जाने अयोध्या राम मंदिर का स्वामित्व और दान राशि का प्रबंधन

“राम मंदिर का मालिक कौन है, इसका जवाब तो सीधे-साधे है, लेकिन मंदिर में आने वाला हर दान और पैसा किसके पास जाता है, इसका विवरण और भी दिलचस्प है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।”

Ayodhya Ram Temple UP
अयोध्या का राम मंदिर (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar25 Nov 2025 04:31 PM
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राम जन्मभूमि परिसर में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने के बाद एक बार फिर मंदिर की कानूनी मालिकाना हक़ और दान की रकम के प्रबंधन को लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है। आज मंदिर के शिखर पर पावन धर्मध्वज का आरोहण होने जा रहा है, जो इस ऐतिहासिक धरोहर के पूर्णता के एक और चरण को दर्शाता है। इसी बीच यह प्रश्न भी उठ रहा है कि आखिर राम मंदिर का असली मालिक कौन है और यहां आने वाला सारा पैसा किसके पास जाता है।

कानूनी रूप से मालिक ‘रामलला विराजमान’

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के ऐतिहासिक फैसले में विवादित भूमि को रामलला विराजमान का कानूनी स्वामित्व माना। फैसले में कहा गया कि यह भूमि सदियों से रामलला की पूजा-अर्चना का केंद्र रही है, इसलिए मंदिर के वास्तविक मालिक स्वयं भगवान राम के बाल स्वरूप माने जाएंगे।हालांकि मंदिर की प्रशासनिक जिम्मेदारी भगवान राम के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत संस्था श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंपी गई है। यह ट्रस्ट फरवरी 2020 में भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था।

दान राशि कैसे संभाली जाती है?

मंदिर के निर्माण और व्यवस्थाओं के लिए देश-विदेश से भारी मात्रा में दान लगातार आ रहा है। दान देने वालों में आम भक्तों से लेकर बड़ी संस्थाएं तक शामिल हैं। सभी प्रकार के दान—चाहे नकद हो या सोना-चांदी—सीधे ट्रस्ट के बैंक खातों में जमा किए जाते हैं। मंदिर परिसर में बने दान काउंटरों पर बाकायदा रसीदें दी जाती हैं। दान पात्रों को खोलने की प्रक्रिया एसबीआई अधिकारियों और ट्रस्ट सदस्यों की संयुक्त निगरानी में की जाती है ताकि पूरी पारदर्शिता बनी रहे।

कहां खर्च होता है दान का पैसा?

मार्च 2023 के आंकड़ों के अनुसार, ट्रस्ट के विभिन्न खातों में लगभग 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा थी। इनमें से 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा मंदिर निर्माण पर खर्च किए जा चुके हैं। शेष राशि मंदिर की सुरक्षा, रखरखाव, भविष्य के विस्तार, धार्मिक गतिविधियों और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं पर उपयोग की जा रही है। ट्रस्ट का दावा है कि हर एक रुपये का हिसाब-किताब रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है और सभी वित्तीय गतिविधियों की नियमित ऑडिट कराई जाती है।

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जाने फसल में जड़ माहू: नुकसान, पहचान और प्रभावी बचाव के तरीके

जड़ माहू भले छोटा हो, लेकिन फसल के लिए बेहद खतरनाक कीट है। इसकी समय पर पहचान, सही जैविक/रासायनिक नियंत्रण, साफ-सुथरा खेत और स्वस्थ मिट्टी ही फसल को इसके नुकसान से बचाने के सबसे कारगर तरीके हैं।

Root aphid in crops
जड़ माहू जड़ों पर हमला (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar02 Dec 2025 12:59 AM
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भारत में किसानों के लिए जड़ माहू (Root Aphid) एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। यह छोटा लेकिन बेहद खतरनाक कीट पौधों की जड़ों का रस चूसकर फसल की वृद्धि और उत्पादन दोनों को बुरी तरह प्रभावित कर देता है। समय पर पहचान और सही नियंत्रण उपाय अपनाकर इससे बड़े नुकसान से बचा जा सकता है।

जड़ माहू क्या है?

जड़ माहू एक प्रकार का छोटा मुलायम कीट है जो मिट्टी में रहकर पौधों की जड़ों का रस चूसता है। इसका रंग आमतौर पर सफेद, हल्का पीला या हल्का भूरा होता है। यह तेजी से बढ़ता है और पौधे की जड़ प्रणाली को कमजोर कर देता है।

जड़ माहू से होने वाले नुकसान

जड़ माहू पौधों को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाता है:

1. जड़ों का रस चूसकर पौधे को कमजोर करना

  • पौधा पोषक तत्व नहीं ले पाता
  • पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं
  • पौधा छोटा और कमजोर हो जाता है

2. फसल की वृद्धि रुक जाती है

  • पौधों की बढ़वार धीमी पड़ जाती है
  • नई कोपलें निकलना बंद हो जाती हैं

3. उत्पादन में भारी गिरावट

  • अनाज, फल, सब्ज़ियों की क्वालिटी खराब
  • पैदावार 20–40% तक कम हो सकती है

4. फफूंद और अन्य रोगों का खतरा बढ़ता है

जड़ माहू की वजह से जड़ों में घाव हो जाते हैं जिससे

  • Root Rot
  • Fungal infection

का खतरा बढ़ जाता है।

जड़ माहू की पहचान कैसे करें?

यह कीट मिट्टी के अंदर रहता है, इसलिए उसकी पहचान थोड़ी मुश्किल होती है। इन लक्षणों से पहचान कर सकते हैं:

  • पौधे की पत्तियों का पीला पड़ना
  • पौधा मुरझाना, गिरना या सूखना
  • पौधे को हल्का खींचने पर आसानी से उखड़ जाना
  • जड़ों पर सफेद/पीले छोटे-छोटे कीटों का झुंड दिखाई देना
  • जड़ों के पास चींटियों की अधिक मौजूदगी (वे माहुओं की रक्षा करती हैं)

जड़ माहू नियंत्रण के प्रभावी तरीके

1. खेत की अच्छी तैयारी

  • पुराने पौधों के अवशेष हटाएँ
  • मिट्टी की गहरी जुताई करें
  • धूप में गर्मी लगने से अंडे और लार्वा नष्ट होते हैं

2. संतुलित उर्वरक प्रबंधन

  • नाइट्रोजन की अधिक मात्रा से माहू बढ़ते हैं
  • जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें

3. प्राकृतिक उपाय

  • नीम की खली (धोना) मिट्टी में मिलाएँ
  • नीम तेल (5 ml/liter) सिंचाई पानी में मिलाकर दें
  • ट्राइकोडर्मा व अन्य जैविक फफूंद नाशक फायदेमंद हैं

4. रासायनिक नियंत्रण (कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर)

निम्न दवाएँ जड़ माहू पर असरदार मानी जाती हैं:

  • क्लोरोपायरिफॉस 20% EC – 2.5 ml प्रति लीटर पानी
  • थाइमिथोक्जाम 25 WG – बूटी अवस्था में ड्रेंचिंग
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL – 1 ml प्रति लीटर पानी

ध्यान दें: दवा का चयन विशेषज्ञ की सलाह, फसल की अवस्था और मिट्टी के प्रकार के अनुसार करें।

फसल में जड़ माहू से बचाव के उपाय

  • अच्छी जल निकासी प्रणाली
  • खेत में अत्यधिक नमी न बनने दें
  • फसल चक्र अपनाएँ
  • संक्रमित पौधों को तुरंत हटाएँ
  • खेत में चींटियों का नियंत्रण करें
  • *रोगरोधी किस्मों का चयन करें
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भारत की विविध अंतिम संस्कार प्रथाएं, आस्था और परंपरा का संगम

भारत विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की धरती है और इसी विविधता की झलक अंतिम संस्कार की परंपराओं में भी देखने को मिलती है।

Hindu-Muslim-Sikh-Christian funerals
हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई अंतिम संस्कार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar24 Nov 2025 03:11 PM
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बता दें कि अंतिम संस्कार सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि दिवंगत आत्मा के प्रति सम्मान, परिवार के दुख को साझा करने और समाज को एकजुट रखने का माध्यम माना जाता है। अलग-अलग धर्मों में विदाई की विधि भले अलग हो, लेकिन भावनाएं एक ही—सम्मान, शांति और स्मरण।

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार: दाह संस्कार और श्राद्ध की परंपरा

हिंदू परंपरा में अंत्येष्टि आत्मा की परलोक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। यहां दाह संस्कार प्रमुख है, जिसे शरीर से आत्मा की मुक्ति का प्रतीक समझा जाता है। दाह संस्कार के बाद श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य आत्मा की शांति और उसके पोषण से जुड़ा है। यह केवल मृत्यु के तुरंत बाद ही नहीं, बल्कि कई दिनों और वर्षों तक भी निभाए जाते हैं। परिवार एक साथ बैठकर दिवंगत को स्मरण करता है और धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है।

मुस्लिम अंतिम संस्कार: सादगी, समानता और त्वरित दफन

इस्लाम में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया सादगी और पवित्रता से जुड़ी होती है। सबसे पहले गुस्ल किया जाता है, जिसमें परिवार के विश्वसनीय लोग शरीर को सावधानी और सम्मान के साथ धोते हैं। उसके बाद सफेद कपड़े का कफन पहनाया जाता है, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।मस्जिद या घर पर जनाज़े की नमाज़ अदा की जाती है, जिसमें अल्लाह से रहमत और माफी की दुआ मांगी जाती है। इसके बाद आमतौर पर 24 घंटे के भीतर दफन कर दिया जाता है।

सिख धर्म में अंतिम संस्कार: कीर्तन और अरदास के साथ विदाई

सिख परंपरा में अंतिम संस्कार शांत, आध्यात्मिक और बेहद गरिमापूर्ण माना जाता है। अधिकतर सिख परिवार दाह संस्कार करते हैं। अंतिम संस्कार के दौरान संगत और परिवार मिलकर कीर्तन करते हैं और अरदास पढ़कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दुआ करते हैं। इसके बाद ‘अंतिम अरदास’ के साथ परिवार और समुदाय दिवंगत को श्रद्धांजलि देता है।

ईसाई अंतिम संस्कार: प्रार्थना सभा और कब्रिस्तान में दफन

ईसाई समुदाय में अंतिम संस्कार की शुरुआत चर्च में होने वाली प्रार्थना सभा से होती है। परिवार और मित्र दिवंगत व्यक्ति की स्मृतियों को साझा करते हैं और सांत्वना देते हैं। इसके बाद पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में दफनाया जाता है, जो ईश्वर की शरण और शांति का प्रतीक माना जाता है। कई परिवार सातवें दिन, महीने या सालगिरह पर स्मृति सभा आयोजित करते हैं, जहां दिवंगत के जीवन और मूल्यों को याद किया जाता है।