इन आंकड़ों ने बढ़ाई कांग्रेस की उम्मीदें, सीवीसी मीटिंग में दिखी झलक

Congress CWC meeting
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locationभारत
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calendar02 Dec 2025 02:25 AM
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सीवीसी यानी, कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी अपने पुराने फॉर्म में दिखीं। एक ही मीटिंग में उन्होंने बगावती नेताओं और पार्टी समर्थक, दोनों की दुविधा को खत्म कर दिया। आखिर, कांग्रेस के रुख में आए इस बदलाव की क्या वजह है? क्या कांग्रेस को कुछ ऐसे संकेत मिलने लगे हैं जो पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं? इन सवालों का जवाब कुछ आंकड़ों में छिपा है जो वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस के पक्ष में दिख रहे हैं।

इस सर्वे ने बढ़ाई बीजेपी की चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता लगातार गिर रही है। इंडिया टूडे मूड ऑफ नेशन सर्वे के मुताबिक अगस्त 2020 में 66% लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त मानते थे। जनवरी 2021 में 38% लोग मोदी को पीएम पद का सबसे मजबूत दावेदार मानते थे जबकि, अगस्त 2021 में सिर्फ 24% लोग ऐसा मानते हैं। यानी, एक साल के अंदर पीएम मोदी की लोकप्रियता 66% से गिरकर 24% पर पहुंच गई है।

इसका फायदा किसे हो रहा है ये कहना मुश्किल है क्योंकि, इंडिया टूडे के अगस्त 2021 के सर्वे के मुताबिक लोकप्रियता के मामले में 24% वोट के साथ मोदी अभी भी पहले नंबर पर हैं। जबकि, दूसरे नंबर पर योगी आदित्यनाथ हैं जिन्हें 11% लोग पीएम पद का दावेदार मानते हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तीसरे नंबर पर हैं। सर्वें में शामिल 10% लोग राहुल को पीएम पद का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार मानते हैं।

सरकार के खिलाफ हैं वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी ने कांग्रेस सहित विपक्ष को नई उर्जा दी है। इस सर्वे के अलावा किसानों का विरोध, पेट्रेाल-डीजल की बढ़ती कीमतें, महंगाई, बेरोजगारी और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते सरकार के खिलाफ लोगों का असंतोष बढ़ा है।

विपक्ष के लिए सरकार पर हमला करने का यह सबसे सही मौका है, क्योंकि पांच महीने के अंदर यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। यूपी इलेक्शन 2022 में बीजेपी का प्रदर्शन योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता की भी परीक्षा है, क्योंकि इंडिया टूडे सर्वे के मुताबिक वह पीएम पद के दावेदारों में दूसरे नंबर पर हैं।

कांग्रेस के पास यूपी में खोने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली थी। जबकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल सात सीटों पर जीत मिली थी। यूपी के अलावा उत्तराखंड और पंजाब में भी कांगेस को जीत की उम्मीद दिख रही है।

कांग्रेस ने एक तीर से साधे दो निशाने इन हालातों में कांग्रेस बिलकुल नहीं चाहेगी कि मतदाताओं में यह संदेश जाए कि पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। यही वजह है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग बुलाई गई और फैसला लिया गया कि सितंबर 2022 में पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाएगा। कांग्रेस में बगावत करने वाले जी-20 ग्रुप को सोनिया गांधी ने स्पष्ट तौर पर बता दिया है कि फिलहाल वह कांग्रेस की फुलटाइम अध्यक्ष हैं।

इसी मीटिंग में कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी से अगला अध्यक्ष बनने के लिए मानमनवल की। राहुल ने भी कहा है कि वह इस पर विचार करेंगे। यानी, कांग्रेस के वर्तमान और अगले अध्यक्ष को लेकर अब किसी भी तरह का संदेह नहीं रह गया है।

कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के लिए वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां बेहद मुफीद हैं। प्रिंयका गांधी का यूपी में सक्रीय होना और राहुल गांधी का पंजाब की राजनीति में हस्तक्षेप कर चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाना, यह बताता है कि दोनों नेता अपनी राजनीतिक योग्यता को साबित का यह मौका गंवाना नहीं चाहते।

कांग्रेस की राह में हैं दो कांटे हालांकि, इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस के लिए अभी भी चिंता की बात यह है कि लोकप्रियता के मामले में राहुल गांधी की रेटिंग में कोई बड़ा सुधार नहीं आया है। अगस्त 2010 में हुए इंडिया टूडे मूड ऑफ नेशन सर्वे में 29 फीसदी लोग राहुल गांधी को पीएम पद का दावेदार मानते थे, जबकि केवल नौ प्रतिशत लोग मोदी के पक्ष में थे।

एक दशक से भी ज्यादा समय के बाद अगस्त 2021 में केवल 10% लोग राहुल गांधी के पक्ष में हैं। यानी, आज भी राहुल गांधी 2010 के मुकाबले बहुत पीछे हैं। इस दौरान दूसरे नेताओं जैसे कि योगी आदित्यनाथ, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी ने अपनी लोकप्रियता में काफी इजाफा किया है।

अगस्त 2021 के सर्वे में जहां योगी आदित्यनाथ, राहुल गांधी से आगे हैं वहीं, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। राहुल गांधी को दस फीसदी लोग पीएम पद का दावेदार मानते हैं, जबकि आठ प्रतिशत लोग ममता और केजरीवाल को इस पद के लिए उपयुक्त मानते हैं। यानी, अंतर बहुत कम है।

कांग्रेस के पक्ष में हैं ये आंकड़े लोकप्रियता के मामले में राहुल भले ही केजरीवाल या ममता बनर्जी से पीछे दिख रहे हों, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में वह इनसे कहीं आगे हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में बेहद खराब प्रदर्शन के बावजूद लगभग 20 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट दिया है। जबकि, बीजेपी के पक्ष में क्रमश: 31 और 36% के करीब वोट पड़े हैं। यानी, बीजेपी की वर्तमान सरकार से नाराजगी के चलते अगर आठ से दस फीसदी वोटर कांग्रेस के पक्ष में चले जाते हैं, तो नतीजे बदल सकते हैं। शायद यही उम्मीद कांग्रेस को नई ताकत दे रही है।

- संजीव श्रीवास्तव

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ब्रिटेन ग्लासगो सीओपी-26 सम्मेलन में पीएम मोदी ले सकते हैं हिस्सा, 31 अक्तूबर से होगी शुरुआत

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 10:04 PM
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जलवायु परिवर्तन के शुभ अवसर पर ब्रिटेन के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र महासभा सीओपी-26 सम्मेलन में शामिल हो सकते हैं। यह सम्मेलन 31 अक्तूबर से 11 नवंबर तक आयोजित होना है। हालांकि अभी कार्यक्रम की आधिकारिक घोषणा (Official Announcement) नहीं की गई है।

इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव भी इस दौरान विभिन्न सत्रों में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शुमार है जो कि जलवायु परिवर्तन (Climate change) की चुनौतियों से निपटने के लिए सतत प्रक्रिया के तहत कार्य करता जा रहा है।

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे कोशिश को हाल में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने काफी सराहा है। पीएम मोदी से टेलीफोन वार्ता के दौरान उन्होंने भारत को अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का अगुवा बता दिया था।

पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार सीओपी -26 में अबकी बार बैठक में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के स्तर और जलवायु शमन और अनुकूलन वित्त से 1.5 डिग्री तक सीमित करवाने के लिए रोडमैप, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रभावी उपायों को लागू करने के लिए, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए 100 करोड़ रुपये हर साल देने के वादे की प्रतिबद्धता जैसे विषय सम्मेलन के एजेंडे में लगे हुए हैं।

आईपीसीसी (IPCC) की रिपोर्ट में स्पष्ट हो गया है कि दुनिया में बढ़ते औद्योगीकरण की वजह से ग्लोबल वार्मिंग के असर को 1.5  डिग्री नीचे रखने का मौका अब दुनिया (WORLD) पूरी तरह से खो चुकी है जानकारी के अनुसार 2040 तक ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के आसार हैं।

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एक 'बदनाम कुशल नेता' नारायण दत्त तिवारी!

N D Tiwari
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 12:33 AM
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 विनय संकोची

विकास पुरुष के नाम से विख्यात राजनेता नारायण दत्त तिवारी की आज जयंती और पुण्यतिथि है। देश के एकमात्र ऐसे नेता जिनका दो राज्यों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है, 18 अक्टूबर 1925 को जन्मे और 18 अक्टूबर 2018 को स्वर्गवासी हुए। नारायण दत्त तिवारी को विकास पुरुष के साथ सबसे अधिक विवादित नेता के रूप में भी जाना जाता है।

तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने वाले नारायण दत्त तिवारी दो बार देश के प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए थे। 1987 में जब राजीव गांधी बोफोर्स मामले में फंसते हुए दिखाई दिए और वी. पी. सिंह ने रक्षा मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, तो कांग्रेस में यह विचार पनपा कि राजीव गांधी अपने पद से दो-तीन महीने के लिए इस्तीफा दे दें और जब हालात सामान्य हो जाएं तो पुनः पदासीन हो जाएं।

अब सवाल था कि अंशकालिक प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए, तो पी. वी. नरसिम्हा राव और नारायण दत्त तिवारी का नाम सामने आया। राजीव राव को गद्दी सौंपना चाहते थे। लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि राव को प्रधानमंत्री बनाने से उत्तर भारत के वोटों पर उल्टा असर पड़ सकता है, तो नारायण दत्त तिवारी के नाम पर सहमति बनी। प्रस्ताव तिवारी के सामने रखा गया जिसे उन्होंने मंजूर करने से साफ इंकार कर दिया।

इसके बाद 1991 में एक और ऐसा अवसर आया जब तिवारी प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन बन नहीं पाए। हुआ यूं कि तिवारी 1991 का संसदीय चुनाव मात्र 5000 वोटों से हार गए थे, अगर जीत गए होते तो चुनाव तक नहीं लड़ने वाले नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री शायद कभी न बनते। राजनीति के अनेक जानकारों का तब भी मानना था और आज भी मानना है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद यदि नारायण दत्त तिवारी देश के प्रधानमंत्री होते तो कांग्रेस और देश के हालात ऐसे नहीं होते जैसे कि होते चले गए।

नारायण दत्त तिवारी रोजाना 18 घंटे काम किया करते थे और ऐसा भी वास्तव में करते थे। तिवारी की यह विशेषता थी कि उन्हें हर मिलने वाले का नाम याद रहता था। भीड़ में भी तिवारी परिचितों को नाम लेकर बुलाते थे। लोगों का दिल जीतने की कला में तिवारी पारंगत थे। नारायण दत्त तिवारी के एक विशेषता यह भी थी कि जो भी व्यक्ति उनसे मिलने आता था, वह उससे मिलते जरूर थे। उनका यह व्यवहार उन्हें सीधा लोगों से दिल से जोड़ता था।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिता पंडित पूर्णानंद तिवारी की तरह नारायण दत्त तिवारी भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के चलते जेल में डाल दिए गए। 15 महीने जेल काटने के बाद वह 1944 में रिहा हुए। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई थी। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ था। 1951 में उत्तर प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से प्रजा सोशलिस्ट समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर हिस्सा लिया और कांग्रेस की हवा होने के बावजूद चुनाव जीत गए थे।

नारायण दत्त तिवारी जब किसी से नाराज होते थे, तो उसे महाराज, भाई साहब या भगवन कहकर संबोधित करने लगते थे। महिलाओं के साथ संबंधों को लेकर तिवारी की काफी किरकिरी हुई। 2008 में रोहित शेखर ने अदालत में तिवारी का बेटा होने का दावा पेश किया। डीएनए टेस्ट में यह सच पाया गया और 2014 में 89 वर्ष की आयु में तिवारी ने रोहित शेखर की मां उज्जवला से शादी कर ली।

जिस नोएडा को औद्योगिक क्रांति की महान उपलब्धि के रूप में देखा जाता है, वह नारायण दत्त तिवारी की ही देन है। उन्हीं के विकास परक सोच का परिणाम है। व्यक्तिगत चरित्र को उठाकर दरकिनार कर दें, तो नरेंद्र तिवारी जैसा आज कोई नेता मिलना मुश्किल ही है।