UP News : उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट (UP High Court) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट के बड़े फैसले से प्रदेश के जिलों में तैनात जिला प्रशासन के अधिकारियों को बड़ा झटका दिया गया है। उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट ने साफ-साफ शब्दों में जिलों में कायम जिला प्रशासन के अफसरों को उनकी हद (सीमा) याद दिला दी है। उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए जिला प्रशासन के आदेश को गैर कानूनी करार देकर पलट दिया है।
क्या है उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट का बड़ा फैसला?
उत्तर प्रदेश का हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) प्रयागराज शहर में स्थापित है। प्रयागराज का नाम पहले इलाहाबाद हुआ करता था। उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट का नाम अभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (उत्तर प्रदेश का हाईकोर्ट) ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। अपने बड़े फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि, जिला प्रशासन का काम मौके पर शांति और सौहार्द बनाए रखना है। उन्हें विवादित अचल संपत्ति पर किसका कब्जा है या किसका कब्जा होना चाहिए, यह निर्धारित करने का अधिकार नहीं है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने डीएम को विवादित संपत्ति का कब्जा याची को सौंपने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने अरुण प्रकाश शुक्ल की याचिका पर दिया। प्रयागराज के सोरांव तहसील के कटरा दयाराम गांव स्थित विवादित संपत्ति पर कब्जे की सुरक्षा के लिए याची ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी। याची का कहना था कि उसने यह संपत्ति रामनरेश मिश्र से खरीदी थी। राम नरेश के उत्तराधिकारियों का कहना था कि विक्रेता संपत्ति बेचने में सक्षम नहीं था। इस आधार पर अदालत में इसे चुनौती दी जो 2013 में खारिज हो गई। अदालत ने याची के कब्जे को सही ठहराया। इस फैसले के खिलाफ अपील की गई है। फिलहाल उसमें स्थगन आदेश नहीं दिया गया है। याचिका में कहा गया कि अपील लंबित रहने के दौरान प्रशासन ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए पुलिस। सहायता से याची को संपत्ति से बेदखल कर दिया है।
SDM को जन्म तथा मृत्यु की तारीख के सत्यापन का हक नहीं है
अपने एक दूसरे फैसले में उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट ने प्रदेश के तहसीलों के मुखिया उप जिलाधिकारी (SDM) को हद (सीमा) याद दिलाई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एसडीएम को जन्म और मृत्यु की तिथि के सत्यापन का अधिकार नहीं है। वह केवल जन्म या मृत्यु के तथ्य को सत्यापित कर सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने याचिका को निस्तारित करते हुए दिया। मामला एटा का है। याची के पिता लदूरी सिंह की 12 जनवरी 1987 को मृत्यु हो गई थी। 18 अक्टूबर 2023 को याची ने अपने, पिता की मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए एटा के एसडीएम सदर को प्रार्थनापत्र दिया। एसडीएम ने बीडीओ शीतलपुर से जांच आख्या तलब की। बीडीओ ने मृत्यु का कारण स्पष्ट न होने का हवाला देते हुए आख्या एसडीएम को भेज दी। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के मुताबिक, जन्म या मृत्यु का एक वर्ष तर्क पंजीकरण न होने पर प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट या प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट की ओर से पुष्टि के बाद ही किया जा सकता है।
जालौन के बेसिक शिक्षा अधिकारी को ठहराया अयोग्य
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट का डंडा शिक्षा विभाग के खिलाफ चला है। उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट ने प्रदेश के जालौन जिले में तैनात बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) को उसकी हद याद दिलाई है। बेसिक शिक्षा अधिकारी जालौन की ओर से अलग-अलग कारण बताकर अनुकंपा नियुक्ति खारिज करने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया बीएसए पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं। कोर्ट ने उन्हें 27 फरवरी को तलब करते हुए स्पष्टीकरण मांगा। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने आस्था मिश्रा की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। जालौन निवासी याची के माता-पिता सरकारी सेवा में थे। पिता 2019 में सेवानिवृत्त हो गए। प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत मां की 2021 में मृत्यु हो गई। याची के अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को बीएसए ने माता-पिता के सेवा में होने के आधार पर खारिज कर दिया। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट के जवाब मांगने पर बीएसए ने कहा कि याची की शैक्षिक योग्यता बीएड है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर बीएड डिग्रीधारक को सहायक अध्यापक नहीं बना सकते। याची के अधिवक्ता कमल कुमार केशरवानी ने दलील दी कि याची का मामला 2021 का है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस पर लागू नहीं होगा। साथ ही यह भी दलील दी कि बीएसए ने हाईकोर्ट के आदेशों पर अलग-अलग आधार लेते हुए नियुक्ति देने से इन्कार किया है। पहली बार विवाहित होने और दूसरी और तीसरी बार माता पिता के सेवा में होने के आधार पर नियुक्ति देने से इन्कार किया है, जबकि न्यायालय में प्रस्तुत शपथपत्र में बीएसए ने यह आधार बताया है कि वर्तमान में बीएड डिग्रीधारक को सहायक अध्यापक नहीं बनाया जा सकता है।
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