Tuesday, 1 April 2025

अरविंद केजरीवाल का “शीश महल” बनाम सतखंडा महल

Sheesh Mahal : दिल्ली की जनता की नजरों से गिर चुके अरविंद केजरीवाल के “शीश महल” की चर्चा थमने का…

अरविंद केजरीवाल का “शीश महल” बनाम सतखंडा महल

Sheesh Mahal : दिल्ली की जनता की नजरों से गिर चुके अरविंद केजरीवाल के “शीश महल” की चर्चा थमने का नाम नहीं ले रही है। दिल्ली की नई नवेली भाजपा सरकार ने “शीश महल” के निर्माण की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। दिल्ली प्रदेश में “शीश महल” की चर्चा हर तरफ मौजूद है। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि भविष्य में “शीश महल” का क्या होगा? भारत में एक ऐसा महल भी मौजूद है जो पिछले चार सौ साल से वीरान पड़ा है। उस महल का नाम सतखंडा महल है। हमने “शीश महल” बनाम सतखंडा महल की तुलना यहां प्रस्तुत की है।

क्या होता है “शीश महल”

“शीश महल” शब्द का प्रयोग पहली बार मुगल साम्राज्य में हुआ था। शीश महल एक ऐसा महल होता है जिसकी चमक बिना शीशे के भी इतनी तेज होती है कि उस शीश महल में मौजूद व्यक्ति, जानवर अथवा वस्तु की छवि चारों तरफ चमकती है। इतिहासकारों का मत है कि मुगल बादशाह अपनी अय्याशी के लिए शीश महल जैसी इमारतों का निर्माण कराते थे। दुनिया की प्रसिद्ध फिल्म मुगल-ए-आजम में भी शीश महल को दर्शाया गया है। सबसे पुरातन शीश महल पाकिस्तान के लाहौर में स्थित है। लाहौर के शीश महल को ताजमहल बनवाने वाले शाहजहां ने बनवाया था। लाहौर के शीश महल में शाहजहां अय्याशी किया करता था। भारत के आगरा, पटियाला था जयपुर में भी शीश महल बनवाए गए थे। अय्याशी के अड्डे के रूप में बदनाम स्थानों के अनुरूप ही भारतीय जनता पार्टी ने अरविंद केजरीवाल द्वारा बनवाए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास को “शीश महल” नाम दिया है। भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता इस “शीश महल” में रहने को तैयार नहीं हैं।

सौ करोड़ रुपए से अधिक खर्च हुए हैं दिल्ली के “शीश महल” पर भाजपा सरकार ने अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए विधानसभा में आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यकाल की कैग रिपोर्ट पेश करनी शुरू कर दी है। मंगलवार को आबकारी नीति से जुड़ी रिपोर्ट पेश की गई। आने वाले दिनों में विधानसभा में पेश की जाने वाली 13 अन्य रिपोर्टों में से एक 6-फ्लैग स्टाफ रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास के जीर्णोद्धार से भी जुड़ी है। भाजपा ने इस आवास का नाम शीश महल रखा है। मुख्यमंत्री रहते हुए अरविंद केजरीवाल इसी सरकारी आवास में रहा करते थे।

कोरोना महामारी के दौरान करोड़ों रुपये खर्च कर इस आवास का जीर्णोद्धार किया गया। भाजपा इसमें भ्रष्टाचार का आरोप लगाती रही है। विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बना था। सतर्कता आयोग के निर्देश पर सीपीडब्ल्यूडी इस मामले की जांच कर रहा है। पीडब्ल्यूडी विभाग ने वर्ष 2020 में मुख्यमंत्री आवास की साज-सज्जा पर 7.91 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन इस कार्य को इससे 13.21 फीसदी अधिक यानी 8.62 करोड़ में आवंटित किया गया। बाद में इस कार्य को इससे 342.31 फीसदी अधिक यानी 33.66 करोड़ रुपये खर्च कर पूरा किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, ऑडिटर को यह नहीं बताया गया कि पीडब्ल्यूडी ने किस आधार पर इस काम के लिए तीन कंसल्टेंसी एजेंसियों का चयन किया। कंसल्टेंसी एजेंसी को अधिक पैसे भी दिए गए। ठेकेदारों को काम आवंटित करते समय उनकी वित्तीय स्थिति, संसाधन और अनुभव को ध्यान में नहीं रखा गया। ठेकेदार का चयन मनमाने तरीके से किया गया। निर्मित क्षेत्रफल 1397 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 1905 वर्ग मीटर कर दिया गया। मुख्यमंत्री आवास की साज-सज्जा पर 18.88 करोड़ रुपये खर्च किए गए। पीडब्ल्यूडी ने इसे अन्य मदों में खर्च बताया है।

मुख्यमंत्री आवास में कैंप कार्यालय और स्टाफ क्वार्टर बनाने के लिए आवंटित 19.87 करोड़ रुपये का इस्तेमाल दूसरे कामों में किया गया। इस कारण कैंप कार्यालय का सिर्फ कच्चा ढांचा ही बन पाया। स्टाफ क्वार्टर के लिए पैसा आवंटित हुआ, लेकिन उसका निर्माण नहीं हुआ। भाजपा का दावा है कि कैग रिपोर्ट में शीश महल को लेकर 139 सवाल उठाए गए हैं। शीश महल का निर्माण दिल्ली शहरी कला आयोग और नगर निगम की अनुमति के बिना किया गया है। कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 तक का खर्च 33.66 करोड़ रुपये है।

इसके बाद का खर्च मिला दिया जाए तो यह 100 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। उनका कहना है कि कैग रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री को उनकी हैसियत से बड़ा बंगला आवंटित किया गया। जीर्णोद्धार कार्य को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट दिया गया, ताकि उपराज्यपाल की अनुमति की जरूरत न पड़े। भाजपा ने पिछले साल 9 दिसंबर को एक वीडियो जारी कर दावा किया था कि शीश महल में 80 करोड़ रुपये के पर्दे, 64 लाख रुपये के 16 टीवी, 10 लाख रुपये का सोफा, 9 लाख रुपये का फ्रिज, 22.5 लाख रुपये का गीजर, 15 करोड़ रुपये के वाटर सप्लाई और सेनेटरी फिटिंग्स, 12 लाख रुपये की गोल्ड प्लेटेड टॉयलेट सीटें लगाई गईं। यह भी आरोप लगाया गया है कि इनमें से कई सामान गायब हो गए हैं। शीश महल मामला मई 2023 में तब सामने आया था जब उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई ने सितंबर 2023 में मामला दर्ज कर आरोप लगाया था कि कोरोना महामारी के दौरान मुख्यमंत्री आवास पर करीब 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

क्या सतखंडा महल की तरह वीरान हो जाएगा “शीश महल”

दिल्ली के “शीश महल” की तुलना मध्य प्रदेश के सतखंडा महल से भी की जा सकती है। जिस प्रकार दिल्ली का “शीश महल” बदनाम हो चुका है उससे यह तुलना और भी सार्थक हो जाती है। शीश महल भी सैकड़ों वर्षों तक वीरान पड़ा रह सकता है। दरअसल मध्य प्रदेश में एक अनोखा महल वीरान पड़ा हुआ है। इस महल का नाम सातखंडा महल है। शायद सन्नाटा ही इस आलीशान सात मंजिला महल का करीब चार सौ वर्षों से हमसफर है। महज एक दिन मुगल बादशाह जहांगीर के रहने के लिए बनाए गए इस महल को स्थानीय लोग सतखंडा महल कहते हैं। अफसोस यह कि जहांगीर यहां कभी नहीं आ पाए, और स्वास्तिक के आकार की यह इमारत आबाद न हो सकी। मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित यह महल कई मायनों में इतिहास की अजूबी दास्तान समेटे खामोशी से खड़ा है।

इस ऐतिहासिक कथा का सिरा ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला (1605-1627) से जुड़ता है। वह चाहते थे कि उनके मित्र और मुगल शासक जहांगीर उनकी भेंट को स्वीकार करें। इसी वजह से दतिया में एक लेकिन जहांगीर ने विनम्रता से इस न्योते को ठुकरा दिया। दरअसल, जहांगीर जब शहजादे सलीम थे, तब उन्होंने अकबर के खिलाफ विद्रोह किया था, तो वीर सिंह बुंदेला ने ही मुगल सेनापति अबुल फजल का सिर नरवर में कलम किया था। 440 कमरों और सात तलों वाली इस इमारत को कभी भी रहने के उद्देश्य से नहीं चनाया गया था, वीर सिंह ओरछा में रहते थे। उन्होंने जहांगीर के लिए दतिया में छोटे-बड़े 52 महल बनवाए थे। लेकिन सबसे शानदार यही है। कुछ लोग इसे पुराना महल भी कहते हैं। इसे गोविंद महल, गोविंद मंदिर, जहांगीर महल, बीर सिंह महल के नाम से भी जाना जाता है। नई दिल्ली के वास्तुविद सर एडवर्ड लुटियंस इस इमारत की वास्तुकला से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका इस्तेमाल दिल्ली में नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को डिजाइन करने में किया। महल की ख्याति सुन 1818 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स और 1902 में वायसराय लॉर्ड कर्जन ने यहां दरबार लगाया था।

 “शीश महल” बनवाने वाले शाहजहां भी गए थे सतखंडा महल में

जैसा कि हम  आपको बता चुके हैं कि सबसे चर्चित शीश महल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने करवाया था। चार सौ साल से वीरान पड़े हुए सतखंडा महल को देखने शाहजहां भी आए थे। बताते हैं कि वर्ष 1635 में मुगल बादशाह शाहजहां के साथ यहां आए इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने इसे बेहद शानदार बताया था। महल के निर्माण में नौ साल लगे और 35 लाख रुपये लागत आई। मथुरा में वीर सिंह को सोने में तोला गया था, उसका इस्तेमाल इसे बनाने में किया गया। माइड लखनलाल रजक बताते हैं कि आपको इसकी पांच ही मंजिलें नजर आएंगी। दो मंजिलें जमीन के अंदर हैं। जमीन में भी कमरों व सुरंगों का जाल है। इसे बनाने में लोहे या लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इमारत पत्थर और ईंटों के दम पर खड़ी है। इस महल तक पहुंचने का रास्ता गुलियों से होकर गुजरता है। लेकिन एक बार जब आप इसके सामने होते हैं, तो आसपास का परिवेश बेमानी हो जाता है और एक सन्नाटा-सा अंदर तक पसर जाता है… शायद यही इस महल की नियति है।

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