Chetna Manch Exclusive : अनेक मामलों में प्रसिद्ध नोएडा में समाजसेवा भी एक 'धंधा"

Chetna Manch Exclusive : नोएडा। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध नोएडा शहर कई मामलों में अनोखा शहर है। इस शहर में जहां विकास के अनेक मानक स्थापित किए हैं। वहीं भ्रष्टाचार के मामले में यहां अनेक 'कीर्तिमान'बने हैं। आर्थिक व साइबर अपराध के मामले में नोएडा देश के अव्वल दर्जे के शहरों में सबसे ऊपर है।
Chetna Manch Exclusive
नोएडा शहर में रहने वाली अनेक हस्तियों ने समाज सेवा व देश सेवा के मामले में भी अनेक मानक स्थापित किए हैं। किन्तु समाजसेवा की आड़ में अपना 'धंधा' चलाने की कला यदि आपको सीखनी है तो आप इसी शहर से सीख सकते हैं। दरअसल अब से 46 वर्ष पूर्व वर्ष-1976 में नवीन औखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण के नाम से एक शहर बसाने का काम शुरू हुआ। इसी शहर का उप नाम नोएडा (Noida) पड़ा। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 के तहत एक अत्याधुनिक औद्योगिक नगरी बनाने के मकसद से 17 अप्रैल 1976 को नोएडा शहर की स्थापना की थी। सब जानते हैं कि प्रत्येक शहर की देखभाल के लिए कोई न कोई विभाग अथवा निकाय होती है। अधिकतर निकायों में चुने हुए जनप्रतिनिधि (नगर पालिका व नगर निगम आदि) होते हैं।
जिस अधिनियम उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 के तहत नोएडा बना है। उसमें जनप्रतिनिधि शामिल नहीं हैं। नोएडा प्राधिकरण में तैनात अफसर ही शहर की देखभाल करते हैं। वर्ष-1994 की बात है जब शहर मात्र 18 वर्ष का था तो यहां के कुछ बुद्धजीवियों ने विमर्श किया कि दूसरे शहरों की भॉंति हमारे शहर में भी एक ऐसी संस्था बने जो समाज के हर वर्ग यानि किसान, मजदूर, व्यापारी, झुग्गीवासी, उद्योगपति, डाक्टर, मास्टर, महिला, युवक व बच्चे सभी की समस्याओं को हल कराने का काम करें। इसी मकसद के साथ नोएडा लोकमंच नामक संस्था का गठन हुआ। कुछ महीने तक तो लगा कि यह संस्था नोएडा के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करेगी किन्तु धीरे-धीरे वह संस्था दूसरे सामाजिक संगठनों की तरह से ही मात्र एक एनजीओ (NGO) बनकर रह गयी।
नोएडा लोकमंच की स्थापना का मकसद विलुप्त होने के बाद वर्ष-2000 (22 वर्ष पूर्व) में नोएडा के सेक्टरों में सक्रिय रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन आरडब्ल्यूए को साथ मिलाकर एक संगठन बना। इस संगठन का नाम फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजीडेंटस वेलफेयर एसोसिएश्न यानि फोनरवा रखा गया। मजेदार बात यह है कि यह संगठन बना तो था नोएडा शहर के नागरिकों की सेवा के लिए किन्तु यह कड़वा सच है कि यह संस्था कुछ लोगों के लिए नेतागिरी चमकाने व अपना 'धंधा' चलाने का साधन बन गई है। पहले तो इस संस्था की आड़ में सुरक्षा गार्डों के ठेके वसूले जाते रहे, नेता बनने के तमाम प्रयास चलते रहे।
अब इसी संस्था को मुखौटा बनाकर सरकारी विभागों से निर्माण कार्यों के ठेके लेकर कुछ लोग अपनी करोड़ों की कंपनियां चला रहे हैं। है न मजेदार प्रयोग यानि समाजसेवा का मुखौटा लगाओ, नेता बनो और खूब 'माल' कमाओ। इस संस्था के चुनाव भी होते हैं या यूं कहें कि चुनावों का नाटक होता है और उस चुनावी नाटक में करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाए जाते हैं। असली 'खेल' चुनाव जीतने के बाद शुरू होता है। जीतने वाला खूब माल कमाता है। इस संस्था का उन सबको संरक्षण मिल जाता है, जो संस्था के मुखिया की पूरी 'सेवा' करता है। ऐसा है उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध शहर नोएडा।
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नोएडा शहर में रहने वाली अनेक हस्तियों ने समाज सेवा व देश सेवा के मामले में भी अनेक मानक स्थापित किए हैं। किन्तु समाजसेवा की आड़ में अपना 'धंधा' चलाने की कला यदि आपको सीखनी है तो आप इसी शहर से सीख सकते हैं। दरअसल अब से 46 वर्ष पूर्व वर्ष-1976 में नवीन औखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण के नाम से एक शहर बसाने का काम शुरू हुआ। इसी शहर का उप नाम नोएडा (Noida) पड़ा। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 के तहत एक अत्याधुनिक औद्योगिक नगरी बनाने के मकसद से 17 अप्रैल 1976 को नोएडा शहर की स्थापना की थी। सब जानते हैं कि प्रत्येक शहर की देखभाल के लिए कोई न कोई विभाग अथवा निकाय होती है। अधिकतर निकायों में चुने हुए जनप्रतिनिधि (नगर पालिका व नगर निगम आदि) होते हैं।
जिस अधिनियम उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 के तहत नोएडा बना है। उसमें जनप्रतिनिधि शामिल नहीं हैं। नोएडा प्राधिकरण में तैनात अफसर ही शहर की देखभाल करते हैं। वर्ष-1994 की बात है जब शहर मात्र 18 वर्ष का था तो यहां के कुछ बुद्धजीवियों ने विमर्श किया कि दूसरे शहरों की भॉंति हमारे शहर में भी एक ऐसी संस्था बने जो समाज के हर वर्ग यानि किसान, मजदूर, व्यापारी, झुग्गीवासी, उद्योगपति, डाक्टर, मास्टर, महिला, युवक व बच्चे सभी की समस्याओं को हल कराने का काम करें। इसी मकसद के साथ नोएडा लोकमंच नामक संस्था का गठन हुआ। कुछ महीने तक तो लगा कि यह संस्था नोएडा के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करेगी किन्तु धीरे-धीरे वह संस्था दूसरे सामाजिक संगठनों की तरह से ही मात्र एक एनजीओ (NGO) बनकर रह गयी।
नोएडा लोकमंच की स्थापना का मकसद विलुप्त होने के बाद वर्ष-2000 (22 वर्ष पूर्व) में नोएडा के सेक्टरों में सक्रिय रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन आरडब्ल्यूए को साथ मिलाकर एक संगठन बना। इस संगठन का नाम फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजीडेंटस वेलफेयर एसोसिएश्न यानि फोनरवा रखा गया। मजेदार बात यह है कि यह संगठन बना तो था नोएडा शहर के नागरिकों की सेवा के लिए किन्तु यह कड़वा सच है कि यह संस्था कुछ लोगों के लिए नेतागिरी चमकाने व अपना 'धंधा' चलाने का साधन बन गई है। पहले तो इस संस्था की आड़ में सुरक्षा गार्डों के ठेके वसूले जाते रहे, नेता बनने के तमाम प्रयास चलते रहे।
अब इसी संस्था को मुखौटा बनाकर सरकारी विभागों से निर्माण कार्यों के ठेके लेकर कुछ लोग अपनी करोड़ों की कंपनियां चला रहे हैं। है न मजेदार प्रयोग यानि समाजसेवा का मुखौटा लगाओ, नेता बनो और खूब 'माल' कमाओ। इस संस्था के चुनाव भी होते हैं या यूं कहें कि चुनावों का नाटक होता है और उस चुनावी नाटक में करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाए जाते हैं। असली 'खेल' चुनाव जीतने के बाद शुरू होता है। जीतने वाला खूब माल कमाता है। इस संस्था का उन सबको संरक्षण मिल जाता है, जो संस्था के मुखिया की पूरी 'सेवा' करता है। ऐसा है उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध शहर नोएडा।








आपको बता दें कि डा. कुलदीप मलिक उत्तर प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक शहर ग्रेटर नोएडा में रहते हैं। वे आई.टी.एस. इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। अपने कॉलेज के आस-पास बियाबान पड़ी सैकड़ों एकड़ बेसकीमती जमीन (पार्कों के लिए छोड़ी गई भूमि व सड़कों के किनारे पड़ी जमीन) पर डा. कुलदीप मलिक अब तक 2500 वट वृ़क्ष (बरगद) के पौधे रोप चुके हैं। वर्ष-2012 से एक जुनून की तरह शुरू हुआ पौधे लगाने का उनका अभियान आज भी जारी है।
डा. कुलदीप के साथ चेतना मंच ने लम्बी बातचीत की है। वे बताते हैं कि हमारे ऋषि-मुनियों से लेकर तमाम पूर्वजों ने हमें शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) का महत्व हजारों तरीके से बताया है। दुर्भाग्य से विकास की अंधी दौड़ में हम यह भूल ही गए हैं कि यदि शुद्ध हवा यानि ऑक्सीजन नहीं बची तो हमारो जीवन भी नहीं बचेगा। तीन साल के कोविड काल में प्रकृति ने पूरी मानवता को बता ही दिया है कि किस प्रकार पूरी मानवता रत्ती भर ऑक्सीजन तक के लिए तरस गयी थी।
श्री मलिक बताते हैं कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा स्वत: उठाया है। उनके विद्यालय के बच्चे श्रमदान के जरिए उनका सहयोग करते हैं। दुर्भाग्य यह है कि समाजसेवा के बड़े-बड़े दावे करने वाली कोई भी संस्था अथवा संस्थान उनका व्यवहारिक सहयोग नहीं कर रहा है। मजबूरन उन्हें दूध ढोने वाली बाल्टियों व कैनों से दूर-दूर से लाकर पौधों की सिंचाई करनी पड़ती है। डा. मलिक का स्पष्ट मत है कि जो हजारों बरगद के पौधे उन्होंने लगाए हैं वे हमारी आज की पीढ़ी को तो ऑक्सीजन दे ही रहे हैं। आने वाली पीढिय़ों को भी शुद्ध हवा में सांस लेने का अवसर प्रदान करेंगे।