फिर कभी नहीं सुनाई देगी इस किसान योद्धा की वाणी

फिर कभी नहीं सुनाई देगी इस किसान योद्धा की वाणी
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calendar01 Dec 2025 11:04 AM
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किसानों के सबसे बड़े वकील के नाम से विख्यात सत्यपाल मलिक (Satyapal Malik) इस दुनिया में नहीं रहे। सत्यपाल मलिक का 5 अगस्त को निधन हो गया। सत्यपाल मलिक का शरीर पूरा होते ही एक बड़ी आवाज भी बंद हो गई। सत्यपाल मलिक भारत के किसानों तथा मजदूरों के सच्चे समर्थक थे। सत्यपाल मलिक बिना किसी डर तथा बिना किसी लालच के किसानों की आवाज को बुलंदी के साथ उठाते रहे। सत्यपाल मलिक के निधना के साथ ही किसानों के बड़े योद्धा की वाणी भी हमेशा के लिए बंद हो गई। Satyapal Malik 

किसानों की आवाज का प्रतीक बने रहे सत्यपाल मलिक

सत्यपाल मलिक के जीवन पर प्रकाश डालें तो पता चलता है कि अपने पूरे जीवन सत्यपाल मलिक किसानों की आवाज का प्रतीक बनकर रहे। सत्यपाल मलिक का सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन एक छात्र नेता के रूप में उत्तर प्रदेश में स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से शुरू हुआ था। उन दिनों चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय का नाम मेरठ विश्वविद्यालय हुआ करता था। मेरठ विश्वविद्यालय में पढ़ते समय सत्यपाल मलिक ने देखा कि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले किसान परिवारों के छात्रों की आवाज दबाई जाती है। फिर क्या था सत्यपाल मलिक किसान परिवारों से आने वाले छात्र-छात्राओं की आवाज बन गए। यह आवाज किसानों के हित की सबसे बड़ी आवाज थी। सत्यपाल मलिक के साथ पढऩे वाले प्रसिद्ध शिक्षाविद आनंद चौहान बताते हैं कि सत्यपाल मलिक का भाषण इतना प्रभावशाली होता था कि उनका भाषण सुनकर तमाम छात्र उनके समर्थक बन गए थे। इस प्रकार सत्यपाल मलिक एक बड़े छात्र नेता के रूप में स्थापित होते चले गए थे।

सत्यपाल मलिक का शुरूआती जीवन संघर्षों से भरा हुआ था

प्रसिद्ध मीडिया हाउस BBC हिन्दी ने सत्यपाल मलिक का जीवन परिचय देते हुए बताया है कि, सत्यपाल मलिक का जन्म उत्तर प्रदेश में बागपत के हिसावदा गांव में 24 जुलाई 1946 को हुआ। सत्यपाल मलिक जब दो साल के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था। सत्यपाल मलिक को राजनीति में चौधरी चरण सिंह लेकर आए थे। 1974 में उन्होंने चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत विधानसभा का चुनाव लड़ा और महज 28 साल की उम्र में विधानसभा पहुंच गए। पहला विधानसभा चुनाव सत्यपाल मलिक ने करीब दस हजार वोटों के अंतर से जीता था। 1980 में लोकदल पार्टी से राज्यसभा पहुंचे, लेकिन चार साल बाद ही उन्होंने उस कांग्रेस का दामन थाम लिया जिसके शासनकाल में लगी इमरजेंसी का विरोध करने पर वो जेल गए थे। 1987 में राजीव गांधी पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगा, जिसके खिलाफ विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मोर्चा खोल दिया था और इसमें सत्यपाल मलिक ने उनका साथ दिया। कांग्रेस को छोड़कर सत्यपाल मलिक ने जन मोर्चा पार्टी बनाई जो साल 1988 में जनता दल में मिल गई। 1989 के आम चुनावों में सत्यपाल मलिक ने यूपी की अलीगढ़ सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार लोकसभा पहुंचे। 1996 में उन्होंने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की और अलीगढ़ से चुनाव लड़ा। अलीगढ़ में उनकी बुरी हार हुई। वे चौथे नंबर पर रहे। उन्हें कऱीब 40 हज़ार वोट पड़े, जबकि जीतने वाले उम्मीदवार को कऱीब दो लाख तीस हज़ार वोट पड़े थे। इस चुनाव के परिणाम से उनकी जाट नेता वाली छवि पर भी असर पड़ा था। अपने सियासी सफर में सत्यपाल मलिक कऱीब तीस साल तक समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे, लेकिन 2004 में वे बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी के टिकट पर चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़े। यह चुनाव भी उनकी जाट नेता की अस्मिता के लिए एक परीक्षा की तरह था, लेकिन इसमें वे फ़ेल साबित हुए। अजित सिंह को करीब तीन लाख पचास हजार वोट पड़े तो तीसरे नंबर पर रहे सत्यपाल मलिक को करीब एक लाख वोट मिले। 2005-2006 में उन्हें उत्तर प्रदेश बीजेपी का उपाध्यक्ष, 2009 में भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया। "हार के बावजूद बीजेपी ने सत्यपाल मलिक को अपने साथ रखा। 2012 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। ये वो दौर था जब बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपनी ज़मीन तलाश रही थी और उसे एक जाट लीडर की तलाश थी।" "उसी समय सत्यपाल मलिक का नरेंद्र मोदी के साथ व्यक्तिगत संवाद हुआ और संबंध बना।" 2014 में बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर आए तब सत्यपाल मलिक को 30 सितंबर 2017 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया। करबब 11 महीने बिहार का राज्यपाल रहने के बाद अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया। सत्यपाल मलिक के कार्यकाल में ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग हुई, जिसके बाद राज्य का सारा प्रशासन उनके हाथ में आ गया। इसी दौरान पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया। नवंबर 2019 से अगस्त 2020 तक वह गोवा के और अगस्त 2020 से अक्तूबर 2022 तक वह मेघालय के राज्यपाल रहे।

प्रधानमंत्री के बड़े विरोधी बन गए थे सत्यपाल मलिक

आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों से सत्यपाल मलिक लगातार कई मुद्दों पर मोदी सरकार की आलोचना कर रहे थे, फिर चाहे वह किसान आंदोलन हो या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना हो। उनके कई बयानों ने खासा विवाद पैदा किया। 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में विस्फोटकों से भरी गाड़ी, सीआरपीएफ के 70 बसों के काफि़ले में चल रही एक बस से भिड़ा दी गई थी। इस आत्मघाती हमले में 40 जवानों की मौत हुई थी। इस हमले के लिए सत्यपाल मलिक ने केंद्र सरकार को जि़म्मेदार बताया था। उन्होंने कहा कि जम्मू से श्रीनगर पहुंचने के लिए सीआरपीएफ को पांच एयरक्राफ्ट की जरूरत थी। उन्होंने गृह मंत्रालय से एयरक्राफ़्ट मांगे थे, लेकिन उन्हें नहीं दिए गए। एयरक्राफ़्ट दे देते तो ये हमला नहीं होता क्योंकि इतना बड़ा काफिला सड़क से नहीं जाता। सत्यपाल मलिक ने दावा किया था कि जब यह जानकारी उन्होंने प्रधानमंत्री को दी और अपनी ग़लती के बारे में बताया तो पीएम ने कहा, "आप इस पर चुप रहिए।" सत्यपाल मलिक के इस आरोप पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया था। साल 2023 में एक निजी चैनल के इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "जब आप सत्ता में हैं तो आत्मा क्यों नहीं जागती। अगर यह सब सच है, तो राज्यपाल रहते हुए वह चुप क्यों थे। ये सार्वजनिक चर्चा के मुद्दे नहीं हैं।" 5 अगस्त 2019 को केंद्र की बीजेपी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था। मलिक ने दावा किया था कि इतने बड़े फैसले की जानकारी उन्हें महज़ एक दिन पहले दी गई। उन्होंने बताया, "कुछ नहीं पता था, एक दिन पहले शाम को गृह मंत्री का फोन आया कि सत्यपाल मैं एक चिट्ठी भेज रहा हूं, सुबह अपनी कमेटी से पास करा के 11 बजे से पहले भेज देना।"

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भ्रष्टाचार पर बात करते हुए उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर और गोवा का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों को कई बार प्रधानमंत्री के सामने उठाया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सत्यपाल मलिक का कहना था कि प्रधानमंत्री के करीबी लोग उनके पास जम्मू-कश्मीर में दलाली का काम लेकर आए, जिसमें उन्हें 300 करोड़ रुपये का ऑफऱ दिया गया था। इस काम को करने से उन्होंने मना कर दिया। इस मामले में सीबीआई ने उनसे पूछताछ भी की थी। बीजेपी नेता राम माधव ने सत्यपाल मलिक के आरोपों को निराधार बताया था और उन्हें मानहानि का नोटिस भेजा था। अग्निवीर योजना का विरोध करते हुए मलिक ने कहा था, "अग्निवीर योजना हमारी फौजों को, जवानों को नीचा दिखाने का काम करेगी।" इस प्रकार सत्यपाल मलिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे बड़े विरोधी बन गए थे। पूरे जीवन किसानों की आवाज बनकर गूंजने वाली सत्यपाल मलिक की आवाज अब शांत हो गई है। Satyapal Malik 
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बिजली के बिल में आने वाली है गर्मी

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बिजली के बिल में आने वाली है गर्मी
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userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 10:04 PM
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देश की राजधानी दिल्ली में बिजली उपभोक्ताओं को जल्द ही झटका लग सकता है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिजली वितरण कंपनियों के वर्षों पुराने बकाया भुगतान के मामले में दरें बढ़ाने की सशर्त अनुमति दे दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि दरें बढ़ाई जा सकती हैं लेकिन यह बढ़ोतरी वाजिब (Reasonable) और किफायती (Affordable) होनी चाहिए। Supreme Court 

कई राज्यों में बढ़ सकती है बिजली बिल

न्यायालय ने दिल्ली बिजली नियामक आयोग (DERC) को निर्देश दिया है कि वह एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करे जिसमें बताया जाए कि दरों में बढ़ोतरी कब, कैसे और कितनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि देश के कई राज्यों में बिजली की कीमतें अब उपभोक्ताओं के लिए बढ़ सकती हैं।

आम उपभोक्ता पर बोझ

दरअसल, यह मामला बिजली वितरण कंपनियों द्वारा वर्षों से लंबित बकाया भुगतान से जुड़ा था। कोर्ट ने इन लंबित नियामक परिसंपत्तियों (Regulatory Assets) को अगले 4 वर्षों के भीतर खत्म करने के निर्देश दिए हैं। मतलब यह कि अब इन भुगतानों की भरपाई उपभोक्ताओं से ही की जाएगी जिसका सीधा असर बिजली के बिलों पर दिखेगा। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि लंबे समय तक टलते रहे बकाये आखिरकार आम उपभोक्ता पर बोझ बनते हैं। कोर्ट ने यह भी माना कि नियामक आयोगों और एपीटीईएल ने समय रहते उचित निर्णय नहीं लिए, जिससे यह समस्या वर्षों तक बनी रही।

कोर्ट के आदेश के बाद होगा सख्त एक्शन

बिजली वितरण कंपनियों का तर्क है कि वे बिजली खरीदने और सप्लाई करने में जितना खर्च करती हैं, उतना वसूली नहीं कर पातीं जिससे घाटा होता है। इस घाटे को ही नियामकीय परिसंपत्तियां कहा जाता है। अब कोर्ट के आदेश के बाद यह घाटा धीरे-धीरे उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा। दिल्ली में यह भुगतान पिछले 17 सालों से लंबित है और इसकी कुल रकम 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। वहीं, तमिलनाडु में 2024 तक यह बकाया 87,000 करोड़ रुपये तक हो गया है। इन आंकड़ों से साफ है कि आने वाले समय में बिजली की कीमतें आवासीय से लेकर औद्योगिक उपयोगकर्ताओं तक सभी के लिए बढ़ सकती हैं।

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आम लोगों के जेब पर पड़ेगा भारी असर

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक ओर जहां वितरण कंपनियों को राहत दी है, वहीं आम लोगों की जेब पर असर डालने वाला निर्णय भी साबित हो सकता है। अब देखना होगा कि DERC समेत अन्य राज्य आयोग इस रोडमैप को कैसे लागू करते हैं और उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई कीमतों के लिए कैसे तैयार किया जाता है। Supreme Court 
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बिहार में 65 लाख मतदाता ‘लापता’ ! ADR ने चुनाव आयोग से मांगा हिसाब

बिहार में 65 लाख मतदाता ‘लापता’ ! ADR ने चुनाव आयोग से मांगा हिसाब
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calendar29 Nov 2025 07:36 AM
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बिहार की मतदाता सूची से एक साथ 65 लाख नामों को हटाए जाने को लेकर देशभर में विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाते हुए Association for Democratic Reforms (ADR) ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया है और निर्वाचन आयोग से पूरी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने भी गंभीर रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी।  Bihar Voter Verification

क्या है मामला ?

बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान के तहत चुनाव आयोग ने निर्देश दिया था कि केवल वे मतदाता ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल किए जाएंगे, जिन्होंने 25 जुलाई 2025 तक अपना गणना फॉर्म जमा किया हो। आयोग के अनुसार, राज्य में कुल 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से फॉर्म प्राप्त हुए हैं। शेष 65 लाख मतदाताओं को ड्राफ्ट लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। चुनाव आयोग का दावा है कि इनमें से लगभग 22 लाख मतदाता मृत पाए गए, 35 लाख या तो राज्य से पलायन कर चुके हैं या उनका कोई ठोस पता नहीं है, जबकि करीब 7 लाख लोगों के नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज थे।

ADR की याचिका और अदालत की प्रतिक्रिया

ADR की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर आयोग से यह स्पष्ट करने की मांग की कि इन 65 लाख लोगों के नाम किन आधारों पर हटाए गए हैं और इनका विवरण सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया।भूषण ने दलील दी कि आयोग की ओर से अब तक कोई सूची सार्वजनिक नहीं की गई है और यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि किसने फॉर्म नहीं भरे, किसकी मृत्यु हुई, कौन पलायन कर गया और किन लोगों के नाम दोहराए गए थे। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि बीएलओ ने कुछ नामों को हटाने की सिफारिश की थी, तो क्या उस प्रक्रिया का दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध है? उन्होंने यह भी बताया कि केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जानकारी जारी की गई है, बाकी जगहों पर स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है।

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चुनाव आयोग की सफाई 

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि हटाए गए मतदाताओं की जानकारी सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को प्रदान की जा चुकी है। लेकिन जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि केवल राजनीतिक दलों को सूचना देना पर्याप्त नहीं है। प्रभावित प्रत्येक नागरिक को यह जानकारी मिलनी चाहिए कि उसका नाम क्यों हटाया गया। कोर्ट ने आयोग को आदेश दिया कि वह शनिवार तक विस्तृत हलफनामा दाखिल करे और स्पष्ट करे कि मतदाता नामों की समीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की गई। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को उस पर विचार करने का पर्याप्त समय दिया जाए।

प्रक्रिया पर भी उठे सवाल

वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि आयोग द्वारा स्वीकार किए गए 11 में से 75% से अधिक लोगों ने कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया, फिर भी बीएलओ ने उन्हें सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद उनका नाम हटा दिया गया, जिससे यह प्रक्रिया और अधिक संदिग्ध हो जाती है।  Bihar Voter Verification