Saturday, 23 November 2024

Devotee Story :भक्त भुवन सिंह

 विनय संकोची महाराना उदयपुर के एक प्रमुख दरबारी थे भुवन सिंह चौहान, जो भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। महाराज…

Devotee Story :भक्त भुवन सिंह

 विनय संकोची

महाराना उदयपुर के एक प्रमुख दरबारी थे भुवन सिंह चौहान, जो भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। महाराज शिकार के शौकीन थे। एक दिन महाराज उदयपुर अपने सामंतों के साथ शिकार खेलने निकले। उन्होंने एक हिरनी का पीछा तो किया लेकिन उसको शिकार नहीं बना पाए। महाराज खुद तो रुक गए और भुवन सिंह को हिरनी के पीछे भेज दिया। कुछ आगे जाने पर भुवन सिंह ने एक पेड़ की आड़ में डर के मारे कांपती निरीह हिरनी को खड़े पाया। उस समय उनके भी सिर पर शिकार का भूत सवार था। उन्होंने तलवार के एक ही वार से हिरनी के दो टुकड़े कर दिए। हिरनी के पेट में जो बच्चा पल रहा था, वह भी कट गया। मरते समय हिरनी ने जिस तरह कातर दृष्टि से भुवन सिंह को देखा, उससे वह सिहर उठे। उन्हें अपने इस कृत्य पर स्वयं से घृणा हुई। उसी क्षण भुवन सिंह ने मन ही मन संकल्प किया – ‘ आज से लोहे की नहीं काठ की तलवार रखूंगा, जिससे किसी भी जीव की हत्या ना हो सकेगी।’

अपने संकल्प के अनुसार भुवन सिंह ने काठ कि तलवार बनवाकर म्यान में रखना शुरू कर दिया। यह बात दरबार के एक सामंत को पता चली तो उसने महाराणा को बताई। महाराणा को विश्वास ही नहीं हुआ। जब चुगलखोर सामंत ने बार-बार कहा तो महाराना ने सोचा कि भुवन सिंह की तलवार देखने में कोई बुराई तो है नहीं। अब महाराना के सामने धर्म संकट उपस्थित हो गया। यदि महाराना भुवन सिंह से तलवार दिखाने को कहते और तलवार लोहे की निकलती, तो वह क्या उत्तर देते।

महाराना ने तिकड़म लड़ाई। उन्होंने एक भोज का आयोजन कर सभी दरबारियों को न्योता दिया। भोज के बाद अपनी तलवार म्यान से निकाल कर महाराज ने कहा – ‘देखें, किसकी तलवार सबसे अधिक चमकती है।’

भुवन सिंह उच्च श्रेणी के सामंत थे। उन्हें पहले तलवार निकालनी चाहिए थी, लेकिन वह चुप बैठे रहे। महाराज ने भुवन सिंह से तलवार दिखाने को कहा। अपने आराध्य श्रीकृष्ण का स्मरण कर भुवन सिंह ने तलवार म्यान से बाहर खींच ली। भक्त वत्सल भगवान की कृपा का चमत्कार हुआ। म्यान से बाहर निकलते ही बिजली की कौंध गई, सभी चकित रह गए। भुवन सिंह ने मन ही मन परमेश्वर का धन्यवाद किया। जिस सामंत ने शिकायत की थी राजा ने उसे मृत्युदंड की सजा सुना दी।

भुवन सिंह से रहा नहीं गया, उन्होंने सिर झुकाकर महाराना को सब सच-सच बता दिया कि कैसे हिरनी की हत्या के बाद उनका हृदय परिवर्तन हो गया था और उन्होंने लकड़ी की तलवार रखनी शुरू कर दी थी। सत्य से अवगत होने पर महाराना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। महाराना ने खड़े होकर कहा – ‘आज मैं आप जैसे महान भक्त के दर्शन कर धन्य हो गया। दर्शन तो मैं रोज ही किया करता था, लेकिन आपकी भक्ति का महत्व आज समझ पाया हूं। अब आपको मेरे दरबार में नहीं आना पड़ेगा। अब तो आप उन राजराजेश्वर की भक्ति कीजिए, मैं खुद ही आपके चरणों में हाजिर हुआ करूंगा।’ उस दिन के बाद से भुवन सिंह के पास श्रीकृष्ण की भक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं रहा।

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