OBC के बाद ब्राह्मणों पर फोकस, जनसंघ के तीन स्तंभों से BJP का बड़ा संदेश
OBC आधार को दोबारा साधने के संकेत पार्टी पहले ही दे चुकी है, और अब फोकस उन वर्गों पर लौटता दिख रहा है जो लंबे समय तक उसके पारंपरिक समर्थन के मजबूत स्तंभ रहे हैं खासकर ब्राह्मण समाज। इसी रणनीतिक पृष्ठभूमि में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ के ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करेंगे।

UP News : उत्तर प्रदेश में 2027 का चुनाव अभी दूर है, लेकिन उसकी सियासी स्क्रिप्ट अभी से लिखी जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बदले समीकरणों ने BJP को यह संदेश दे दिया कि अब जीत का रास्ता सिर्फ संगठन से नहीं, सामाजिक संदेश की बारीक ‘ट्यूनिंग’ से भी तय होगा। OBC आधार को दोबारा साधने के संकेत पार्टी पहले ही दे चुकी है, और अब फोकस उन वर्गों पर लौटता दिख रहा है जो लंबे समय तक उसके पारंपरिक समर्थन के मजबूत स्तंभ रहे हैं खासकर ब्राह्मण समाज। इसी रणनीतिक पृष्ठभूमि में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ के ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करेंगे। जनसंघ की वैचारिक विरासत से जुड़े डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की विशाल प्रतिमाओं के साथ यह परिसर सिर्फ स्मृति का स्थल नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में संकेतों का नया मंच बनता दिख रहा है जहां इतिहास के जरिए 2027 के सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश की जा रही है।
लखनऊ से ‘अटल’ जुड़ाव और राजनीतिक संकेत
अटल बिहारी वाजपेयी और लखनऊ का रिश्ता सिर्फ चुनावी गणित तक सीमित नहीं रहा—यह शहर उनकी राजनीति की पहचान और कर्मभूमि दोनों बन गया। जनसंघ के शुरुआती दौर से लेकर BJP के राष्ट्रीय विस्तार तक, लखनऊ ने अटलजी को एक ऐसा मंच दिया जहां उनकी वाणी, विचार और नेतृत्व की छाप लगातार गहरी होती गई। 1990 के दशक से 2004 तक लखनऊ ने उन्हें बार-बार लोकसभा भेजा और इसी अवधि में अटलजी की राष्ट्रीय नेतृत्व-यात्रा निर्णायक ऊंचाइयों तक पहुंची। इसलिए उत्तर प्रदेश की राजधानी में अटलजी के नाम पर समर्पित स्मारक का विचार केवल स्मृतियों का संग्रह नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में भावनाओं और संदेशों का संगम भी है।
तीन चेहरों के जरिए एक संदेश
लखनऊ में आकार ले चुका ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में संदेश देने वाला एक बड़ा सार्वजनिक परिसर बनकर उभरा है। यहां लगी प्रतिमाएं जनसंघ से लेकर BJP तक की वैचारिक यात्रा के उन चेहरों की याद दिलाती हैं, जिन्हें पार्टी अपने विचार-परिवार की धुरी मानती है। राजनीतिक मायने तब और गहरे हो जाते हैं जब यह तथ्य सामने आता है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी तीनों ब्राह्मण समाज के ऐसे राष्ट्रीय प्रतीक रहे हैं, जिनकी स्वीकार्यता पार्टी के ‘कोर सपोर्ट बेस’ में स्वाभाविक रूप से मजबूत रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में संकेत साफ पढ़ा जा रहा है पारंपरिक समर्थन स्तंभों को भरोसा दिलाना, अपने आधार को फिर से जोड़ना और ‘अपनों’ को साथ बनाए रखने का संदेश सबसे ऊंचे मंच से देना।
OBC के बाद अब ब्राह्मणों की तरफ क्यों बढ़ी नजर?
उत्तर प्रदेश में 2024 के नतीजों के बाद BJP के भीतर यह समझ और पुख्ता हुई है कि चुनावी बढ़त अब किसी एक सामाजिक धुरी पर टिककर लंबी नहीं चल सकती। इसलिए पार्टी एक तरफ OBC समुदायों के साथ संवाद, संगठन और संदेश का नया संतुलन गढ़ने में जुटी है, तो दूसरी ओर ऊंची जातियों खासकर ब्राह्मण समाज के भीतर उभरती असंतोष की हल्की-सी फुसफुसाहट को भी नजरअंदाज करने के मूड में नहीं दिखती। इसी पृष्ठभूमि में लखनऊ में हुई BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक महज एक औपचारिक जुटान नहीं मानी जा रही। बैठक के बहाने जो संकेत बाहर आए, उनका निष्कर्ष यही है कि जातीय संतुलन की राजनीति में प्रतिनिधित्व, हिस्सेदारी और ‘आवाज’ को लेकर भीतरखाने मंथन तेज है। और उत्तर प्रदेश की सियासत में इस बैठक का वजन इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ऐसे वक्त हुई है जब संगठन में नए समीकरण, संभावित फेरबदल और 2027 की रणनीति को लेकर चर्चाएं लगातार गर्म हैं।
पार्क-पॉलिटिक्स की परंपरा और BJP की ‘नई राजनीतिक लकीर’
उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्मारक और पार्क सिर्फ ‘विकास’ की इमारतें नहीं रहे वे सत्ता की भाषा और समाज को भेजे जाने वाले संदेश का सबसे बड़ा मंच भी बने हैं। लखनऊ में बसपा ने दलित प्रतीकों को केंद्र में रखकर अपने सामाजिक आधार को पहचान और सम्मान की शक्ल दी, तो सपा ने समाजवादी विचारधारा से जुड़े नेताओं के नाम पर बड़े पार्क और स्थलों के जरिए अपना नैरेटिव गढ़ा। अब BJP उसी राजधानी लखनऊ में जनसंघ के तीन वैचारिक स्तंभों को केंद्र में रखकर एक नई राजनीतिक रेखा खींचती दिख रही है जहां उद्देश्य केवल स्मृति-संरक्षण नहीं, बल्कि विचारधारा की मुहर लगाना और अपने समर्थक वर्गों को भावनात्मक रूप से फिर से जोड़कर 2027 की राह के लिए जमीन तैयार करना भी है।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोट की अहमियत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण मतदाता संख्या के लिहाज से भले बहुत बड़े समूह की तरह न दिखें, लेकिन चुनावी मैदान में उनका असर कई बार निर्णायक साबित होता है। पूर्वांचल की कुछ सीटों से लेकर अवध के सियासी केंद्र तक और कानपुर-बुंदेलखंड पट्टी के कई क्षेत्रों में ब्राह्मण वोटिंग पैटर्न ऐसा ‘टर्निंग पॉइंट’ बन जाता है जो जीत-हार की रेखा बदल देता है। यही वजह है कि BJP के लिए यह वर्ग सिर्फ सामान्य समर्थक नहीं, बल्कि स्थिरता देने वाला कोर बेस माना जाता है और पार्टी यह संदेश साफ रखना चाहती है कि इस आधार में किसी भी तरह की ढील, दूरी या असंतोष की गुंजाइश नहीं छोड़ी जाएगी।
BJP के सामने दोहरी चुनौती
उत्तर प्रदेश में BJP के सामने इस वक्त चुनौती दोहरी है एक तरफ 2024 के बाद OBC आधार को फिर से सहेजकर भरोसा लौटाना, और दूसरी तरफ ऊंची जातियों के भीतर यह धारणा बनने से रोकना कि संगठन और सत्ता की हिस्सेदारी में उनका वजन घट रहा है। लखनऊ का ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ इसी संतुलन-साधने वाली रणनीति की एक अहम कड़ी माना जा रहा है जहां विकास और विरासत की शब्दावली में राजनीतिक संदेश को बेहद नरमी और कौशल से पैक किया गया है। उत्तर प्रदेश की चुनावी प्रयोगशाला में BJP का यह कदम संकेत देता है कि 2027 से पहले पार्टी हर बड़े सामाजिक समूह को उसकी ‘भाषा’ में अलग-अलग सिग्नल देकर साथ रखने की तैयारी कर रही है। और राजधानी लखनऊ का यह आयोजन, ठीक इसी रणनीतिक दिशा में, एक बड़ा पड़ाव बनकर उभरता दिख रहा है। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश में 2027 का चुनाव अभी दूर है, लेकिन उसकी सियासी स्क्रिप्ट अभी से लिखी जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बदले समीकरणों ने BJP को यह संदेश दे दिया कि अब जीत का रास्ता सिर्फ संगठन से नहीं, सामाजिक संदेश की बारीक ‘ट्यूनिंग’ से भी तय होगा। OBC आधार को दोबारा साधने के संकेत पार्टी पहले ही दे चुकी है, और अब फोकस उन वर्गों पर लौटता दिख रहा है जो लंबे समय तक उसके पारंपरिक समर्थन के मजबूत स्तंभ रहे हैं खासकर ब्राह्मण समाज। इसी रणनीतिक पृष्ठभूमि में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ के ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करेंगे। जनसंघ की वैचारिक विरासत से जुड़े डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की विशाल प्रतिमाओं के साथ यह परिसर सिर्फ स्मृति का स्थल नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में संकेतों का नया मंच बनता दिख रहा है जहां इतिहास के जरिए 2027 के सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश की जा रही है।
लखनऊ से ‘अटल’ जुड़ाव और राजनीतिक संकेत
अटल बिहारी वाजपेयी और लखनऊ का रिश्ता सिर्फ चुनावी गणित तक सीमित नहीं रहा—यह शहर उनकी राजनीति की पहचान और कर्मभूमि दोनों बन गया। जनसंघ के शुरुआती दौर से लेकर BJP के राष्ट्रीय विस्तार तक, लखनऊ ने अटलजी को एक ऐसा मंच दिया जहां उनकी वाणी, विचार और नेतृत्व की छाप लगातार गहरी होती गई। 1990 के दशक से 2004 तक लखनऊ ने उन्हें बार-बार लोकसभा भेजा और इसी अवधि में अटलजी की राष्ट्रीय नेतृत्व-यात्रा निर्णायक ऊंचाइयों तक पहुंची। इसलिए उत्तर प्रदेश की राजधानी में अटलजी के नाम पर समर्पित स्मारक का विचार केवल स्मृतियों का संग्रह नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में भावनाओं और संदेशों का संगम भी है।
तीन चेहरों के जरिए एक संदेश
लखनऊ में आकार ले चुका ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में संदेश देने वाला एक बड़ा सार्वजनिक परिसर बनकर उभरा है। यहां लगी प्रतिमाएं जनसंघ से लेकर BJP तक की वैचारिक यात्रा के उन चेहरों की याद दिलाती हैं, जिन्हें पार्टी अपने विचार-परिवार की धुरी मानती है। राजनीतिक मायने तब और गहरे हो जाते हैं जब यह तथ्य सामने आता है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी तीनों ब्राह्मण समाज के ऐसे राष्ट्रीय प्रतीक रहे हैं, जिनकी स्वीकार्यता पार्टी के ‘कोर सपोर्ट बेस’ में स्वाभाविक रूप से मजबूत रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में संकेत साफ पढ़ा जा रहा है पारंपरिक समर्थन स्तंभों को भरोसा दिलाना, अपने आधार को फिर से जोड़ना और ‘अपनों’ को साथ बनाए रखने का संदेश सबसे ऊंचे मंच से देना।
OBC के बाद अब ब्राह्मणों की तरफ क्यों बढ़ी नजर?
उत्तर प्रदेश में 2024 के नतीजों के बाद BJP के भीतर यह समझ और पुख्ता हुई है कि चुनावी बढ़त अब किसी एक सामाजिक धुरी पर टिककर लंबी नहीं चल सकती। इसलिए पार्टी एक तरफ OBC समुदायों के साथ संवाद, संगठन और संदेश का नया संतुलन गढ़ने में जुटी है, तो दूसरी ओर ऊंची जातियों खासकर ब्राह्मण समाज के भीतर उभरती असंतोष की हल्की-सी फुसफुसाहट को भी नजरअंदाज करने के मूड में नहीं दिखती। इसी पृष्ठभूमि में लखनऊ में हुई BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक महज एक औपचारिक जुटान नहीं मानी जा रही। बैठक के बहाने जो संकेत बाहर आए, उनका निष्कर्ष यही है कि जातीय संतुलन की राजनीति में प्रतिनिधित्व, हिस्सेदारी और ‘आवाज’ को लेकर भीतरखाने मंथन तेज है। और उत्तर प्रदेश की सियासत में इस बैठक का वजन इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ऐसे वक्त हुई है जब संगठन में नए समीकरण, संभावित फेरबदल और 2027 की रणनीति को लेकर चर्चाएं लगातार गर्म हैं।
पार्क-पॉलिटिक्स की परंपरा और BJP की ‘नई राजनीतिक लकीर’
उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्मारक और पार्क सिर्फ ‘विकास’ की इमारतें नहीं रहे वे सत्ता की भाषा और समाज को भेजे जाने वाले संदेश का सबसे बड़ा मंच भी बने हैं। लखनऊ में बसपा ने दलित प्रतीकों को केंद्र में रखकर अपने सामाजिक आधार को पहचान और सम्मान की शक्ल दी, तो सपा ने समाजवादी विचारधारा से जुड़े नेताओं के नाम पर बड़े पार्क और स्थलों के जरिए अपना नैरेटिव गढ़ा। अब BJP उसी राजधानी लखनऊ में जनसंघ के तीन वैचारिक स्तंभों को केंद्र में रखकर एक नई राजनीतिक रेखा खींचती दिख रही है जहां उद्देश्य केवल स्मृति-संरक्षण नहीं, बल्कि विचारधारा की मुहर लगाना और अपने समर्थक वर्गों को भावनात्मक रूप से फिर से जोड़कर 2027 की राह के लिए जमीन तैयार करना भी है।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोट की अहमियत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण मतदाता संख्या के लिहाज से भले बहुत बड़े समूह की तरह न दिखें, लेकिन चुनावी मैदान में उनका असर कई बार निर्णायक साबित होता है। पूर्वांचल की कुछ सीटों से लेकर अवध के सियासी केंद्र तक और कानपुर-बुंदेलखंड पट्टी के कई क्षेत्रों में ब्राह्मण वोटिंग पैटर्न ऐसा ‘टर्निंग पॉइंट’ बन जाता है जो जीत-हार की रेखा बदल देता है। यही वजह है कि BJP के लिए यह वर्ग सिर्फ सामान्य समर्थक नहीं, बल्कि स्थिरता देने वाला कोर बेस माना जाता है और पार्टी यह संदेश साफ रखना चाहती है कि इस आधार में किसी भी तरह की ढील, दूरी या असंतोष की गुंजाइश नहीं छोड़ी जाएगी।
BJP के सामने दोहरी चुनौती
उत्तर प्रदेश में BJP के सामने इस वक्त चुनौती दोहरी है एक तरफ 2024 के बाद OBC आधार को फिर से सहेजकर भरोसा लौटाना, और दूसरी तरफ ऊंची जातियों के भीतर यह धारणा बनने से रोकना कि संगठन और सत्ता की हिस्सेदारी में उनका वजन घट रहा है। लखनऊ का ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ इसी संतुलन-साधने वाली रणनीति की एक अहम कड़ी माना जा रहा है जहां विकास और विरासत की शब्दावली में राजनीतिक संदेश को बेहद नरमी और कौशल से पैक किया गया है। उत्तर प्रदेश की चुनावी प्रयोगशाला में BJP का यह कदम संकेत देता है कि 2027 से पहले पार्टी हर बड़े सामाजिक समूह को उसकी ‘भाषा’ में अलग-अलग सिग्नल देकर साथ रखने की तैयारी कर रही है। और राजधानी लखनऊ का यह आयोजन, ठीक इसी रणनीतिक दिशा में, एक बड़ा पड़ाव बनकर उभरता दिख रहा है। UP News












