Sunday, 1 December 2024

Agricultural Tips : खेती और किसान: प्याज, सब्जियों की एक प्रमुख फसल है

Agricultural Tips : प्याज, कंदवर्गीय सब्जियों की एक प्रमुख फसल है। इसकी खेती भारत के सभी भागों में की जाती है।…

Agricultural Tips :  खेती और किसान: प्याज, सब्जियों की एक प्रमुख फसल है

Agricultural Tips : प्याज, कंदवर्गीय सब्जियों की एक प्रमुख फसल है। इसकी खेती भारत के सभी भागों में की जाती है। इसकी पत्ती, परिपक्व तथा अपरिपक्व कंदों को सब्जी, सूप, सॉस व भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। खरीफ प्याज की मांग में काफी वृद्धि हुई है। बाजार में शीतकालीन मौसम में प्याज की कमी रहती है। प्याज के उत्पादन में किस्म, सस्य क्रियाएं, परिपक्वता, पोषक तत्वों, कीटों व रोगों आदि का काफी प्रभाव पड़ता है। इसमें गंध एवं तीखापन एलायल प्रोपाइल डाई सल्फाइड नामक वाष्पशील तेल के कारण होता है, जिससे इसका उपयोग भोजन के स्वाद बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है।

Agricultural Tips

बिहार में सालाना 50 से 55 हजार 1 हेक्टेयर क्षेत्र में प्याज की खेती होती है। वैसे तो प्याज की खेती राज्य के सभी जिलों में होती है, लेकिन खरीफ प्याज की खेती राज्य के कुछ ही जिलों जैसे- समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, लखीसराय, वैशाली, पटना, नालन्दा, बक्सर, रोहताश आदि जिलों में अधिक की जाती है। इसकी खेती लगभग 8 से 10 हजार हेक्टेयर में ही की जाती है, जो काफी कम है। इसका मुख्य कारण किसानों में तकनीकी जानकारी का अभाव है। अन्य फसलों की तुलना में खरीफ प्याज की खेती से दो-तीन गुना अधिक लाभ कमाया जा सकता है। जिस समय खरीफ प्याज तैयार होती है, उस समय बाजार में रबी प्याज की कमी होने के कारण हर वर्ष अक्टूबर-नवम्बर में प्याज के भाव अधिक हो जाते हैं। रबी प्याज की पर्याप्त आपूर्ति न होने तथा खरीफ प्याज का उत्पादन बाजार में देरी होने के कारण इस समय प्याज का भाव अधिक हो जाता है। ऐसे समय पर यदि बिहार के किसान भाई खरीफ प्याज की खेती करते हैं, तो उन्हें कम से कम लागत में अच्छा मुनाफा मिल सकता है।

Agricultural Tips
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बिहार के प्याज, गुणवत्ता में अच्छी तो है, लेकिन फसल क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी पैदावार अच्छी नहीं है। किसान कुछ महत्वपूर्ण कृषि क्रियाओं को ध्यान में रखकर और उनको उपयोग में लाकर खरीफ प्याज की खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। अच्छी पैदावार के लिए खेती की उन्नत तकनीकी और नवीन किस्मों की जानकारी होना आवश्यक है।

सस्य क्रियाएं:

खरीफ प्याज की खेती किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट या सिल्ट दोमट मृदा, जिसका पी-एच मान 5.5 से 6.5 तक हो, सर्वोत्तम रहती है। भारी मुदा में कन्द ठीक से नहीं बनते हैं। इसलिए प्याज लगाने से पहले जमीन की 4-5 बार अच्छी तरह से जुताई करके भरभुरी बना लेते हैं तथा खेत को समतल कर लेते हैं।

खरीफ प्याज की किस्में:

बिहार के लिये सबसे अच्छी खरीफ प्याज की किस्में: एन.-53, एग्रीफाउन्ड डार्क रेड लाइन-883 आदि हैं।

बीज मात्रा:

खरीफ प्याज के लिये 10 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता पड़ती है।

बीज बुआई एवं नर्सरी तैयार करना:

बीज को जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में ऊंची उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है। क्यारियों की चौड़ाई 1 से 1.25 मीटर और लंबाई सुविधानुसार रखते हैं। वैसे 3 से 5 मीटर लंबी क्यारियां सुविधाजनक होती है। एक हेक्टेयर रोपाई के लिए 70 क्यारियां पर्याप्त होती है। रोगों से बचाने के लिए बीज और पौधशाला की मृदा को कवकनाशी थीरम या कैप्टांन या बाविस्टिन 2.5 ग्राम बीज की दर से उपचाारित करना चाहिए। इसके बाद फव्वारों से हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास से ढक देते हैं। जब बीज अच्छी तरह अंकुरित हो जाए, तो घास को हटा देना चाहिए। रोज फव्वारे से हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इस प्रकार से खरीफ में 6 से 7 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।

रोपाई की विधि:

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सें.मी. तथा पौधे से पौध की दूरी 10 सें.मी. रखते हैं। रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम + 0.1 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस के घोल में डुबोकर लगाने से पौधे स्वस्थ रहते हैं।

खाद एवं उर्वरक:

प्याज को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की, विशेषकर नाइट्रोजन व पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए अच्छे तैयार खेत में 20-25 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद को मिलाते हैं। इसके अलावा 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 100 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से मृदा में मिलाने के लिए आवश्यकता पड़ती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय तथा शेष आधी नाइट्रोजन दो बार में खेतों में मिलानी चाहिए। खड़ी फसल में दो माह के बाद कोई भी रासायनिक खाद नहीं देनी चाहिए।

सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण:

वैसे तो खरीफ प्याज की खेती के लिये ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। फिर भी आवश्यकतानुसार हल्की-हल्की सिंचाई करनी चाहिए। प्याज रोपाई के 48 घंटे के अन्दर खरपतवारनाशी पेन्डिमेथलीन 13 लीटर प्रति हैक्टर को 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

फसल संरक्षण:

फसल को थ्रिप्स नामक कीट से बचाने के लिए डेल्टामेथ्रिन (0.4 मि.ली. प्रति लीटर पानी में ) या सायपरमेथ्रिन 10 ई.सी. का (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए। पौधों को बैंगनी धब्बा व झुलसा रोग से बचाने के लिए मैन्कोजेब 2.50 ग्राम अथवा क्लोरोथेलोनील 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें। घोल में चिपकने वाली दवा जैसे सैण्डोविट को 0.06 प्रतिशत की दर से अवश्य मिलायें ।

खुदाई और सुखाना:

खरीफ फसल को तैयार होने में लगभग 90 दिनों का समय लगता है अन्यथा कन्द परिपक्व हो जाते हैं। खरीफ कंद नवम्बर में तैयार होता है, जिस समय तापमान काफी कम होता है और पौधे पूरी तरह सूख नहीं पाते। इसलिए जैसे ही कंद अपने पूरे आकार का हो जाये और उनका रंग लाल हो जाये, खुदाई कर लेनी चाहिए। खुदाई के बाद इनको पंक्तियों में रखकर सुखा देते हैं। पत्ती को गर्दन से लगभग 2.5 सें.मी. ऊपर से अलग कर देते हैं तथा फिर एक सप्ताह तक सुखा लेते हैं।

उपज:

खरीफ प्याज का औसत उत्पादन 200-250 क्विंटल/हेक्टेयर होता है।

आय का विवरण:

यदि किसान खरीफ प्याज की खेती इस प्रकार करते हैं, तो दो से तीन गुना अधिक आय प्राप्त होगी।

पोषण का खजाना:

प्याज फॉस्फोरस, कैल्शियम व , कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत है। इसमें प्रोटीन व विटामिन भी पाये जाते हैं तथा साथ ही इसमें बहुत से औषधीय गुण भी होते हैं। यह गठिया, पीलिया, बवासीर तथा यकृत बढ़ने पर अत्यधिक लाभदायक होता है तथा गर्मी व लू की रोकथाम में काफी सहायक है। प्याज की सफेद किस्मों का उपयोग सुखाकर पाउडर के रूप में करते हैं। प्याज, भोजन को सुरक्षित रखने में भी सहायक होता है तथा इसका प्रयोग पोहा, पकौड़ी, रेडीमेड फूड, समोसा, कचौरी आदि में भी होता है।

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