Wednesday, 20 November 2024

Gulzar Birthday Special: आज है हर पीढ़ी के पसंदीदा कलमकार का जन्मदिन, कैसे पहुँचे गुलजार कामयाबी के इस मुकाम तक

Gulzar Birthday Special:आज का दिन साहित्य और फ़िल्म जगत के लिए खास है, क्योंकि आज जन्मदिन है सम्पूर्ण सिंह कालरा…

Gulzar Birthday Special: आज है हर पीढ़ी के पसंदीदा कलमकार का जन्मदिन, कैसे पहुँचे गुलजार कामयाबी के इस मुकाम तक

Gulzar Birthday Special:आज का दिन साहित्य और फ़िल्म जगत के लिए खास है, क्योंकि आज जन्मदिन है सम्पूर्ण सिंह कालरा (Sampoorna Singh Kalra) का। शायद आप इस नाम से वाफिक न हों, लेकिन साहित्यकार, निर्माता, निर्देशक, गीतकार, गायक,अभिनेता, लेखक बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुलज़ार को तो जानते ही होंगे, ये उन्हीं का वास्तविक नाम है। आज वो अपना 89वां जन्मदिन मना रहे हैं।

आप किसी भी पीढ़ी के हों, किसी भी दशक में जन्में हों, लेकिन गुलज़ार साहब के गीतों को न गुनगुनाया हो, ऐसा होना मुश्किल है। समय बदला, लेकिन गुलज़ार जी के चाहने वाले आज भी नहीं बदले। नई पीढियां आती रहीं और चाहने वालों की संख्या भी बढ़ती रही। आज भी वो करोड़ों दिलों पर अपनी रचनाओं के माध्यम से राज करते हैं।

Gulzar Birthday Special: ऐसे ही गुलज़ार नहीं बना जाता

गुलज़ार होना लेकिन इतना आसान नहीं है, गुलज़ार होने के लिए दिल के जख्मों को लहू की स्याही से लिखने का हुनर चाहिए होता है। ज़ख्म जो जिंदगी ने दिए, देश के विभाजन ने दिए , उन्हें ही गुलजार जी ने कागज पर उतार दिया। अपने इन दिल के जख्मों को, अपनी तन्हाई को कागज़ पर उतारने के बाद उन्हें ये कामयाबी मिली है। तब जाकर वो दिलों में उतरणे में सफल हुए।

Gulzar Birthday Special: गुलज़ार साहब इस हुनर में पूरी तरह कामयाब भी रहे। उन्होंने अपने काम के जरिए अपने चाहने वालों के दिलों में कभी न मिटने वाली छाप छोड़ी है। चाहें वो चाहने वाले फ़िल्म जगत के हों या साहित्य जगत के। अपनी रचनाओं में उन्होंने जीवन दर्शन उड़ेल दिया है। जिंदगी जीने की सीख दी है।

ऐसे बने मैकेनिक से साहित्यकार

Gulzar Birthday Special: गुलज़ार साहब का जन्म आज के पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित दीना गांव में हुआ था। विभाजन के बाद परिवार भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर आ गया। आजादी के लिए विभाजन की पीड़ा सहने वालों में से वो भी एक थे। इस बंटवारे से उनका जीवन भी अस्त-व्यस्त हो गया। जो उसकी रचनाओं में भी नजर आता है।

बाद में वो दिल्ली आ गए, जहाँ उनके पिता ने टोपी और थैले का कारोबार शुरू किया था। उन्हें गोदाम की रखवाली के लिए रात को गोदाम में ही सोना होता था। समय गुजारने के लिए गुलज़ार जी पास ही की किताब की एक दुकान से किताब किराये पर लेकर पढ़ने लगे। उन्हें जासूसी उपन्यास पढ़ने का ऐसा चस्का लगा कि जहाँ लोग हफ्ते में दो-एक किताब पढ़ते थे, वहीं गुलज़ार साहब दसियों-बीसियों किताबें पढ़ डालते थे।

वो दुकानदार प्रति हफ्ते सवा आने के हिसाब से किराया लेता था, उसे अपना नुकसान होता नजर आया। हारकर उसने एक दिन गुलज़ार साहब से कहा जासूसी उपन्यास खत्म हो गए हैं, अब पढ़ना है तो ये किताब पढ़ो। बतौर गुलज़ार जी ‘उस दुकानदार को नहीं पता था, कि वो क्या करने जा रहा है। उसने मुझे वो किताब नहीं मानो एक बम दे दिया। उस किताब ने मेरी पूरी सोच बदल दी। मेरे अंदर इंकलाब ला दिया।’

Gulzar ji
Gulzar ji

Gulzar Birthday Special: उस किताब को पढ़कर मेरे जीवन की दिशा ही बदल गई। वो किताब गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर की किताब का उर्दू अनुवाद थी। उसके बाद मैंने रविन्द्र नाथ टैगोर जी को पढ़ना शुरू किया और मेरी सोच बदल गई। मैंने फिर पढ़ने के अलावा लिखना भी शुरू कर दिया।

जब घर पर ये बात पता चली, तो पिताजी गुस्सा हुए और बोले “लिखने का शौक पालोगे, तो लंगर में खाना खाने की नौबत आ जाएगी।” लेकिन गुलज़ार जी (Gulzar) कहाँ मानने वाले थे। वो चोरी छिपे गुलज़ार दीनवी के नाम से लिखने लगे। इसके बाद वो मुंबई आ गए, पारिवारिक जरूरतों ने उन्हें मुंबई के वायकुला में एक गैराज का रास्ता दिखा दिया।

जहाँ वो एक्सीडेंट में चोट खाई गाड़ियों को फिट करने का और रंगने का काम करते थे। लेकिन समय मिलते ही वो दिलों के जख्मों को सही करने और जीवन दर्शन के रंग में अपनी रचनाओं को रंगने के काम में लग जाते। उन्होंने कठोर परिश्रम किया और अपने लिखने के हुनर को मरने नहीं दिया, उसे जिंदा रखा।

फिर रखा फिल्मों में कदम 

फिर जिंदगी उन्हें बॉलीवुड ले आई। दरअसल हुआ यूं कि उनके एक साथी देबू सेन की विमल राय से जान पहचान थी, देबू मे उनके साथ कम भी किया था। विमल राय उस समय वंदिनी फ़िल्म बना रहे थे, लेकिन फ़िल्म के गीतकार शैलेंद्र से उनकी किसी बात पर अनबन हो गई। फ़िल्म के गीत लिखे जा चुके थे, केवल एक गीत बाकी था, इसे लिखने का जिम्मा विमल दा ने गुलजार जी सौपा।

Gulzar Birthday Special: उन्होंने वो गीत ‘मोरा गोरा अंग ले ले’ लिखा, गुणी फिल्मकार विमल राय ( Vimal Rai) उनकी प्रतिभा भांप चुके थे। उन्होंने उन्हें अपना सहायक बना लिया। इसके बाद जो हुआ, वो सब जानते हैं। गुलज़ार साहब अपने काम के जरिए सभी के दिलों पर ऐसे छाए कि लोग आज भी उनके काम में, उनकी रचनाओं में डूबे हुए हैं।

Gulzar Birthday Special

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