Monday, 2 December 2024

CHETNA MANCH KHAS: देश में नहीं बढ़ रही है कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी

-अंजना भागी CHETNA MANCH KHAS: नोएडा। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सार्वजनिक परिवहन पर अधिक निर्भर करती हैं। इसलिए यदि लड़कियां…

CHETNA MANCH KHAS: देश में नहीं बढ़ रही है कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी

-अंजना भागी

CHETNA MANCH KHAS: नोएडा। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सार्वजनिक परिवहन पर अधिक निर्भर करती हैं। इसलिए यदि लड़कियां या महिलाये पढऩा या नौकरी करना चाहती हैं तो घर के आसपास ही जाने की कोशिश करती हैं। उसके लिये वे अधिकांशत; ई-रिक्शा, शेयरिंग टेम्पू या जो भी आसपास जाने का साधन उपलब्ध हों वे ही वे लेती हैं। कुछ तो पैदल भी चल लेती हैं।

CHETNA MANCH KHAS

संयुक्त राष्ट्र विकास कोष ने 2017 में भारत के 6 राज्यों के शहरों में एक अध्ययन करवाया तब पता चला कि भारत में 90 प्रतिशत महिलाएं सार्वजनिक स्थलों पर या तो खुद बदतमीजी की शिकार हुईं  या उन्होंने ऐसा देखा या आपसी चर्चा में महिलाओं ने एक-दूसरे से जिक्र किया। यह सचमुच चिंता का विषय है। 4 में से 3 महिलाएं आज कामकाजी नहीं हैं। सिर्फ घर संभालती हैं, कुछ तो बहुत तंगी में जीवन जीती हैं। फिर भी नौकेरी इत्यादि में नहीं पड़तीं। बहुत से परीक्षण किए गए, विचार किए गए। बहुत सी  मीटिंग्स हुईं। शायद इसके परिणाम स्वरूप ही महिलाओं के लिए बस सर्विस भी फ्री की गई। लेकिन महिलायें क्या अब भी इससे अधिक लाभान्वित हो पा रही हैं। जनवरी माह में बातचीत शुरू की जो की आज तक जारी है।

नोएडा याकूबपुर की रीना और कमलेश बोटैनिकल गार्डन के बस स्टॉप पर 8 नंबर बस नोएडा फेस -2, जाने के लिए 12.15 दोपहर से खड़ी-खड़ी बेहाल हो गईं। बस आई 2.15 मिनट पर दोपहर में।  सर्दी में तो धुप अच्छी लगती है। लोग गर्मी में क्या करते होंगे। न तो यहाँ कोई बस स्टॉप न ही पानी मुझे उनकी इस बात ने हैरान कर दिया की उनकी बेटियाँ इसी लिए कॉलेज नहीं जातीं। क्योंकि कभी कभार 1.30 बजे दोपहर में ये बस आ जाती है। अन्यथा 12.15 से 2.15 सर पर तपती धूप बैठने को कोई स्थान नहीं। बेटियाँ जी चुराने लगती हैं।  महिलाओं का कहीं भी आने-जाने का तरीका वैसे भी पुरुषों से भिन्न होता है। घरेलू महिलाये अधिकांशत: पीक समय पर यात्रा करने से बचती  हैं। बीच के  समय में कितना लंबा गैप है। क्या यह उनके होंसले नहीं तोड़ता?  सैक्टर-83 ऐ ब्लॉक से रमित 12 बजे की शिफ्ट के लिए यहाँ सुबह 10.30  बजे  पहुँच जाते हैं क्योंकि सुबह लगभग 11.30 बजे के बाद बस आए या ना आए । लंच टाइम या जो भी टाइम से वे घबराते हैं जबकि 15 उनका 15 मिनट का ही रास्ता है ।

कुल मिलाकर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को समय से चला कर, सुरक्षित बनाने में निवेश करने से महिलाओं की परेशानियों को दूर कर महिलाओं की जिंदगी को  गति मिल सकती है। महिला की कार्यबल में भागीदारी ना होने से आर्थिक और सामाजिक दोनों ही तरह का नुकसान होता है। लेकिन यह भी सही है कि सार्वजनिक परिवहन में महिला यात्रियों को क्या-क्या परेशानी आती हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्र राज्य सरकारों को भी कुछ अन्य ठोस कदम उठाने ही चाहियेँ। दिल्ली में बसों में मॉर्शल बैठा देने से बस के अंदर जो बदतमीजी महिलाएं झेलती थीं। उनसे छुटकारा मिला है। महिलाओं से जब हमारी विशेष संवाददाता ने बात की तो बातें बहुत ही आम लेकिन महत्वपूर्ण परेशानियां सामने आई। समय से बस का न मिलना जिसमें सर्वप्रथम है।  बसों का प्रोपर शेड्यूल है लेकिन होता यह है कि एक टाइम में एक ही नंबर की 4, 5  बसें  एक ही तरफ जा रही होती हैं। अब जिनको दूसरी ओर जाना है वे क्या करें। जो पार्ट टाइम जॉब करना चाहती हैं। वे  क्यों बिना टाइम सुबह जल्दी से जल्दी जाएं। फिर शाम तक ही आयें। सिर्फ इसलिए कि बस मिल जाए? आज कल शिफ्ट्स में नौकेरी हैं। शिफ्ट्स तो 24 घंटे चलती हैं।

ट्रैफिक जाम एक बहाना समय पर बस उपलब्ध रहने से कम हो जाएगा। क्योंकि लोगों का झुकाव सार्वजनिक वाहन कि और बढ़ेगा । उसी रोड पर प्राइवेट बस आराम से आ जाती हैं। शेयरिंग टेंपो आ जाते हैं। हर कोई आ जाता है लेकिन डीटीसी की बस कहां ट्रैफिक में फंसी रहती हैं। फिर सारी एक नंबर कि बसें एक साथ। यदि इस पर थोड़ा ध्यान दे दिया जाए तो महिला का समय बचेगा। वह घर और जॉब दोनो संभाल पायेंगी। इसी तरह शाम को क्योंकि अंधेरा हो जाने से महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं। बस आते ही सभी भागती हैं। भगदड़ सी मच जाती है। हर महिला को लगता है कि जो भी बस आई है उसमें ही वे चढ़ जाएं।  ऐसा क्यों होता है? क्योंकि यदि किसी महिला को बस बदलनी है तो वह पहली बस यदि छूट गई तो अगली पता नहीं कब आए। और वे धकियाती सी चढ़ती हैं उन्हें विश्वास ही नहीं आता कि ड्राईवर उनके लिए रुकेगा। ये बस निकल गई तो स्टॉप पर अंधेरा हो जाएगा। अकेले सड़क पर खड़े होने से महिलाएं घबराती हैं। जो भी इंडस्ट्रियल सैक्टर हैं वहाँ तो बस सर्विस लगातार होनी चाहिए ताकि लोग अपनी गाडियाँ भूल सार्वजनिक वाहन ही पकड़ें। महिलाओं का भी हौसला बढ़े। जैसे कि ड्राईवर जे.एस.मिश्रा हँसते हुए आते हैं और पूरी महिलाओं को बैठा कर ही बस आगे बढ़ाते हैं। महिलाएं भी कोई भगदड़ नहीं करतीं खुशी खुसी आराम से चढ जाती हैं।

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