमीनी हकीकत को जानने का प्रयास किया।

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इस यात्रा के बीच आज पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रभारी जयराम रमेश ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि विरोधी काम कम और अपनी उपलब्धियों का प्रचार अधिक करते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम की परिभाषा को बदल दिया है। अब पीएम का मतलब प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि पैकेजिंग एवं मार्केटिंग हो गया है। अपने बगल में बैठे हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ इशारा करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कहूंगा कि वह भी अब सीएम की परिभाषा को बदल दें। सीएम की परिभाषा मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि कम्युनिकेशन मिनिस्टर होनी चाहिए।

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जयराम रमेश ने कहा कि राजस्थान में अनेक ऐसी योजनाएं हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है। उन्होंने दावा किया कि जल्द ही राजस्थान सरकार द्वारा ऑनलाइन कंपनियों के लिए डिलीवर ब्वाय का काम करने वाले युवाओं के लिए एक स्कीम लॉन्च की जाएगी। इसका पूरा लाभ उन युवाओं को मिलेगा, जो देशी विदेशी कंपनियों के लिए डिलीवरी ब्वॉय का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार जल्द इनके लिए एक उत्थान योजना लेकर आएगी।

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जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि क्षेत्रीय मीडिया कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की खबरों को प्राथमिकता से प्रकाशित कर रही है। जबकि राष्ट्रीय मीडिया सरकार के दबाव में इस यात्रा को सवालों के घेरे में खड़ा करने से बाज नहीं आ रही है। उन्होंने कहा कि सच, सच होता है। यह यात्रा देश को जोड़ने का काम करेगी। साल—2024 के लोकसभा चुनाव में इसका क्या असर होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। कांग्रेस नेता ने कहा कि हरियाणा में भ्रमण करने के बाद यात्रा दिल्ली में 9 दिनों के लिए स्थगित की जाएगी। इस दौरान जो 70 कंटेनर यात्रा में चल रहे हैं, उनका मेंटेनेंस किया जाएगा। साथ ही दूरदराज से आए हुए प्रतिनिधियों को भी उनके परिजनों से मिलने का समय मिलेगा। उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि इस स्थगन को सकारात्मकता से लें। इसके लिए नकारात्मक सोच ना बनाएं।
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Kota suicide
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 09:45 PM
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Kota suicide: कई बार, माता-पिता अपने बच्चे से कुछ ऐसा करवाते हैं, जो वह नहीं करना चाहते। दूसरों के साथ-साथ खुद की अपेक्षाओं का बोझ बच्चों को हतोत्साहित करता है। कोटा। उज्जवल​ ​भविष्य के लिए राजस्थान के कोटा में देश—विदेश तक के छात्र कोचिंग करने आते हैं। परिवार भी कोचिंग के लिए लाखों रुपये किसी तरह से इंतजाम करके खर्च करता है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार उनमें से कई जल्द ही खुद को व्यस्त दिनचर्या, साथियों के दबाव और उम्मीदों के बोझ से दबा पाते हैं। यह परीक्षा में असफल होने का डर नहीं है, बल्कि इसके बाद का-अपमान और तिरस्कार- है जो उन्हें (छात्रों को) अपने जीवन को समाप्त करने की दिशा में ले जाता है।

Kota suicide

यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे तीन छात्रों द्वारा हाल में की गई खुदकुशी ने इस बात को लेकर नए सिरे से बहस छेड़ दी है कि आखिर क्या कारक हैं जिनके चलते छात्र इस दिशा में बढ़ जाते हैं। एलेन कॅरियर इंस्टीट्यूट के प्रमुख मनोवैज्ञानिक डॉ. हरीश शर्मा ने कहा कि छात्रों को अक्सर पढ़ाई के बजाय भावनात्मक तनाव से जूझना मुश्किल लगता है। उन्होंने कहा, छात्रों के बीच शिक्षा संबंधी तनाव, भावनात्मक तनाव जितना अधिक नहीं है। छात्र वास्तव में एक परीक्षा में असफल होने से नहीं डरते हैं, बल्कि इसके बाद के - अपमान और तिरस्कार- से डरते हैं। इसलिए वे पलायनवादी रुख अपनाना पसंद करते हैं। शर्मा ने कहा कि दूसरों की उम्मीदों का बोझ उनकी खुद की उम्मीदों के साथ जुड़ जाता है, जो अक्सर छात्रों को हतोत्साहित करता है। उन्होंने कहा, पालन-पोषण की शैली वैसी ही है, जैसी 1970 के दशक में थी, जबकि बच्चे के पास 2022 का आधुनिक मस्तिष्क है और उसे जो कुछ भी करने के लिए कहा जाता है, वह उसके लिए वैज्ञानिक स्पष्टीकरण की मांग करता है। कई बार, माता-पिता अपने बच्चे से कुछ ऐसा करवाते हैं, जो वह नहीं करना चाहते। दूसरों के साथ-साथ खुद की अपेक्षाओं का बोझ बच्चों को हतोत्साहित करता है। एक के बाद एक व्याख्यान, परीक्षा श्रृंखला, अपने साथियों से आगे निकलने की निरंतर दौड़ और पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश-कोटा में कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले छात्र का औसत दिन लगभग ऐसा ही दिखता है। शर्मा ने कहा कि इस व्यस्त कार्यक्रम के बीच, कई छात्र खुद को थोड़ी राहत देने के लिए वेब सीरीज देखते हैं, लेकिन अक्सर यह नहीं जानते कि कब रुकना है, जिससे वे अपनी पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं। उन्होंने कहा, वेब सीरीज़ की लत गंभीर है। उनका प्रभाव डोपामाइन (फील-गुड हार्मोन) के एक शॉट से 4,000 गुना अधिक है। छात्र तब तक वेब सीरीज देखना बंद नहीं करते, जब तक कि वे इसे पूरा नहीं कर लेते। उन्होंने कहा, हम अक्सर छात्रों को सूजन और लाल आंखों के साथ इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन सिंड्रोम से पीड़ित पाते हैं। इस साल यहां कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले कम से कम 14 छात्रों ने आत्महत्या की है। पुलिस के मुताबिक, पिछले सप्ताह आत्महत्या करने वाले तीन छात्रों में से बिहार के नीट परीक्षार्थी अंकुश आनंद (18) और बिहार के गया जिले के जेईई की तैयारी कर रहे उज्ज्वल कुमार (17) अपने पेइंग गेस्ट (पीजी) आवास में अपने-अपने कमरे में 12 दिसंबर को फंदे से लटकते पाए गए। तीसरे छात्र मध्य प्रदेश से आए नीट की तैयारी कर रहे प्रणव वर्मा (17) ने 11 दिसंबर को अपने छात्रावास में कथित तौर पर जहरीले पदार्थ का सेवन किया था। हालांकि, 2021 में किसी भी छात्र की आत्महत्या की सूचना नहीं मिली, जब यहां के कोचिंग सेंटर कोविड-19 महामारी के कारण बंद थे और छात्रों ने अपने घरों से ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लिया। कोचिंग सेंटर के छात्रों द्वारा आत्महत्या की संख्या 2019 में 18 और 2020 में 20 थी। इस साल कोटा के विभिन्न कोचिंग संस्थानों में रिकॉर्ड दो लाख छात्र पढ़ रहे हैं। यहां न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. चंद्रशेखर सुशील ने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए दबाव बनाने के बजाय अपने बच्चों का अभिवृत्ति (एप्टीट्यूड) टेस्ट कराना चाहिए और फिर तय करना चाहिए कि उनके लिए सबसे अच्छा क्या है। वह कहते हैं, मुझे विश्वास नहीं है कि छात्रों की आत्महत्या में कोचिंग संस्थानों की बहुत अधिक भूमिका है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि जेईई और एनईईटी बहुत कठिन परीक्षाएं हैं और इसलिए शिक्षण और सीखने को भी समान स्तर का माना जाता है। उन्होंने कहा, हालांकि, छात्रों को कोटा भेजने से पहले एप्टीट्यूड टेस्ट लेना बहुत महत्वपूर्ण है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को जबरन यहां भेजते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर या इंजीनियर बनें और इस तथ्य पर विचार न करें कि वे ऐसा करने में सक्षम हैं या नहीं। उन्होंने कहा, बच्चे अक्सर इस चिंता में रहते हैं कि परीक्षा में सफल नहीं होने पर वह क्या मुंह दिखाएंगे। उन्हें सलाह देने की जरूरत है कि इंजीनियरिंग और चिकित्सा से परे भी जीवन है और चुनने के लिए करियर के कई विकल्प उपलब्ध हैं। यहां के लैंडमार्क इलाके के हॉस्टल वार्डन नरेंद्र कुमार के मुताबिक, ज्यादातर माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे के कोचिंग सेंटर में दाखिला लेने के बाद उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है और उन्होंने फीस का भुगतान कर दिया है। उन्होंने कहा, छात्रावास में रहने वाले केवल 25 फीसदी छात्रों के माता-पिता हॉस्टल के ‘केयरटेकर’ से बात करके अपने बच्चों के बारे में नियमित पूछताछ करते हैं, जबकि बाकी 75 फीसदी 2-3 महीने में एक बार पूछताछ करते हैं। जिला प्रशासन ने अब कोचिंग संस्थानों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वे एक मनोवैज्ञानिक को नियुक्त करें और जेईई (इंजीनियरिंग) और एनईईटी (मेडिकल) के अलावा अन्य करियर विकल्पों पर भी छात्रों का मार्गदर्शन करें।

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