UP Election 2022: किसान आंदोलन और राकेश टिकैत का भविष्य तय करेंगे चुनावी नतीजे, पश्चिमी यूपी पर पूरे देश की नजर

UP Election 2022: किसान आंदोलन और राकेश टिकैत का भविष्य तय करेंगे चुनावी नतीजे, पश्चिमी यूपी पर पूरे देश की नजर
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userचेतना मंच
calendar03 Feb 2022 08:36 PM
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मेरठ/नोएडा(चेतना मंच): इन दिनों देश भर की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) पर टिकी हुई है. उत्‍तर प्रदेश विधानसभा के इस चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) से जहां किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का भविष्य तय होगा. वहीं, प्रसिद्ध किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) की भी अपने ही घर में बड़ी परीक्षा होनी है. हर कोई यही जानना चाहता है कि इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्या करेगा? सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) चल रहे हैं. प्रदेश भर में सात चरणों में ये चुनाव हो रहे हैं. सबसे पहले चरण का चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western UP) के उन जिलों में हो रहा है, जहां किसान आंदोलन (Farmers Protest) का सर्वाधिक प्रभाव था. सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ, मथुरा, आगरा एवं हापुड़ जनपद की 58 विधानसभा सीटों पर आज से मात्र सात दिन बाद यानि 10 फरवरी को वोट पड़ेंगे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होगा. देश भर के राजनेताओं, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, प्रशासनिक अफसरों, सामाजिक व राजनीतिक विश्लेषकों समेत तमाम जागरूक नागरिकों की नजरें इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं. उप्र का चुनाव हमेशा ही महत्वपूर्ण होता है. यह भी सच है कि देश के इस सबसे बड़े प्रदेश को जीतने वाले राजनीतिक दल को ही दिल्ली की गद्दी (केन्द्र की सत्ता) मिलती है. इस कारण उत्तर प्रदेश के चुनाव पर हमेशा ही सबकी नजर रहती है. किन्तु इस बार निगाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर अधिक लगी हैं. कारण साफ है कि यही वह क्षेत्र है जहां पर दिल्ली में चले 13 महीने के किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का प्रभाव सबसे ज्यादा था. इस बात में कोई दो राय हो ही नहीं सकती कि वह एक ऐतिहासिक आंदोलन साबित हुआ है. उसी आंदोलन के कारण नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) जैसे प्रधानमंत्री को भी झुकना पड़ा है. क्‍या राकेश टिकैत लड़ने जा रहे हैं चुनाव? कही ये बड़ी बात अब देश का हर जागरूक नागरिक यह देखना चाहता है कि किसान आंदोलन का कितना असर अभी भी शेष है? या फिर तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) की वापसी के बाद किसान संतुष्ट हो गए हैं? यहां यह तथ्य भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) व उसके नेता तो यही कह रहे हैं कि आंदोलन स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं हुआ. इतना ही नहीं किसानों ने 31 जनवरी काा दिन विश्वासघात दिवस के रूप में मनाकर अपनी आगे की मंशा भी साफ कर दी है. अब यदि पश्चिमी उप्र के इस क्षेत्र से नतीजे भाजपा के पक्ष में आए तो भाजपा यही प्रचार करेगी कि किसान आंदोलन का अब कोई असर नहीं बचा है. यदि नतीजे भाजपा के विरूद्ध आए तो किसान आंदोलन का विस्तार तेजी के साथ पूरे देश में हो जाएगा. इतना ही नहीं फिर इन नतीजों का असर 2024 के लोकसभा के चुनावों (Lok Sabha Election 2024) तक जाएगा. [caption id="attachment_6250" align="alignleft" width="300"]Rakesh Tikait किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत[/caption]
अपने ही घर में परीक्षा है किसान नेता राकेश टिकैत की किसान आंदोलन की बदौलत सर्वमान्य किसान नेता बनकर उभरे राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं. वे इसी क्षेत्र के मुजफ्फरनगर जिले (Muzaffarnagar District) के सिसौली गांव के रहने वाले हैं. उत्तर प्रदेश की तरफ से किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले भारतीय किसान यूनियन (Bhartiya Kisan Union) का मुख्यालय भी यहीं है. ऐसे में यह चुनाव राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के लिए एक बड़ी परीक्षा है. उन्हें यह परीक्षा अपने ही घर में देनी पड़ रही है. टिकैत चुनावी राजनीति से दूर रहने का दावा कर रहे हैं. यह अलग बात है कि वे साफ-साफ कहते हैं कि यदि 13 महीने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन करके तथा आधी दरों पर फसल बेचकर भी किसान गलत जगह वोट देंगे तो हम यही समझेंगे कि हमारी ट्रेनिंग में कुछ कमी रह गई होगी. कुल मिलाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे (10 मार्च को) किसान आंदोलन व प्रसिद्ध किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत (Rakesh Tikait)का भविष्य भी तय कर देंगे.
  देशभर के गुर्जर समाज की नजर दादरी पर! जहां देश की नजर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावों पर टिकी हुई है. वहीं देशभर के गुर्जर समाज (Gurjar Community) की नजरें दादरी विधानसभा सीट (Dadri Assembly Seat) पर लगी हुई हैं. दरअसल दादरी (Dadri) को गुर्जर राजधानी (Gurjar Capital) के नाम से भी जाना जाता है. आजादी के आंदोलन में यहां के दर्जनों स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए कुर्बानी दी थी. उन अमर सपूतों में ज्यादातर गुर्जर समाज के ही सेनानी थे. आजादी के बाद भी अनेक कारणों से यह क्षेत्र गुर्जर समाज के लिए महत्वपूर्ण रहा है. Dadri Sign Board यही वह क्षेत्र है जहां 22 सितंबर 2021 को गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करने से पूर्व 'गुर्जर' शब्द को कालिख लगवा कर मिटवा दिया गया था. उस दिवस को गुर्जर समाज 22 सितंबर की दुर्घटना के नाम से याद करता है. इस मुद्दे पर आंदोलन भी चला. अब देश भर का गुर्जर समाज यह जानना चाहता है कि इस प्रकरण के बाद दादरी क्षेत्र की जनता चुनाव में क्या फैसला करेगी? क्या वोट की चोट करके जनता सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति पर लिखे गए 'गुर्जर' शब्द पर पोती गई कालिख का बदला ले पाएगी? इस मुद्दे पर सोशल मीडिया के माध्यम से गुर्जर समाज का युवा वर्ग भी बेहद मुखर नजर आ रहा है. निश्चित ही दादरी विधानसभा क्षेत्र के चुनावी नतीजे (Dadri Assembly Seat Results) बहुत कुछ तय करेंगे. पढ़ें : UP Election 2022: वकीलों ने दिया राजकुमार भाटी को खुला समर्थन, किया स्वागत
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UP Election 2022: अखिलेश-जयंत का गठबंधन दिखावा: शाह

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userचेतना मंच
calendar27 Nov 2025 11:21 PM
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Muzafarnagar: मुजफ्फरनगर (एजेंसी)। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह(Union Home Minister Amit Shah) ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय  अध्यक्ष अखिलेश यादव(Akhilesh Yadav) व रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary)पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा है कि दोनों का गठबंधन दिखावा है। अगर अखिलेश यादव चुनाव जीते तो उनके साथ आजम खान और अतीक अहमद दिखेंगे। अखिलेश के जीतने पर राज्य में माफिया राज व तुष्टिकरण  की वापसी होगी।पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में आज केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे। भारत माता की जय के नारे से अमित शाह ने की भाषण की शुरुआत की।  उन्होंने बोला कि 300 सीटों से ज्यादा लेकर फिर भाजपा की सरकार प्रदेश में बनाएंगे। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर की वीर भूमि को नमन करता हूं। दूधली गांव के क्रांतिकारियों को याद करता हूं। आशाराम शर्मा के बलिदान और चौधरी चरण सिंह के आदेशों को नमन है। यहां 14, 17 और 19 के चुनाव मेरी नजरों के सामने हुए हैं। जब मैं उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना तभी मुजफ्फरनगर में दंगे हो गए। जो पीडि़त थे उन्हें आरोपित बना दिया और जो आरोपित थे उन्हें पीडि़त बना दिया। 2014 हो या 17 या फिर 19 यहीं मुजफ्फरनगर की धरती से लहर उठती है, जो यहां से उठकर काशी तक जाती है। इस बार भी यहीं से भाजपा की विजय की नींव डाली जाएगी। पहले यहां पर हर व्यक्ति को सिक्योरिटी की चिंता रहती थी। माफिया ने प्रदेश में अपना कब्जा जमाया था। आज जब मैं आया हूं तो कोई सुरक्षा की बात नहीं कर रहा है। 2017 में योगी सरकार बनने के बाद माफिया और अराजक तत्व बाउंड्री से बाहर हो गए। 2017 के बाद अब 2022 में आया हूं। सरकार का रिपोर्ट कार्ड साथ लेकर आया हूं। योगी सरकार ने गुंडा माफिया सबको बाहर का रास्ता दिखा दिया है। सपा सरकार गुंडागर्दी बढ़ाती है। अखिलेश ने कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार में लूट, हत्या, अपहरण, छेड़छाड़ में 70 फीसदी तक की भारी गिरावट आई है। मैंने अपना हिसाब दिया है। अखिलेश यादव अपने कार्यकाल के आंकड़े लेकर प्रेस वार्ता करें। लोकतंत्र में मत बहुत बड़ी ताकत है। सपा को वोट गया तो फिर माफिया का राज होगा। मुजफ्फरनगर के दंगे याद हैं कि नहीं। पुलिस ने एकतरफा कार्यवाही की। भाईचारे की राजनीति से खुशहाली लाएंगे: अखिलेश गाजियाबाद । समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि प्रदेश की गंगा-जमुनी तहजीब को नष्ट करने वालों को जनता जरूर जवाब देगी। उन्होंने कहा कि सपा और रालोद का गठबंधन प्रदेश की खुशहाली के लिए हुए है। हम दोनों भाईचारे की राजनीति से प्रदेश में खुशहाली लाएंगे। सपा प्रमुख अखिलेश यादव आज गाजियाबाद में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ एनएच-24 स्थित वेदांता फार्म हाउस में संयुक्त प्रेसवार्ता कर रहे थे। इस दौरान सपा-रालोद  गठबंधन के सभी प्रत्याशी भी मौजूद थे। प्रेसवार्ता के दौरान अखिलेश यादव ने गाजियाबाद में बंद हुए साइकिल कारखाने को सरकार  आने के बाद शुरू करने के अलावा खोड़ा कालोनी में अस्पताल, डिग्री कॉलेज तथा घर-घर में साफ पानी पहुंचाने के अलावा गाजियाबाद और साहिबाबाद में कोरोना महामारी के कारण लघु उद्योग को नुकसान से उबारने की घोषणा की।
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UP Election: पंचायत चुनाव में ही हो गया था इशारा, यूपी में कौन सा दल बना रहा सरकार

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userचेतना मंच
calendar17 Jan 2022 03:20 AM
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नोएडा। उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) जल्‍द ही होने वाले हैं। इन चुनावों को लेकर भाजपा, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बसपा, रालोद, कांग्रेस समेत अन्‍य दल चुनावी मैदान में कूद चुके हैं. लगभग हर दल ने पहले चरण के चुनावों (UP Election) के लिए अपने-अपने उम्‍मीदवारों की घोषणा कर दी है. इस बीच सभी दल अपनी-अपनी जीत का दावा भी ठोंक रहे हैं. लेकिन एक बात गौर करने वाली यह भी है कि पिछले साल यूपी में हुए पंचायत चुनावों में इस बात का इशारा मिल गया था कि प्रदेश में कौन सा दल सरकार बना सकता है. ऐसे में भाजपा, सपा या कांग्रेस, इनमें से कौन जीतेगा, यह तो मतदाता ही तय करेंगे, लेकिन चुनावी विश्‍लेषण भी अहम तथ्‍य सामने ला रहा है. यूपी में पिछले साल 3050 जिला पंचायतों (UP Panchayat Chunav) की सीटों पर चुनाव (UP Election) हुए थे. इनमें से 770 से अधिक सीटें समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के समर्थित उम्‍मीदवारों ने जीती थीं. इन चुनावों में अयोध्‍या, वाराणसी और मथुरा के मामलों को उछालकर भी भाजपा पीछे रहे गई थी. मतलब उसकी हिंदुत्‍व की राजनीति भी कुछ खास असर नहीं दिखा पाई थी. इसका मतलब साफ था कि राम मंदिर बनवाकर अब वोट हासिल करना कठिन है. हालांकि इन चुनावों में बड़ी संख्‍या निर्दलीय उम्‍मीदवारों की भी थी. जो किसी भी पार्टी के साथ जाने को अधिकांशत: तैयार रहते हैं. हालांकि हम पंचायत चुनाव के नतीजों के आधार पर यह नहीं कह सकते कि किस पार्टी को जनादेश मिलेगा. लेकिन सपा की ओर से इन चुनावों (UP Election) में बेहतर प्रदर्शन से राज्‍य के मतदाताओं के मूड को लेकर कुछ बदलाव के संकेत जरूर मिले थे. इन चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. वहीं राज्‍य में पंचायत चुनाव में बीजेपी दूसरे स्‍थान पर रही थी. ऐसे में कहा जा रहा था कि वह अपने निर्दलीयों को अपने में शामिल करने की जुगत भी थी. वहीं विधानसभा चुनावों में उसे कड़ी चुनौती जरूर मिलने वाली है, लेकिन इस बात भी संभावनाएं हैं कि उसके पास जीतने का मौका है. अगर राज्‍य में भाजपा हारती है तो इसके पीछे बढ़ती बेरोजगारी, आय असमानता और खराब कानून व्‍यवस्‍था जैसे मुद्दे उसके लिए हानिकारक हो सकते हैं. पश्चिम यूपी की बात करें तो पिछले चुनाव में उसे जाट समुदाय से भरपूर वोट मिले थे. लेकिन किसान आंदोलन पर उसके रुख के कारण अब माना जा रहा है कि उसका यह वोटबैंक रालोद की ओर जा सकता है. वैश्‍य समुदाय भी विमुद्रीकरण, कोविड लॉकडाउन और जीएसटी जैसे मुद्दों पर पहले ही अपनी नाराजगी भाजपा के खिलाफ दिखा चुका है. [caption id="attachment_14783" align="alignnone" width="300"]UP Election UP Election 2017 चुनाव के नतीजे.[/caption] अगर विपक्ष का अच्‍छा गठबंधन जोर लगा देता है तो भाजपा की हार भी विशेषज्ञ देख रहे हैं. इनमें अहम रोल सपा का हो सकता है. यह भी कहा जा रहा था कि अगर सपा यूपी में अकेले चुनाव लड़ती तो इसकी जीत की सीटों की संख्‍या कम रह सकती थी. 17वीं विधानसभा का कार्यकाल 15 मई तक है. 17वीं विधानसभा के लिए 403 सीटों पर चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक 7 चरणों में हुए थे. उस चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीतकर पहली बार यूपी विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत हासिल किया। अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन 54 सीटें जीत सका था. सपा को 47 सीट और कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं. इसके अलावा प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई थी. इस बार सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है. Up Election 2022: नोएडा में प्रचार करने आए छत्तीसगढ़ के CM के खिलाफ FIR, ये है पूरा मामला वहीं पंचायत चुनाव के आधार पर यह साफ तौर पर सपा की जीत की भविष्‍यवाणी नहीं की जा सकती है क्‍योंकि वो चुनाव सपा ने अपने चुनाव चिह्न पर नहीं लड़ा था. उसने उम्‍मीदवारों को समर्थन दिया था. पंचायत चुनाव में उम्‍मीदवार को निजी छवि के आधार पर वोट मिलते हैं, ना कि पार्टी को देखकर. ऐसे में समाजवादी पार्टी को और मजबूत होना था. इसके लिए बड़े ओबीसी वोटबैंक समर्थित स्‍वामी प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों को अखिलेश यादव भाजपा से सपा में लाने में सफल रहे हैं. इसके अलावा उनके पास सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर का भी साथ है. पिछले चुनाव में उन्‍होंने 4 सीटें जीती थीं. वहीं आजाद समाज पार्टी के दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की भी अखिलेश से मुलाकात की खबरें हैं. ऐसे में सपा के पास इन चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने का चांस है. वहीं कांग्रेस की बात करें तो पिछले उत्‍तर प्रदेश चुनावों, लोकसभा चुनावों और पंचायत चुनावों में यह बात साफ हो गई थी कि पार्टी ने अपना बड़ा मतदाता खो दिया है. इस बार कांग्रेस ने सपा से गठबंधन भी नहीं किया है. ऐसे में उसे कम ही सीटें मिलने के आसार लगाए जा रहे हैं. हालांकि वो सपा की सीटों पर प्रभाव डाल सकती है.