फिर कभी नहीं सुनाई देगी इस किसान योद्धा की वाणी





बिहार की मतदाता सूची से एक साथ 65 लाख नामों को हटाए जाने को लेकर देशभर में विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाते हुए Association for Democratic Reforms (ADR) ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया है और निर्वाचन आयोग से पूरी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने भी गंभीर रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी। Bihar Voter Verification
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान के तहत चुनाव आयोग ने निर्देश दिया था कि केवल वे मतदाता ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल किए जाएंगे, जिन्होंने 25 जुलाई 2025 तक अपना गणना फॉर्म जमा किया हो। आयोग के अनुसार, राज्य में कुल 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से फॉर्म प्राप्त हुए हैं। शेष 65 लाख मतदाताओं को ड्राफ्ट लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। चुनाव आयोग का दावा है कि इनमें से लगभग 22 लाख मतदाता मृत पाए गए, 35 लाख या तो राज्य से पलायन कर चुके हैं या उनका कोई ठोस पता नहीं है, जबकि करीब 7 लाख लोगों के नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज थे।
ADR की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर आयोग से यह स्पष्ट करने की मांग की कि इन 65 लाख लोगों के नाम किन आधारों पर हटाए गए हैं और इनका विवरण सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया।भूषण ने दलील दी कि आयोग की ओर से अब तक कोई सूची सार्वजनिक नहीं की गई है और यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि किसने फॉर्म नहीं भरे, किसकी मृत्यु हुई, कौन पलायन कर गया और किन लोगों के नाम दोहराए गए थे। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि बीएलओ ने कुछ नामों को हटाने की सिफारिश की थी, तो क्या उस प्रक्रिया का दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध है? उन्होंने यह भी बताया कि केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जानकारी जारी की गई है, बाकी जगहों पर स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि हटाए गए मतदाताओं की जानकारी सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को प्रदान की जा चुकी है। लेकिन जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि केवल राजनीतिक दलों को सूचना देना पर्याप्त नहीं है। प्रभावित प्रत्येक नागरिक को यह जानकारी मिलनी चाहिए कि उसका नाम क्यों हटाया गया। कोर्ट ने आयोग को आदेश दिया कि वह शनिवार तक विस्तृत हलफनामा दाखिल करे और स्पष्ट करे कि मतदाता नामों की समीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की गई। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को उस पर विचार करने का पर्याप्त समय दिया जाए।
वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि आयोग द्वारा स्वीकार किए गए 11 में से 75% से अधिक लोगों ने कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया, फिर भी बीएलओ ने उन्हें सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद उनका नाम हटा दिया गया, जिससे यह प्रक्रिया और अधिक संदिग्ध हो जाती है। Bihar Voter Verification
बिहार की मतदाता सूची से एक साथ 65 लाख नामों को हटाए जाने को लेकर देशभर में विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाते हुए Association for Democratic Reforms (ADR) ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया है और निर्वाचन आयोग से पूरी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने भी गंभीर रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी। Bihar Voter Verification
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान के तहत चुनाव आयोग ने निर्देश दिया था कि केवल वे मतदाता ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल किए जाएंगे, जिन्होंने 25 जुलाई 2025 तक अपना गणना फॉर्म जमा किया हो। आयोग के अनुसार, राज्य में कुल 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से फॉर्म प्राप्त हुए हैं। शेष 65 लाख मतदाताओं को ड्राफ्ट लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। चुनाव आयोग का दावा है कि इनमें से लगभग 22 लाख मतदाता मृत पाए गए, 35 लाख या तो राज्य से पलायन कर चुके हैं या उनका कोई ठोस पता नहीं है, जबकि करीब 7 लाख लोगों के नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज थे।
ADR की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर आयोग से यह स्पष्ट करने की मांग की कि इन 65 लाख लोगों के नाम किन आधारों पर हटाए गए हैं और इनका विवरण सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया।भूषण ने दलील दी कि आयोग की ओर से अब तक कोई सूची सार्वजनिक नहीं की गई है और यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि किसने फॉर्म नहीं भरे, किसकी मृत्यु हुई, कौन पलायन कर गया और किन लोगों के नाम दोहराए गए थे। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि बीएलओ ने कुछ नामों को हटाने की सिफारिश की थी, तो क्या उस प्रक्रिया का दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध है? उन्होंने यह भी बताया कि केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जानकारी जारी की गई है, बाकी जगहों पर स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि हटाए गए मतदाताओं की जानकारी सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को प्रदान की जा चुकी है। लेकिन जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि केवल राजनीतिक दलों को सूचना देना पर्याप्त नहीं है। प्रभावित प्रत्येक नागरिक को यह जानकारी मिलनी चाहिए कि उसका नाम क्यों हटाया गया। कोर्ट ने आयोग को आदेश दिया कि वह शनिवार तक विस्तृत हलफनामा दाखिल करे और स्पष्ट करे कि मतदाता नामों की समीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की गई। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को उस पर विचार करने का पर्याप्त समय दिया जाए।
वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि आयोग द्वारा स्वीकार किए गए 11 में से 75% से अधिक लोगों ने कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया, फिर भी बीएलओ ने उन्हें सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद उनका नाम हटा दिया गया, जिससे यह प्रक्रिया और अधिक संदिग्ध हो जाती है। Bihar Voter Verification