Sunday, 1 December 2024

Agricultural Tips : खेती और किसान: उत्तराखंंड की पोषक दलहनी फसल है गहत

Agricultural Tips: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में गहत एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। विशिष्ट औषधीय एवं पोषणयुक्त गुणों से भरपूर…

Agricultural Tips : खेती और किसान: उत्तराखंंड की पोषक दलहनी फसल है गहत

Agricultural Tips: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में गहत एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। विशिष्ट औषधीय एवं पोषणयुक्त गुणों से भरपूर गहत पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों के लिए प्रोटीन का एक सुलभ एवं सस्ता स्रोत है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचलित रोजमर्रा के भोजन एवं स्थानीय व्यंजनों का यह एक अभिन्न अंग है। सामान्य जनमानस का इस दलहन के पोषण एवं औषधीय गुणों के प्रति मड़ते रुझान के कारण कृषकों को इसका उच्च बाजार मूल्य मिल रहा है। इसके साथ ही विपणन की भी काफी संभावनाएं हैं। यह उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सदियों से प्रचलित पारंपरिक मिश्रित फसल प्रणाली ‘बारानाजा’ का एक अभिन्न घटक है। वर्तमान में इस मूल्यवान फसल का उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं है। इसके साथ ही अन्य व्यावसायिक रूप में लाभकारी फसलों द्वारा इसका प्रतिस्थापन भी एक चिंता का विषय है। गहत का पोषण एवं औषधीय गुणों का वृहद स्तर पर लाभ लेने हेतु इस दलहनी फसल की ओर उत्पादकों, उपभोक्ताओं एवं शोधकर्ताओं का ध्यान आकृष्ट किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।

Agricultural Tips

भारत में प्राचीन समय से उगाई जाती है। सहत को हॉर्स ग्राम, कुल्मी एवं मद्रास ग्राम के नाम से भी जाना जाता है। भारत के गहत की खेती ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, स्टीव म्यांमार, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में भोजन, हरे चारे एवं हरी खाद के रूप में की है। भारत में की खेती का कुल क्षेत्रफल लगभग 4.58 लाख हेक्टर, उत्पादन 2.89 लाख टन तथा उत्पादकता 659 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर है। सामान्यतः इसके नका रंग हल्का बादामी, काता तथा भूरा होता है। यह मुख्यतः कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ में रखी एवं खरीफ दोनों मौसमों में ऐसी भूमि पर उगायी जाती है, जो अन्य फसलों के लिए उपयुक्त नहीं होती है। राष्ट्रीय स्तर पर गहत का क्षेत्रफल एवं उत्पादन खरीफ में अधिक है, जबकि उत्पादकता रबी मौसम में बेहतर है। इसका पटता हुआ क्षेत्रफल एवं उत्पादन तथा उपव की स्थिरता चिंता का विषय है।

गहत के पोषक गुण:

गहत के बीज उत्कृष्ट पोषण गुणवत्ता एवं अद्वितीय औषधीय गुणों के भण्डार हैं। गहत में प्रोटीन की मात्रा सामान्यतः अन्य दालों के बराबर ही है, जबकि रेशा, कैल्शियम, लोहा तथा मॉलिब्लेडनम की मात्रा भारत में खाई जाने वाली अन्य खाद्य दलहनों से अधिक है। सामान्यतः इसे दली हुई दाल की बजाय साबुत ही खाया जाता है एवं इसमें पायी जाने वाली का एक अच्छा पूरक बनाती है। भारत के दक्षिणी आती हैं। विभिन्न प्रकार की ग्रेवी बनाने में इस दाल का प्रयोग होता है। सूप एवं पापड़ हेतु भी इसका करती है। उत्तराखंड में गहत को पारंपरिक भोजन में हल्की आंच में रखकर देर तक पकाया जाता है। इससे भोजन में पोषण विरोधी घटक ट्रिप्सिन अवरोधक नष्ट हो जाता है और भोजन सुपाच्य बनता है। उत्तराखंड के अधिकांश स्थानीय व्यंजनों में गहत को रातभर भिगोकर रखा जाता है और भिगोने से इसके पोषण एवं खाना पकाने की गुणवत्ता पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में गहत से कई प्रकार के व्यंजन जैसे- दाल, डुबके बेड़, बड़ी, खुमड़ी, फाना, छोले, पपटोल, पपटोल की सब्जी, रस, चुड़काणी, खिचड़ी, चीला, मैचुल और ठठवाणी बनाये जाते हैं। अब युवाओं द्वारा आधुनिक भोजन प्रणाली को वरीयता देने के कारण केवल कुछ ही व्यंजन प्रचलन में हैं।

संभावना

उत्तराखंड में गहत पूर्णरूप से जैविक अवस्थाओं के अन्तर्गत लगभग 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगायी जाती है। इससे 11 हजार टन का उत्पादन होता है। यहां गहत की औसत उत्पादकता (10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) प्रमुख उत्पाकद राज्यों से काफी अधिक है, जो इस क्षेत्र की के लिए अनुकूलता को दर्शाती है। पर्वतीय क्षेत्र में इसके कृषकों द्वारा घरेलू उपयोग हेतु उगाया जाता है और बहुत कम मात्रा में बेचा जाता है। प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे सूखा के लिए सहनशीलता एवं अनुपजाऊ प्रदर्शन के कारण यह पर्वतीय क्षेत्र की कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उपखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक मिश्रित खेती की लोकप्रिय “बारानाजा अभिन्न घटक है। खरीफ फसल के रूप में गहत जून के अन्तिम सप्ताह में बोई जाती है। यह मध्य अगस्त से मध्य सितंबर तक पुष्पित होती है।

उत्तराखंड में इसकी खेती मुख्य रूप 1200 मीटर की ऊंचाई तक की जाती है। यह फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में
अच्छी जल निकासी वाली मृदा तथा मध्यम पी-एच वाली रेतीली हल्की दोमट मृदा में उगने हेतु सक्षम है। जल भराव एवं पाले के लिए पूर्ण रूप से असहिष्णु है। कम लागत में किसी अन्य फसल की अपेक्षा सीमान्त क्षेत्रों में बेहतर परिणाम देने में सक्षम गहत को संसाधनहीन कृषक बहुतायत रूप से उगाते हैं।

औषधीय गुण:

इसमें औषधीय गुण है। प्राचीनकाल से ही इससे इलाज किया जाता है। इसमें गुर्दे की पथरी को गलाने की अनूठी क्षमता है। यह अल्सर के छालों अमल्ता संबंधी समस्याओं, दमा, ब्रोंकाइटिस एवं फरत के निवारण हेतु उपचारात्मक प्रभाव डालती है। प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला रेशा एवं गर्म तासीर गुण के कारण यह शरीर के मोटापे को कम करने में मदद करती है। मधुमेह एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। गहत में न केवल मधुमेहरोधी गुण होते है साथ ही मधुमेह के आहार प्रबंधन के लिए यह फायदेमंद है। इसमें उच्च मात्रा में मौजूद जटिल कार्बोहाइड्रेट रक्त प्रवाह में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित कर देते हैं। इसके साथ ही फाइटिक एसिड को उपस्थिति भी स्वयं के एंजाइम पाचन को बाधित करके मधुमेह से सुरक्षा प्रदान करता है। महत में बायोएक्टिव यौगिकों को प्रचुरता के कारण उच्च एंटीऑक्सीडेंट और कैंसररोधी गुण, साथ ही कवक और जीवाणु रोगरोधी गुण भी पाए जाते हैं।

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