जाने अयोध्या राम मंदिर का स्वामित्व और दान राशि का प्रबंधन
“राम मंदिर का मालिक कौन है, इसका जवाब तो सीधे-साधे है, लेकिन मंदिर में आने वाला हर दान और पैसा किसके पास जाता है, इसका विवरण और भी दिलचस्प है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।”

राम जन्मभूमि परिसर में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने के बाद एक बार फिर मंदिर की कानूनी मालिकाना हक़ और दान की रकम के प्रबंधन को लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है। आज मंदिर के शिखर पर पावन धर्मध्वज का आरोहण होने जा रहा है, जो इस ऐतिहासिक धरोहर के पूर्णता के एक और चरण को दर्शाता है। इसी बीच यह प्रश्न भी उठ रहा है कि आखिर राम मंदिर का असली मालिक कौन है और यहां आने वाला सारा पैसा किसके पास जाता है।
कानूनी रूप से मालिक ‘रामलला विराजमान’
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के ऐतिहासिक फैसले में विवादित भूमि को रामलला विराजमान का कानूनी स्वामित्व माना। फैसले में कहा गया कि यह भूमि सदियों से रामलला की पूजा-अर्चना का केंद्र रही है, इसलिए मंदिर के वास्तविक मालिक स्वयं भगवान राम के बाल स्वरूप माने जाएंगे।हालांकि मंदिर की प्रशासनिक जिम्मेदारी भगवान राम के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत संस्था श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंपी गई है। यह ट्रस्ट फरवरी 2020 में भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था।
दान राशि कैसे संभाली जाती है?
मंदिर के निर्माण और व्यवस्थाओं के लिए देश-विदेश से भारी मात्रा में दान लगातार आ रहा है। दान देने वालों में आम भक्तों से लेकर बड़ी संस्थाएं तक शामिल हैं। सभी प्रकार के दान—चाहे नकद हो या सोना-चांदी—सीधे ट्रस्ट के बैंक खातों में जमा किए जाते हैं। मंदिर परिसर में बने दान काउंटरों पर बाकायदा रसीदें दी जाती हैं। दान पात्रों को खोलने की प्रक्रिया एसबीआई अधिकारियों और ट्रस्ट सदस्यों की संयुक्त निगरानी में की जाती है ताकि पूरी पारदर्शिता बनी रहे।
कहां खर्च होता है दान का पैसा?
मार्च 2023 के आंकड़ों के अनुसार, ट्रस्ट के विभिन्न खातों में लगभग 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा थी। इनमें से 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा मंदिर निर्माण पर खर्च किए जा चुके हैं। शेष राशि मंदिर की सुरक्षा, रखरखाव, भविष्य के विस्तार, धार्मिक गतिविधियों और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं पर उपयोग की जा रही है। ट्रस्ट का दावा है कि हर एक रुपये का हिसाब-किताब रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है और सभी वित्तीय गतिविधियों की नियमित ऑडिट कराई जाती है।
राम जन्मभूमि परिसर में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने के बाद एक बार फिर मंदिर की कानूनी मालिकाना हक़ और दान की रकम के प्रबंधन को लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है। आज मंदिर के शिखर पर पावन धर्मध्वज का आरोहण होने जा रहा है, जो इस ऐतिहासिक धरोहर के पूर्णता के एक और चरण को दर्शाता है। इसी बीच यह प्रश्न भी उठ रहा है कि आखिर राम मंदिर का असली मालिक कौन है और यहां आने वाला सारा पैसा किसके पास जाता है।
कानूनी रूप से मालिक ‘रामलला विराजमान’
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के ऐतिहासिक फैसले में विवादित भूमि को रामलला विराजमान का कानूनी स्वामित्व माना। फैसले में कहा गया कि यह भूमि सदियों से रामलला की पूजा-अर्चना का केंद्र रही है, इसलिए मंदिर के वास्तविक मालिक स्वयं भगवान राम के बाल स्वरूप माने जाएंगे।हालांकि मंदिर की प्रशासनिक जिम्मेदारी भगवान राम के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत संस्था श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंपी गई है। यह ट्रस्ट फरवरी 2020 में भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था।
दान राशि कैसे संभाली जाती है?
मंदिर के निर्माण और व्यवस्थाओं के लिए देश-विदेश से भारी मात्रा में दान लगातार आ रहा है। दान देने वालों में आम भक्तों से लेकर बड़ी संस्थाएं तक शामिल हैं। सभी प्रकार के दान—चाहे नकद हो या सोना-चांदी—सीधे ट्रस्ट के बैंक खातों में जमा किए जाते हैं। मंदिर परिसर में बने दान काउंटरों पर बाकायदा रसीदें दी जाती हैं। दान पात्रों को खोलने की प्रक्रिया एसबीआई अधिकारियों और ट्रस्ट सदस्यों की संयुक्त निगरानी में की जाती है ताकि पूरी पारदर्शिता बनी रहे।
कहां खर्च होता है दान का पैसा?
मार्च 2023 के आंकड़ों के अनुसार, ट्रस्ट के विभिन्न खातों में लगभग 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा थी। इनमें से 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा मंदिर निर्माण पर खर्च किए जा चुके हैं। शेष राशि मंदिर की सुरक्षा, रखरखाव, भविष्य के विस्तार, धार्मिक गतिविधियों और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं पर उपयोग की जा रही है। ट्रस्ट का दावा है कि हर एक रुपये का हिसाब-किताब रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है और सभी वित्तीय गतिविधियों की नियमित ऑडिट कराई जाती है।







