Monday, 30 December 2024

नोएडा में घर का सपना: बायर्स सालों से कर रहे रजिस्ट्री का इंतजार

बिजनेस और नौकरी का हब बन चुके नोएडा में घर का सपना देखने वालों को परेशानी भी कम नहीं झेलनी पड़ रही है।

नोएडा में घर का सपना: बायर्स सालों से कर रहे रजिस्ट्री का इंतजार

Noida News नोएडा। नोएडा में घर खरीदने का सपना देखने वालों की संख्‍या बहुत बड़ी है। बिजनेस और नौकरी का हब बन चुके नोएडा में घर का सपना देखने वालों को परेशानी भी कम नहीं झेलनी पड़ रही है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में लोगों ने अपने फ्लैट सालों से बुक करा रखे हैं लेकिन हाल यह है कि इन बायर्स को जो अलग अलग बिल्‍डरों के विभिन्‍न सोसायटियों में यहां अपना पैसा सालों से लगाए हुए हैं। इनमें सुपरटेक, यूनीटेक, आम्रपाली, स्पोर्ट्स सिटी और जेपी इंफ्राटेक आदि में बायर्स के लाखों रुपये सालों से रुके पड़े हैं।

सुपरटेक के चलते भी बिगड़े हैं रियल स्‍टेट के हालात

सुपरटेक ग्रुप (Supertech Group) के साथ 27 हजार बायर्स सालों से अपना पैसा लगाकर घर का सपना संजोए हुए है लेकिन उसपर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है। इससे पहले जो आम्रपाली, जेपी इंफ्राटेक और यूनिटेक दिवालिया हुए उनमें भी असली पैसा तो बायर्स का ही फंसा हुआ है। और उसका निराकरण भी दूर की कौड़ी लगती है। अगर सुपरटेक के हालात ऐसे ही रहे तो सुपरटेक ग्रुप के बायर्स को घर कैसे मिलेंगे। कंपनी दिवालिया घोषित हुई तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे। यह तो सर्वविदित ही है कि सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा (RK Arora) को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया है। ऐसे में लोगों के दिमाग में यही सवाल उठ रहे हैं कि इसमें फंसे 27 हजार बायर्स का भविष्य क्या होगा। कहीं यह कंपनी भी अन्य कई कंपनियों की तरह दिवालिया घोषित न हो जाए।

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स्‍पोर्ट्स सिटी के 15 हजार बायर्स भी फंसे हुए

खेल सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए प्राधिकरण यह प्रोजेक्‍ट लेकर आया था। लेकिन आज पांच साल से 15 हजार बायर्स यहां अपने घर की रजिस्‍ट्री का सपना देख रहे हैं। अभी हाल में 15 दिन पहले लखनऊ में हुई बैठक से संबंधित आदेश लोक लेखा समिति ने अभी तक जारी नहीं किए हैं। इसलिए स्‍पोर्ट्स सिटी के 15 हजार बायर्स की मुसीबत कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। यहां बिल्डरों ने प्राधिकरण की खेल सुविधाएं विकसित करने की योजना के बजाय फ्लैट और व्यवसायिक चीजें बना दीं जिससे यहां के 15 हजार बायर्स फंसे हुए हैं। यहां बिल्डरों ने बड़े स्तर पर गड़बड़ी कर यह कारनामा किया है।

आम्रपाली के बायर्स को कुछ राहत

दरअसल 2017 से ही जिले में रियल एस्टेट कंपनियों के दिवालिया होने की शुरुआत हो गई थी। और इन सबमें सबसे पहले आम्रपाली पर यह खतरा छाया था लेकिन शुरुआत का मामला होने और पहला केस होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपनी निगरानी में पूरा कराने की जिम्मेदारी ले ली थी और इसके लिए कोर्ट रिसीवर भी नियुक्त कर दिया गया था। इस वजह से आम्रपाली (Amrapali) के प्रॉजेक्टों में सीधे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम हो रहा है, इसलिए आम्रपाली के कुछ बायर्स को राहत मिलती नजर आ रही है। इस प्रोजेक्‍ट में कुल 46 हजार बायर्स फंसे थे, जिनमें 38 हजार के घर बनाकर दिए जाने थे। जबकि जुलाई 2022 तक सारे फ्लैट बनाकर देने की डेड लाइन थी जबकि पिछले पांच साल में 10-12 हजार फ्लैट कोर्ट रिसीवर की निगरानी में तैयार किए गए हैं। फंड को लेकर भी तस्‍वीर साफ नहीं है। अगर फंड जुटाने में कामयाबी नहीं मिली तो बायर्स को घर मिलने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ सकता है।

जेपी इंफ्राटेक के प्रोजेक्‍ट को लेकर भी उहापोह

जेपी इंफ्राटेक में छह साल का समय तो इसी बात में निकल गया कि इनके अधूरे प्रोजेक्‍ट को कौन पूरा करेगा। इस प्रोजेक्‍ट के बायर्स 2016 में अपनी लड़ाई शुरू की थी। जेपी इंफ्राटेक को लेकर भी नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल और सुप्रीम कोर्ट के बीच में कई साल से यह मामला चल रहा है। 6 साल के बाद तय हो पाया है कि जेपी इंफ्राटेक के अधूरे प्रॉजेक्टों को पूरा किया जाएगा। लेकिन अभी भी सुरक्षा को लेकर आ रही समस्‍या को देखते हुए इसमें और बिलंब होने की संभावना है।

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यूनिटेक में बने नए बोर्ड की प्रोग्रेस भी रही जीरो

यूनिटेक (Unitech) के मामले में चार साल पहले कोर्ट ने पुरानी कंपनी का बोर्ड भंग कर दिया था और नए बोर्ड को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी। और चार साल बाद भी नए बोर्ड की प्रोग्रेस रिपोर्ट जीरो ही है। अभी तक तो इनका नक्‍शा भी पास नहीं हो पाया है। इस तरह तो असली परेशानी बायर्स की ही बनी हुई है। यूनिटेक में नोएडा-ग्रेनो में करीब 15 हजार बायर्स फंसे हैं। इसके अलावा एनसीआर से गुड़गांव व देश के दूसरे शहरों में लोग फंसे हुए हैं। चार साल से गठित नए बोर्ड द्वारा भी अधूरे प्रॉजेक्टों में काम होता दिखाई नहीं दे रहा है। नए बोर्ड के गठन के चार साल बाद भी फंसा हुआ एक भी फ्लैट पूरा नहीं हो पाया। बायर्स के साथ दो-चार मीटिंग हुई है। अतिरिक्त फ्लैट बनाने के लिए उनसे सहमति भी ली गई है और कुछ टेंडर भी हुए लेकिन फंड और संशोधित नक्शा पास होने का काम अटका होने की वजह से इसमें कोई प्रोग्रेस होता नजर नहीं आ रहा।

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