Kathaputalee Dance : भारत मे लुप्त होती कठपुतली कलाये एक लोककला होने के साथ मनोरंजन और प्रचार-प्रसार का माध्यम भी है । किन्तु बदलते जमाने के साथ आधुनिक मनोरंजन के नये साधन जैसे सिनेमा और मोबाईल फोन के आने से सदियों पुरानी यह लोककला विलुप्त होने के कगार पर है ।
कठपुतली कला का इतिहास ईसा पूर्व चौथी शताब्दी का है ।कुछ लोग मानते है की स्वयं शिव जी ने देवी पार्वती का दिल बहलाने के लिये काठ की मूर्ति मे प्रवेश कर इस कला की शुरुआत की थी ।
Kathaputalee Dance :
महाराष्ट्र राज्य को इस कला की जन्मभूमि माना जाता है ।आधुनिक युग मे लोग घरो और सिनेमा घरों मे अपना मनोरंजन करना ज्यादा पसंद करते हैं । इस बदलते परिवेश के कारण और वैज्ञानिक युग मे इस कला को क्षति पहुंच रही है ।इस लोककला के कदरदान की कारण कारीगर अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ने को मजबूर हैं।विदेशी लोग इस कला को काफी पसंद करते है और स्मृती के रूप मे यहाँ से इन्हें खरीद कर ले जाते है ।बड़े शोरुम के मालिक इन्हे कम दाम मे खरीद कर ऊँचे दामो मे बेचते हैं और मुनाफ़ा कमाते है ।
जिविकोपर्जन मे आ रही समस्याओं के कारण कठपुतली कलाकार गांव कस्बो से शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है ।आज के युग मे इस लोककला की कम होती लोकप्रियता के कारण नयी पीढ़ी इस कला से ज्यादा नहीं जुड़ पा रही है ।
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पुरानी फिल्मो और सिनेमा में कठपुतली कला का एक अहम हिस्सा रहा है ।बदलते वक्त के साथ ये कला सिनेमा के साथ अपनी पहचान खोती नज़र आ रही है ।फिर भी कलाकारो को यही उम्मीद है कि आज नही तो कल उनकी इस कला को खोई हुई पहचान और अतीत की विरासत वापस मिलेगी ।