UP News : गाजियाबाद/मैनपुरी। नशे की मंडी में अब नौनिहालों की भी एंट्री हो गई है। चरस, गांजा, अफीम, मुनक्का (भांग की गोली) और स्मेक जैसे नशे के बारे में तो हम सभी वाकिफ हैं। लेकिन, इन दिनों एक नए नशे की एंट्री हो गई है, जो आसानी से उपलब्ध है। हैरानी की बात है कि नशे के कारोबारियों ने अपनी पहुंच गांवों तक बना ली है। इससे नाबालिग नशेबाजों की एक ऐसी फौज पनपने लगी है, जिसमें नौनिहालों के वर्तमान और भविष्य पर ग्रहण लगा दिए हैं।
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उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और मैनपुरी जनपद को अब नशे की मंडी के नाम से जाना जाता है। यहां हर प्रकार के नशे का काला कारोबार धड़ल्ले से किया जाता है। यदाकदा पुलिस द्वारा भी चरस और हेरोइन की खेप बरामद कर इस बात की पुष्टि की जा चुकी है। इन दोनों जिले की नौनिहालों की बड़ी संख्या ऐसे नशे की गिरफ्त में हैं, जो बाजार में किराने और स्टेशनरी की दुकान से बड़ी आसानी से मिल जाता है। इस नए नशे की श्रेणी में आती है साइकिल के पंचर को जोड़ने वाला सल्यूशन। ये आसानी से दुकानों पर उपलब्ध हो जाता है। बोनफिक्स और उसी श्रेणी के दूसरे तरल पदार्थों की जैसे ओमीनी केमिकल फ्लूड,Omni Chemical Fluid) जिनका प्रयोग पंचर जोड़ने के लिए किया जाता है। यह बात हैरान करने वाला है, लेकिन सच है।
कचरा बीनने वाले और गरीब तबके के बच्चे स्टेशनरी और किराने की दुकान से इन चीजों को खरीदने के बाद रूई या फिर सूती कपड़ों में डालकर नाक के जरिए सूंघते हैं। कचरा बीनने वाले बच्चों का कहना है कि इससे उन्हें नशा का एहसास होता है। नशा करने वाले बच्चों ने बताया कि इस नशे को करने के बाद उन्हें भूख भी नहीं लगती है। यह एक ऐसा नशा है, जो तिल-तिल कर इंसान को मौत के दरवाजे तक ले जाता है। शहर से लेकर ग्रामीण अंचल तक यह नशा पिछले कुछ महीनों से जोर पकड़ता जा रहा है। हैरत की बात तो यह है कि खुलेआम बिक रहे इस जहरीले नशे से पुलिस प्रशासन, एनजीओ, आयुर्वेदिक, ड्रग्स और फूड्स सभी विभाग अनजान बने हुए हैं। जानकारों के अनुसार यदि समय रहते इस नशे पर रोक नहीं लगाई गई तो नौनिहालों का भविष्य तबाह हो जाएगा। यह नशा गंभीर बीमारियां दे सकता है।
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गाजियाबाद नशा मुक्ति अभियान से जुड़े समाजसेवी ने इस नशे के बाबत एक वीडियो बनाकर प्रशासन को अवगत कराया है। इसमें आमजन जनमानस को जागरूक करने के लिए अनेक डॉक्टरों की सलाह और नशे में बीमार बच्चों की रोकथाम की सामग्री शामिल की गई है।
गाजियाबाद जिला अस्पताल में तैनात नशा कंसल्टेंट साकेत तिवारी और मैनपुरी के डॉ. धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि नशे के रूप में इन द्रव्यों का प्रयोग करने पर दिल की धड़कनें धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। इन सल्यूशन को सूंघने से रासायनिक पदार्थ नाक के जरिए हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं। इस नशे की लत में पड़कर लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।
चित्रगुप्त महाविद्यालय के रसायन शास्त्र के विभागाध्यक्ष रहे डॉक्टर अवधेश जौहरी ने बताया कि पंचर व अन्य के सामानों को जोड़ने वाले द्रव्यों में एल्कोहल पदार्थ व टाक्सिक एसिड मिले होते हैं। चूंकि इनमें एल्कोहल पदार्थों की मात्रा होती है, इसलिए नाक से सूंघने पर नशे का होना स्वभाविक है। सूंघने पर रासायनिक पदार्थ सांस के जरिए ऑक्सीजन में घुल जाते हैं और शरीर की इम्यूनिटी को कम कर देते हैं।
मैनपुरी जिला अस्पताल के डॉ. जेजे राम ने बताया कि पंचर जोड़ने वाली ट्यूब या बोनफिक्स नशे की हालत में जानलेवा या घातक हो सकते हैं। इसका विपरीत प्रभाव फेफड़े गुर्दा आदि पर सीधा पड़ता है। इंसान अपनी दिमागी संतुलन खो देता है, और पागल सा हो जाता है। उन्होंने बताया कि इन चीजों में मिथाइल, इथाइल, अल्कोहल मिली होती है, जो मानसिक रूप से इंसान को विकलांग बना देती है।
गाजियाबाद के डॉ. सीपी कश्यप बताते हैं कि ओमीनी फ्लूड जैसे घातक केमिकल फ्लूड सूंघने से मस्तिष्क का कॉमन सेन्स खत्म हो जाता है। यह बॉडी में कम्पन पैदा कर देता है, जिससे इस नशे में दौरों आदि का आना आम बात है। नशा करने वालों को न्यूरल या एनजाइटी डिप्रेशन में अंनसेंस हो जाता है, इसको फोकस नशा भी बोलते है, जिससे भूख लगनी बंद हो जाती है, और धीरे-धीरे शरीर की हड्डियां गलने लगती हैं।
गाजियाबाद के ही डॉ. आरके पोद्दार बताते हैं कि एंग्जायटी, अवसाद, निराशा व दुःख से जन्म लेती है। जब हम अपनी भावनाओं को अनदेखा करते हैं तो वे हमारे दुःख का कारण बनती है। ठीक इसी प्रकार, नजरअंदाज किए जाने पर अवसाद एंग्जायटी का रूप ले सकता है। इस स्थिति में व्यक्ति को हर वक्त इस बात का डर लगा रहता है कि कुछ गलत होने वाला है। इसी प्रकार न्यूरल डिप्रेशन जो इन पदार्थों का मनोरंजक रूप से उपयोग करते हैं। यह आपको अधिक सुस्त बनाता है और मस्तिष्क की गतिविधियां भी धीमी हो जाती हैं।