Wednesday, 4 December 2024

उत्तर प्रदेश का रहने वाला है किडनी रैकेट का मास्टरमाइंड

UP News : एक महीने के अंदर दो किडनी रैकेट पकड़े गए हैं। मजेदार बात यह है कि दोनों ही किडनी…

उत्तर प्रदेश का रहने वाला है किडनी रैकेट का मास्टरमाइंड

UP News : एक महीने के अंदर दो किडनी रैकेट पकड़े गए हैं। मजेदार बात यह है कि दोनों ही किडनी रैकेट के मास्टरमाइंड अपराधी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। पहले गिरोह के तार उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर में स्थित यथार्थ अस्पताल से जुड़े हुए हैं। जांच एजेंसियों को पता चला है कि दूसरे किडनी रैकेट का मास्टरमाइंड भी उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर का रहने वाला है। इस नए मास्टर माइंड के तार भी नोएडा के किसी बड़े अस्पताल से जुड़े हुए हो सकते हैं।

बड़े किडनी रैकेट का पर्दाफाश

आपको बता दें कि दिल्ली पुलिस ने एक महीने के अंदर ही दूसरे किडनी रैकेट का पर्दाफाश किया है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि हाल ही में पकड़े गए किडनी रैकेट ने 34 से अधिक किडनी खरीदी तथा बेची हैं। इस किडनी रैकेट के तार दिल्ली के अलावा चार राज्यों गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक फैले थे। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को दिल्ली से चल रहे इन नेटवर्क की जानकारी मिली थी और पुलिस गैंग से जुड़े सबूत इकट्ठा कर रही थी। तभी एक महिला ने पुलिस से संपर्क किया और बताया की एक शख्स ने उनके पति के किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 35 लाख ले लिए। किडनी भी ट्रांसप्लांट नहीं हुई और उनके पति की मौत हो गई।

पुलिस ने महिला की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की और जांच शुरू की। पुलिस को पता लगा कि इस रैकेट को संदीप आर्य नाम का एक शख्स ऑपरेट कर रहा है। लेकिन पुलिस को संदीप की जानकारी नहीं मिल पा रही थी। इस बीच पुलिस को संदीप के एक खास सहयोगी सुमित की जानकारी मिली जिसके बाद पुलिस ने सुमित को ट्रैक किया और उसे पकड़ा। सुमित से पूछताछ से मिली जानकारी के बाद पुलिस ने गोवा से मास्टरमाइंड संदीप आर्य और उसके सहयोगी देवेंद्र को पकड़ा।

दिल्ली पुलिस के डीसीपी क्राइम अमित गोयलंके के मुताबिक मास्टरमाइंड संदीप आर्य के पकड़े जाने के बाद इस रैकेट के सारे राज सामने आ गए। पूछताछ में संदीप ने खुलासा किया कि उन्होंने अब तक 34 ट्रांसप्लांट करवाए हैं। पांच राज्यों के 11 अस्पतालों ये ऑपरेशन किए गए। एक ऑपरेशन के 35 से 40 लाख रुपये वसूले जाते थे। इन रुपयों को काम के हिसाब से मुख्य 8 गैंग मेंबर्स में बांटा जाता था। दिल्ली पुलिस के मुताबिक जो 35 से 40 लाख रुपये वसूले जाते थे इनमें सबसे मोटा हिस्सा मास्टरमाइंड संदीप आर्य का होता था और वह पांच लाख रुपये रखता था। करीब 5 लाख ही डोनर को दिया जाता था। जबकि बाकी लोगों का हिस्सा एक से दो लाख तक था। किडनी डोनर की तलाश के लिए इस गैंग का एक शख्स अलग-अलग 122 सोशल मीडिया ग्रुप में जुड़ा था। मरीजों की जानकारी जुटाने के लिए गैंग के मेंबर बड़े हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर की नौकरी करते। फिर यहां से मरीज की जानकारी मिलने पर उसे आगे गैंग के सरगना संदीप को देते थे। यही लोग डोनर को ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर कमिटी के सामने पेश होने की ट्रेनिंग देते थे।

उत्तर प्रदेश के नोएडा का है मास्टर माइंड

उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर का रहने वाला संदीप आर्य इस पूरे गैंग का सरगना था। संदीप ने पब्लिक हेल्थ में एमबीए कर रखा है। संदीप फरीदाबाद, दिल्ली और गुड़गांव, इंदौर और बड़ौदा के कई हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर के पद पर काम कर चुका है। यहीं से इसे अवैध ट्रांसप्लांट का आइडिया मिला। संदीप ने अपना एक गैंग बनाया, मरीज से बातचीत की और देखते ही देखते कुछ ही समय में 34 अवैध ट्रांसप्लांट करवा दिए। संदीप मरीज से 35 से 40 लाख रुपये लेता था। इसमें हॉस्पिटल का बिल भी शामिल होता था।

संदीप का अपना कमीशन 5 से 6 लाख रुपये होता था। संदीप का रिश्तेदार देवेंद्र जो कि सिर्फ 10वीं तक पढ़ा है, उसने अपना अकाउंट संदीप को दे रखा था। वह संदीप के लिए मरीजों से रकम लेता था। जिस महिला की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई उस महिला से भी देवेंद्र ने 7 लाख रुपये अपने अकाउंट में लिए थे। इस गिरोह का दूसरा सदस्य विजय कुमार है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का रहने वाला विजय कुमार संदीप के उस वक्त संपर्क में आया, जब उसने पैसों के लिए खुद की किडनी बेच दी। इसके बाद वह संदीप के लिए काम करने लगा। विजय का काम था डोनर को ट्रेनिंग देना ताकि डोनर मरीज के परिवार का नजर आए। उनके जैसे कपड़े और भाषा हों। उसे हर केस के पचास हजार रुपये मिलते थे। किडनी रैकेट का तीसरा सदस्य पुनीत कुमार है। उत्तर प्रदेश के आगरा के रहने वाले पुनीत ने 2018 में हॉस्पिटल मैनेजमेंट में डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उसने अलग-अलग राज्यों में सात बड़े अस्पतालों में नौकरी की।

संदीप से संपर्क में आने के बाद पुनीत ने संदीप के लिए जाली दस्तावेज बनाना शुरू किया। पुनीत आगरा के अस्पताल में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रहा था। पुनीत को हर केस का 50000 से लेकर 1 लाख रुपये तक मिला करता था। मुंबई के रहने वाले हनीफ शेख की कहानी भी विजय कुमार जैसी है। हनीफ मुंबई में टेलर का काम करता था लेकिन उसे नुकसान हो गया। इसी दौरान फेसबुक पेज के जरिए वह संदीप आर्य के संपर्क में आया और पैसों के लिए उसने अपनी किडनी बेच दी।

इसके बाद वह खुद संदीप के लिए काम करने लगा। वह डोनर लाता तो पचास हजार मिलते जबकि मरीज लाने पर पांच लाख रुपये। चिका ने भी पैसों के लिए संदीप के हाथों अपनी किडनी बेच दी थी जिसके बाद संदीप ने चिका को अपने गैंग से जोड़ लिया और फिर ट्रेनिंग दिलवाने के बाद उसे एक अस्पताल में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर की नौकरी दिलवा दी। उसकी मदद से संदीप ने तीन किडनी ट्रांसप्लांट करवाए। चिका को एक लाख रुपये मिलता था। तेज प्रकाश को अपनी पत्नी के लिए किडनी चाहिए थी। संदीप के जरिए उसे अपनी पत्नी के लिए किडनी मिली और इसके बाद तेज प्रकाश संदीप आर्य को मरीज उपलब्ध करवाने लगा। हर केस के लिए तेज प्रकाश को 5 लाख रुपये मिलते थे। रोहित खन्ना किडनी डोनर्स की तलाश करता था। रोहित सोशल मीडिया पर 122 अलग-अलग ग्रुप में जुड़ा हुआ था। उसके पास 26 ईमेल आईडी थीं, जिनसे वह डोनर्स के संपर्क में रहता था। पुलिस ने आरोपियों के पास से फर्जी दस्तावेज में इस्तेमाल आने वाले 34 फेक स्टांप बरामद किए हैं।

पहले भी पकड़ा गया था किडनी रैकेट

कुछ ही दिनों पहले भी एक किडनी रैकेट पकड़ा गया था। इस अंतर्राष्ट्रीय किडनी रैकेट की मास्टरमाइंड उत्तर प्रदेश की एक महिला डाक्टर बताई जा रही है। मौत की सौदागर बनी महिला डाक्टर ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में दो दर्जन से अधिक अवैध किडनी ट्रांसप्लांट किए हैं। उत्तर प्रदेश के नोएडा में लाए गए किडनी बेचने तथा खरीदने वाले बांग्लादेश से उत्तर प्रदेश में लाए गए थे।

आपको बतादें कि दिल्ली पुलिस ने हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय किडनी रैकेट का भंडाफोड़ किया था। दिल्ली पुलिस ने एक महिला डॉक्टर को गिरफ्तार किया था। पकड़ी गई इस महिला डॉक्टर के तार बांग्लादेश और भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट रैकेट (अंग प्रत्यारोपण रैकेट) से जुड़े बताए जा रहे हैं। पुलिस ने बताया कि 50 वर्षीय डॉ. विजया कुमारी गिरोह के साथ काम करने वाली एकमात्र डॉक्टर थीं। इस महिला डाक्टर विजया कुमारी ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में स्थित यथार्थ अस्पताल में दो दर्जन किडनी की खरीद-फरोख्त करके ऑपरेशन किए हैं। दिल्ली पुलिस ने बताया कि किडनी रैकेट में बांग्लादेश के मरीजों को बिचौलियों, डॉ, विजया कुमारी और उनके साथियों के नेटवर्क के द्वारा उत्तर प्रदेश तथा एनसीआर के प्रमुख अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण के लिए फुसलाया जाता था। विजया कुमारी के अलावा पिछले महीने तीन बांग्लादेशी नागरिकों को भी गिरफ्तार किया गया है।

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नई दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग के नाम पर फर्जी दस्तावेज कथित तौर पर यह दावा करने के लिए तैयार किए गए थे कि डोनर और रिसीवर (दोनों बांग्लादेशी) के बीच संबंध थे , जो रतीय कानून के अनुसार आवश्यक है। सूत्रों ने कहा कि इन जाली दस्तावेजों को भी जब्त कर लिया गया है। सूत्रों ने बताया कि सीनियर कंसल्टेंट और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. विजया कुमारी करीब 15 साल पहले जूनियर डॉक्टर के तौर पर अपोलो अस्पताल से जुड़ी थीं। उन्हें अस्पताल के पेरोल पर नहीं बल्कि फीस-फॉर-सर्विस के आधार पर नियुक्त किया गया था। यही डाक्टर उत्तर प्रदेष के नोएडा में स्थित यथार्थ अस्पताल में भी काम कर रही थी।

उत्तर प्रदेश के नोएडा में यथार्थ अस्पताल में हुआ खेला

यह पूरा खेला उत्तर प्रदेश के नोभाएडा में स्थित यथार्थ अस्पताल में हुआ है। उत्तर प्रदेश के यथार्थ अस्पताल के एडिशनल मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनील बालियान ने कहा कि डॉ. विजया कुमारी अस्पताल में विजिटिंग कंसल्टेंट के तौर पर काम कर रही थीं और अपने द्वारा लाए गए मरीजों का प्रत्यारोपण करती थीं। उन्होंने कहा कि यथार्थ का कोई भी मरीज उन्हें नहीं दिया गया।

वर्तमान मामले में बांग्लादेश के रहने वाले 29 वर्षीय रसेल अपने साथियों मोहम्मद सुमन मियां और इफ्ती अथवा त्रिपुरा के रतीश पाल के साथ मिलकर संभावित डोनर्स को बांग्लादेश से दिल्ली बुलाते थे। एक सूत्र ने बताया कि वे 4-5 लाख रुपये में अपनी किडनी दान करते थे और रिसीवर से 25-30 लाख रुपये वसूले जाते थे। इफ्ती को छोड?र, अन्य सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
सूत्र ने बताया कि हमें राजस्थान में किडनी रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद सूचना मिली और पुलिस ने करीब तीन महीने पहले इस पर काम करना शुरू किया। सभी आरोपी पहली बार किडनी ट्रांसप्लांट करवा रहे थे और वे हर ट्रांसप्लांट के लिए डॉक्टर को 2-3 लाख रुपये दे रहे थे।

बना रखी थी फर्जी कम्पनी

उत्तर प्रदेश की महिला डाक्टर तथा उसके साथियों ने अलशिफा नामक एक मेडिकल टूरिज्म कंपनी बना रखी थी। सूत्रों ने बताया कि यथार्थ अस्पताल से पीड़ित के मेडिकल रिकॉर्ड जब्त कर लिए गए हैं, जिसमें बांग्लादेश उच्चायोग के जाली दस्तावेज दिखाए गए हैं। सूत्र ने कहा कि इन दस्तावेजों से पता चलता है कि पीड़िता के ट्रांसप्लांट रिकॉर्ड से जुड़ी मेडिकल फाइल को पूरा करने के लिए इसका दुरुपयोग किया गया था। सूत्रों ने कहा कि पुलिस अब एक संगठित अपराध गिरोह की जांच कर रही है। जांच के दौरान उत्तर प्रदेश की महिला डाक्टर विजया कुमारी के सहायक के रूप में काम करने वाले विक्रम को भी मामले में गिरफ्तार किया गया है।

रिकॉर्ड से पता चलता है कि रसेल ने जसोला गांव में एक फ्लैट किराये पर लिया था। सूत्र ने कहा, “इस किराये के फ्लैट में पांच से छह डोनर रह रहे थे। ट्रांसप्लांट से पहले सभी टेस्ट पूरे हो चुके थे। रिसीवर फ्लैट में डोनर से मिलते भी थे।” सूत्रों ने कहा कि बांग्लादेश के कुश्तिया जिले के रसेल ने अपने साथियों की पहचान ढाका के रहने वाले मियां (28) और मोहम्मद रोकोन (26) के रूप में की, जो पूछताछ के दौरान फ्लैट के अंदर थे। सूत्रों ने कहा कि गिरफ्तारी के दौरान रसेल के कमरे से बरामद बैग में नौ पासपोर्ट, दो डायरियां और एक रजिस्टर मिला था।

ये पासपोर्ट किडनी डोनेट करने वालों और रिसीवर के थे और डायरी में कथित तौर पर डोनर और रिसीवर के बीच पैसों के लेनदेन की जानकारी थी। एक रिपोर्ट में बताया है कि उत्तर प्रदेश की इस महिला डॉक्टर के प्राइवेट असिस्टेंट के अकाउंट में इस अवैध धंधे का पैसा आता था और महिला डॉक्टर उसे कैश में निकलवा लिया करती थी। दिल्ली पुलिस के मुताबिक यह पूरा रैकेट बांग्लादेश से संचालित हो रहा था।इसके लिए बांग्लादेश में रैकेट के लोग डायलिसिस सेंटर जाते थे और वहां पर देखते थे कि किस मरीज को किडनी की जरूरत है, उसकी पैसे देने की कितनी क्षमता है। एक बार अगर कोई मरीज 25 से 30 लाख रुपये देने को तैयार हो जाता तो फिर एक इंडियन मेडिकल एजेंसी के जरिए वह उसे इलाज के लिए भारत भेज देते थे। उसके बाद इस रैकेट के लोग किसी गरीब बांग्लादेशी को पकड़ते थे और उसे पैसों को प्रलोभन देकर किडनी देने के लिए तैयार करते थे। फिर उसे झांसा देकर भारत लाते थे और जिस मरीज को किडनी की जरूरत होती थी उसे उसका रिश्तेदार बताते थे। इसके बाद उस व्यक्ति का नकली दस्तावेज बनवा कर महिला डॉक्टर के जरिए उसकी किडनी निकलवा लेते थे। इस महिला डॉक्टर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 4 दिन पहले दिल्ली से ही गिरफ्तार किया है। मामला सामने आने के बाद अपोलो अस्पताल ने महिला डॉक्टर को सस्पेंड कर दिया। पुलिस के मुताबिक कुछ डोनर्स ने ये भी बताया कि उन्हें नौकरी के नाम पर हिन्दुस्तान लाया गया और फिर यहां पर उसकी किडनी निकाल ली गई। UP News

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