Noida News : ईएसआई अस्पताल के सरकारी अस्पताल से भी बुरे हालात
नोएडा । जनपद गौतमबुद्घनगर के आठ लाख श्रमिक तथा उनके 20 लाख से अधिक आश्रित स्वास्थ्य सेवाओं के…
Sonia Khanna | October 26, 2021 3:56 AM
नोएडा । जनपद गौतमबुद्घनगर के आठ लाख श्रमिक तथा उनके 20 लाख से अधिक आश्रित स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ईएसआई के अस्पताल पर निर्भर हैं, लेकिन यहां सरकारी अस्पताल से भी बुरे हालात हैं जिसके चलते न तो डॉक्टर उन्हें प्राइवेट अस्पतालों में जल्द से रेफर करते और ना ही उनका इलाज कर पाते। डायरेक्टर की पर्ची लिखे के बाद भी इलाज नहीं किया जाता।
ऐसा ही एक मामला सेक्टर-93 में रहने वाले त्रिभुवन सिंह नामक कर्मचारी के साथ हुआ। यहां अकेला त्रिभुवन ही नहीं अनेकों ईएसआई कार्ड धारक दर- दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं। त्रिभुवन सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि एक सडक़ हादसे में उनके हाथ में फैक्चर आ गया था। वह इसके लिए एक बार नहीं कई बार ईएसआई अस्पताल के 15 दिनों तक चक्कर काटे और वह अस्पताल के डायरेक्टर से भी मिले। डायरेक्टर ने उन्हें पर्ची लिखकर इलाज करने के लिए डॉक्टर के पास भेजा इसके बाद भी उनका हाथ का फैक्चर ठीक नहीं किया गया। एक बार किया तो वह भी गलत किया गया। जिसके चलते उसे और दर्द की परेशानी हुई इसके बाद भी अस्पताल के डॉक्टरों ने उसकी नहीं सुनी। अंत में उसने शारदा अस्पताल की शरण ली और इलाज कराया उसका कहना है कि ईएसआई अस्पताल में नहीं सुना जाता। बेवजह उनके वेतन से ईएसआई प्रतिमाह काटी जाती है। जिसका उन्हें फायदा नहीं मिल पा रहा है।
इसी तरह औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर-57 स्थित ईएसआई डिस्पेंसरी में दवा के इंतजार में मरीज और ज्यादातर बीमार पड़ रहे हैं । डॉक्टर के लिखे पर्चे को हाथ में लिए लोग कई दिनों से दवाओं के लिए धक्के खा रहे हैं। ईएसआई अस्पताल में डॉक्टर से परामर्श लेने गए थे पेट में दर्द और गैस बताकर डॉक्टरों ने पर्ची पर कुछ दवाई लिखी इसके लिए बालकिशन 5 दिन तक सेक्टर 57 की डिस्पेंसरी के चक्कर लगा रहे हैं। उन्हें बताया कि पर्ची में लिखी डाइजीन जैसी साधारण दवा भी नहीं मिल रही है। इसी तरह सेक्टर 70 से आए रामचंद्र को कई दिनों से बुखार और कमजोरी की शिकायत है निजी लैब में जांच कराने पर डेंगू बताया गया।
ईएसआई कार्ड धारकों का आरोप है कि यहां से बेहतर इलाज सेक्टर-30 की सरकारी अस्पताल में मिल रहा है। यहां अधिकारी भी नहीं सुनते और नहीं डॉक्टर ठीक से मरीज की देखभाल करते हैं। जिसके चलते श्रमिकों में रोष है।