होलिका दहन 2024 पर रहेगा भद्रा का साया, जानें कब करें होलिका दहन पूजन 

HOLIKA
Holika Dahan 2024
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 09:58 PM
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Holika Dahan 2024 : रंगों के त्योहार होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. इस समय पर भद्रा का विचार भी किया जाता है. भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान वर्जित होता है. ऎसे में होलिका दहन का अपना धार्मिक महत्व है जिसमें भद्रा का विचार महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि होलिका दहन से बुरी शक्तियों का नाश होता है. इसलिए सभी को होलिका दहन अवश्य देखना चाहिए. होलिका दहन पंचाग के अनुसार होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है.

होलिका दहन 2024 भद्रा समय

इस बार होलिका के दिन भद्रा का भी साया है.  24 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. 24 मार्च को सुबह के समय 09:56 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है और इसके साथ ही भद्रा भी आरंभ होगी.

होली 2024 में मृत्यु और पाताल लोक की भद्रा 

भद्रा का असर रात्रि 23:13 मिनट तक रहने वाला होगा. इस बार आने वाली यह भद्रा मृत्यु एवं पाताल लोक की है. इस कारण भद्रा खत्म होने के बाद होलिका दहन किया जाना अनुकूल रहेगा.  भद्रा के बाद ही विधिवत पूजा करनी चाहिए, इसके बाद होलिका दहन करना चाहिए.

ज्योतिष अनुसार भद्रा का प्रभाव 

ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को अशुभ समय कहा जाता है. भद्रा के अवसर पर, त्योहार तब तक नहीं मनाया जाता जब तक कि यह समाप्त न हो जाए. इस योग के दुष्प्रभाव का इतना भय रहता है जिसके द्वारा कष्टों का असर भय अधिक देता है. इस साल भद्रा के कारण होलिका दहन भी प्रभावित रहेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य सफल नहीं हो पाता है और उसके शुभ प्रभावों में कोई न कोई बाधा अवश्य आती है. ऐसा कहा जाता है कि भद्रा का जन्म राक्षसों को मारने के लिए हुआ था. भद्रा न केवल मनुष्यों अपितु देवताओं के लिए भी भय प्रदान करने वाली मानी गई है. इनका व्यक्तित्व दूसरों में डर पैदा करता है. भद्रा को ज्योतिष में एक बहुत विपरीत मुहूर्त कहा गया है.

शास्त्रों में भद्रा का स्वरुप Holika Dahan 2024

भद्रा का स्वरुप काफी विकराल भी माना गया है. भद्रा की उत्पत्ति ही विनाश और उत्पात का संकेत देनेन वाली बताई गई है. भद्रा को काले रंग की और बड़े दांत और लंबे बाल वाली ऎसी भयभीत कर देने वाला रुप हैं जिसके द्वारा कार्यों में विनाश की स्थिति देखाई देती है. शास्त्रों में वर्णित है कि भद्रा अपने जन्म से ही उद्दंड स्वभाव की थी. इस कारण से शुभ मुहूर्त में इसका निषेध रहा है. इन कारणों से भद्रा की समाप्ति के पश्चात ही होलिका पूजन करना अनुकूल माना गया है. इस वर्ष होलिका दहन के लिए रात्रि 23:13 के बाद का समय ही अधिक अनुकूल होगा.

भारत में खूब होती थी कामदेव की पूजा, मिली है अनोखी मूर्ति

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भारत में खूब होती थी कामदेव की पूजा, मिली है अनोखी मूर्ति

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Kamdev News
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 09:31 PM
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Kamdev News : काम यानि रति क्रिया जिसे अंग्रेजी भाषा में (Sex) का नाम दिया है। काम कहें अथवा सेक्स यह विषय हमेशा से ही मानव जाति की रूचि का विषय रहा है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवता तथा भगवान हुए हैं। वैसे ही सेक्स के भी देवता का नाम तमाम धर्म ग्रंथों में वर्णित है। सेक्स यानि काम के देवता का नाम कामदेव (Kamdev ) था। भगवान शिव द्वारा काम (Sex) के देवता कामदेव (Kamdev ) को भस्म करने की कहानी तो पूरे भारत में प्रचलित है। इन्हीं कामदेव (Kamdev ) की भारत में खूब पूजा होती थी। कामदेव की पूजा के इतिहास (History) को समझने के लिए हम आपको भारत के पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड ले चलते हैं।

कामदेव को पूजते थे पहाड़ के लोग

सेक्स के देवता कामदेव की पूजा की कहानी जानने के लिए हम आपको पहाड़ की तरफ ले आए हैं। यहां घुमावदार रास्तों पर चलते हुए कई बार लगता है कि बस, अब आगे नहीं जा सकते। सामने एक पहाड़ रास्ता रोके खड़ा है, लेकिन जब आगे बढ़ते हैं तो वह सामने से हटता दिखता है, एक नया रास्ता दिखाते हुए। हिमालय की दुनिया, जो रहस्य, रोमांच, मिथक और किस्सों से भरी पड़ी है। इसी दुनिया का हिस्सा है कत्यूरी घाटी। उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में पड़ती है यह जगह। कभी यह इलाका कत्यूरी राजवंश की राजधानी हुआ करता था। तब इसका नाम था कार्तिकयपुरम। कत्यूरी राजाओं ने घाटी के पास ही गोमती नदी के किनारे एक शहर बसाया, बैजनाथ। शिव, गणेश, पार्वती, कुबेर, सूर्य और ब्रह्मा के मंदिर है यहां। कत्यूरी वंश की शुरुआत को लेकर एक असमंजस है। कुछ जानकारी बताती है कि इनकी जड़े कभी हिमालय पर राज करने वाले कुणिन्द राजवंश से निकलीं, जबकि एक जानकारी इन्हें शकों से जोड़ती है। आठवीं शताब्दी के मध्य से लेकर अगले करीब चार सौ बरसों तक कत्यूरी राजाओं ने उत्तराखंड पर शासन किया। इस दरम्यान उन्होंने बैजनाथ के मंदिरों जैसे तोहफे दिए, जो उनकी पहचान बन गए। उसी समय की एक मूर्ति इस पहचान को नई रोशनी में दिखाती है।

Kamdev News :

बैजनाथ के पास ही एक गांव है गढ़सेर। यहां मंदिरों के खंडहरों में खुदाई के दौरान 1984 में एक मूर्ति मिली। दुर्लभ और इकलौती। यह मूर्ति थी कामदेव की। ग्रीन स्टोन से बनी। इसमें कामदेव को चतुर्भुज यानी चार हाथों वाला दर्शाया गया है। पूरे खिले हुए कमल के फूल पर बैठे हैं वह। उनके एक हाथ में पुष्प शर है यानी फूलों का बाण, एक में उनका खास धनुष है फूलों या गन्ने का बना हुआ और एक में फूल। एक हाथ में वह ध्वज थामे हैं, जिस पर मगरमच्छ अंकित है। [caption id="attachment_149041" align="aligncenter" width="800"]Kamdev News Kamdev News[/caption] कामदेव के दोनों ओर त्रिभंग मुद्रा में दो स्त्रियां खड़ी हैं और आसन के पास है घोड़े जैसे मुख वाला एक जीव। ये सारे चिह्न मत्स्य पुराण में दर्शाए गए कामदेव से मिलते हैं। माना जाता है कि मूर्ति में जो दो स्त्रियां दिख रही हैं, वे उनकी पत्नी रति और प्रीति होगी। यह मूर्ति इसलिए चौंकाती है, क्योंकि कामदेव से जुड़ी कथाएं तो बहुत है, उनसे जुड़े उत्सव भी मनाए जाते हैं, लेकिन उनकी बहुत मूर्तियां नहीं मिलती और न ही मंदिर। इस खोज से जुड़े भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व डीजी राकेश तिवारी के मुताबिक, 'यह मूर्ति नौवीं से 10वीं शताब्दी के बीच की हो सकती है। जहां यह मिली, वहां मंदिरों के अवशेष हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि हजार साल पहले उत्तराखंड में कामदेव की पूजा होती थी।'

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नीरस होती, होली की मस्ती,  रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली

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Holi 2024
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 07:23 PM
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Holi 2024 : होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते रहे हैं। होली (Holi) के दिन सभी बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते थे। लेकिन सामाजिक भाईचारे और आपसी प्रेम और मेलजोल का होली का यह त्याेहार भी अब बदलाव का दौर देख रहा है। फाल्गुन की मस्ती का नजारा अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। कुछ सालों से फीके पड़ते होली के रंग अब उदास कर रहे हैं। शहर के बुजुर्गों का कहना है कि ‘ न हंसी- ठिठोली, न हुड़दंग, न रंग, न ढप और न भंग’ ऐसा क्या फाल्गुन? न पानी से भरी ‘खेली’ और न ही होली का .....रे का शोर। अब कुछ नहीं, कुछ घंटों की रंग-गुलाल के बाद सब कुछ शांत। होली की मस्ती में अब वो रंग नहीं रहे। आओ राधे खेला फाग होली आई....ताम्बा पीतल का मटका भरवा दो...सोना रुपाली लाओ पिचकारी...के स्वर धीरे धीरे धीमे हो गए हैं।
फाल्गुन लगते ही होली का हुड़दंग शुरू हो जाता था। मंदिरों में भी फाल्गुन आते ही ‘फाग’ शुरू हो जाता था। होली के लोकगीत गूंजते थे। शाम होते ही ढप-चंग के साथ जगह-जगह फाग के गीतों पर पारंपरिक नृत्य की छटा होली के रंग बिखेरती थी। होली खेलते समय पानी की खेली में लोगों को पकडक़र डाल दिया जाता था। कोई नाराजगी नहीं, सब कुछ खुशी-खुशी होता था। वसन्त पंचमी से होली की तैयारियां करते थे। चौराहो पर समाज के नोहरे व मंदिरों में चंग की थाप के साथ होली के गीत गूंजते।  रात को चंग की थाप पर गैर नृत्य का आकर्षण था। बाहर से फाल्गुन के गीत व रसिया गाने वाले रात में होली की मस्ती में गैर नृत्य करते थे।
[caption id="attachment_148935" align="aligncenter" width="800"]Holi 2024 Holi 2024[/caption]
पहले की होली और आज की होली में अंतर आ गया है, कुछ साल पहले होली के पर्व को लेकर लोगों को उमंग रहता था, आपस में प्रेम था। किसी के भी प्रति द्वेष भाव नहीं था। आपस में मिल कर लोग प्रेम से होली खेलते थे।  मनोरंजन के अन्य साधानों के चलते लोगों की परंपरागत लोक त्यौहारों के प्रति रुचि कम हुई है। इसका कारण लोगों के पास समय कम होना है। होली आने में महज कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन शहर में होली के रंग कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। एक माह तो दूर रहा अब तो होली की मस्ती एक-दो दिन भी नहीं रही। मात्र आधे दिन में यह त्योहार सिमट गया है। रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली।
जैसे-जैसे परंपराएं बदल रही हैं, रिश्‍तों का मिठास खत्‍म होता जा रहा है। जहां तक होली का सवाल है तो अब मोबाइल और इंटरनेट पर ही ‘Happy Holi’ शुरू होती है और खत्‍म हो जाती है। अब पहले जैसा वो हर्षोल्‍लास नहीं रह गया है। पहले बच्चे टोलियां बनाकर गली-गली में हुड़दंग मचाते थे। होली के 10-12 दिन पहले ही मित्रों संग होली का हुड़दंग और गली-गली होली का चंदा इकट्ठा करना और किसी पर बिना पूछे रंग उड़ेल देने से एक अलग प्‍यार दिखता था। इस दौरान गाली देने पर भी लोग उसे हंसी में उड़ा देते थे। अब तो लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।

Holi 2024

पहले परायों की बहू-बेटियों को लोग बिल्कुल अपने जैसा समझते थे। पूरा दिन घरों में पकवान बनते थे और मेहमानों की आवभगत होती थी। अब तो सबकुछ बस घरों में ही सिमट कर रह गया है। आजकल तो मानों रिश्तों में मेल-मिलाप की कोई जगह ही नहीं रह गई हो। मन आया तो औपचारिकता में फोन पर हैप्‍पी होली कहकर इतिश्री कर लिए। अब रिश्‍तों में वह मिठास नहीं रह गया है। यही वजह है कि लोग अपनी बहू-बेटियों को किसी परिचित के यहां जाने नहीं देते। पहले घर की लड़कियां सबके घर जाकर खूब होली की हुल्‍लड़ मचाती थीं। अब माहौल ऐसा हो गया है कि यदि कोई लड़की किसी रिश्‍तेदार के यहां ही ज्‍यादा देर तक रुक गई तो परिवार के लोग चिंतित हो जाते हैं कि क्‍यों इतना देर हो गया। तुरंत फोन करके पूछने लगते हैं कि क्‍या कर रही हो, तुम जल्‍दी घर आओ। क्‍यों अब लोगों को रिश्‍तों पर भी उतना भरोसा नहीं रह गया है।
दूसरी ओर, होली  (Holi) के दिन खान-पान में भी अब अंतर आ गया है। गुझि‍या, पूड़ी-कचौड़ी, आलू दम, महजूम (खोवा) आदि मात्र औपचारिकता रह गई है। अब तो होली के दिन भी मेहमानों को कोल्‍ड ड्रिंक्‍स और फास्‍ट फूड जैसी चीजों को परोसा जाने लगा है। वहीं, होलिका के चारों तरफ सात फेरे लेकर अपने घर के सुख शांति की कामना करना, वो गोबर के विभिन्न आकृति के उपले बनाना, दादी-नानी का मखाने वाली माला बनाना, रंग-बिरंगे ड्रेसअप में अपनी सखी-सहेलियों संग घर-घर मिठाई बांटना, गेहूं के पौधे भूनना और होली के लोकगीतों को गाना। अब यह सब परंपराएं तो मानो नाम की ही रह गई हैं।
[caption id="attachment_148934" align="aligncenter" width="800"]Holi 2024 Holi 2024[/caption]
 होली (Holi) रोपण के बाद से होली की मस्ती शुरू हो जाती थी। छोटी बच्चियां गोबर से होली के लिए वलुडिये बनाती थी। उसमें गोबर के गहने, नारियल, पायल, बिछियां आदि बनाकर माला बनाती थी। अब यह सब नजर नही आता है। होली से पूर्व घरों में टेशु व पलाश के फूलों को पीस कर रंग बनाते थे। महिलाएं होली के गीत गाती थी। होली के दिन गोठ भी होती थी जिसमें चंग की थाप पर होली के गीत गाते थे। होली रोपण से पूर्व बसंत पंचमी से फाग के गीत गूंजने लगते थे। आज के समय कुछ मंदिरों में ही होली के गीत सुनाई देते हैं। होली के दिन कई समाज के लोग सामूहिक होली खेलने निकलते थे। साथ में ढोलक व चंग बजाई जाती थी, अब वह मस्ती-हुड़दंग कहां?
अब होली (Holi) केवल परंपरा का निर्वहन रह गया है। हाल के समय में समाज में आक्रोश और नफरत इस कदर बढ़ गई है कि सभ्रांत परिवार होली के दिन निकलना नहीं चाहते हैं। लोग साल दर साल से जमकर होली मनाते आ रहे हैं। इस पर्व का मकसद कुरीतियों व बुराइयों का दहन कर आपसी भाईचारा को कायम रखना है। आज भारत देश मे समस्यायों का अंबार लगा हुआ है। बात सामाजिक असमानता की करें, इसके कारण समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, नैतिकता खत्म होती जा रही हैं। कभी होली पर्व का अपना अलग महत्व था, होलिका दहन पर पूरे परिवार के लोग एक साथ मौजूद रहते थे। और होली के दिन एक दूसरे को रंग लगा व अबीर उड़ा पर्व मनाते थे। लोगों की टोली भांग की मस्ती में फगुआ गीत गाते व घर-घर जाकर होली का प्रेम बांटते थे।
 अब हालात यह है कि होली के दिन 40 फीसदी आबादी खुद को कमरे में बंद कर लेती है। हर माह, हर ऋतु किसी न किसी त्योहार के आने का संदेसा लेकर आती है और आए भी क्यों न, हमारे ये त्योहार हमें जीवंत बनाते हैं, ऊर्जा का संचार करते हैं, उदास मनों में आशा जागृत करते हैं। अकेलेपन के बोझ को थोड़ी देर के लिए ही सही, कम करके साथ के सलोने अहसास से परिपूर्ण करते हैं, यह उत्सवधर्मिता ही तो है जो हमारे देश को अन्य की तुलना में एक अलग पहचान, अस्मिता प्रदान करती है। होली पर समाज में बढ़ते द्वेष भावना को कम करने के लिए मानवीय व आधारभूत अनिवार्यता की दृष्टि से देखना होगा।  Holi 2024
-प्रियंका सौरभ 
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