Kite Festival: परिंदों के साथ परवाज भरेंगे पतंग

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 06:48 AM
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सोनाली नौटियाल अगस्त का आगाज होने को है और स्वतंत्रता दिवस (Independence day) की तैयारियां लोगों के बीच खूब जोर-शोर से शुरू हो गई है। जहां लाल किले पर हमारे प्रधानमंत्री (Prime minister) द्वारा तिरंगा फहराने(Flag Hosting)  की प्रथा है, वहीं देश की राजधानी दिल्ली में पतंग उड़ाने के उत्साह का कोई जवाब ही नहीं है। वैसे तो पतंग उड़ाना किसे पसंद नहीं। बच्चों से लेकर बुर्जुगों तक के बीच पतंगबाजी बहुत ही लोकप्रिय है। मगर, मौजूदा दौर में यह खेल जानलेवा साबित होता जा रहा है। पतंग उड़ाने वालों की संख्या जहां त्योहार(Festival) आते ही बढ़ने लगती है, वहीं पतंग की वजह से जान का जोखिम भी तेजी से बढ़ने लगा है। अभी हाल ही में बुराड़ी से रोहिणी जा रहे युवक सुमित की बाइक चलाने के दौरान गले में मांझा फंसने से मौत हो गई। वह पेशे से कारोबारी थे। वह अपने माता पिता की अकेली संतान थे। मांझे ने सुमित से जिंदगी छीन ली। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। देश में रोज ऐसे मामले पिछले कुछ वर्षों से लगातार दर्ज हो रहे हैं। पतंग में लगी डोर अब जीवन छीनने का काम करने लगी है। दरअसल, पतंग की डोरी पहले सूती धागे से बांधी जाती थी, लेकिन अब सिंथेटिक धागे ने उसकी जगह ले ली है। यह आयातित मांझे जीवन के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं। दिल्ली के आसमान में उड़ती पतंगों को काटने की होड़ में मांझे बेजुबानों और इंसानों की जिंदगी की डोर काट रहा है। बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी इसकी डिमांड बाजार में बीते दशकों में तेजी से बढ़ी है। ये मांझा प्लास्टिक से बना होता है, जिसकी धार किसी तेज चाकू से कम नहीं होती। ये मांझे बेहद मजबूत होते हैं, जिसे मेटलिक कोटिंग से तैयार किया जाता है। इसमें शीशा, व(Glass) ज्रम गोंद (Vajram Gum) , मैदा (flour , एल्यूमिनियम ऑक्साइड (Aluminum Oxide)और जिरकोनिया ऑक्साइड (Zirconia Oxide) का इस्तेमाल किया जाता है। बाजार में ऐसे मिलने वाले मांझे किसी ब्लेड की तरह धार रखते हैं, जो पतंग काटने के साथ साथ पक्षियों और लोगों के लिए भी उतना ही खतरनाक है। चाइनीज मांझे (chinese manjha) की विशेष तौर पर बात की जाए तो पिछले साल ही जुलाई के महीने में अकेले दिल्ली में छह किलो मांझा जब्त किया गया था। अगस्त 2021 में पेटा की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने कड़ी कार्रवाई की और कई दुकानदारों को गिरफ्तार भी किया था। पतंग विक्रेताओं के अनुसार बाजार में अब चाइनीज मांझे की बजाय नायलॉन, सिंथेटिक से बने मांझे ही बिक रहे हैं। पतंग की डोर से जीवन को कोई खतरा न हो, इसके लिए हमें खुद की सुरक्षा का हर पल ध्यान रखना होगा। सिर पर फेस मास्क वाला हेलमेट पहन के चलना, हाथों में ग्लव्स और गर्दन और मुंह पर हमेशा कपड़ा लपेटकर रखना, गाड़ी चौकन्ने होकर चलाना, स्पीड ज्यादा तेज न रखना, मांझे को देखकर तुरंत ब्रेक लगाना जैसी आदतें हमें अपनानी चाहिए। दिल्ली प्रदूषण विभाग ने मांझों के बाबत विशेष नियम बनाए हैं, जिसका उल्लंघन करने पर पांच साल तक की जेल और एक लाख रुपये का जुर्माना तय है।
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New Delhi: वरिष्ठ साहित्यकारों की साहित्य यात्रा से कराया अवगत

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar04 Jul 2022 11:48 PM
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New Delhi : नई दिल्ली। साहित्य संगम संस्थान दिल्ली इकाई की ओर से सोमवार को एक अनूठा साक्षात्कार एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गाय। जिसमें उन वरिष्ठ साहित्यकार रचनाकारों की साहित्यिक यात्रा का साक्षात्कार लिया जा रहा है जो कभी सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं रहे।

इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकारा निर्मला मुक्ता टोप्पो का साक्षात्कार लिया गया। मुक्ता जी दिल्ली विकास प्राधिकरण से सेवानिवृत्त सहायक निदेशक हैं। साक्षात्कारकर्ता रहे प्रबुद्ध साहित्यकार साहित्य संगम संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष कुमार रोहित रोज ने मुक्ता टोप्पो से उनके साहित्यिक सफ़र से संबंधित, संघर्ष व सुखद अनुभवों पर वार्ता व संवाद किया और अनेक प्रश्न पूछे। टोप्पो जी ने बेहद सौम्यता के साथ सभी प्रश्नों के सहज उत्तर दिए। उन्होंने समाज को संदेश देते हुए न जाने कितनी लेखनियों को अपने संघर्षमय जीवन से प्रेरित किया। साथ ही अपनी कुछ रचनाओं का पाठ भी बहुत सुंदर ढंग से किया।

इस दौरान मुक्ता टोप्पो जी को अंगवस्त्र व बैज लगाकर, ट्राॅफी व फ्रेम जड़े खूबसूरत अभिनंदन पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। संस्था की प्रमाणन अधिकारी संगीता मिश्रा के नेतृत्व में साक्षात्कार का साहित्य संगम साक्षात्कार मंच व कई अन्य इकाइयों में सीधा प्रसारण किया।

इस दौरान आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता देश की जानी मानी शायरा डॉ. नेहा इलाहाबादी ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर मुक्ता टोप्पो जी व दिल्ली इकाई के परामर्शदाता डॉ. अशोक कुमार 'मयंक' जी ने मंच की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन तथा दिल्ली इकाई उपाध्यक्ष सुधा बसोर की सरस्वती वंदना से किया गया। सभी गणमान्य अतिथियों को अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया।

काव्य गोष्ठी का संचालन दिल्ली इकाई अध्यक्षा कुसुम लता 'कुसुम'जी के द्वारा किया गया। कुसुम आचार्य जी, डॉ संगीता पाहुजा, सुधा बसोर जी, मुकेश सिंह, रचना निर्मल, तरुणा पुंडीर, इंदु मिश्रा किरण, श्यामा भारद्वाज, चंचल हरेंद्र वशिष्ठ, स्नेह लता स्नेह, नीना गुप्ता व रजनी बाला उपस्थित रहे।

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आगंतुक विद्वान अतिथियों में सुरेश चंद्र सेमवाल ने शुभकामनाएँ व वक्तव्य देकर अभिभूत किया और अगली काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ का संकल्प लिया। रोज़ी जी ने बहुत प्रेरक उद्गार व्यक्त किए और अपनी लेखनी को पुनर्जीवित करने की प्रेरणा ली। श्रीमती एक्का जी जो स्वयं प्रधानाचार्या हैं उन्होंने कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और लेखन पठन की प्रेरणा को उद्घाटित किया। अर्चना नैनसी जी ने भी कार्यक्रम की सराहना में उद्गार व्यक्त किए।

कुमार रोहित रोज ने अपनी उम्दा ग़ज़ल से श्रोताओं व मंच को भावविभोर किया और संचालिका कुसुम लता 'कुसुम' ने भी अपने गीतों की सुंदर अभिव्यक्ति दी। अंत में मंचासीन अतिथियों ने आशीर्वचन व काव्यपाठ से सबको मंत्रमुग्ध किया। कार्यक्रम अध्यक्षा कर रहे डॉ. नेहा इलाहाबादी के मुक्तक व गज़ल ने काव्य गोष्ठी को श्रेष्ठता प्रदान करते हुए चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। अंत में सभी कवि/कवयित्रियों को साहित्य संगम संस्थान दिल्ली इकाई ने अंगवस्त्र व अभिनंदन पत्र से सम्मानित किया।

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Jyanti Special : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने दिया था देश को राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्'!

Bankim Chattapadhyay
locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Jun 2022 04:01 PM
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  विनय संकोची राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' (National song 'Vande Mataram')  को गाने-गुनगुनाने वाले असंख्य भारतीयों में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है, जो इस अमर गीत के रचयिता के नाम से अनभिज्ञ हैं। बांग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकार, गद्यकार और कवि बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने भारत के राष्ट्रीय गीत की रचना की थी, जिनकी आज जयंती है। बंकिम चन्द्र द्वारा रचित 'वन्दे मातरम्' वह रचना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्रोत बनी, आंदोलन को ऊर्जा दी। एक सच यह भी है कि बांग्ला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय संभवतः पहले साहित्यकार थे। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून 1838 में चौबीस परगना की कंठलपारा में एक परंपरागत संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। 'बंकिम चंद्र' शब्द का अर्थ है - उज्जवल पखवाड़े के दूसरे दिन का चंद्रमा। बंकिम की प्रारंभिक शिक्षा में मिदनापुर में हुई। पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य किताबें पढ़ना बंकिम को पसंद था। बड़ी बात यह थी कि संस्कृत के अध्ययन में उनकी विशेष रूचि थी। आगे चलकर उन्होंने 'वन्दे मातरम्' गीत संस्कृत में ही रचा। मिदनापुर के बाद छः वर्ष हुगली में शिक्षा प्राप्त करने के बाद बंकिम ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध एक जबरदस्त विद्रोह हुआ, लेकिन बंकिम ने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए 1859 में बीए की परीक्षा पास की। बंकिम प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए पास करने वाले पहले भारतीय थे। कोलकाता के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उसी साल उन्हें डिप्टी कलेक्टर नियुक्त किया। बंकिम 32 साल सरकारी सेवा में रहकर 1891 में सेवानिवृत्त हुए। सरकारी सेवा अपनी जगह थी और देश के प्रति भावना अपनी जगह। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने सरकारी सेवा में रहते हुए साहित्य सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। बंकिम की प्रथम प्रकाशित रचना 'राजमोहन्स वाइफ' थी, जो अंग्रेजी में लिखी गई थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति 'दुर्गेश नंदिनी' थी। बंकिम चंद्र ने बंद दर्शन नाम से पत्रिका भी निकाली थी। उत्तरी बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह पर बंकिम चन्द्र ने 1882 में 'आनंद मठ' की रचना की, जो एक राजनीतिक उपन्यास था। इस क्रांतिकारी उपन्यास में उन्होंने कई वर्ष पूर्व कविता के रूप में लिखे 'वन्दे मातरम्' गीत को भी सम्मिलित किया। उपन्यास 'आनंद मठ' तो चर्चा में रहा ही लेकिन देखते ही देखते 'वन्दे मातरम्' गीत राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने बंकिम के 'वन्दे मातरम्' को संगीतबद्ध किया था। बंकिम चन्द्र के निधन के 12 वर्ष बाद महान क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल ने 'वन्दे मातरम्' नाम से एक राजनीतिक पत्रिका भी निकाली थी। सन् 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 'वन्दे मातरम्' गीत के दो छंदों को 'राष्ट्रीय गीत' के रूप में स्वीकार किया था। देश आजाद होने के बाद 24 जनवरी 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिए जाने की घोषणा की थी। तभी से बंकिम चन्द्र द्वारा रचित यह गीत राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाता चला आ रहा है। बंकिम चन्द्र का विवाह तब हुआ जब वह केवल 11 वर्ष के थे और उनकी पत्नी की आयु मात्र 5 वर्ष थी। जब बंकिम 22 वर्ष के थे, तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। कुछ समय बाद उन्होंने फिर से विवाह किया। बंकिम चन्द्र के प्रसिद्ध उपन्यासों में दुर्गेश नंदिनी, कपाल कुंडला, मृणालिनी, बिष वृक्ष, इंदिरा, चंद्रशेखर, राधारानी, रजनी, कृष्णकांतेर उइल, राजसिंह, आनंद मठ, देबी चौधुरानी, सीताराम और राजमोहन की पत्नी आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बंकिम चन्द्र के प्रबंध ग्रंथ हैं - कमलाकांतेर दप्तर, लोक रहस्य, कृष्ण चरित्र, बिज्ञान रहस्य, बिबिध समालोचना, साम्य आदि। उनकी अन्य रचनाएं ललिता, धर्म तत्व, सहज रचना शिक्षा, श्रीमद्भगवदगीता, कबिता पुस्तक, विचित्र प्रबंधन आदि शामिल हैं। बंकिम के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। देश को राष्ट्रीय गीत देने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को शत-शत नमन।