Reality of karwachauth:करवाचौथ  क्यों मनाया जाता है?

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calendar30 Nov 2025 06:07 PM
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करवाचौथ का व्रत हिंदू परंपरा मे एक अलग ही महत्व रखता है ।ये व्रत सुहगिनो औरतों के साथ  लड़किया भी रखती है ।जिन का विवाह तय हो गया हो या फिर लड़कियों की शादी की उम्र हो गयी हो वे भी व्रत रखती है ।

Reality of Karwachauth

यह भारत के जम्मू ,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है।  यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक निरंतर प्रति वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:

  देवताओं के समय से यह व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है ।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए।ब्रह्मदेव के कहे अनुसार सभी स्त्रियों ने सुझाव को स्वीकार किया और व्रत किया।कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन व्रत करने के उपरांत पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की।   पत्नियों द्वारा रखें गयें व्रत की पूजा स्वीकार हुई और युद्घ मे देवताओं की जीत हुई।इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उसी समय  देव पत्नियों को आकाश मे चंद्र दर्शन भी हो गयें । सभी ने चंद्र को अर्ध्य देकर पूजा अर्चना की ।माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।    

भारतवर्ष मे चौथ माता के मंदिर:

  भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति और मान्यता प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया।हिंदू मान्यताओं में महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है करवा चौथ के दिन स्त्रियां इसे विशेष तौर पर पैरों में लगाती हैं।    

पूजन की विधि:

  बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। यदि कोई विग्रह या मूर्ती नही है तो आप सुपारी को मौली बांध कर देवता की भावना से स्थापित करें ।उसके बाद यथाशक्ति देवों का पूजन करें।व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है।

Karwachauth 2023 पर दिल्ली समेत एनसीआर में चांद निकलने का समय

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करवाचौथ का व्रत हिंदू परंपरा मे एक अलग ही महत्व रखता है ।ये व्रत सुहगिनो औरतों के साथ  लड़किया भी रखती है ।जिन का विवाह तय हो गया हो या फिर लड़कियों की शादी की उम्र हो गयी हो वे भी व्रत रखती है ।

Reality of Karwachauth

यह भारत के जम्मू ,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है।  यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक निरंतर प्रति वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:

  देवताओं के समय से यह व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है ।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए।ब्रह्मदेव के कहे अनुसार सभी स्त्रियों ने सुझाव को स्वीकार किया और व्रत किया।कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन व्रत करने के उपरांत पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की।   पत्नियों द्वारा रखें गयें व्रत की पूजा स्वीकार हुई और युद्घ मे देवताओं की जीत हुई।इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उसी समय  देव पत्नियों को आकाश मे चंद्र दर्शन भी हो गयें । सभी ने चंद्र को अर्ध्य देकर पूजा अर्चना की ।माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।    

भारतवर्ष मे चौथ माता के मंदिर:

  भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति और मान्यता प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया।हिंदू मान्यताओं में महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है करवा चौथ के दिन स्त्रियां इसे विशेष तौर पर पैरों में लगाती हैं।    

पूजन की विधि:

  बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। यदि कोई विग्रह या मूर्ती नही है तो आप सुपारी को मौली बांध कर देवता की भावना से स्थापित करें ।उसके बाद यथाशक्ति देवों का पूजन करें।व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है।

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कार्तिक माह पर दीपदान करने का क्यों हैं इतना विशेष महत्‍व 

Kartik mass
kartik month deepdan 2023
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calendar30 Oct 2023 05:47 PM
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kartik month deepdan 2023 कार्तिक माह के आरंभ होने के साथ ही शुरु हो जाता है त्यौहारों का सिलसिला. कार्तिक माह में आने वाले हर दिन को भक्ति और शृद्धा के साथ पूजा जाता है. कार्तिक माह में स्नान एवं दीपदान का बहुत विशेष महत्व बताया गया है. मान्यताओं के अनुसार इस समय पर किया जाने वाला स्नान एवं दीपदान व्यक्ति को जीवन मरण के बंधन से भी मुक्त कर देने वाला होता है. व्यक्ति को उत्तम फलों के साथ साथ पापों के शमन का वरदान भी प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में जहां हर माह की अपनी एक अलग विशेषता है वहीं कार्तिक माह को श्रेष्ठ माह का स्थान प्राप्त होता है. इस समय दीपदान करने का विशेष महत्व बताया गया है. भागवत, विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण इत्यादि सभी में इस पूरे माह किए जाने वाले धार्मिक कार्यों के साथ साथ दीपदान की महत्ता को भी दर्शाया गया है.

कार्तिक माह और दीपदान 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है तथा दीपदान द्वारा कुल की वृद्धि होती है. दीपदान करने से देवी देवता एवं पितृ सभी प्रसन्न होते हैं. साथ ही यह प्रकाश का उत्सव होता है जो सभी प्राणियों को अंधकार से मुक्ति प्रदान करता है. दीपदान के समय को अनेक अवसरों एवं शुभ कार्यों मांगलिक कृत्यों धार्मिक उत्सवों इत्यादि सभी पर बहुत शुभ माना जाता है. इस कार्तिक माह के आगमन के साथ ही दीपदान का आरंभ हो जाता है. कार्तिक में इस कार्य का महत्व बढ़ जाता है. इसे सर्वोत्तम माना गया है जो प्रकाश को आलौकित करने के साथ साथ आत्मा को जागृत करता है. दीप दान करने पर दीपक कई तरह से स्थापित करने का भी विधान है. दीप जलाकर पूजा करने का विधान तथा दीपक को नमन करना इस समय पर विशेष फल प्रदान करता है.

दीपदान के साथ साथ इस माह के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. इसके साथ ही नियमित रुप से दान कार्य करने चाहिए. सामर्थ्य अनुसर इस माह के दौरान दान दक्षिणा प्रदान करने से व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है. वहीं शुभ फलों को पाने के लिए इस दीपदान को विशेष रुप से किया जाता है. दीपदान करने से व्यक्ति को धन-संपत्ति का सुख मिलता है. जीवन के शुभ कार्यों में वृद्धि होती है. दीपदान करने का महत्व एवं विधि-विधान बहुत ही विशेष रुप से किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दीपदान करने से भक्तों की मनोकनाएं पूर्ण होती हैं. कार्तिक मास में दीपदान और धार्मिक कृत्य  

हिंदू धर्म में कार्तिक मास में दीपदान को कभी भी किया जाने का विधान बताया गया है. माह के आरंभ के आरंभ होने के साथ ही इस कार्य को किया जा सकता है अथवा विशेष दिनों पर भी इस कार्य को कर सकते हैं. चातुर्मास में शामिल कार्तिक मास के दौरान दीपदान करने से शुभकर्मों में वृद्धि होती है. इस माह को शास्त्रों में बहुत महत्व दिया गया है. इस माह में ब्रह्म मुहूर्त स्नान, त्रिकाल संध्या, पूजन और दान के साथ दीपदान का भी विशेष महत्व माना जाता है. धर्म की मान्यता है कि इस महीने में भक्तों को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है. एस्ट्रोलॉजर राजरानी

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