Reality of karwachauth:करवाचौथ क्यों मनाया जाता है?

Reality of Karwachauth
यह भारत के जम्मू ,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक निरंतर प्रति वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:
देवताओं के समय से यह व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है ।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए।ब्रह्मदेव के कहे अनुसार सभी स्त्रियों ने सुझाव को स्वीकार किया और व्रत किया।कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन व्रत करने के उपरांत पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। पत्नियों द्वारा रखें गयें व्रत की पूजा स्वीकार हुई और युद्घ मे देवताओं की जीत हुई।इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उसी समय देव पत्नियों को आकाश मे चंद्र दर्शन भी हो गयें । सभी ने चंद्र को अर्ध्य देकर पूजा अर्चना की ।माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।भारतवर्ष मे चौथ माता के मंदिर:
भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति और मान्यता प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया।हिंदू मान्यताओं में महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है करवा चौथ के दिन स्त्रियां इसे विशेष तौर पर पैरों में लगाती हैं।पूजन की विधि:
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। यदि कोई विग्रह या मूर्ती नही है तो आप सुपारी को मौली बांध कर देवता की भावना से स्थापित करें ।उसके बाद यथाशक्ति देवों का पूजन करें।व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है।Karwachauth 2023 पर दिल्ली समेत एनसीआर में चांद निकलने का समय
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यह भारत के जम्मू ,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक निरंतर प्रति वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:
देवताओं के समय से यह व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है ।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए।ब्रह्मदेव के कहे अनुसार सभी स्त्रियों ने सुझाव को स्वीकार किया और व्रत किया।कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन व्रत करने के उपरांत पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। पत्नियों द्वारा रखें गयें व्रत की पूजा स्वीकार हुई और युद्घ मे देवताओं की जीत हुई।इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उसी समय देव पत्नियों को आकाश मे चंद्र दर्शन भी हो गयें । सभी ने चंद्र को अर्ध्य देकर पूजा अर्चना की ।माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।भारतवर्ष मे चौथ माता के मंदिर:
भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति और मान्यता प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया।हिंदू मान्यताओं में महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है करवा चौथ के दिन स्त्रियां इसे विशेष तौर पर पैरों में लगाती हैं।पूजन की विधि:
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। यदि कोई विग्रह या मूर्ती नही है तो आप सुपारी को मौली बांध कर देवता की भावना से स्थापित करें ।उसके बाद यथाशक्ति देवों का पूजन करें।व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है।Karwachauth 2023 पर दिल्ली समेत एनसीआर में चांद निकलने का समय
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