वैज्ञानिकों ने खोला कॉकरोच की अटूट जीवित रहने की क्षमता का राज
दुनिया का इतिहास परमाणु युद्ध और रेडिएशन की कहानियों से भरा पड़ा है, जहां मानव जीवन और पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। लेकिन इन तबाहियों के बीच एक जीव ऐसा है, जो अपनी अद्भुत जीवित रहने की क्षमता के कारण वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।

बता दें कि 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम विस्फोटों के बाद, पूरे विश्व में यह चर्चा तेज हो गई थी कि मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, उस विनाशकारी हमले के बाद भी वैज्ञानिकों ने देखा कि कॉकरोच बड़ी संख्या में जिंदा पाए गए। यह तथ्य पूरे विश्व के लिए हैरान कर देने वाला था।
कैसे जिंदा रह गए कॉकरोच?
वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि कॉकरोच परमाणु रेडिएशन को बहुत अधिक सहन कर सकते हैं। इंसानों की तुलना में, जिनके मौत का स्तर 800 रैड तक पहुंचने पर हो जाता है, कॉकरोच 10,000 रैड तक रेडिएशन का सामना कर सकते हैं। इसका कारण उनके शरीर की कोशिकाओं की धीमी विभाजन प्रक्रिया है, जो रेडिएशन के प्रति उनकी सहनशीलता को बढ़ाती है।
रेडिएशन का असर क्यों नहीं होता इन पर?
इंसानों में कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं, और रेडिएशन इन कोशिकाओं को तुरंत नुकसान पहुंचाता है। लेकिन कॉकरोच की कोशिकाएं हफ्तों में केवल एक बार विभाजित होती हैं, जिससे रेडिएशन का प्रभाव कम होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यही वजह है कि ये जीव रेडिएशन के बीच भी जीवित रह जाते हैं।
जापान के धमाकों को भी सहन कर गए
जापान में हुए परमाणु धमाकों के दौरान रेडिएशन का स्तर लगभग 10,300 रैड था, जो इंसानों के लिए जानलेवा था। परंतु, कॉकरोच इस रेडिएशन को भी झेल गए। इस अद्भुत क्षमता ने वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है कि यदि कभी पृथ्वी पर कोई कयामत की तबाही होती है, तो कॉकरोच सबसे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कॉकरोच मजबूत तो हैं, लेकिन “अटल” (अमर) नहीं। उदाहरण के लिए, एक विज्ञान शिक्षक ने यह बताया है कि अगर उन्हें सीधे परमाणु धमाके के केंद्र (blast zone) में छोड़ा जाए, तो उनकी मौत तापमान की वजह से निश्चित है। एक जीवविज्ञानी ने भी कहा है कि अन्य कीड़े जैसे कुछ प्रकार की चींटियाँ या कीड़े जो जमीन में गहरे रहते हैं अप्रत्याशित रूप से अधिक जीवित रहने की संभावना रख सकते हैं।
बता दें कि 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम विस्फोटों के बाद, पूरे विश्व में यह चर्चा तेज हो गई थी कि मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, उस विनाशकारी हमले के बाद भी वैज्ञानिकों ने देखा कि कॉकरोच बड़ी संख्या में जिंदा पाए गए। यह तथ्य पूरे विश्व के लिए हैरान कर देने वाला था।
कैसे जिंदा रह गए कॉकरोच?
वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि कॉकरोच परमाणु रेडिएशन को बहुत अधिक सहन कर सकते हैं। इंसानों की तुलना में, जिनके मौत का स्तर 800 रैड तक पहुंचने पर हो जाता है, कॉकरोच 10,000 रैड तक रेडिएशन का सामना कर सकते हैं। इसका कारण उनके शरीर की कोशिकाओं की धीमी विभाजन प्रक्रिया है, जो रेडिएशन के प्रति उनकी सहनशीलता को बढ़ाती है।
रेडिएशन का असर क्यों नहीं होता इन पर?
इंसानों में कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं, और रेडिएशन इन कोशिकाओं को तुरंत नुकसान पहुंचाता है। लेकिन कॉकरोच की कोशिकाएं हफ्तों में केवल एक बार विभाजित होती हैं, जिससे रेडिएशन का प्रभाव कम होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यही वजह है कि ये जीव रेडिएशन के बीच भी जीवित रह जाते हैं।
जापान के धमाकों को भी सहन कर गए
जापान में हुए परमाणु धमाकों के दौरान रेडिएशन का स्तर लगभग 10,300 रैड था, जो इंसानों के लिए जानलेवा था। परंतु, कॉकरोच इस रेडिएशन को भी झेल गए। इस अद्भुत क्षमता ने वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है कि यदि कभी पृथ्वी पर कोई कयामत की तबाही होती है, तो कॉकरोच सबसे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कॉकरोच मजबूत तो हैं, लेकिन “अटल” (अमर) नहीं। उदाहरण के लिए, एक विज्ञान शिक्षक ने यह बताया है कि अगर उन्हें सीधे परमाणु धमाके के केंद्र (blast zone) में छोड़ा जाए, तो उनकी मौत तापमान की वजह से निश्चित है। एक जीवविज्ञानी ने भी कहा है कि अन्य कीड़े जैसे कुछ प्रकार की चींटियाँ या कीड़े जो जमीन में गहरे रहते हैं अप्रत्याशित रूप से अधिक जीवित रहने की संभावना रख सकते हैं।







