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Adi Shankaracharya Jayanti 2023 : धर्म स्थापना के लिए 1200 वर्ष पहले किया वैदिक ज्ञान का प्रचार

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Adi Shankaracharya Jayanti 2023 : वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को गुरु शंकराचार्य जी की जयंती के रुप में मनाया जाता है। वैशाख का महीना कई मायनों में काफी महत्वपुर्ण माना जाता रहा है।  इस माह के दौरान कई महान धर्म गुरु एवं धर्म सुधारकों का जन्मोत्सव भी मनाया जाता रहा है।  इसी क्रम में आदि शंकराचार्य जी का नाम बहुत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ लिया जाता है।  आदि शंकराचार्य जी का स्थान भारत की संस्कृति एवं धर्म के पुनरुथान हेतु बेहद महत्वपूर्ण रहा है।  हिंदू पंचांग के अनुसार, आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईसा पूर्व में वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था।  आदि शंकराचार्य की जयंती के उपलक्ष्य पर देश भर में विशेष पूजा आयोजन किए जाते हैं।  लोग इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाते हैं और इस वर्ष आदि शंकराचार्य जयंती का पर्व 25 अप्रैल 2023 को मनाया जाने वाला है।

आदि शंकराचार्य का जन्म और उनके जीवन की घटनाएं

आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल में कालड़ी के नंबूदरी परिवार में हुआ था।  ब्राह्मण परिवार में जन्में शंकराचार्य जी ने देश भर में घूम घूम कर धर्म की स्थापना एवं उसके प्रचार के कार्य को संपन्न किया।  आदि शंकराचार्य को जगद्गुरु के नाम से भी जाना जाता  है। आदि शंकराचार्य जयंती को पवित्र धार्मिक उत्सव के रुप में जाना जाता है.। उन्होंने वैदिक ज्ञान का प्रचार किया। आदि शंकराचार्य जी के जन्म से कई तरह की कथाएं भी काफी प्रचलित रही हैं।  इनके चमत्कारों का प्रभाव सभी के जीवन पर रहा है। आदि शंकराचार्य के जन्म के बारे में एक कहानी है जिसमें माना जाता है कि एक समय ऐसा था जब लोग पवित्रता और आध्यात्मिकता से वंचित थे। सभी ऋषियों ने भगवान शिव से मदद लेने के लिए उनके पास जाने का फैसला किया और भगवान शिव ने उन्हें वादा किया कि वह हिंदू धर्म में लोगों को आध्यात्मिकता के बारे में बताने के लिए आदि शंकराचार्य के रूप में जन्म लेंगे।  इस प्रकार, आदि शंकराचार्य का जन्म हिंदू धर्म के अनुयायियों को पढ़ाने और उनकी मदद करने के लिए हुआ था।

आदि शंकराचार्य जी ने देश भर में की थी मठों की स्थापना

Adi Shankaracharya Jayanti 2023 :  इस उद्देश्य के लिए जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना अलग अलग नामों से की ।  जिसमें श्रृंगेरी मठ, गोवर्धन मठ, शारदा मठ, ज्योतिर मठ(जोशी मठ). इन चारों मठों की देख-रेख के लिए, उन्होंने अपने सबसे वरिष्ठ और पसंदीदा चार शिष्यों को प्रधान बनाने  के लिए चुना और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लाभ के लिए इन मठों को सफलतापूर्वक व्यवस्थित किया। आज भी ये मठ बेहद मजबूती के साथ स्थापित हैं।  शंकराचार्य जी ने प्रत्येक मठ को वेदों, उपनिषदों और अन्य पवित्र ग्रंथों के गहन ज्ञान प्राप्त करने के लिए हिंदू धर्म के लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी सौंपी।  इन मठों ने वेदों का अनुसरण कर लोगों में वैदिक ज्ञान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सनातन धर्म में लोगों का जीवन चार वेदों पर आधारित रहा है । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद पर बहुत कार्य किया।  आदि शंकराचार्य वह थे जिन्होंने पूजा के लिए एक साथ पांच देवताओं गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और देवी की पूजा करने का आहवान किया।  सोलह वर्ष की आयु तक, उन्हें वेदों में महारत हासिल थी।  अनेक ग्रन्थों एवं शास्त्रों की रचना की, ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 32 वर्ष की आयु तक जो कार्य धर्म की स्थापना हेतु किया वह आज भी प्रासंगिक है।

राजरानी

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