एयर इंडिया एक्सप्रेस फ्लाइट में बम की अफवाह से मचा हंगामा

मुंबई से वाराणसी आ रही एयर इंडिया एक्सप्रेस की फ्लाइट में बम की धमकी मिलने से अफरा-तफरी मच गई। बम की सूचना मिलते ही विमान की वाराणसी एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई। फ्लाइट नंबर IX-1023 में कुल 176 यात्री सवार थे, जिन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है।

Air India Express flight
एयर इंडिया एक्सप्रेस की फ्लाइट (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar12 Nov 2025 06:59 PM
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एयरपोर्ट डायरेक्टर पुनीत गुप्ता ने बताया कि विमान को निर्धारित समय से पहले 3:38 बजे सुरक्षित लैंड कराया गया, जबकि इसकी तय लैंडिंग का समय 4:05 बजे था। इमरजेंसी लैंडिंग के तुरंत बाद एयरपोर्ट को हाई अलर्ट पर रखा गया और बम निरोधक दस्ते व डॉग स्क्वॉड ने मौके पर पहुंचकर विमान और यात्रियों के सामान की जांच शुरू की।

सूचना मिलते ही सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट

जानकारी के अनुसार, विमान वाराणसी के करीब पहुंच ही चुका था, तभी एयरलाइन के मुंबई ऑफिस में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर यह सूचना दी कि विमान में किसी यात्री के लगेज में बम रखा गया है। सूचना मिलते ही ATC और सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट किया गया। 

धमकी भरा कॉल

फिलहाल पूरे विमान, यात्रियों और उनके सामान की गहन जांच की जा रही है। अब तक किसी संदिग्ध वस्तु के मिलने की पुष्टि नहीं हुई है। सुरक्षा एजेंसियां यह भी पता लगाने में जुटी हैं कि धमकी भरा कॉल करने वाला व्यक्ति कौन था और उसके पीछे क्या मकसद था।

एयरपोर्ट पर सघन तलाशी अभियान चलाया जा रहा है और यात्रियों को सुरक्षित क्षेत्र में रखा गया है। प्रशासन ने कहा है कि जांच पूरी होने तक फ्लाइट को क्लियरेंस नहीं दिया जाएगा।

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बिहार में 20 साल के शासन के बाद भी ‘सुशासन बाबू’ की छवि बरकरार

बिहार विधानसभा चुनावों के लिए मतदान समाप्त हो चुका है और एग्जिट पोल्स से संकेत मिल रहे हैं कि राज्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लहर कायम है। चाहे परिणाम कुछ भी हों, लेकिन यह निर्विवाद है कि नीतीश कुमार अब उन नेताओं की श्रेणी में आ चुके हैं जिनके विरोधियों के पास भी कहने को बहुत कुछ नहीं बचा।

Bihar Eletion nitish kumar CM
मुख्यमंत्री नितिश कुमार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar12 Nov 2025 05:05 PM
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बता दे कि दो दशकों से अधिक समय तक सत्ता में रहने के बावजूद न तो उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई दाग है और न ही किसी बड़े घोटाले का आरोप। यही वजह है कि बिहार की राजनीति में वे अब अजात शत्रु बन चुके हैं। नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से शुरू हुआ। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने राजनीति को अपना जीवन बना लिया। 1985 में वे पहली बार विधायक बने, 1990 में लोकसभा पहुंचे और 2000 में रेल मंत्री के रूप में देशभर में अपनी छाप छोड़ी। 2005 में जब वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो राज्य की तस्वीर ही बदल दी। कानून-व्यवस्था सुधार, सड़क और बिजली के क्षेत्र में तेज़ प्रगति और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती ने उन्हें ‘सुशासन बाबू’ की उपाधि दिलाई।

सामाजिक सुधारों के अगुवा

बता दे कि महिलाओं और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण में नीतीश कुमार की भूमिका ऐतिहासिक रही है। ‘मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना’ ने ग्रामीण लड़कियों के लिए शिक्षा का दरवाज़ा खोला। एक समय 60% का ड्रॉपआउट रेट अब 10% तक घट चुका है। ‘सात निश्चय योजना’ के तहत गांव-गांव तक बिजली, सड़क, शौचालय और इंटरनेट पहुंचा। ‘मुख्तारंबरी योजना’ से मातृ और शिशु स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार आया। बिहार की साक्षरता दर अब 80% के करीब पहुंच चुकी है — जो उनके शासन की दिशा का प्रमाण है।

समावेशी राजनीति का अनूठा मॉडल

बता दे कि जाति और धर्म आधारित राजनीति के दौर में नीतीश कुमार ने समावेशी विकास को अपनी पहचान बनाया। उन्होंने अति पिछड़े वर्ग (EBC) और महादलितों को राजनीतिक पहचान दी, वहीं अगड़े वर्गों का भी विश्वास बनाए रखा। बिहार की 17% मुस्लिम आबादी उन्हें एक भरोसेमंद नेता मानती है, जबकि हिंदू समुदाय में भी वे ‘सुशासन’ और नैतिकता के प्रतीक हैं। नीतीश की राजनीति नफरत पर नहीं, न्याय और विकास पर टिकी है।

Gen Z को जोड़ा संवाद की राजनीति से

बतो दे कि बिहार की आधी से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। ऐसे में युवाओं की नाराजगी को समझना किसी भी नेता के लिए चुनौती होती है। नीतीश कुमार ने ‘कुशल युवा कार्यक्रम’ और ‘डिजिटल हेल्पलाइन’ जैसी पहलों के जरिए युवाओं की आवाज़ को नीतियों में शामिल किया। 2024 में जब बेरोजगारी और महंगाई पर युवा सोशल मीडिया पर आक्रोश जता रहे थे, नीतीश ने सीधा संवाद स्थापित कर उनकी नाराजगी को अवसर में बदला।

‘जंगलराज’ से ‘विकासराज’ तक का सफर

बता दे कि 2005 से पहले बिहार अपराध और पिछड़ेपन का पर्याय था। नीतीश कुमार के शासन में अपराध दर में 50% से अधिक गिरावट आई। सड़क नेटवर्क 70,000 किमी से बढ़कर 1.5 लाख किमी से अधिक हो गया, बिजली पहुंच 15% से 95% तक पहुंच गई और गंगा पर बने पुलों ने राज्य को जोड़ा। विश्व बैंक ने इसे ‘बिहार मिरेकल’ कहा — एक ऐसा उदाहरण जब सुशासन और दृढ़ इच्छाशक्ति ने असंभव को संभव कर दिखाया।

महान नेताओं की परंपरा में नया अध्याय

महात्मा गांधी की अहिंसा, नेहरू की आधुनिकता, इंदिरा गांधी की दृढ़ता और अटल बिहारी वाजपेयी की समावेशी राजनीति के बाद अब नीतीश कुमार का नाम उसी पंक्ति में जुड़ता दिख रहा है। अगर एग्जिट पोल्स की भविष्यवाणियां सच साबित होती हैं, तो यह न केवल एनडीए की जीत होगी बल्कि नीतीश कुमार की विरासत का पुनः अनुमोदन भी।

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विज्ञान की अनोखी खोज है एक्स-रे, जाने इतिहास

विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन की 1895 में एक्स-रे की खोज ने चिकित्सा और विज्ञान में क्रांति ला दी, साथ ही इसके साथ जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को भी सामने लाया। उनकी खोज वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी क्योंकि पहली बार मानव शरीर के आंतरिक भागों को गैर-आक्रामक तरीके से देखना संभव बनाया था

X-ray history
विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन एक्स-रे की खोज करते हुए (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar01 Dec 2025 08:55 AM
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बता दे कि मानव इतिहास के अधिकांश समय तक किसी व्यक्ति के शरीर के अंदर झांकना असंभव था—जब तक कि 1895 में जर्मन भौतिक विज्ञानी विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन ने एक रहस्यमयी विकिरण की खोज नहीं की। उन्होंने इसे “एक्स-रे” नाम दिया—एक ऐसी किरण जो मांस के पार होकर हड्डियों और अंगों की तस्वीर खींच सकती थी। इस खोज ने चिकित्सा जगत, विज्ञान और यहां तक कि लोकप्रिय संस्कृति में भी क्रांति ला दी—हालांकि इसके साथ स्वास्थ्य जोखिमों की चेतावनी भी आई।

एक अनोखी फ्लोरोसेंट चमक से शुरू हुआ चमत्कार

बता दे कि विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन ने 8 नवंबर 1895 को इन "एक्स" किरणों की खोज की थी। उन्होंने अपनी पत्नी, अन्ना बर्था लुडविग की, उनके हाथ की पहली मेडिकल एक्स-रे छवि ली, जिसमें उनकी शादी की अंगूठी साफ दिखाई दे रही थी। इस छवि ने प्रदर्शित किया कि ये किरणें नरम ऊतकों से गुजर सकती हैं लेकिन घने ऊतकों, जैसे हड्डियों और धातु, द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।

रहस्यमय के लिए

बता दे कि विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन ने सात हफ़्तों तक खुद को प्रयोगशाला में बंद रखा और इस नई किरण की प्रकृति को समझने की कोशिश की। क्योंकि इसका स्वरूप अज्ञात था, उन्होंने इसे “X-Ray” कहा—जहाँ ‘X’ का अर्थ होता है “अज्ञात”।

पहली एक्स-रे तस्वीर

बता दे कि विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन ने जब इन किरणों को अपने हाथ पर डाला, तो उन्होंने अपनी हड्डियों की परछाई देखी। थोड़ी ही देर में उन्होंने अपनी पत्नी के हाथ की ऐतिहासिक एक्स-रे तस्वीर ली—जिसमें उसकी अंगूठी के साथ उंगलियों की हड्डियाँ साफ़ दिखाई दीं। यह वही तस्वीर थी जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया।

खोज जिसने दुनिया हिला दी

बता दे कि दिसंबर 1895 में जब रॉन्टजन ने अपनी खोज सार्वजनिक की, तो विज्ञान जगत में सनसनी मच गई।लेखक ओटो ग्लासर के अनुसार, विज्ञान के इतिहास में शायद ही कभी कोई खोज इतनी तेजी से फैली हो।

चिकित्सा में क्रांति

कुछ ही महीनों में एक्स-रे का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में होने लगा और 1897 के ग्रीको-तुर्की युद्ध में घायलों के शरीर से गोलियाँ खोजने में मदद मिली। मैरी क्यूरी ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मोबाइल एक्स-रे यूनिट्स तैयार कीं। यही वह दौर था जब रेडियोलॉजी एक स्वतंत्र चिकित्सा शाखा के रूप में जन्मी।

एक्स-रे संस्कृति में

1896 तक एक्स-रे ने पॉप संस्कृति में भी प्रवेश कर लिया था और “एक्स-रे प्रूफ अंडरवियर” के विज्ञापन दिए गए। “The X-Rays” नामक हास्य फिल्म बनी और 1930 के दशक में, सुपरमैन ने एक्स-रे दृष्टि से अपराधियों से लड़ाई शुरू की।

सुरुवाती अनदेखे खतरे

बता दे कि जब चालु किया गया तो एक्स-रे के दुष्प्रभाव भी होने लगे तो जो कि जल्द ही सामने आने लगे। जैसे जलन, आँखों की क्षति, यहाँ तक कि ल्यूकेमिया के मामले भी सामने आए। 1904 में थॉमस एडिसन के सहायक की विकिरणजनित कैंसर से मृत्यु के बाद एडिसन ने एक्स-रे प्रयोग रोक दिए। आज भी, एक्स-रे चिकित्सा में अनिवार्य हैं, लेकिन सीसा सुरक्षा उपकरणों और सख्त नियंत्रण के तहत। अमेरिकी FDA के अनुसार,सही परिस्थितियों में एक्स-रे आपकी जान बचा सकता है।

रॉन्टजन की विरासत

बता दे कि विल्हेम कॉनराड रॉन्टजन को 1901 में पहला भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने कभी व्यक्तिगत प्रसिद्धि की इच्छा नहीं जताई, लेकिन उनकी खोज ने मानव सभ्यता की दिशा हमेशा के लिए बदल दी।