होलिका दहन 2024 पर रहेगा भद्रा का साया, जानें कब करें होलिका दहन पूजन

होलिका दहन 2024 भद्रा समय
इस बार होलिका के दिन भद्रा का भी साया है. 24 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. 24 मार्च को सुबह के समय 09:56 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है और इसके साथ ही भद्रा भी आरंभ होगी.होली 2024 में मृत्यु और पाताल लोक की भद्रा
भद्रा का असर रात्रि 23:13 मिनट तक रहने वाला होगा. इस बार आने वाली यह भद्रा मृत्यु एवं पाताल लोक की है. इस कारण भद्रा खत्म होने के बाद होलिका दहन किया जाना अनुकूल रहेगा. भद्रा के बाद ही विधिवत पूजा करनी चाहिए, इसके बाद होलिका दहन करना चाहिए.ज्योतिष अनुसार भद्रा का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को अशुभ समय कहा जाता है. भद्रा के अवसर पर, त्योहार तब तक नहीं मनाया जाता जब तक कि यह समाप्त न हो जाए. इस योग के दुष्प्रभाव का इतना भय रहता है जिसके द्वारा कष्टों का असर भय अधिक देता है. इस साल भद्रा के कारण होलिका दहन भी प्रभावित रहेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य सफल नहीं हो पाता है और उसके शुभ प्रभावों में कोई न कोई बाधा अवश्य आती है. ऐसा कहा जाता है कि भद्रा का जन्म राक्षसों को मारने के लिए हुआ था. भद्रा न केवल मनुष्यों अपितु देवताओं के लिए भी भय प्रदान करने वाली मानी गई है. इनका व्यक्तित्व दूसरों में डर पैदा करता है. भद्रा को ज्योतिष में एक बहुत विपरीत मुहूर्त कहा गया है.शास्त्रों में भद्रा का स्वरुप Holika Dahan 2024
भद्रा का स्वरुप काफी विकराल भी माना गया है. भद्रा की उत्पत्ति ही विनाश और उत्पात का संकेत देनेन वाली बताई गई है. भद्रा को काले रंग की और बड़े दांत और लंबे बाल वाली ऎसी भयभीत कर देने वाला रुप हैं जिसके द्वारा कार्यों में विनाश की स्थिति देखाई देती है. शास्त्रों में वर्णित है कि भद्रा अपने जन्म से ही उद्दंड स्वभाव की थी. इस कारण से शुभ मुहूर्त में इसका निषेध रहा है. इन कारणों से भद्रा की समाप्ति के पश्चात ही होलिका पूजन करना अनुकूल माना गया है. इस वर्ष होलिका दहन के लिए रात्रि 23:13 के बाद का समय ही अधिक अनुकूल होगा.भारत में खूब होती थी कामदेव की पूजा, मिली है अनोखी मूर्ति
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इस बार होलिका के दिन भद्रा का भी साया है. 24 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. 24 मार्च को सुबह के समय 09:56 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है और इसके साथ ही भद्रा भी आरंभ होगी.होली 2024 में मृत्यु और पाताल लोक की भद्रा
भद्रा का असर रात्रि 23:13 मिनट तक रहने वाला होगा. इस बार आने वाली यह भद्रा मृत्यु एवं पाताल लोक की है. इस कारण भद्रा खत्म होने के बाद होलिका दहन किया जाना अनुकूल रहेगा. भद्रा के बाद ही विधिवत पूजा करनी चाहिए, इसके बाद होलिका दहन करना चाहिए.ज्योतिष अनुसार भद्रा का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को अशुभ समय कहा जाता है. भद्रा के अवसर पर, त्योहार तब तक नहीं मनाया जाता जब तक कि यह समाप्त न हो जाए. इस योग के दुष्प्रभाव का इतना भय रहता है जिसके द्वारा कष्टों का असर भय अधिक देता है. इस साल भद्रा के कारण होलिका दहन भी प्रभावित रहेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य सफल नहीं हो पाता है और उसके शुभ प्रभावों में कोई न कोई बाधा अवश्य आती है. ऐसा कहा जाता है कि भद्रा का जन्म राक्षसों को मारने के लिए हुआ था. भद्रा न केवल मनुष्यों अपितु देवताओं के लिए भी भय प्रदान करने वाली मानी गई है. इनका व्यक्तित्व दूसरों में डर पैदा करता है. भद्रा को ज्योतिष में एक बहुत विपरीत मुहूर्त कहा गया है.शास्त्रों में भद्रा का स्वरुप Holika Dahan 2024
भद्रा का स्वरुप काफी विकराल भी माना गया है. भद्रा की उत्पत्ति ही विनाश और उत्पात का संकेत देनेन वाली बताई गई है. भद्रा को काले रंग की और बड़े दांत और लंबे बाल वाली ऎसी भयभीत कर देने वाला रुप हैं जिसके द्वारा कार्यों में विनाश की स्थिति देखाई देती है. शास्त्रों में वर्णित है कि भद्रा अपने जन्म से ही उद्दंड स्वभाव की थी. इस कारण से शुभ मुहूर्त में इसका निषेध रहा है. इन कारणों से भद्रा की समाप्ति के पश्चात ही होलिका पूजन करना अनुकूल माना गया है. इस वर्ष होलिका दहन के लिए रात्रि 23:13 के बाद का समय ही अधिक अनुकूल होगा.भारत में खूब होती थी कामदेव की पूजा, मिली है अनोखी मूर्ति
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Kamdev News[/caption]
कामदेव के दोनों ओर त्रिभंग मुद्रा में दो स्त्रियां खड़ी हैं और आसन के पास है घोड़े जैसे मुख वाला एक जीव। ये सारे चिह्न मत्स्य पुराण में दर्शाए गए कामदेव से मिलते हैं। माना जाता है कि मूर्ति में जो दो स्त्रियां दिख रही हैं, वे उनकी पत्नी रति और प्रीति होगी। यह मूर्ति इसलिए चौंकाती है, क्योंकि कामदेव से जुड़ी कथाएं तो बहुत है, उनसे जुड़े उत्सव भी मनाए जाते हैं, लेकिन उनकी बहुत मूर्तियां नहीं मिलती और न ही मंदिर। इस खोज से जुड़े भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व डीजी राकेश तिवारी के मुताबिक, 'यह मूर्ति नौवीं से 10वीं शताब्दी के बीच की हो सकती है। जहां यह मिली, वहां मंदिरों के अवशेष हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि हजार साल पहले उत्तराखंड में कामदेव की पूजा होती थी।'
Holi 2024[/caption]
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