उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री: किस जाति ने कितनी बार संभाली सत्ता की कमान?

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, ठाकुर समाज से 5, जबकि ओबीसी में यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इसी तरह वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री बने और कायस्थ, जाट, लोधी व दलित समाज से एक-एक बार नेतृत्व का अवसर मिला।

उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री
उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री: 75 साल का जातीय ट्रेंड फिर चर्चा में
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar30 Dec 2025 03:41 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय संतुलन की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान राजधानी लखनऊ में भाजपा के ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक के बाद यह मुद्दा फिर सियासी बहस के केंद्र में आ गया है। पार्टी नेतृत्व की ओर से ऐसी बैठकों पर आपत्ति जताए जाने और फिर विधायक पंचानंद पाठक के सोशल मीडिया पर दिए जवाब ने प्रतिनिधित्व बनाम संगठनात्मक अनुशासन की बहस को नई धार दे दी है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के 75 वर्षों के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि लंबे समय तक सत्ता की कमान ब्राह्मण समाज के नेताओं के हाथ रही, लेकिन पिछले तीन दशक से यह समुदाय मुख्यमंत्री पद से दूर है। ऐसे में सवाल उठता है उत्तर प्रदेश में अब तक किस समाज के कितने मुख्यमंत्री बने और किस वर्ग का प्रतिनिधित्व किस दौर में मजबूत रहा?

लखनऊ की बैठक से क्यों गरमाई राजनीति?

23 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से भाजपा विधायक पंचानंद पाठक के सरकारी आवास पर हुई ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने सियासी हलकों में खासा शोर मचा दिया। चर्चा रही कि इस बैठक में बड़ी संख्या में विधायक शामिल हुए, जिसने लखनऊ से लेकर जिलों तक राजनीतिक संदेशों की गूंज बढ़ा दी। इसके तुरंत बाद उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पंकज चौधरी का सार्वजनिक बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने इशारों-इशारों में साफ किया कि इस तरह की अलग-अलग सामाजिक समूहों की बैठकें पार्टी के तय संगठनात्मक ढांचे और अनुशासन के अनुरूप नहीं मानी जातीं। जवाब में विधायक पंचानंद पाठक ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखी, और यहीं से यूपी की राजनीति में ब्राह्मण प्रतिनिधित्व बनाम संगठन में भूमिका की बहस ने नया तूल पकड़ लिया।

उत्तर प्रदेश में किस समाज के कितने मुख्यमंत्री?

आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश की सत्ता की कुर्सी पर कुल 21 मुख्यमंत्री बैठे हैं और यह आंकड़े यूपी की राजनीति की प्रतिनिधित्व-यात्रा की पूरी कहानी कह देते हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, ठाकुर समाज से 5, जबकि ओबीसी में यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इसी तरह वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री बने और कायस्थ, जाट, लोधी व दलित समाज को एक-एक बार नेतृत्व का अवसर मिला। साफ है कि उत्तर प्रदेश के शुरुआती दशकों में सत्ता की कमान ब्राह्मण नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन समय के साथ राजनीतिक धुरी बदली और उत्तर प्रदेश में ताकत का केंद्र ठाकुर नेतृत्व, ओबीसी (खासतौर पर यादव) तथा अन्य सामाजिक समूहों की ओर धीरे-धीरे शिफ्ट होता चला गया।

ब्राह्मण नेतृत्व का दौर

आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत का शुरुआती लंबा दौर कांग्रेस के वर्चस्व के नाम रहा और इसी समय सत्ता की कमान अक्सर ब्राह्मण नेतृत्व के हाथों में दिखी। गोविंद वल्लभ पंत से लेकर सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी तक, कई ऐसे चेहरे रहे जिन्होंने लखनऊ की कुर्सी पर बैठकर प्रदेश की दिशा तय की। खास बात यह कि नारायण दत्त तिवारी ने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला, जबकि गोविंद वल्लभ पंत ने दो बार नेतृत्व किया। आंकड़ों की भाषा में देखें तो करीब 23 वर्षों तक उत्तर प्रदेश की सत्ता पर ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी दर्ज हुई

ठाकुर, यादव और वैश्य समाज का उभार

ब्राह्मण नेतृत्व के लंबे दौर के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में ठाकुर समाज की भी मजबूत मौजूदगी रही। इस वर्ग से त्रिभुवन नारायण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह और कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह से लेकर भाजपा के राजनाथ सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक, कई बड़े नाम लखनऊ की गद्दी तक पहुंचे। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश की राजनीति में ठाकुर मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल जोड़ें तो यह अवधि करीब 17 वर्षों के आसपास बैठती है। इधर मंडल राजनीति के उभार के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता की धुरी धीरे-धीरे ओबीसी राजनीति की ओर शिफ्ट हुई और यादव नेतृत्व एक निर्णायक ताकत बनकर सामने आया। राम नरेश यादव से शुरू होकर मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव तक, इस समाज ने लगभग 13 वर्षों तक शासन की कमान संभाली। वहीं, वैश्य समाज से भी प्रदेश को मुख्यमंत्री मिलेचंद्रभान गुप्ता, बाबू बनारसी दास और राम प्रकाश गुप्ता। इनमें चंद्रभान गुप्ता दो बार मुख्यमंत्री बने, जबकि बाकी नेताओं को एक-एक बार राज्य का नेतृत्व करने का अवसर मिला।

जाट, लोधी, दलित और कायस्थ: एक-एक मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने की कहानी केवल कुछ बड़े सामाजिक समूहों तक सीमित नहीं रही। समय-समय पर अन्य समाजों से भी ऐसे चेहरे उभरे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की सत्ता और राजनीति को नई दिशा दी। कायस्थ समाज से डॉ. सम्पूर्णानंद मुख्यमंत्री बने, जबकि जाट समाज से चौधरी चरण सिंह ने नेतृत्व संभालकर किसान राजनीति को नई धार दी। लोधी समाज से कल्याण सिंह का उभार भी उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा मोड़ माना जाता है। इसी क्रम में दलित समाज से मायावती का नाम उत्तर प्रदेश की सियासत में सबसे प्रभावशाली अध्यायों में गिना जाता है। चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने न सिर्फ दलित नेतृत्व को निर्णायक मंच दिया, बल्कि लखनऊ की सत्ता में बहुजन राजनीति को लंबे समय तक केंद्र में बनाए रखा।

32 साल से ब्राह्मण समाज मुख्यमंत्री पद से दूर क्यों?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 1989 के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंडल–कमंडल के उभार ने सत्ता की पूरी दिशा बदल दी। कांग्रेस का प्रभुत्व तेजी से ढला और उसकी जगह समाजवादी धारा, बसपा तथा भाजपा के विस्तार ने नए सामाजिक गठजोड़ गढ़ दिए। इसी राजनीतिक करवट में ब्राह्मण समाज की भूमिका भी बदलती गई जो नेतृत्व कभी सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचता था, वह धीरे-धीरे रणनीतिक वोटबैंक, संगठन, चुनावी प्रबंधन और सत्ता-तंत्र की दूसरी अहम भूमिकाओं तक सिमटता चला गया। नतीजा यह रहा कि 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में सरकारें कई बार बदलीं, सत्ता की धुरी भी कई बार घूमी लेकिन ब्राह्मण समाज से कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सका। UP News

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उत्तर प्रदेश के दो शहर बनेंगे टेक्नोलॉजी हब, 39 हजार करोड़ से तैयार होंगे डेटा सेंटर

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों के नाम लिखे अपने संदेश के माध्यम से दी है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश को तकनीक, नवाचार और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाने की दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार लगातार काम कर रही है।

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योगी आदित्यनाथ
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar30 Dec 2025 02:38 PM
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UP News : नए साल 2026 की शुरुआत उत्तर प्रदेश के लिए तकनीकी विकास की बड़ी सौगात लेकर आ सकती है। उत्तर प्रदेश में दो आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) शहर विकसित करने की तैयारी की जा रही है। इस बात की जानकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों के नाम लिखे अपने संदेश के माध्यम से दी है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश को तकनीक, नवाचार और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाने की दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार लगातार काम कर रही है।

मुख्यमंत्री का प्रदेशवासियों के नाम संदेश

अपने पत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वर्ष 2025 उत्तर प्रदेश के लिए टेक्नोलॉजी, एआई और डेटा आधारित नवाचार के लिहाज से ऐतिहासिक रहा है। सुशासन और नीतिगत सुधारों के कारण प्रदेश ने देश-विदेश में एक नई पहचान बनाई है और अब ब्रांड यूपी वैश्विक स्तर पर मजबूत हो चुका है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश अब ऐसा राज्य बन चुका है, जहां निवेशक बिना झिझक पूंजी लगा रहे हैं। सुरक्षित नीतियों और मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर के चलते प्रदेश में आईटी और डेटा सेक्टर में तेजी से निवेश बढ़ा है।

युवाओं से विशेष अपील

सीएम योगी ने प्रदेश के युवाओं से आह्वान किया है कि वे 2026 के लिए एक सामाजिक संकल्प लें। उन्होंने कहा कि युवा अपने आसपास के कम से कम पांच बच्चों को कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बुनियादी जानकारी दें और हर सप्ताह एक घंटा ज्ञान साझा करने के लिए जरूर निकालें। मुख्यमंत्री का मानना है कि सरकार और समाज के संयुक्त प्रयास से उत्तर प्रदेश जल्द ही विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में वैश्विक पहचान बनाएगा। उन्होंने दोहराया कि यूपी अब केवल कृषि आधारित राज्य नहीं रहा, बल्कि तेजी से एक डिजिटल पावरहाउस के रूप में उभर रहा है।

39 हजार करोड़ रुपये का निवेश लक्ष्य

राज्य सरकार ने डेटा सेंटर उद्योग में करीब 39,000 करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य तय किया है। वर्तमान में प्रदेश में 5 बड़े हाइपरस्केल डेटा सेंटर पार्क काम करना शुरू कर चुके हैं। इसके साथ ही यूपी के 9 शहरों में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क स्थापित किए गए हैं, जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं।

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योगी कैबिनेट में बदलाव के आसार, इन तीन नामों में एक की दावेदारी मजबूत

पार्टी के अंदरूनी हलकों में यह भी माना जा रहा है कि इन तीन में से कम से कम एक चेहरे को योगी सरकार में मंत्री पद की जिम्मेदारी मिल सकती है और यही वजह है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में नई गर्माहट साफ महसूस की जा रही है।

योगी सरकार में संभावित फेरबदल
योगी सरकार में संभावित फेरबदल
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar30 Dec 2025 02:11 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाओं ने रफ्तार पकड़ ली है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सत्ता गलियारों में संकेत हैं कि अगले महीने योगी कैबिनेट में फेरबदल/विस्तार की पटकथा लिखी जा सकती है। जैसे-जैसे यह संभावना मजबूत हो रही है, वैसे-वैसे मंत्री बनने की दौड़ में शामिल दावेदार भी सक्रिय नजर आने लगे हैं भेंट-मुलाकातों से लेकर अपने-अपने समीकरण साधने तक, हर स्तर पर हलचल बढ़ रही है। इस बार चर्चा का सबसे बड़ा केंद्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश बनकर उभरा है, जहां से तीन नाम सबसे आगे बताए जा रहे हैं। पार्टी के अंदरूनी हलकों में यह भी माना जा रहा है कि इन तीन में से कम से कम एक चेहरे को योगी सरकार में मंत्री पद की जिम्मेदारी मिल सकती है और यही वजह है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में नई गर्माहट साफ महसूस की जा रही है।

मिशन-2027 की तैयारी

भाजपा उत्तर प्रदेश में 2027 की विधानसभा जंग की तैयारियों को नए साल के साथ और तेज़ धार देने के संकेत दे रही है। संगठन में हालिया फेरबदल के बाद अब सियासी नजरें सरकार के भीतर संतुलन, जवाबदेही और परफॉर्मेंस-आधारित बदलाव की संभावनाओं पर टिक गई हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक संदेश साफ है योगी सरकार की टीम को ऐसा आकार देना है जो प्रदेश के हर बड़े क्षेत्र की नब्ज़ भी पकड़े और चुनावी गणित भी साधे।

मुरादाबाद मंडल पर खास नजर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल को लेकर सियासी हलकों में अंदरखाने हलचल तेज हो गई है। चर्चाओं के मुताबिक, आगामी फेरबदल/विस्तार की तस्वीर बनी तो इस इलाके से मंत्रिमंडल में एक नया चेहरा एंट्री ले सकता है। अभी मंडल और आसपास के क्षेत्रों से गुलाब देवी (माध्यमिक शिक्षा) और बलदेव औलख (कृषि राज्यमंत्री) जैसे चेहरे सरकार में मौजूद हैं, लेकिन भाजपा के भीतर यह महसूस किया जा रहा है कि जमीनी संदेश, क्षेत्रीय संतुलन और नए समीकरणों के लिहाज से गणित दोबारा सेट करने की जरूरत है। यही वजह है कि मुरादाबाद मंडल इस वक्त उत्तर प्रदेश की राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में आ गया है।

इन तीन नामों पर रहेगी सभी की नजर 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संभावित मंत्री चेहरों को लेकर चल रही चर्चाओं में सबसे आगे भूपेंद्र चौधरी का नाम रखा जा रहा है। पार्टी के भीतर यह आकलन है कि उनका राजनीतिक कद और जाट बेल्ट में पकड़ भाजपा के लिए रणनीतिक तौर पर अहम साबित हो सकती है, इसलिए उन्हें दोबारा कैबिनेट में बड़ी जिम्मेदारी देने का विकल्प खुला रखा गया है। संदेश साफ माना जा रहा है पश्चिमी यूपी की जाट पट्टी को साधने के साथ संगठन में भरोसे और चुनावी तैयारी को नई धार देना।

इसी बीच, मुरादाबाद के सियासी समीकरणों में आकाश सक्सेना का नाम भी तेजी से उभरकर सामने आया है। दलील यह दी जा रही है कि जिन सीटों पर भाजपा ने कड़े मुकाबले में बढ़त बनाकर अपना आधार मजबूत किया, वहां से उभरते नेतृत्व को आगे लाकर पार्टी अपने वोट-बेस को और स्थायी करना चाहती है—यही वजह है कि आकाश को लेकर चर्चा लगातार गर्म होती जा रही है। तीसरे दावेदार के तौर पर ठाकुर रामवीर सिंह का नाम लिया जा रहा है, जिनकी जीत को पार्टी के भीतर कई मंचों पर “मॉडल परफॉर्मेंस” के रूप में पेश किए जाने की बातें आती रही हैं। चर्चा है कि रिकॉर्ड जीत और क्षेत्रीय संदेश दोनों लिहाज से भाजपा उन्हें सरकार में भूमिका देकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक संकेत और मजबूत कर सकती है।

कई मंत्रियों की बढ़ी बेचैनी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक और चर्चा ने हलचल बढ़ा दी है क्या बड़े स्तर पर परिवर्तन की कोई योजना है? इसी कयास ने कई मौजूदा मंत्रियों की बेचैनी बढ़ा दी है, जबकि कई विधायकों की उम्मीदों को पंख लग गए हैं। पार्टी और सरकार के भीतर यह भी संकेत मिल रहे हैं कि कुछ विभागों के कामकाज को लेकर शिकायतें और फीडबैक शीर्ष स्तर तक पहुंचा है। ऐसे में विस्तार सिर्फ “नई एंट्री” नहीं, बल्कि परफॉर्मेंस के आधार पर बदलाव की दिशा में भी देखा जा रहा है। गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि कैबिनेट समीकरणों को साधने के लिए दलित समाज से जुड़े किसी चेहरे को तीसरे डिप्टी सीएम के तौर पर आगे लाया जा सकता है। हालांकि इस पर कोई आधिकारिक संकेत नहीं है, लेकिन चुनावी वर्ष की ओर बढ़ रहे उत्तर प्रदेश में ऐसे कयास अक्सर रणनीतिक संकेतों से जोड़कर देखे जाते हैं। UP News

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