करंट का युद्ध, एसी बनाम डीसी की अनकही कहानी

विज्ञान के महान आविष्कारक निकोला टेस्ला विज्ञान की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। आर्थिक कठिनाइयों और अकेलेपन के बावजूद, उनका समर्पण कभी कम नहीं हुआ। उनका आविष्कार आज भी दुनिया को रोशन कर रहा हैं।

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विज्ञान का निकोला टेस्ला चमकता सितारा (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar01 Dec 2025 09:07 AM
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विज्ञान की दुनिया के महान आविष्कारक निकोला टेस्ला का नाम आज भी प्रेरणा का स्रोत है। 10 जुलाई 1856 को ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के स्मिलजान गाँव में जन्मे टेस्ला ने आधुनिक तकनीकी दुनिया की नींव रखी। उनके आविष्कारों ने विद्युत, रेडियो, चुंबकत्व और वायरलेस तकनीक के क्षेत्र में क्रांति ला दी।

अमेरिका में आगमन और एडीसन के साथ संघर्ष

1884 में अमेरिका आए टेस्ला ने थॉमस एडीसन की कंपनी में काम करना शुरू किया। जल्द ही उनके और एडीसन के बीच ‘करंट का युद्ध’ छिड़ गया। जहां टेस्ला ने एसी (Alternating Current) प्रणाली की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर जोर दिया, वहीं एडीसन डीसी (Direct Current) का पक्षधर था। टेस्ला ने वैज्ञानिक प्रयोगों के माध्यम से एसी प्रणाली की श्रेष्ठता साबित की और दुनिया के सामने अपनी पहचान बनाई।

वैज्ञानिक योगदान और प्रमुख आविष्कार

टेस्ला के जीवन में कई महत्वपूर्ण आविष्कार हुए, जिन्होंने आधुनिक दुनिया को आकार दिया:

  • एसी करंट प्रणाली – लंबी दूरी तक बिजली पहुंचाने में कारगर।
  • टेस्ला कॉइल – उच्च-वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर, रेडियो और वायरलेस संचार में उपयोगी।
  • इंडक्शन मोटर – एसी करंट से चलने वाला मोटर, जिसने उद्योगों में क्रांति ला दी।
  • वायरलेस ऊर्जा संचरण – कोलोराडो स्प्रिंग्स और वॉर्डेनक्लिफ टावर पर प्रयोग।

वैज्ञानिक दुनिया में पहचान और सफलता

1893 के शिकागो वर्ल्ड फेयर में टेस्ला ने अपनी एसी प्रणाली का भव्य प्रदर्शन किया। नियाग्रा फॉल्स पर पहला बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट स्थापित कर उन्होंने एसी करंट की व्यावहारिकता को साबित किया।

अर्थिक कठिनाइयाँ और अकेलापन

टेस्ला के जीवन में सफलता के साथ-साथ कठिनाई भी थी। उन्होंने वेस्टिंगहाउस कंपनी के साथ अपने पेटेंट और रॉयल्टी के अधिकार छोड़ दिए, जिससे आर्थिक नुकसान हुआ। रेडियो के आविष्कार का श्रेय लंबे समय तक मार्कोनी को दिया गया, जबकि टेस्ला के योगदान को बाद में ही मान्यता मिली। उनका वॉर्डेनक्लिफ टावर प्रोजेक्ट भी अधूरा रह गया।

अंतिम वर्ष और मृत्यु

टेस्ला ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों को अकेलेपन और गरीबी में बिताया। न्यूयॉर्क के एक छोटे होटल में 7 जनवरी 1943 को 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

टेस्ला की विरासत

टेस्ला के नाम पर चुंबकीय क्षेत्र की SI इकाई ‘टेस्ला’ रखी गई और उन्हें मरणोपरांत कई पुरस्कार और सम्मान मिले। अमेरिका, क्रोएशिया और सर्बिया में उनके नाम पर संग्रहालय, स्मारक और संस्थान स्थापित हैं।

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कम लागत में जापानी फल की खेती कैसे शुरू करें

आज देखा जाए तो देश में जापानी फल (परसीमन) भी कृषकों या बागवानों की पसंद बनता जा रहा है| कम लागत और अच्छी रखरखाव क्षमता होने के कारण घाटी के बागवानों का रुख जापानी फल (परसीमन) की खेती की ओर बढ़ा है|

Japanese fruit cultivation
जापानी फल की खेती करते (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar01 Dec 2025 08:22 PM
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बता दें कि हिमालयी क्षेत्रों में बागवानी करने वाले किसानों और बागवानों के बीच इन दिनों जापानी फल यानी परसीमन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कम लागत, आसान प्रबंधन और बेहतर रख-रखाव क्षमता के कारण घाटी के किसानों का रुझान अब परंपरागत फसलों से हटकर इस विदेशी फल की खेती की ओर बढ़ रहा है। बताया जाता है कि यह फल अंग्रेजों के समय भारत लाया गया था और आज अपने स्वाद और पोषण मूल्य के कारण उपभोक्ताओं की पहली पसंद बनने लगा है।

हालांकि जागरूकता और तकनीक की कमी के कारण देश में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन अभी भी चुनौती बना हुआ है। इसी बीच विशेषज्ञों द्वारा जापानी फल की वैज्ञानिक बागवानी तकनीक को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि किसान उच्च गुणवत्ता व बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें।

उपयुक्त जलवायु और क्षेत्र

विशेषज्ञों के अनुसार जापानी फल एक पर्णपाती वृक्ष है और समुद्र तल से 1000 से 1650 मीटर ऊँचाई तक इसकी खेती उपयुक्त मानी जाती है। भारत में वर्तमान में इसकी खेती सीमित रूप से हिमालयी क्षेत्रों में ही हो रही है। इस फल को कम शीतन (चिलिंग) की आवश्यकता होने के कारण यह पहाड़ी इलाकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।

मिट्टी और भूमि का चयन

इसके लिए गहरी, उपजाऊ दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध हो। विशेषज्ञ पीएच मान 5 से 6.5 के बीच रहने की सलाह देते हैं। साथ ही 1.5 से 2 मीटर गहराई तक कठोर चट्टान का न होना जड़ प्रणाली के विकास के लिए आवश्यक है।

उन्नत किस्मों की मांग तेज

व्यावसायिक तौर पर किसानों में फूयू, हैचिया, हयाक्यूम तथा कंडाघाट पिंक जैसी किस्में अधिक लोकप्रिय हैं।

  • फूयू: टमाटर जैसी आकृति, बिना कसैलेपन वाला फल।
  • हैचिया: लम्बूतरा, उच्च गुणवत्ता, अधिक उत्पादन।
  • हयाक्यूम: बड़ा फल, पीले-संतरी छिलका, गहरा जामुनी गूदा।
  • कंडाघाट पिंक: लंबे समय तक फूल देने वाला, परागण के लिए उत्तम।

पौध तैयार करना और रोपण प्रक्रिया

जापानी फल का प्रवर्धन अमलोक मूलवृत पर सितंबर माह में विनियर ग्राफ्टिंग से किया जाता है। पौधों को 5.5 से 6 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है और रोपाई से पहले हैड बैक करके पौधे को आकार दिया जाता है।

सिंचाई, छंटाई और देखभाल

पौधारोपण के बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है। अच्छे आकार के लिए 60 सेंटीमीटर ऊँचाई पर पौधे को काटकर 4 से 5 मुख्य शाखाएँ विकसित की जाती हैं। पुराने पेड़ों की छंटाई से नई वृद्धि होती है और उत्पादन भी नियमित बना रहता है।

रोग और कीट प्रबंधन

कृषि अधिकारियों के अनुसार जापानी फल में रोग व कीट का प्रकोप बहुत कम देखा जाता है। इसके बावजूद किसानों को सलाह दी जाती है कि बाग को खरपतवार मुक्त रखें और किसी भी समस्या की स्थिति में कृषि विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त करें।

फलों की तुड़ाई और विपणन

फल ठोस होने और पीली-लालिमा आने पर डंठल सहित तोड़ लिया जाता है। मंडियों में भेजने के लिए फल थोड़ा कच्चा ही तोड़ा जाता है। परसीमन को पकने के लिए लगभग तीन सप्ताह तक रखा जाता है, जिसके बाद यह पूरी तरह खाने योग्य और मीठा हो जाता है। हिमालयी किसानों का बढ़ता रुझान और बाजार में बढ़ती मांग यह संकेत देती है कि आने वाले समय में जापानी फल देश के फल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है।

जापानी फल से हिमालयी बागवानों को मिल रहा अच्छा मुनाफा, 3 साल में तैयार हो जाती है फसल

हिमालयी क्षेत्रों में इन दिनों जापानी फल (परसीमन) की खेती बागवानों के लिए नई उम्मीद बनती जा रही है। बागवानों के अनुसार यह फसल कम लागत में अधिक लाभ देने वाली बन चुकी है। बागवान संजीव ने बताया कि सिर्फ 3 साल में ही जापानी फल के पेड़ फल देना शुरू कर देते हैं, जबकि अन्य फसलों को तैयार होने में अधिक समय और देखभाल की आवश्यकता होती है। लग घाटी में युवा बागवान खुद ही ग्राफ्टिंग तकनीक अपनाकर जापानी फल के पौधे तैयार कर रहे हैं। युवाओं के अनुसार यह फसल कम समय और कम खर्च में अच्छी आय दे रही है, जिससे क्षेत्र में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।

नवंबर में आती है फसल, दाम भी मिल रहे हैं शानदार

जापानी फल को लास्ट क्रॉप माना जाता है, यानी कि नवंबर महीने में यह फल मंडियों में पहुंचता है। इस वजह से सीजन में कम प्रतियोगिता होने के कारण किसानों को इसके अच्छे दाम मिल रहे हैं। बागवानों का कहना है कि दिल्ली की आजादपुर मंडी में जापानी फल 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। कुल्लू की भुंतर मंडी में इसका भाव 125 से 140 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। इन आकर्षक कीमतों ने किसानों और बागवानों में इस फसल के प्रति खास रुचि पैदा की है।

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बंगाल से बांग्लादेश तक कांपी जमीन, कोलकाता में महसूस किए गए झटके

कोलकाता के कई इलाक़ों के साथ–साथ उत्तर बंगाल के जिलों में भी धरती हिलने की जानकारी मिली है। कूचबिहार और दिनाजपुर जैसे ज़िलों में लोगों ने पंखे, खिड़कियां और दीवारों पर टंगे सामान हिलते देखे। कई आवासीय और व्यावसायिक इमारतों से लोग कुछ समय के लिए नीचे खुले स्थानों पर आ गए।

कोलकाता में महसूस किए गए भूकंप के झटके
कोलकाता में महसूस किए गए भूकंप के झटके
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar01 Dec 2025 04:44 AM
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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में शुक्रवार सुबह धरती हल्के लेकिन साफ तौर पर कांपती हुई महसूस की गई। सुबह ठीक 10 बजकर 10 मिनट पर आए इस भूकंप के झटके न सिर्फ कोलकाता और आसपास के इलाक़ों, बल्कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका तक महसूस किए गए। प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक भूकंप की तीव्रता 5.6 दर्ज की गई।

10 किलोमीटर गहराई से उठी ऊर्जा

भूकंप विज्ञान से जुड़े अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के अनुसार, इस झटके का केंद्र बांग्लादेश के टुंगी क्षेत्र के पास दर्ज किया गया। यूरोपियन–मेडिटेरेनियन सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी ने बताया कि टुंगी से करीब 27 किलोमीटर पूर्व में स्थित केंद्र की गहराई लगभग 10 किलोमीटर थी। कम गहराई की वजह से झटके अपेक्षाकृत तेज़ महसूस हुए और बड़ी आबादी वाले इलाकों में कंपन साफ़ महसूस हुआ। कोलकाता के कई इलाक़ों के साथ–साथ उत्तर बंगाल के जिलों में भी धरती हिलने की जानकारी मिली है। कूचबिहार और दिनाजपुर जैसे ज़िलों में लोगों ने पंखे, खिड़कियां और दीवारों पर टंगे सामान हिलते देखे। कई आवासीय और व्यावसायिक इमारतों से लोग कुछ समय के लिए नीचे खुले स्थानों पर आ गए।

लेकिन नुकसान की खबर नहीं

राहत की बात यह है कि पूरे पश्चिम बंगाल से अब तक किसी तरह की जान–माल की हानि या बड़े ढांचागत नुक़सान की सूचना नहीं है। जो लोग उस समय सड़कों पर चल रहे थे या वाहनों में सफर कर रहे थे, उनमें से कई को कंपन का अहसास तक नहीं हुआ। थोड़ी देर की हलचल और बातचीत के बाद ज़्यादातर लोग फिर से अपने घरों और काम पर लौट आए। प्रशासन

इसी दिन पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी भूकंप आया। सुबह 3 बजकर 9 मिनट पर महसूस किए गए इन झटकों की तीव्रता 5.2 दर्ज की गई और इसका केंद्र धरती के लगभग 135 किलोमीटर भीतर था। गहराई ज्यादा होने की वजह से झटकों का प्रभाव सीमित दायरे में रहा।नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के आंकड़ों के मुताबिक, गुरुवार और शुक्रवार की दरमियानी रात हिंद महासागर क्षेत्र में भी 4.3 तीव्रता का भूकंप रिकॉर्ड किया गया। इसके अलावा अफगानिस्तान में भी धरती हिली, जहां लगभग 190 किलोमीटर की गहराई पर केंद्रित भूकंप की तीव्रता 4.2 मापी गई।