Friday, 26 July 2024

धर्म के बिना राजनीति विधवा: रामभद्राचार्य

Shri Rambhadracharya : हाल ही में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए प्रसिद्ध संत रामभद्राचार्य ने धर्म व राजनीति की नई व्याख्या…

धर्म के बिना राजनीति विधवा: रामभद्राचार्य

Shri Rambhadracharya : हाल ही में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए प्रसिद्ध संत रामभद्राचार्य ने धर्म व राजनीति की नई व्याख्या की है। स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा है कि धर्म के बिना राजनीति विधवा महिला की तरह है। स्वामी रामभद्राचार्य अपनी राजनीतिक टिप्पणियों के कारण अक्सर चर्चा में रहते हैं। रामकथा के मंच से स्वामी रामभद्राचार्य अनेक बार भारतीय जनता पार्टी तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन करते हुए सुने गए हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद अब स्वामी रामभद्राचार्य की नई टिप्पणी सामने आई है।

Shri Rambhadracharya

धर्म तथा राजनीति पति तथा पत्नी हैं

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य एक बार फिर चर्चा में हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने एक नई व्याख्या की है। उन्होंने कहा है कि धर्म तथा राजनीति पति तथा पत्नी की तरह से हैं। रामभद्राचार्य ने जोर देकर कहा है कि जैसे दुनिया में पति तथा पत्नी का रिश्ता है उसी प्रकार धर्म तथा राजनीति का भी आपस में गहरा रिश्ता है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा है कि धर्म पति है तथा राजनीति पत्नी है। बिना धर्म के राजनीति विधवा की तरह है तथा बिना राजनीति के धर्म विधुर की तरह से है। धर्म तथा राजनीति को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि धर्म तथा राजनीति को अलग-अलग बताने वले केवल ढोंग करते हैं।

पुरस्कार पर जताई खुशी

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य ने पुरस्कार मिलने के बाद पहली बार पत्रकारों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि पुरस्कार से बहुत प्रसन्न नहीं होता पर ज्ञानपीठ पाकर बहुत प्रसन्नता हुई है। मेरी विद्या का समादर हुआ है। यह ऐसा पुरस्कार है, जो रामधारी सिंह दिनकर, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा के पास गया, वही मेरे पास आया है। हो सकता है मेरी साधना अब परिपक्व हुई हो। अष्टाध्यायी पर काम किया। नौ हजार पृष्ठों की व्याख्या की। इसमें 50 हजार श्लोक हैं। तभी मेरी विद्या को समझा गया।

रामभद्राचार्य ने कहा है कि उर्दू को पांच बार और संस्कृत को अब तक सिर्फ दो बार ज्ञानपीठ मिलने पर कहते हैं कि ज्ञानपीठ पुरस्कार की कमेटी में वामपंथियों का अधिकार हुआ करता है। (हंसते हुए)… वहां से हम ज्ञानपीठ पुरस्कार ठीक वैसे ही ले आए, जैसे गीदड़ों के हाथ से सिंह अपना भाग ले आता है।  रामभद्राचार्य अब तक 240 ग्रंथ लिख चुके हैं। इनमें 130 संस्कृत में हैं।

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