डीजे बजाने को लेकर हुआ विवाद, बारातियों को कार से कुचला, तीन की मौत

देर रात डीजे पर हुए विवाद के बाद गुस्से में आए एक युवक ने अपनी कार से तीन लोगों को कुचल दिया, जिनकी बाद में इलाज के दौरान मौत हो गई। घटना गंजडुंडवारा के जेडएस पैलेस गेस्ट हाउस की है, जहाँ विकास पुत्र रामसनेही यादव की शादी चल रही थी।

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इसी कार से बारातियों को रौंदा था
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar04 Dec 2025 03:12 PM
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यूपी न्यूज : उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के गंजडुंडवारा क्षेत्र में एक शादी समारोह खुशी से मातम में बदल गया। देर रात डीजे पर हुए विवाद के बाद गुस्से में आए एक युवक ने अपनी कार से तीन लोगों को कुचल दिया, जिनकी बाद में इलाज के दौरान मौत हो गई। घटना गंजडुंडवारा के जेडएस पैलेस गेस्ट हाउस की है, जहाँ विकास पुत्र रामसनेही यादव की शादी चल रही थी। बताया जाता है कि करीब 3 बजे डीजे की धुनों को लेकर कुछ लोगों के बीच कहासुनी हो गई। 

कार बारातियों पर चढ़ाई

इसी दौरान नाराज होकर नगला मलखान, थाना जैथरा (एटा) निवासी कौशल यादव नाराज होकर बाहर निकल गया। समारोह में मौजूद कुछ लोग उसे शांत करवाने के लिए पीछे गए, लेकिन इसी बीच कौशल तेजी से अपनी कार में बैठा और गाड़ी को गति से सड़क की ओर दौड़ा दिया। बाहर खड़े दूल्हे के तीन रिश्तेदार सुरेश चंद्र (55) दूल्हे के ताऊ, गिरीश चंद्र (50) दूल्हे के चाचा, बृजेश (50), दूल्हे के मौसा कार की चपेट में आकर गंभीर रूप से घायल हो गए। तीनों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सभी ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। हादसे ने परिवार और पूरे क्षेत्र को सदमे में डाल दिया है।

गुस्से का बना शिकार

पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाकर मामले की जांच शुरू कर दी है। किसी भी इंसान का गुस्सा उसे बरबादी की ओर ही ढकेलता है। शादी जैसे शुभ और खुशहाली के मौके पर किसी बात पर जरूरत से ज्यादा गुस्सा करने का ही नतीजा हुआ कि कार से अपने ही बारात में शामिल दूल्हे के तीन सगे संबंधियों को रौंद डाला। जीवन भर के लिए एक कलंक और सजा का हकदार बन गया।

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सपा–कांग्रेस की दोस्ती को लगा ब्रेक,अकेले उतरने के पीछे क्या है प्लान?

पंचायत चुनाव के स्तर पर उत्तर प्रदेश में सपा–कांग्रेस की राहें फिलहाल अलग–अलग दिख रही हैं, भले ही 2027 के लिए दोनों दल अभी भी गठबंधन के विकल्प को खुला रखने की बात कर रहे हों। पंचायत चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे कि यूपी की यह दोस्ती आगे कितनी मजबूत या कमजोर रहती है।

उत्तर प्रदेश पंचायत रण में सपा–कांग्रेस की राहें जुदा
उत्तर प्रदेश पंचायत रण में सपा–कांग्रेस की राहें जुदा,अलग–अलग मोर्चे पर पर मैदान में
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar04 Dec 2025 02:07 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश की सियासत में पंचायत चुनाव से पहले बड़ा फेरबदल शुरू हो चुका है। जिसे 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है, उस उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में अब लगभग हर प्रमुख पार्टी अकेले मैदान में उतरने की रणनीति बना चुकी है। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से दूरी बनाकर उत्तर प्रदेश में अपने बूते ताकत आजमाने का फैसला किया है, तो एनडीए के अधिकतर सहयोगी भी उत्तर प्रदेश में भाजपा से अलग पथ पर चल पड़े हैं।

उत्तर प्रदेश में ‘दो लड़कों’ की जोड़ी पर ब्रेक

उत्तर प्रदेश में कभी अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी को ‘दो लड़कों की जोड़ी’ कहकर पेश किया जाता था। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा–कांग्रेस गठबंधन ने यूपी में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को कड़ी टक्कर देकर अच्छा प्रदर्शन किया था। इसी वजह से माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह साझेदारी लंबी दौड़ तय करेगी। लेकिन पंचायत चुनाव से पहले यूपी कांग्रेस ने अपना रुख बदल दिया। सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और उत्तर प्रदेश कांग्रेस नेताओं की हुई बैठक के बाद साफ कर दिया गया कि यूपी पंचायत चुनाव में कांग्रेस अकेले उतरेगी। प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने स्पष्ट कहा कि उत्तर प्रदेश में पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी, ताकि संगठन की जमीनी ताकत की असली तस्वीर सामने आ सके। यानी, पंचायत चुनाव के स्तर पर उत्तर प्रदेश में सपा–कांग्रेस की राहें फिलहाल अलग–अलग दिख रही हैं, भले ही 2027 के लिए दोनों दल अभी भी गठबंधन के विकल्प को खुला रखने की बात कर रहे हों। पंचायत चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे कि यूपी की यह दोस्ती आगे कितनी मजबूत या कमजोर रहती है।

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव का टाइम–टेबल और समीकरण

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल से जुलाई 2026 के बीच कराए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यूपी के ग्राम प्रधानों का कार्यकाल 26 मई 2026 तक ब्लॉक प्रमुखों का कार्यकाल 19 जुलाई 2026 तक जिला पंचायत अध्यक्षों का कार्यकाल 11 जुलाई 2026 तक समाप्त होना है। चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी), ब्लॉक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं।

  1. यूपी में करीब 57,694 ग्राम पंचायतें हैं, जहां ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य चुने जाएंगे।
  2. लगभग 74,345 क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) चुने जाएंगे, जो बाद में ब्लॉक प्रमुख का चुनाव करेंगे।
  3. जिला पंचायत सदस्य की करीब 3,011 सीटें हैं, जो आगे चलकर जिला पंचायत अध्यक्षों का चयन करेंगी।

इन तमाम पदों पर होने वाली जंग उत्तर प्रदेश की सियासत में 2027 के लिए बुनियादी राजनीतिक ज़मीन तैयार करेगी।

यूपी में एनडीए के सहयोगी भी ‘अकेले मैदान’ की तैयारी में

केवल विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी भी पंचायत चुनाव में अपना अलग सियासी कद नापने की तैयारी कर रहे हैं। योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार में शामिल अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस), जयंत चौधरी की आरएलडी, संजय निषाद की निषाद पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा – ये चारों दल यूपी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अपने प्रतीक और अपनी रणनीति के साथ अकेले लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल पहले ही साफ कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में उनकी पार्टी अपने दम पर किस्मत आजमाएगी। एनडीए के सहयोगी दलों का यह रुख साफ संदेश देता है कि वे यूपी में अपनी अलग वोट–बैंक और सौदेबाज़ी की ताकत को परखना चाहते हैं, ताकि 2027 के लिए बीजेपी से बेहतर मोल–भाव की स्थिति में पहुंच सकें।

क्यों उत्तर प्रदेश के दल पकड़ रहे हैं ‘एकला चलो’ की राह?

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव को सभी दल 2027 विधानसभा चुनाव का रिहर्सल मान रहे हैं। इसके पीछे कई वजहें हैं:

  1. अपनी वास्तविक ताकत का आकलन
  2. उत्तर प्रदेश में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने पर यह साफ नहीं हो पाता कि किसी भी दल की अकेले की जमीन कितनी मजबूत है। पंचायत चुनाव में अलग–अलग उतरकर पार्टियां यह समझना चाहती हैं कि उत्तर प्रदेश के किस इलाके में, किस सामाजिक वर्ग में और किस स्तर पर उनकी पकड़ कितनी है।
  3. कार्यकर्ताओं को मौका और मनोबल
  4. गठबंधन की राजनीति में अक्सर टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष बढ़ जाता है। पंचायत चुनाव में हर दल अपने ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारकर उन्हें नेतृत्व और संगठनात्मक ज़िम्मेदारी देना चाहता है। यूपी जैसे विशाल राज्य में यह अहम राजनीतिक निवेश माना जा रहा है।
  5. 2027 के लिए बार्गेनिंग पावर बढ़ाना
  6. जो दल उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेंगे, वे 2027 विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन की मेज पर ज्यादा मजबूती से बैठ पाएंगे। जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत स्तर पर मजबूत नेटवर्क आगे चलकर विधानसभा टिकट और सीट–शेयरिंग के समीकरण तय करने में मदद करेगा।
  7. संगठन की नब्ज़ टटोलने का मौका
  8. पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर न सही, लेकिन जिला पंचायत सदस्य जैसी सीटों पर दल अपने प्रमुख नेताओं व भरोसेमंद चेहरों को उतारते रहे हैं। यूपी में ये नतीजे यह संकेत देते हैं कि संगठन बूथ से लेकर ब्लॉक और जिला स्तर तक कितना सक्रिय है।

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव: 2027 विधानसभा का ‘सेमीफाइनल’ क्यों?

उत्तर प्रदेश की लगभग दो–तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं, जहां पंचायत चुनाव के नतीजे सीधे–सीधे सियासी हवा का रुख दिखाते हैं। आमतौर पर 4 से 6 जिला पंचायत क्षेत्रों को मिलाकर एक विधानसभा सीट के बराबर राजनीतिक ज़मीन मानी जाती है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यूपी पंचायत चुनाव के दौरान जिला पंचायत सदस्य और बीडीसी स्तर पर मिलने वाले वोटों का पैटर्न देखकर दल यह तुलना कर सकते हैं कि 2022 विधानसभा चुनाव के मुकाबले उनका वोट कितना बढ़ा या घटा, 2024 लोकसभा चुनाव की तुलना में किस वर्ग में पैठ मजबूत हुई या कमजोर, कौन–कौन से जिले और मंडल 2027 के लिए ‘खतरे’ या ‘संभावना’ वाले क्षेत्र हैं। यूपी में अपना दल (एस) जैसी पार्टियां खासकर कुर्मी समाज में अपनी पैठ को और मजबूत करने की कोशिश में हैं, तो निषाद पार्टी निषाद और मछुआरा समुदाय में अपना जनाधार पुख्ता करने की जुगत में है। पंचायत चुनाव के नतीजों के आधार पर ही आगे जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों की महीन बुनाई की जाएगी।

यूपी में पंचायत से विधानसभा तक की सीधी सीढ़ी

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव केवल स्थानीय निकायों की सरकार बनाने का खेल नहीं है, बल्कि यही चुनाव कई नेताओं को विधानसभा तक पहुंचाने वाली सीढ़ी भी साबित होते हैं। जो नेता पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उन्हें 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी टिकट मिलने की संभावना बढ़ जाती है। ग्राम और जिला स्तर पर जीतने वाले कई चेहरे बाद में विधायक या मंत्री के रूप में भी उभरते हैं। इसीलिए यूपी के तमाम दल पंचायत चुनाव को संगठन की परीक्षा, कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग और भविष्य के उम्मीदवारों की शॉर्ट–लिस्टिंग – तीनों का कॉम्बो मानकर चल रहे हैं।

नतीजों से तय होगी यूपी की नई सियासी कहानी

कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव अब सिर्फ गांव–गांव की सरकार चुनने की प्रक्रिया नहीं रह गए हैं। सपा–कांग्रेस की दूरी, कांग्रेस का अकेले मैदान में उतरना, एनडीए के सहयोगियों का ‘एकला चलो’ और बीजेपी की अपनी रणनीति – ये सब मिलकर यूपी की सियासत को नए मोड़ पर खड़ा कर रहे हैं। 2026 के पंचायत चुनाव के नतीजे ही यह तय करेंगे कि 2027 में उत्तर प्रदेश की सत्ता की दावेदारी किसकी कितनी मजबूत होगी, कौन–कौन सा दल गठबंधन की मेज पर ज्यादा ऊंची कुर्सी मांग पाएगा और जनता किस पार्टी के साथ अगला अध्याय लिखने के मूड में है। यूपी की अगली सियासी कहानी की पहली इबारत अब पंचायत की गलियों में लिखी जाने वाली है। UP News

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उत्तर प्रदेश में टूटेगा गठबंधन, कांग्रेस ने पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का लिया फैसला

कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि आने वाले पंचायत चुनाव वह किसी गठबंधन के भरोसे नहीं, बल्कि अपनी ताकत के दम पर लड़ेगी। यह फैसला दिल्ली में सोनिया गांधी के आवास पर हुई महत्वपूर्ण बैठक के बाद सामने आया, जिसने सपा-कांग्रेस समीकरण को लेकर कई तरह की चचार्ओं को जन्म दे दिया है।

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राहुल गॉंधी और अखिलेश यादव
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar04 Dec 2025 01:56 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल दिखाई दे रही है। कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि आने वाले पंचायत चुनाव वह किसी गठबंधन के भरोसे नहीं, बल्कि अपनी ताकत के दम पर लड़ेगी। यह फैसला दिल्ली में सोनिया गांधी के आवास पर हुई महत्वपूर्ण बैठक के बाद सामने आया, जिसने सपा-कांग्रेस समीकरण को लेकर कई तरह की चचार्ओं को जन्म दे दिया है।

क्या गठबंधन में दरार पड़ने के संकेत?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव अभी कुछ समय पहले ही यह कह चुके थे कि 2027 के विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन मिलकर मैदान में उतरेगा। लेकिन कांग्रेस की पंचायत चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा से यह सवाल उठने लगा है कि क्या दोनों दलों की साझेदारी कमजोर हो रही है या यह केवल कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा है।

कांग्रेस अकेले क्यों उतरेगी?

राजनीतिक पर्यवेक्षकों की मानें तो यह कदम कांग्रेस द्वारा अपनी जमीनी संरचना मजबूत करने की कोशिश है। इसके मुख्य कारण हो सकते हैं, स्थानीय कार्यकतार्ओं को सीधे मौका देना, संगठन को सक्रिय और आत्मनिर्भर बनाना, कमजोर हो चुके जनाधार को दोबारा मजबूत करना और पंचायत स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करके भविष्य के गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत करना है। कांग्रेस को लगता है कि अगर वह इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती है तो 2027 के विधानसभा चुनाव में वह सपा से ज्यादा सीटें मांगने की स्थिति में होगी। बिहार विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को यह महसूस हुआ कि बिना मजबूत संगठन के गठबंधन भी ज्यादा मदद नहीं कर पाते। इसी वजह से वह राज्यों में स्वतंत्र रूप से अपनी पकड़ बनाने पर जोर दे रही है, जिसे उसकी एकला चलो रणनीति माना जा रहा है।

पिछले चुनावों की पृष्ठभूमि

2017 में, सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस 114 सीटें पाकर भी केवल 7 जीत हासिल कर सकी।

2022 में, कांग्रेस ने 399 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, मगर केवल 2 सीटें जीत पाई। इन दोनों चुनावों से पार्टी को यह समझ आया कि उसे यूपी में अपनी जड़ें फिर से मजबूत करनी होंगी, और पंचायत चुनाव इसके लिए सबसे अच्छा मौका है। कांग्रेस का पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का फैसला उसकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। यह कदम गठबंधन की राजनीति में बदलाव का संकेत जरूर देता है, लेकिन सपा-कांग्रेस की दोस्ती आधिकारिक रूप से अभी टूटी नहीं है। आने वाले महीनों में ही पता चलेगा कि यह निर्णय दोनों पार्टियों के रिश्तों को किस दिशा में ले जाता है।

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