Noida News : गोल्फ कोर्स स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूदकर की आत्महत्या




Punjab Politics जब से कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग हुए और अपनी पार्टी बनाई है, तभी से पंजाब की राजनीति में लगातार बदलाव आ रहे हैं। अब वह भाजपा का दामन थामने जा रहे हैं। कहा जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह किसी भी पार्टी से अलग अपनी जमीनी पकड़ रखते हैं। जिस कारण उनके सामने पार्टियां बौनी साबित होती रही हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा, पंजाब में कैप्टन को एक बड़े शस्त्र के रूप में प्रयोग करने की योजना भी बना रही है। यही वजह है कि कैप्टन के भाजपा में आगमन को बड़ा महतव दिया जा रहा है। इसके अलावा आगामी लोकसभा चुनाव में, पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को परास्त करने के लिए एक दमदार योजना पर भी भाजपा कार्य करना चाहती है।
आपको बता दें कि पिछले दिनों संपन्न हुए विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अलग होकर कैप्टन ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई थी। अब वह भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं तो अपनी पार्टी का विलय भी भाजपा में करवा रहे हैं। कैप्टन के राजनीतिक करियर में यह दूसरी बार है जब वह अपनी पार्टी का विलय करवा रहे हैं। इससे पहले वह ऐसा कांग्रेस के साथ भी कर चुके हैं।
आपको बता दें कि कैप्टन ने अकाली दल से अलग होकर शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) बनाया और उसका 1992 में कांग्रेस में विलय करवाया था। इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। बीते चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद बुरा था। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। यहां तक कि वह खुद अपने गढ़ कहे जाने पटियाला में चुनाव हार गए।
ताजा हालात में सवाल यह है कि कैप्टन का भाजपा में शामिल होना कितना मायने रखता है। कैप्टन के आलोचक अब उन्हें रिटायर हो चुके खिलाड़ी बता रहे हैं। ऐसे में उनका भाजपा का दामन थामना पार्टी के लिए कितना फायदेमंद है।
उनके करीबी लोगों का कहना है कि वह अब भी अपना राजनीतिक महत्व बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा, वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके बेटे और पोते को पंजाब की राजनीति में जगह मिले.।अभी तक ये दोनों राज्य की राजनीति पर कोई छाप नहीं छोड़ पाए हैं।
उधर, भाजपा को उम्मीद है कि कैप्टन के आने से उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदा मिलेगा। क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर पैदा नाराजगी अब खत्म हो चुकी है। यही नहीं अब तक वह अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। लेकिन यह पहला मौका है कि वह अपने दम पर राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाए। भाजपा के लिए यह भी जरूरी है कि वह किसी भी कीमत पर आप को हराए, जिससे कि उसके एक सबसे अक्रामक विरोधी दल को शांत किया जा सके और उसके विजय मार्च को रोका जा सके।
Punjab Politics जब से कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग हुए और अपनी पार्टी बनाई है, तभी से पंजाब की राजनीति में लगातार बदलाव आ रहे हैं। अब वह भाजपा का दामन थामने जा रहे हैं। कहा जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह किसी भी पार्टी से अलग अपनी जमीनी पकड़ रखते हैं। जिस कारण उनके सामने पार्टियां बौनी साबित होती रही हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा, पंजाब में कैप्टन को एक बड़े शस्त्र के रूप में प्रयोग करने की योजना भी बना रही है। यही वजह है कि कैप्टन के भाजपा में आगमन को बड़ा महतव दिया जा रहा है। इसके अलावा आगामी लोकसभा चुनाव में, पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को परास्त करने के लिए एक दमदार योजना पर भी भाजपा कार्य करना चाहती है।
आपको बता दें कि पिछले दिनों संपन्न हुए विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अलग होकर कैप्टन ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई थी। अब वह भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं तो अपनी पार्टी का विलय भी भाजपा में करवा रहे हैं। कैप्टन के राजनीतिक करियर में यह दूसरी बार है जब वह अपनी पार्टी का विलय करवा रहे हैं। इससे पहले वह ऐसा कांग्रेस के साथ भी कर चुके हैं।
आपको बता दें कि कैप्टन ने अकाली दल से अलग होकर शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) बनाया और उसका 1992 में कांग्रेस में विलय करवाया था। इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। बीते चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद बुरा था। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। यहां तक कि वह खुद अपने गढ़ कहे जाने पटियाला में चुनाव हार गए।
ताजा हालात में सवाल यह है कि कैप्टन का भाजपा में शामिल होना कितना मायने रखता है। कैप्टन के आलोचक अब उन्हें रिटायर हो चुके खिलाड़ी बता रहे हैं। ऐसे में उनका भाजपा का दामन थामना पार्टी के लिए कितना फायदेमंद है।
उनके करीबी लोगों का कहना है कि वह अब भी अपना राजनीतिक महत्व बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा, वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके बेटे और पोते को पंजाब की राजनीति में जगह मिले.।अभी तक ये दोनों राज्य की राजनीति पर कोई छाप नहीं छोड़ पाए हैं।
उधर, भाजपा को उम्मीद है कि कैप्टन के आने से उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदा मिलेगा। क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर पैदा नाराजगी अब खत्म हो चुकी है। यही नहीं अब तक वह अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। लेकिन यह पहला मौका है कि वह अपने दम पर राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाए। भाजपा के लिए यह भी जरूरी है कि वह किसी भी कीमत पर आप को हराए, जिससे कि उसके एक सबसे अक्रामक विरोधी दल को शांत किया जा सके और उसके विजय मार्च को रोका जा सके।
