अवैध कब्जे हटाओ, हाईवे बचाओ – सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को कड़ा निर्देश

क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
- केंद्र सरकार को राष्ट्रीय राजमार्ग भूमि पर हो रहे अतिक्रमण की पहचान और हटाने के लिए निरीक्षण दल (इंस्पेक्शन टीमें) गठित करनी होंगी।
- राज्यों की पुलिस या अन्य सुरक्षाबलों की निगरानी में इन टीमों से नियमित पेट्रोलिंग कराई जाएगी।
- कोर्ट ने केंद्र से कहा कि तीन महीने के भीतर पूरी कार्रवाई की रिपोर्ट अदालत को सौंपी जाए।
- सरकार को नेशनल हाईवे एक्ट, 2002 और हाईवे एडमिनिस्ट्रेशन रूल्स, 2004 के तहत काम करते हुए एसओपी (Standard Operating Procedure) भी तैयार करनी होगी, ताकि भविष्य में अतिक्रमण से निपटने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश हों।
क्यों जरूरी है यह कदम?
इस याचिका में कोर्ट का ध्यान उस गंभीर समस्या की ओर दिलाया गया था जो अक्सर लोगों की नजरों से ओझल रहती है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर अतिक्रमण के कारण घटती सड़क सुरक्षा और बढ़ते हादसे। दुकानें, ढाबे, अस्थायी निर्माण, अवैध पार्किंग ये सब हाईवे की जमीन पर कब्जा करके न केवल ट्रैफिक की रफ्तार रोकते हैं, बल्कि खतरे को भी बढ़ाते हैं।सामाजिक असर और प्रशासनिक जिम्मेदारी
इस फैसले से यह भी साफ हो गया है कि अब अदालतें सिर्फ आदेश नहीं दे रहीं, बल्कि प्रत्यक्ष जिम्मेदारी तय कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश "कानून का डर नहीं, कर्तव्य की चेतना" की ओर एक बड़ा संकेत है। यह कदम प्रशासन, पुलिस और स्थानीय निकायों को यह स्पष्ट रूप से संदेश देता है कि ढिलाई की अब कोई जगह नहीं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है न सिर्फ सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन के क्षेत्र में, बल्कि कानून व्यवस्था और सरकारी जवाबदेही को लेकर भी। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या केंद्र और राज्य सरकारें इस पर समयबद्ध तरीके से अमल करती हैं या फिर यह निर्देश भी किसी और "फाइल" में दफन हो जाएगा।NEET-PG में सीट ब्लॉकिंग पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, अब नहीं चलेगी चालाकी
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- राज्यों की पुलिस या अन्य सुरक्षाबलों की निगरानी में इन टीमों से नियमित पेट्रोलिंग कराई जाएगी।
- कोर्ट ने केंद्र से कहा कि तीन महीने के भीतर पूरी कार्रवाई की रिपोर्ट अदालत को सौंपी जाए।
- सरकार को नेशनल हाईवे एक्ट, 2002 और हाईवे एडमिनिस्ट्रेशन रूल्स, 2004 के तहत काम करते हुए एसओपी (Standard Operating Procedure) भी तैयार करनी होगी, ताकि भविष्य में अतिक्रमण से निपटने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश हों।
क्यों जरूरी है यह कदम?
इस याचिका में कोर्ट का ध्यान उस गंभीर समस्या की ओर दिलाया गया था जो अक्सर लोगों की नजरों से ओझल रहती है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर अतिक्रमण के कारण घटती सड़क सुरक्षा और बढ़ते हादसे। दुकानें, ढाबे, अस्थायी निर्माण, अवैध पार्किंग ये सब हाईवे की जमीन पर कब्जा करके न केवल ट्रैफिक की रफ्तार रोकते हैं, बल्कि खतरे को भी बढ़ाते हैं।सामाजिक असर और प्रशासनिक जिम्मेदारी
इस फैसले से यह भी साफ हो गया है कि अब अदालतें सिर्फ आदेश नहीं दे रहीं, बल्कि प्रत्यक्ष जिम्मेदारी तय कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश "कानून का डर नहीं, कर्तव्य की चेतना" की ओर एक बड़ा संकेत है। यह कदम प्रशासन, पुलिस और स्थानीय निकायों को यह स्पष्ट रूप से संदेश देता है कि ढिलाई की अब कोई जगह नहीं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है न सिर्फ सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन के क्षेत्र में, बल्कि कानून व्यवस्था और सरकारी जवाबदेही को लेकर भी। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या केंद्र और राज्य सरकारें इस पर समयबद्ध तरीके से अमल करती हैं या फिर यह निर्देश भी किसी और "फाइल" में दफन हो जाएगा।NEET-PG में सीट ब्लॉकिंग पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, अब नहीं चलेगी चालाकी
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