Tuesday, 26 November 2024

आज से ठीक 48 साल पहले भारत में हुआ था लोकतंत्र का चीरहरण, कभी नहीं भुलाया जा सकता यह दिन Emergency 1975

Emergency 1975 : आज से ठीक 48 वर्ष पहले 25 जून 1975 को भारत भारत में लोकतंत्र का चीरहरण हुआ…

आज से ठीक 48 साल पहले भारत में हुआ था लोकतंत्र का चीरहरण, कभी नहीं भुलाया जा सकता यह दिन Emergency 1975

Emergency 1975 : आज से ठीक 48 वर्ष पहले 25 जून 1975 को भारत भारत में लोकतंत्र का चीरहरण हुआ था। वह आज का ही दिन था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए देश को आपातकाल यानि इमरजेंसी (Emergency) लगा दी थी। इस तारीख यानि 25 जून को भारत का इतिहास कभी भुला नहीं सकता। वह आज का ही दिन था, जब उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से संविधान के आर्टिकल 352 के आधार पर आपात काल लगाने वाले आदेश पर हस्ताक्षर कराए थे। इस बात की भनक उस समय की कैबिनेट तक को नहीं लगने दी गई थी। रात के ठीक 12 बजे राष्ट्रपति से गुपचुप ढंग से हस्ताक्षर कराकर 26 जून को सुबह सुबह आकाशवाणी पर इंदिरा गांधी ने यह घोषणा कर दी कि देश में आपातकाल लगा ​दिया गया है। तर्क यह दिया गया कि देश की सुरक्षा को खतरा है, इस कारण देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई है।

Emergency 1975

हो गया था एक ही एक ही व्यक्ति का शासन

26 जून 1975 की सुबह जैसे ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आल इंडिया रेडियो के स्टूडियो से आपातकाल की घोषणा की तो वैसे ही पूरे देश में अफरा तफरी मच गई थी। लोग बुरी तरह डर गए थे। चारों तरफ एक ही सवाल था कि अब क्या होगा ? उस समय देश की जनता आपातकाल का मतलब ही नहीं समझती थी। अगले कुछ दिनों में जनता को समझ में आया कि आजादी के 25 वर्षों में वें जिस लोकतंत्र में जी रहे थे, इंदिरा गांधी ने उस लोकतंत्र को एक ही झटके में समाप्त कर दिया है। अब केवल एक ही व्यक्ति की सत्ता रह गई थी और वह थी स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। केवल उन्हीं का आदेश देश में चल रहा था।

सेना को लगाया गया मोर्चें पर

इमरजेंसी लागू होते ही देश की सेना को इस काम पर लगा दिया गया कि कहीं से भी कोई विरोध का स्वर उठे तो उसे जबरन दबाना है। जो भी नेता अथवा संगठन इमरजेंसी के विरोध में बोला उसे तुरंत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। जो नहीं भी बोले उन्हें भी शांति भंग करने की आशंका में जेलों में ठूंस दिया गया। उस वक्त के सबसे उम्रदराज नेता जयप्रकाश नारायण तक को नहीं बख्शा गया। उन्हें भी जबरन उठाकर जेल में भेज दिया गया। सब जानते थे कि जयप्रकाश नारायण ने देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी फिर भी उनके उपर देशद्रोह का मामला तक दर्ज कर दिया गया।

देश के प्रत्येक समाचार पत्र के दफ्तर में सरकारी अधिकारी बैठा दिए गए। जो भी खबर समाचार पत्र में प्रकाशित होनी थी उसे पहले सरकारी अधिकारी को दिखाया जाता था। सरकारी अधिकारी यदि चाहता तो खबर प्रकाशित की जा सकती है तो की जाती थी अन्यथा खबर को रिजेक्ट कर दिया जाता था। उस समय देश के विदेशी पत्रकार भी मौजूद थे उन सभी विदेशी पत्रकारों को जबरन उनके देशों में वापस भेज दिया गया। गुपचुप ढंग से कुछ छोटे समाचार पत्रों ने इमरजेंसी के विरोध में लेख लिखे, उन समाचार पत्रों को न केवल बेन कर दिया गया बल्कि उनके मालिकों को उठाकर जेल में डाल दिया गया।

आजाद भारत की नालायक बेटी

उस समय अंग्रेजी के अखबार टाइम्स आफ इंडिया में वी.एस. वर्मा नाम के एक पत्रकार काम करते थे। उन्होंने एक लेख लिखा। लेख के हेडिंग का हिन्दी में अ​र्थ था ‘आजाद भारत की नालायक बेटी’। इस लेख में इंदिरा गांधी की खुलकर आलोचना की गई थी। इस लेख के प्रकाशित होते ही अखबार के दफ्तर पर छापा पड़ा, कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया किंतु वी. एस. वर्मा गुपचुप ढंग से कार्यालय से फरार हो गए। इमरजेंसी समाप्त होने के बाद श्री वर्मा सार्वजनिक रुप से सामने आए और उन्होंने बताया कि जब पुलिस के अधिकारी व सेना के जवान उनके दफ्तर में छापा मारने पहुंचे तो वे सफाई कर्मी का वेश धारण करके एक सफाई की टोकरी सिर पर रखकर कार्यालय से फरार हो गए।

बाद में उन्होंने अपनी फरारी हरिद्वार, रिषीकेश एवं अल्मोडा आदि जगहों पर रहकर काटी। इस लेख के कारण अखबार के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई भी चली। इसी प्रकार के अनेक किस्से इमरजेंसी की कहानी बयां करते हैं। सबसे बड़ी समस्या तो यह थी कि एक तरफ तो इमरजेंसी चल रही थी और दूसरी तरफ जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर जबरन नसबंदी अभियान चलाया जा रहा था।

घरों से उठाकर कर दी जाती थी नसबंदी

आपातकाल का एक बेहद काला पक्ष यह भी था कि देश में जबरन नसबंदी करने का अभियान शुरू कर दिया गया। बाकायदा डाक्टरों को टारगेट दिए गए कि उन्हें एक दिन में 10 से 15 लोगों की नसबंदी करनी है। टारगेट पूरा न करने पर सजा की चेतावनी भी दी गई। फिर क्या था डाक्टरों ने बूढ़ा देखा न जवान, घरों से उठा उठाकर जबरन नसबंदी कर डाली। कई स्थानों पर तो पूरे गांव के गांव को पुलिस ने घेरकर गांव के सभी पुरुषों की नसबंदी करवा डाली। एक आंकडा बताता है कि इमरजेंसी के दौरान भारत में 50 लाख से अधिक लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई थी। जबरन नसबंदी की वजह से 5 हजार से अधिक लोगों की मौत भी हो गई थी।

चारों तरफ हा हाकार मचा हुआ था। इंदिरा गांधी उनके पुत्र संजय गांधी और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंशी लाल इस पूरे नसबंदी अभियान का स्वयं संचालन कर रहे थे। तभी एक नारा भी बना था जो बाद के चुनाव में खुब जोर से चला। नारा यह था ‘नसबंदी के तीन दलाल – इंदिरा, संजय, बंशी लाल’ कुल मिलाकर देश के हालात बेहद भयावह थे। वह तो भला हो जयप्रकाश नारायण का कि तमाम विपरित परिस्थितियों में उन्होंने विपक्ष को एकजुट किया और लोकसभा का चुनाव कराकर इंदिरा गांधी को सिंहासन से उतार फेंका। उस चुनाव में एक और नारा गूंजा था वह नारा था ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’। Emergency 1975

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