विदेशों में बढ़ी रामलला के प्रसाद की मांग, इलायची दाना में कमी के कारण बना इस चीज का प्रसाद

Ram Lalla Prasad
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locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 06:50 PM
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Ram lalla Prasad : अयोध्या मे रामलला के दर्शन के लिए हर दिन हज़ारों-लाखों की संख्या में भक्त पहुँच रहें हैं। राम लला के दर्शन करने पहुंच रहे हज़ारों भक्तो को प्रसाद मे इलायची दाना के साथ देशी घी से बने बूंदी के लड्डू एवं बूंदी का प्रसाद भी दिया जा रहा हैं। यह प्रसाद केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग 50 देशों में भी भेजा जा रहा हैं ।

इलायची दाने की कमी के कारण बन रहा बूंदी का प्रसाद

जानकारी के अनुसार बूंदी के लड्डुओं के प्रसाद वितरण के कारण इलायची दाना की मांग बढ़ना और आपूर्ति में कमी इसकी प्रमुख वजह हैं ।इसके साथ ही विदेशों मे बसे एनआरआई (NRI) नागरिक इसकी मांग ज्यादा कर रहे हैं। जिसकी वजह से विदेशों में इलायची दाने की भारी मांग के चलते यह प्रसाद विदेश में भी भेजा जा रहा है। जिस वजह से राम सेवकपुरम में शुद्ध बेसन व देशी घी से निर्मित सूखी बूंदी का प्रसाद बनाना शुरु कर दिया हैं। बताया जा रहा है कि यह प्रसाद विदेशी राजनायिकों को भी भेजा जा रहा हैं।

दक्षिण एशिया में है प्रसाद की भारी मांग

इस बारे में जानकारी देते हुए विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज का कहना है कि नेपाल,बांग्लादेश,भूटान समेत यह प्रसाद लगभग 50 देशों में भेजा गया है। इस बूंदी का निर्माण पानी की कम मात्रा और देशी घी के साथ किया जा रहा हैं। जिसकी वजह से ये प्रसाद कई दिनों तक खराब नहीं होता हैं। इससे पहले यह प्रसाद श्रद्धालुओं की भारी मांग पर जर्मनी भी भेजा गया। विदेशों में दक्षिण एशिया मे काफी संख्या मे भरतीय बसे हुए हैं ,जो की भगवान राम को मानने वाले हैं। जिसके चलते यहां प्रसाद की मांग बढ़ी हैं।

प्रसाद बनाने का तरीका एकदम शुद्ध

आपको बता दें यहां की कार्यशाला में प्रतिदिन रामलला का लगभग सवालाख प्रसाद के पैकेट तैयार किए जाते हैं। यह प्रसाद बड़ी ही शुद्धता के साथ तैयार किए जाते हैं। बताया जा रहा है कि बेसन को मशीनों के द्वारा तैयार किया जाता हैं। फिर कारीगर उसे सही तापमान पर लोहे के कड़ाहा में देशी घी मे बूंदी बनाता है। उस बूंदी को निकालने के बाद तुरंत चाशनी मे डाल दिया जाता हैं, फिर स्वादानुसार मीठा होने के बाद निकाल कर ठंडा किया जाता हैं। जिसके बाद इसकी पैकिंग की जाती हैं। यह प्रसाद इलायची दाने के पूरक के रूप मे दिया जा रहा हैं। जिससे वहां आने वाले श्रद्धालुओं को खाली हाथ ना जाना पड़े। ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।

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पुतिन ने दुनिया को दी तीसरे विश्व युद्ध की धमकी

Russia News 1
Russia News
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Nov 2025 08:25 PM
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Russia News : पिछले दिनों रूस में राष्ट्रपति चुनावों का सिलसिला तेजी से चल रहा था, जिसके नतीजे जारी कर दिए गए हैं। नतीजे आने के बाद एक बार फिर से व्लादिमीर पुतिन ने बड़ी जीत हासिल की है। वहीं अब पुतिन का पाचंवी बार रूस का राष्ट्रपति बनना तय हो गया है। नतीजे आने के बाद अपने पहले संबोधन के दौरान ही व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी देशों को तीसरे विश्वयुद्ध की चेतावनी दे दी है। अपने संबोधन के दौरान पुतिन ने कहा कि रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन में अगर संघर्ष हुआ तो इसका मतलब यह है कि यह दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध से केवल एक कदम दूर पर है और शायद ही कोई ऐसी परिस्थिति देखना चाहता है।

आधुनिक दौर में कुछ भी संभव है - पुतिन

साल 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट के बाद से ही रूस और पश्चिमी देशों के बीच में संबंध कुछ खास अच्छे नहीं हैं। पिछले महीने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने यूक्रेन में अपने सैनिकों को तैनात करने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया था। वहीं जब इस बारे में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से पूछा गया तो उन्होंवे कहा कि 'आज के आधुनिक दौर में कुछ भी संभव है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो तीसरा विश्वयुद्ध ज्यादा दूर नहीं है।' साथ ही पुतिन ने यह भी कहा कि 'वैसे नाटो के सैनिक अभी भी यूक्रेन में मौजूद हैं। रूस को पता चला है कि युद्ध के मैदान में इंग्लिश और फ्रेंच भाषा बोलने वाले जवान भी मौजूद हैं। ये अच्छी बात नहीं है, खासकर उनके लिए क्योंकि वो बड़ी संख्या में यहां मर रहे हैं।'

हम बातचीत के लिए तैयार हैं - पुतिन

आपको बता दें रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया था। इस दौरान पुतिन ने यूक्रेन युद्ध पर कहा था कि फ्रांस बातचीत में अहम भूमिका निभा सकता है क्योंकि अभी भी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। साथ ही पुतिन ने कहा कि 'मैंने पहले भी कहा है, और मैं अब भी यही कहता हूं कि हम बातचीत के लिए तैयार है और ये बातचीत सिर्फ इसलिए नहीं होगी क्योंकि दुश्मनों के पास गोला-बारूद खत्म हो चुका है। अगर वो सचमुच गंभीर हैं और शांति चाहते हैं तो उन्हें पड़ोसी देशों की तरह अच्छे संबंध बनाकर चलना होगा।' वहीं अब हाल ही में आए राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों में पुतिन की एक बार फिर से जीत हुई है। जिसके बाद एक बार फिर से युद्ध की आशंका बढ़ने लगी है।

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खतरनाक खेल खेल रहा है चीन "महाजन" बनकर देशों को कब्जाने की साजिश

China Newss
China News
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 03:08 PM
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China News : हमारा पड़ोसी देश चीन अपनी ताकत के नशे में अंधा होता जा रहा है। भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाला चीन इन दिनों एक खतरनाक खेल खेल रहा है। चीन अपने पड़ोस में बसे हुए छोटे-छोटे देशों को महंगी ब्याज दरों पर कर्जे देकर तमाम देशों पर अपना कब्जा जमाना चाहता है। चीन का यह खतरनाक खेल अभी तक ज्यादा लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। चीन का प्रयास है कि वह 2049 तक दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन जाए।

"महाजन" बन गया है चीन

"महाजन" शब्द आपने जरूर सुना होगा। फिर भी आपको बता दें कि "महाजन" प्राइवेट ढंग से ब्याज पर पैसे देने वाले को कहा जाता है। भारत के पुराने इतिहास में लोगों को कर्ज में डुबाकर "महाजन" अपना गुलाम बना लेते थे। उसी "महाजन" वाले रास्ते पर हमारा पड़ोसी देश चीन चल रहा है। चीन छोटे-छोटे देशों को बेशुमार कर्जा देकर उन देशों पर कब्जा करके पूरी दुनिया में चीन का डंका बजाने की येाजना पर काम कर रहा है। हम यहां चीन की इस खतरनाक योजना का पूरा विश्लेषण कर रहे हैं। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू मा लगातार ऐसे फैसले ले रहे हैं, जो चीन के साथ उनकी निकटता को ही दर्शाते हैं। छोटे पड़ोसी देशों के साथ चीन की निकटता भारत के लिए चिंताएं बढ़ाने वाली हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों चीन विश्व के ऐसे देशों की तरफ अपने पैर पसार रहा है, जो आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर हैं? दरअसल, चीन पूरी तरह से नई विश्व व्यवस्था बनाने का मंसूबा पाले हुए है। शी जिनपिंग की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी शासन को 2049 तक प्रमुख विश्व शक्ति बनाने की महत्वाकांक्षा है, जब वह अपने सौ वर्ष पूरे करेगी। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए चीन बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत आर्थिक एवं सामरिक रूप से कमजोर देशों को कर्ज देने की नीति का हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा है। दूसरी ओर, चीन की आर्थिक मदद से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का मंसूबा पाले देश उसके कर्ज के जाल में फंसकर चीन का कर्ज चुकाने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। चीनी सहायता प्राप्त देशों, जैसे-श्रीलंका, जांबिया, इथियोपिया, पाकिस्तान, वेनेजुएला, नेपाल, केन्या, कंबोडिया, लाओस, अफगानिस्तान और म्यांमार जैसे कई देश हैं, जो गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। अब श्रीलंका को ही ले लें, जिसने गृहयुद्ध के उपरांत आर्थिक सुधारों के लिए चीन का रुख किया, लेकिन आज उसके कर्ज-जाल में फंस गया है। श्रीलंका ने पहले 2014 और पुन: 2017 में अपने कर्ज के पुन: प्रबंधन हेतु चीन से निवेदन किया था, लेकिन उसके दोनों अनुरोध खारिज कर दिए गए थे। अंतत: जब तक श्रीलंका ने आईएमएफ से सहायता मांगने का निर्णय लिया, तब तक उसकी अर्थव्यवस्था 1948 में देश की आजादी के बाद से सबसे खराब मंदी की ओर बढ़ गई, जिससे विद्रोह भडक़ गया और नतीजतन हजारों लोगों ने राष्ट्रपति को उनके घर से खदेड़ दिया था। जांबिया की भी यही स्थिति है, जिसके कुल विदेशी कर्ज का तीस फीसदी हिस्सा चीन द्वारा निर्गत वि किया गया है और माना जाता है कि उस पर चीनी फाइनेंसरों का लगभग छह अरब डॉलर बकाया है। इस इस प्रकार 2020 में, चीन के कर्ज जाल में फंसते हुए जांबिया यूरो बॉन्ड्स पर डिफॉल्ट करने वाला पहला अफ्रीकी देश बन गया। चीन के कर्ज जाल में फंसे पाकिस्तान की हालत पहले से ही काफी खराब चल रही है, हालांकि उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से तीन अरब डॉलर की सहायता मिली है, जिस पर उसकी अर्थव्यवस्था 'टिकी हुई है। नेपाल और चीन ने 2017 में बीआरआई हेतु हस्ताक्षर किए थे, लेकिन लगभग सात साल बाद एक परियोजना तक क्रियान्वित नहीं हो पाई है और इसका सबसे बड़ा कारण रहा नेपाल का पोखरा हवाई अड्डा, जो चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं था, फिर भी चीन ने इसके लिए फंड देते हुए इसे बीआरआई के अंतर्गत बताने की कोशिश की। इसी प्रकार, वेनेजुएला भी आर्थिक संकट में फंसा हुआ है, जहां सरकार पर कथित तौर पर चीन का भारी कर्ज बकाया है। तेल से समृद्ध, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर इस देश ने 2005 से चीनी कर्ज ले रखा है। चीन के साथ दिक्कत यह है कि वह जो कर्ज देता है, उसके पीछे की शर्तों को कभी सार्वजनिक नहीं करता, जैसा आईएमएफ, विश्व बैंक या पेरिस समूह करते हैं। इस वजह से चीनी कर्ज की पारदर्शिता हमेशा संदेह के दायरे में रही है। चीन चूंकि आसान शर्तों पर ऋणों को निर्गत करता है, जो आर्थिक रूप से कमजोर देशों को आकर्षित करता है। कर्ज लेने वाले उन देशों को उस कर्ज के विपरीत परिणामों का एहसास तब होता है, जब उनके आर्थिक संकट बेकाबू हो जाते हैं और फिर वे इसके समाधान करने के लिए चीन से कोई रियायत प्राप्त नहीं कर पाते। उपरोक्त देशों के उदाहरणों से पता चलता है कि भले ही चीन ऋण देने की नीतियों में उदार है, लेकिन वह इसके जरिये कमजोर देशों को शिकार बनाता है। या चीन के साथ किसी देश के चाहे कितने भी अच्छे राजनीतिक रिश्ते क्यों न हों, वे ऋण संकट के समय चीन से तत्काल राहत की उम्मीद नहीं कर सकते। जाहिर है कि माले को उन देशों से, जो चीनी ऋण के जाल से जूझ रहे हैं, सीख लेनी चाहिए तथा भारत जैसे नैतिक और लोकतांत्रिक देश के साथ संबंधों को बिगाडऩा नहीं चाहिए।

होगी बड़ी क्रांति: दुनिया भर में बनेंगे लकड़ी के शहर

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