जाट की ताकत, बिहार की धाक, साउथ की चाल, उपराष्ट्रपति की रेस में बीजेपी की जबरदस्त चाल !

देश के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव का राजनीतिक ड्रामा शुरू हो चुका है, जो बिहार विधानसभा चुनाव की गरमाहट के बीच और भी अहमियत रखता है। अचानक इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ के स्थान पर बीजेपी के लिए उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनना अब एक चुनौतीपूर्ण समीकरण बन चुका है, जिसमें जातीय, क्षेत्रीय और राजनीतिक गठजोड़ों का बेहतरीन तालमेल बनाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इस अहम फैसले की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, जबकि बीजेपी ने संभावित उम्मीदवारों की सूची लगभग अंतिम रूप दे दी है। यह चुनाव सिर्फ एक पद भरने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तर, बिहार और दक्षिण भारत के बीच पार्टी की राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की रणनीति का भी अहम हिस्सा है। Vice President Election
बीजेपी की जटिल राजनीतिक बिसात
धनखड़ के इस्तीफे से जाट समुदाय में खिंचाव उत्पन्न हुआ है, क्योंकि वे जाट राजनीति में बीजेपी की पैठ का प्रतीक माने जाते थे। जाटों के अलावा, बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यहां के सियासी समीकरणों को संतुलित करना है। बिहार में अकेले बीजेपी की सरकार बनाना मुश्किल रहा है, इसलिए उपराष्ट्रपति पद पर किसी ऐसे चेहरे को लाना होगा जो बिहार के विभिन्न सामाजिक समूहों का विश्वास जीत सके। साथ ही, दक्षिण भारत के लिए भी बीजेपी का दांव बेहद महत्वपूर्ण होगा, जहां उसकी राजनीतिक पकड़ अभी तक अपेक्षित मजबूती नहीं जुटा पाई है। तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में पार्टी की कमज़ोर स्थिति को देखते हुए, दक्षिण भारतीय नेतृत्व को उपराष्ट्रपति पद के लिए उठाना पार्टी के लिए राजनीतिक रणनीति में नई जान फूंक सकता है।
सामरिक समन्वय की जरूरत
बीजेपी को इस बार अपने सहयोगी दलों के साथ-साथ कुछ विपक्षी दलों के समर्थन को भी साधना होगा ताकि उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस-वोटिंग के जरिए विपक्षी एकता को तोड़ा जा सके। इसके लिए उम्मीदवार का संसदीय अनुभव, संतुलित वक्तृत्व कला और निष्पक्ष छवि जरूरी होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी नज़र इस चुनाव पर है। संघ भले ही सरकार के कामकाज में सीधी दखलअंदाजी कम करना चाहता हो, लेकिन वह चाहता है कि सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठने वाला व्यक्ति पूरी तरह से पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित हो। यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व इस बार ऐसे उम्मीदवार की खोज में है जो वैचारिक रूप से भी मजबूत हो।
9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में उपराष्ट्रपति पद पर किसी बिहार से संबंध रखने वाले नेता को लाना बीजेपी के लिए चुनावी रणनीति में मददगार साबित हो सकता है। सवर्ण और ओबीसी वर्गों में संभावित नामों की चर्चा जोरों पर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी बिहार के सामाजिक-सांस्कृतिक समीकरणों को ध्यान में रखकर उपराष्ट्रपति उम्मीदवार का चयन करेगी।
यह भी पढ़े: रजिस्ट्री रोकने पर कार्रवाई तय, नोएडा में 57 डिफॉल्टर बिल्डर रडार पर
जाट समुदाय का भावनात्मक जोड़
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने जाट समुदाय में बीजेपी की राजनीतिक पकड़ पर सवालिया निशान लगा दिया है। जाट समाज के अनेक नेताओं और संगठनों ने पार्टी पर अनदेखी और उपेक्षा का कड़ा आरोप लगाते हुए अपने नाराजगी जताई है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वह उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन के माध्यम से जाटों को वह सम्मान और राजनीतिक प्रतिष्ठा लौटाए, जो समुदाय के दिलों में पार्टी के प्रति विश्वास और सम्मान को फिर से मजबूत कर सके। जाट समाज की राजनीतिक सक्रियता और उनकी भावनाओं को भांपते हुए, बीजेपी को इस संवेदनशील समीकरण को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी ताकि यह निर्णायक वोट बैंक पार्टी के साथ बना रहे।
उत्तर भारत पर मजबूत पकड़ के बावजूद दक्षिण भारत में बीजेपी की राजनीतिक स्थिति नाजुक है। ऐसे में दक्षिण भारत के किसी नेता को उपराष्ट्रपति पद पर लाना पार्टी की रणनीतिक मजबूती के लिहाज से फायदेमंद होगा। खासकर केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह कदम बीजेपी की सियासी गहराई बढ़ा सकता है। Vice President Election
देश के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव का राजनीतिक ड्रामा शुरू हो चुका है, जो बिहार विधानसभा चुनाव की गरमाहट के बीच और भी अहमियत रखता है। अचानक इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ के स्थान पर बीजेपी के लिए उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनना अब एक चुनौतीपूर्ण समीकरण बन चुका है, जिसमें जातीय, क्षेत्रीय और राजनीतिक गठजोड़ों का बेहतरीन तालमेल बनाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इस अहम फैसले की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, जबकि बीजेपी ने संभावित उम्मीदवारों की सूची लगभग अंतिम रूप दे दी है। यह चुनाव सिर्फ एक पद भरने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तर, बिहार और दक्षिण भारत के बीच पार्टी की राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की रणनीति का भी अहम हिस्सा है। Vice President Election
बीजेपी की जटिल राजनीतिक बिसात
धनखड़ के इस्तीफे से जाट समुदाय में खिंचाव उत्पन्न हुआ है, क्योंकि वे जाट राजनीति में बीजेपी की पैठ का प्रतीक माने जाते थे। जाटों के अलावा, बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यहां के सियासी समीकरणों को संतुलित करना है। बिहार में अकेले बीजेपी की सरकार बनाना मुश्किल रहा है, इसलिए उपराष्ट्रपति पद पर किसी ऐसे चेहरे को लाना होगा जो बिहार के विभिन्न सामाजिक समूहों का विश्वास जीत सके। साथ ही, दक्षिण भारत के लिए भी बीजेपी का दांव बेहद महत्वपूर्ण होगा, जहां उसकी राजनीतिक पकड़ अभी तक अपेक्षित मजबूती नहीं जुटा पाई है। तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में पार्टी की कमज़ोर स्थिति को देखते हुए, दक्षिण भारतीय नेतृत्व को उपराष्ट्रपति पद के लिए उठाना पार्टी के लिए राजनीतिक रणनीति में नई जान फूंक सकता है।
सामरिक समन्वय की जरूरत
बीजेपी को इस बार अपने सहयोगी दलों के साथ-साथ कुछ विपक्षी दलों के समर्थन को भी साधना होगा ताकि उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस-वोटिंग के जरिए विपक्षी एकता को तोड़ा जा सके। इसके लिए उम्मीदवार का संसदीय अनुभव, संतुलित वक्तृत्व कला और निष्पक्ष छवि जरूरी होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी नज़र इस चुनाव पर है। संघ भले ही सरकार के कामकाज में सीधी दखलअंदाजी कम करना चाहता हो, लेकिन वह चाहता है कि सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठने वाला व्यक्ति पूरी तरह से पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित हो। यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व इस बार ऐसे उम्मीदवार की खोज में है जो वैचारिक रूप से भी मजबूत हो।
9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में उपराष्ट्रपति पद पर किसी बिहार से संबंध रखने वाले नेता को लाना बीजेपी के लिए चुनावी रणनीति में मददगार साबित हो सकता है। सवर्ण और ओबीसी वर्गों में संभावित नामों की चर्चा जोरों पर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी बिहार के सामाजिक-सांस्कृतिक समीकरणों को ध्यान में रखकर उपराष्ट्रपति उम्मीदवार का चयन करेगी।
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जाट समुदाय का भावनात्मक जोड़
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने जाट समुदाय में बीजेपी की राजनीतिक पकड़ पर सवालिया निशान लगा दिया है। जाट समाज के अनेक नेताओं और संगठनों ने पार्टी पर अनदेखी और उपेक्षा का कड़ा आरोप लगाते हुए अपने नाराजगी जताई है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वह उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन के माध्यम से जाटों को वह सम्मान और राजनीतिक प्रतिष्ठा लौटाए, जो समुदाय के दिलों में पार्टी के प्रति विश्वास और सम्मान को फिर से मजबूत कर सके। जाट समाज की राजनीतिक सक्रियता और उनकी भावनाओं को भांपते हुए, बीजेपी को इस संवेदनशील समीकरण को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी ताकि यह निर्णायक वोट बैंक पार्टी के साथ बना रहे।
उत्तर भारत पर मजबूत पकड़ के बावजूद दक्षिण भारत में बीजेपी की राजनीतिक स्थिति नाजुक है। ऐसे में दक्षिण भारत के किसी नेता को उपराष्ट्रपति पद पर लाना पार्टी की रणनीतिक मजबूती के लिहाज से फायदेमंद होगा। खासकर केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह कदम बीजेपी की सियासी गहराई बढ़ा सकता है। Vice President Election







