Tuesday, 26 November 2024

पशु के समान होते हैं इस तरह का काम करने वाले व्यक्ति

Chanakya Niti : इस पृथ्वी पर कई तरह के आदमी आपने देखें होंगे। सभी तरह के व्यवहार और आचार विचार…

पशु के समान होते हैं इस तरह का काम करने वाले व्यक्ति

Chanakya Niti : इस पृथ्वी पर कई तरह के आदमी आपने देखें होंगे। सभी तरह के व्यवहार और आचार विचार वाले लोगों का आपका सामना भी होता होगा। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनसे दूरी बनाए रखना ही बेहतर होता है। कुछ लोग ज्ञानी होते हुए भी अपने आचार विचार और व्यवहार के कारण पशु समान होते हैं। आखिर वो व्यक्ति के वो कौन से गुण होते हैं, जिनके कारण व्यक्ति पशु समान हो जाता है।

Chanakya Niti in hindi

कूट राजनीतिज्ञों की जब भी बात होती है तो भारत के आचार्य चाणक्य का नाम जरुर लिया जाता है। आचार्य चाणक्य की नीति इतनी सटीक है कि उन पर अमल करके राजनीति करने वाला व्यक्ति को कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता है। कहावत भी है कि राजनीति करनी हो तो चाणक्य नीति अपना कर करो, दुश्मन कभी परास्त नहीं कर पाएगा।

व्यक्ति के गुण और धर्म को लेकर आचार्य चाणक्य कहते हैं कि…

मासभक्ष्यैः मुरापानैमूर्खश्छाग्ववर्जितैः।
पशुभिः पुरुषाकारण्क्रांताऽस्ति च मेदिनी।।

मनुष्य के दुर्गुणों में लिप्त होने पर उसकी स्थिति का प्रतिपादन करते हुए आचार्य कहते हैं कि मांसाहारी, शराबी तथा मूर्ख पुरुष के रूप में पशु है। इनके भार से पृथ्वी दबी जा रही है। अर्थ यही है कि मांस खाने वाले, शराबी तथा मूर्ख, इन तीनों को पशु समझना चाहिए। भले ही इनका शरीर मनुष्य का होता है। मनुष्य के आकार वाले ये पशु पृथ्वी के लिए भार जैसे हैं।

कैसा होना चाहिए देश का राजा

अन्नहीनो बहेद्राष्ट्र मन्त्रहीनश्च ऋत्विजः।
यजमान दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः॥

आचार्य चाणक्य हानिप्रद कारणों की चर्चा करते हुए कहते है कि अन्नहीन राजा राष्ट्र को नष्ट कर देता है। मन्त्रहीन ऋत्विज तथा दान न देने वाला यजमान भी राष्ट्र को नष्ट करते हैं। इस प्रकार के ऋत्विजों में यज्ञ कराना और ऐसे यजमान का होना फिर इनका प करना राष्ट्र के साथ शत्रुता है।

अर्थात जिस राजा के राज्य में अन्न की कमी हो, जो ऋत्विज (यज्ञ के ब्राह्मण यज्ञ) के मंत्र न जानते हों तथा जो यजमान यज्ञ में दान न देता हो, ऐसा राजा, ऋत्विज तथा यजमान तीनों ही राष्ट्र को नष्ट कर देते हैं। इनका यज्ञ करना राष्ट्र के साथ शत्रुता दिखाना है।
अनाज न होने पर यज्ञ किया जाता है। यज्ञ के ब्राह्मण विद्वान होने चाहिए, उन्हें यज्ञ के मन्त्रों का पूरा ज्ञान हो। यज्ञ के बाद यजमान ब्राह्मणों को दक्षिणा देता है। यदि मन्त्रहीन ब्राह्मण और दक्षिणा न देने वाला यजमान यज्ञ कराए तो यह राष्ट्र का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है।

इन लोगों की होती है हर जगह पूजा

कि कुलेन विशालेत विद्याहीने च बेहिनाम्।
जुष्कुल चापि विदुषी देवैरपि हि पूज्यते॥

विद्वान की महत्ता बताते हुए आचार्य कहते हैं कि विद्याहीन होने पर विशाल कुल का क्या करता? विद्वान नीच कुल का भी हो, तो देवताओं द्वारा भी पूजा जाता है। आशय यह है कि विद्वान का ही सम्मान होता है, खानदान का नहीं। नीच खानदान में जन्म लेनेवाला व्यक्ति यदि विद्वान हो, तो उसका सभी सम्मान करते हैं।

विद्वान प्रशस्यते लोके विद्वान सर्वत्र गौरवम्।
विद्वया लभते सर्व विद्या सर्वत्र पुज्यते ॥

आचार्य चाणक्य विद्वान की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि विद्वान की लोक में प्रशंसा होती है, विद्वान को सर्वत्र गौरव मिलता है। विद्या से सब कुछ प्राप्त होता है और विद्या की सर्वत्र पूजा होती है। आशय यह है कि विद्या के कारण ही मनुष्य को समाज में आदर, प्रशंसा, मान सम्मान तथा जो कुछ भी वह चाह सब मिल जाता है, क्योंकि विद्या का सभी सम्मान करते हैं

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