खाटू श्याम का वह इतिहास जिसे उनके भक्त नहीं जानते हैं
इसी महासमर की पृष्ठभूमि में एक ऐसा नाम उभरता है, जिसने बिना युद्ध लड़े इतिहास में अमरता पा ली उस योद्धा का नाम था बरबरीक। बरबरीक, घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र थे जिनके पास वह शक्ति थी जो युद्ध का परिणाम पलट सकती थी। उनके पास तीन बाणों की सिद्धि थी।

Khatu Shyam : खाटू श्याम की कीर्ति और प्रसिद्धी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में खाटू श्याम की प्रसिद्धी का आलम यह है कि भारत के कोने-कोने से ही नहीं विदेशों से भी खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए भक्तगण राजस्थान में स्थापित भगवान खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए हर रोज बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। खाटू श्याम की इतनी प्रसिद्धी के बावजूद खाटू श्याम का पूरा इतिहास उनके भक्तगण नहीं जानते हैं। हम यहां भगवान खाटू श्याम का पूरा इतिहास आपको बता रहे हैं।
हारे का सहारा बनने के संकल्प ने बनाया उन्हें भगवान
दरअसल खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल के महान योद्धा तथा पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़े दानवीर बर्बरीक का इतिहास है। जो हारे का सहारा बनने के संकल्प के कारण अमर हो गए हैं। बर्बरीक का इतिहास महाभारत से शुरू होता है। महाभारत का युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्रों की टकराहट नहीं था, वह चेतना, अहंकार और समर्पण की भी परीक्षा थी। इसी महासमर की पृष्ठभूमि में एक ऐसा नाम उभरता है, जिसने बिना युद्ध लड़े इतिहास में अमरता पा ली उस योद्धा का नाम था बरबरीक। बरबरीक, घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र थे जिनके पास वह शक्ति थी जो युद्ध का परिणाम पलट सकती थी। उनके पास तीन बाणों की सिद्धि थी। एक बाण से शत्रु की पहचान, दूसरे से संहार और तीसरे से बाणों की वापसी। ऐसी शक्ति जिसके सामने बड़े-बड़े महारथी भी ठहर न पाते थे। लेकिन प्रश्न यह नहीं था कि बरबरीक कितने शक्तिशाली थे, प्रश्न यह था कि वे उस शक्ति के साथ क्या करते हैं। जब महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था, तब बरबरीक केवल दर्शक बनकर कुरुक्षेत्र पहुँचे। उनका संकल्प था - जो पक्ष कमजोर होगा, वे उसी का साथ देंगे। यही संकल्प धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता था। श्रीकृष्ण यह भली-भांति समझ चुके थे।
जब भगवान कृष्ण ने ली बर्बरीक की परीक्षा
एक साधारण ब्राह्मण के वेश में श्रीकृष्ण बरबरीक के पास पहुँचे और पूछा— "यदि तुम सबसे बड़ा दान दे सको, तो क्या दोगे?" यह कोई साधारण प्रश्न नहीं था। यह वीरता की नहीं, चेतना की परीक्षा थी। बरबरीक ने न कोई शर्त रखी, न कोई मोह दिखाया। शांत स्वर में बोले— "मेरा सिर।" यही वह क्षण था जब योद्धा से अधिक, एक साधक का जन्म हुआ। "वस्तुओं का त्याग आसान है, पर स्वयं का त्याग सबसे कठिन।" बरबरीक ने केवल अपना सिर नहीं दिया, उन्होंने —अपनी पहचान छोड़ी, अपनी शक्ति छोड़ी, अपने ‘मैं’ को त्याग दिया। यही कारण है कि बर्बरीक का सिर दान इतिहास का सबसे बड़ा दान माना जाता है।
भगवान ने दिया खाटू श्याम यानि बर्बरीक को साक्षी बनने का वरदान
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का सिर काटा नहीं, बल्कि उन्हें अमर बना दिया। र्बबरीक को वरदान मिला कि वे पूरे युद्ध को ऊपर से देखेंगे — न किसी पक्ष के, न किसी विजय के, बल्कि सत्य के साक्षी बनकर। बर्बरीक ने साक्षी बनकर अपने सिर के द्वारा महाभारत का पूरा युद्ध देखा और वें हमेशा के लिए अमर हो गए। बर्बरीक के त्याग, बलिदान, भक्ति और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलियुग में वे "श्याम" नाम से पूजे जाएंगे और हर दुखी, निराश और पीडि़त व्यक्ति के सहारा बनेंगे। तभी से उन्हें "हारे का सहारा श्याम" कहा जाता है। वहीं बर्बरीक राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में स्थापित मंदिर में खाटू श्याम के रूप में पूजे जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि खाटू श्याम जी के दरबार में जो भी सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। भक्त मानते हैं कि श्याम बाबा केवल सुखी लोगों की नहीं, बल्कि उन लोगों की सुनते हैं जो कठिनाइयों और दुखों में होते हैं। वे हमेशा हार मानने वालों को नई उम्मीद और शक्ति देते हैं। इसलिए उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है।
खाटू श्याम के मंदिर के आस-पास सब कुछ मौजूद है
खाटू श्याम जी जाने वाले भक्तों के लिए सस्ते और आरामदायक ठहरने के कई विकल्प उपलब्ध हैं। मंदिर के आसपास कई धर्मशालाएं और आश्रम हैं जहां बहुत ही कम दामों में रुकने की सुविधा मिल जाती है। खाटू श्याम मंदिर धर्मशाला, श्री श्याम सेवा समिति धर्मशाला और अग्रवाल धर्मशाला जैसी जगहें साफ-सुथरी और सुविधाजनक हैं। इसके अलावा, खाटू बाजार और मंदिर रोड के पास छोटे होटल और लॉज भी मिल जाते हैं, जहां बजट यात्रियों के लिए बढिय़ा व्यवस्था मौजूद है। खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन है, जो लगभग 17 किलोमीटर दूर है। रींगस से आप टैक्सी, जीप या बस से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा यहां से करीब 80 किलोमीटर दूर है, जहां से सीकर या रींगस तक बस या टैक्सी उपलब्ध रहती है। सडक़ मार्ग से भी खाटू श्याम आसानी से पहुंचा जा सकता है क्योंकि यह जयपुर, दिल्ली और सीकर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। Khatu Shyam
Khatu Shyam : खाटू श्याम की कीर्ति और प्रसिद्धी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में खाटू श्याम की प्रसिद्धी का आलम यह है कि भारत के कोने-कोने से ही नहीं विदेशों से भी खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए भक्तगण राजस्थान में स्थापित भगवान खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए हर रोज बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। खाटू श्याम की इतनी प्रसिद्धी के बावजूद खाटू श्याम का पूरा इतिहास उनके भक्तगण नहीं जानते हैं। हम यहां भगवान खाटू श्याम का पूरा इतिहास आपको बता रहे हैं।
हारे का सहारा बनने के संकल्प ने बनाया उन्हें भगवान
दरअसल खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल के महान योद्धा तथा पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़े दानवीर बर्बरीक का इतिहास है। जो हारे का सहारा बनने के संकल्प के कारण अमर हो गए हैं। बर्बरीक का इतिहास महाभारत से शुरू होता है। महाभारत का युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्रों की टकराहट नहीं था, वह चेतना, अहंकार और समर्पण की भी परीक्षा थी। इसी महासमर की पृष्ठभूमि में एक ऐसा नाम उभरता है, जिसने बिना युद्ध लड़े इतिहास में अमरता पा ली उस योद्धा का नाम था बरबरीक। बरबरीक, घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र थे जिनके पास वह शक्ति थी जो युद्ध का परिणाम पलट सकती थी। उनके पास तीन बाणों की सिद्धि थी। एक बाण से शत्रु की पहचान, दूसरे से संहार और तीसरे से बाणों की वापसी। ऐसी शक्ति जिसके सामने बड़े-बड़े महारथी भी ठहर न पाते थे। लेकिन प्रश्न यह नहीं था कि बरबरीक कितने शक्तिशाली थे, प्रश्न यह था कि वे उस शक्ति के साथ क्या करते हैं। जब महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था, तब बरबरीक केवल दर्शक बनकर कुरुक्षेत्र पहुँचे। उनका संकल्प था - जो पक्ष कमजोर होगा, वे उसी का साथ देंगे। यही संकल्प धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता था। श्रीकृष्ण यह भली-भांति समझ चुके थे।
जब भगवान कृष्ण ने ली बर्बरीक की परीक्षा
एक साधारण ब्राह्मण के वेश में श्रीकृष्ण बरबरीक के पास पहुँचे और पूछा— "यदि तुम सबसे बड़ा दान दे सको, तो क्या दोगे?" यह कोई साधारण प्रश्न नहीं था। यह वीरता की नहीं, चेतना की परीक्षा थी। बरबरीक ने न कोई शर्त रखी, न कोई मोह दिखाया। शांत स्वर में बोले— "मेरा सिर।" यही वह क्षण था जब योद्धा से अधिक, एक साधक का जन्म हुआ। "वस्तुओं का त्याग आसान है, पर स्वयं का त्याग सबसे कठिन।" बरबरीक ने केवल अपना सिर नहीं दिया, उन्होंने —अपनी पहचान छोड़ी, अपनी शक्ति छोड़ी, अपने ‘मैं’ को त्याग दिया। यही कारण है कि बर्बरीक का सिर दान इतिहास का सबसे बड़ा दान माना जाता है।
भगवान ने दिया खाटू श्याम यानि बर्बरीक को साक्षी बनने का वरदान
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का सिर काटा नहीं, बल्कि उन्हें अमर बना दिया। र्बबरीक को वरदान मिला कि वे पूरे युद्ध को ऊपर से देखेंगे — न किसी पक्ष के, न किसी विजय के, बल्कि सत्य के साक्षी बनकर। बर्बरीक ने साक्षी बनकर अपने सिर के द्वारा महाभारत का पूरा युद्ध देखा और वें हमेशा के लिए अमर हो गए। बर्बरीक के त्याग, बलिदान, भक्ति और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलियुग में वे "श्याम" नाम से पूजे जाएंगे और हर दुखी, निराश और पीडि़त व्यक्ति के सहारा बनेंगे। तभी से उन्हें "हारे का सहारा श्याम" कहा जाता है। वहीं बर्बरीक राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में स्थापित मंदिर में खाटू श्याम के रूप में पूजे जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि खाटू श्याम जी के दरबार में जो भी सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। भक्त मानते हैं कि श्याम बाबा केवल सुखी लोगों की नहीं, बल्कि उन लोगों की सुनते हैं जो कठिनाइयों और दुखों में होते हैं। वे हमेशा हार मानने वालों को नई उम्मीद और शक्ति देते हैं। इसलिए उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है।
खाटू श्याम के मंदिर के आस-पास सब कुछ मौजूद है
खाटू श्याम जी जाने वाले भक्तों के लिए सस्ते और आरामदायक ठहरने के कई विकल्प उपलब्ध हैं। मंदिर के आसपास कई धर्मशालाएं और आश्रम हैं जहां बहुत ही कम दामों में रुकने की सुविधा मिल जाती है। खाटू श्याम मंदिर धर्मशाला, श्री श्याम सेवा समिति धर्मशाला और अग्रवाल धर्मशाला जैसी जगहें साफ-सुथरी और सुविधाजनक हैं। इसके अलावा, खाटू बाजार और मंदिर रोड के पास छोटे होटल और लॉज भी मिल जाते हैं, जहां बजट यात्रियों के लिए बढिय़ा व्यवस्था मौजूद है। खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन है, जो लगभग 17 किलोमीटर दूर है। रींगस से आप टैक्सी, जीप या बस से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा यहां से करीब 80 किलोमीटर दूर है, जहां से सीकर या रींगस तक बस या टैक्सी उपलब्ध रहती है। सडक़ मार्ग से भी खाटू श्याम आसानी से पहुंचा जा सकता है क्योंकि यह जयपुर, दिल्ली और सीकर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। Khatu Shyam













