Friday, 15 November 2024

Special Story : 70 प्रतिशत युवाओं की हो रही हैं हड्डियां कमजोर, डरा रहे रिसर्च के आंकड़े

  Special Story :  चेतना मंच हेल्थ डेस्क। रोज-रोज ईजाद होती नई तकनीक ने जिंदगी आसान कर दी है, लेकिन…

Special Story :  70 प्रतिशत युवाओं की हो रही हैं हड्डियां कमजोर, डरा रहे रिसर्च के आंकड़े

 

Special Story :  चेतना मंच हेल्थ डेस्क। रोज-रोज ईजाद होती नई तकनीक ने जिंदगी आसान कर दी है, लेकिन इसी तकनीक की अधिकता ने युवाओं को कई बीमारियों में भी धकेल दिया है। यही बीमारियां ही हैं, जो युवाओं को वक्त से पहले बूढ़ा कर रही है। आजकल हर काम तकनीक से हो रहा है, इसलिए युवा अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को भी तकनीक के जरिए ही अंजाम दे रहा है। इस कारण 70 प्रतिशत युवाओं की हड्डियां कमजोर हो चुकी हैं। ये बात विभिन्न रिसर्च में उजागर हुई हैं। इसमें सबसे ज्यादा वो आबादी जो शहरी क्षेत्र में रहती हैं। अधिकतर युवा 30 से 40 वर्ष की उम्र में ही विभिन्न जोड़ों के दर्द या गठिया रोग से पीड़ित हो रहे हैं। युवाओं के अंदर विटामिन डी की बड़ी कमी पाई गई है और विटामिन डी की कमी के कारण ही उनको जोड़ों के दर्द से गुजरना पड़ रहा है।

Special Story :

 

क्या कहती हैं रिसर्च
लंदन की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी ने दुनियाभर के युवाओं पर शोध करने और दुनियाभर के प्रमुख हॉस्पिटल से एक डाटा कलेक्ट करपे के पश्चात एक शोध में बताया कि युवाओं के अंदर कैल्शियम व विटामिन डी की बड़ी कमी के कारण उनको जोड़ों के विभिन्न दर्दों से गुजरना पड़ रहा है। ये दर्द दरअसल गठिया यानी ऑस्टियोपोरोसिस की निशानी हैं। करीब 70 प्रतिशत युवाओं की हड्डियां कमजोर हो चुकी हैं। इसमें सबसे ज्यादा वो आबादी जो शहरी क्षेत्र में रहती हैं। अधिकतर युवा 30 से 40 वर्ष की उम्र में ही विभिन्न जोड़ों के दर्द या गठिया रोग से पीड़ित हो रहे हैं।

वहीं रांची के रिम्स की क्लिनिकल स्टडी में यह बात सामने आई है कि इन दिनों युवाओं में सबसे अधिक समस्या ज्वाइंट पेन, फ्रोजन आर्म को लेकर है। हड्डियों से जुड़ी समस्या लेकर हर दिन ओपीडी में 40 से 60 प्रतिशत युवा पहुंच रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के मुताबिक 2003 में भारत में इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या 2.6 करोड़ थी, जिनमें लगभग 40 हजार युवा थे। ये संख्या 2013 में बढ़कर 4.6 करोड़ हो गई, जिनमें करीब एक करोड़ से ज्यादा युवा थे। लेकिन पिछले दस सालों में इस संख्या में कई गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। 2023 में ये संख्या बढ़कर 15 करोड़ हो गई है, जिनमें युवाओं की संख्या 5 करोड़ आंकी गई है। ये आंकड़े वाकई डराने वाले हैं।

95 प्रतिशत मरीजों में विटामिन-डी की कमी
शीशे से बंद एयरकंडीशनिंग वाले घर और दफ्तर भले ही आरामदायक महसूस होते हों, लेकिन ये आपकी हड्डियों को खोखला बना रहे हैं। आधुनिक जीवन शैली की प्रतीक माने जाने वाले ऐसे घर और दफ्तर न केवल ताजा हवा, बल्कि धूप से भी लोगों को वंचित करते हैं, जिस कारण शरीर में विटामिन-डी की कमी होती है और हड्डियां कमजोर होती हैं। नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ अस्थि शल्य चिकित्सक डॉ. राजू वैश्य ने देश के अलग-अलग शहरों में जोड़ों में दर्द एवं गठिया (अर्थराइटिस) के एक हजार मरीजों पर अध्ययन कर पाया कि ऐसे मरीजों में से 95 प्रतिशत मरीजों में विटामिन-डी की कमी होती है और इसका एक मुख्य कारण पर्याप्त मात्रा में धूप न मिलना है, जो विटामिन-डी का मुख्य स्रोत है।

युवाओं में बढ़ रहा हड्डी रोग
मेदांता अस्पताल के आर्थाेपेडिक्स सर्जन डॉ नीलेश मिश्रा बताते हैं कि लोग हड्डी की बीमारियों में 60 प्रतिशत तक बीमारी दर्द को लेकर आते हैं। पहले हड्डियों से जुड़ी जो बीमारी बुढ़ापे में होती थी वह अब युवाओं में भी होने लगी हैं। ऐसे में जरूरत है कि लोगों को हड्डियों के स्वास्थ्य को लेकर जागरूक किया जाए। उन्होंने कहा कि हड्डियों के स्वास्थ्य को लेकर महिलाओं को खासतौर से जागरूक होना होगा। आज भी ज्यादातर महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देती हैं। वे पूरे घर का ख्याल रखती हैं लेकिन खुद का नहीं।

खानपान की गलत आदत भी जिम्मेदार
आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. राजू वैश्य के अनुसार, बचपन में खानपान की गलत आदतों व कैल्शियम की कमी के कारण गठिया यानी आर्थराइटिस के अलावा ऑस्टियोपोरोसिस की भी संभावना बहुत अधिक होती है। ऑस्टियोपोरोसिस में कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों का घनत्व एवं अस्थि मज्जा बहुत कम हो जाता है। साथ ही हड्डियों की बनावट भी खराब हो जाती है, जिससे हड्डियां अत्यंत भुरभुरी और अति संवेदनशील हो जाती हैं। इस कारण हड्डियों पर हल्का दबाव पड़ने या हल्की चोट लगने पर भी वे टूट जाती हैं। सबसे ज्यादा चिंता की बात है कि वर्तमान पीढ़ी कम कैल्शियम वाला आहार और विटामिन-डी की अपर्याप्त मात्रा ले रही है, जिससे उनमें हड्डियों का घनत्व कम और हड्डियां कमजोर हो रही हैं।

बिना परामर्श ली गई दवा दे रही दर्द को दावत
जाने-माने रोबोटिक सर्जन डा. आशीष सिंह बताते हैं कि बिना कारण जाने मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक गोलियों से इलाज करने के कारण 40 साल पहुंचते-पहुंचते समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती हैं। ऐसे में बेहतर है कि किसी भी प्रकार का दर्द, झनझनाहट होने पर हड्डी या न्यूरो सर्जन से मिलकर परामर्श लें और सभी हड्डियों की गुणवत्ता बताने वाले डेक्सा स्कैन जैसी आवश्यक जांच कराने के बाद ही दवाएं लें। शरीर में कहीं भी दर्द-झनझनाहट हो तो खुद से दवा लेने के बजाय डाक्टर से मिलकर आवश्यक जांच जरूर कराएं। हर दर्द का एक कारण होता है और उसकी जानकारी होना जरूरी है। यदि जोड़ में दर्द हो रहा है तो शुरुआत में ही डाक्टर से मिले ताकि प्लाज्मा रिच प्लेटलेट्स और दवाओं आदि देकर घुटने के घिसने की समस्या का निदान किया जा सके। सुबह उठकर यदि शरीर, हाथ-पैर में दर्द, कड़ापन, कमर में दर्द या पैरों में झुनझुनाहट हो तो हड्डी या नस रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।

धूप लेना है बहुत जरूरी
रांची स्थित रिम्स के डॉक्टर एलबी मांझी बताते हैं कि स्कूल, कालेज, घर और कार्यालय में ज्यादातर समय बीताने के कारण बच्चों से लेकर युवा वर्ग नियमित एक्सरसाइज, खेलकूद से दूर हो जाते हैं। धूप में न निकलने के कारण विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है। इससे हड्डियां कमजोर होती जाती हैं। इसके अलावा कोरोना के बाद भी इस तरह की समस्या काफी देखने को मिल रही है, हालांकि इस पर शोध किया जा रहा है, जिसके बाद ही कुछ सटीक परिणाम निकल सकते हैं।

डॉ. राजू वैश्य बताते हैं कि दरअसल विटामिन-डी का मुख्य स्रोत सूर्य की रोशनी है, जो हड्डियों के अलावा पाचन क्रिया में भी बहुत उपयोगी है। व्यस्त दिनचर्या और आधुनिक संसाधनों के कारण लोग तेज धूप नहीं ले पाते। खुले मैदान में घूमना-फिरना और खेलना भी बंद हो गया। इस कारण धूप के जरिए मिलने वाला विटामिन-डी उन तक नहीं पहुंच पाता। जब भी किसी को घुटने या जोड़ में दर्द होता है, तो उसे लगता है कि कैल्शियम की कमी हो गई है, जबकि विटामिन-डी की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। डॉ. वैश्य का कहना है अगर कैल्शियम के साथ-साथ विटामिन-डी की भी समय पर जांच करवा ली जाए तो आर्थराइटिस को बढ़ने से रोका जा सकता है।

1 किलो वजन बढ़ने से घुटने में 7 किलो बोझ
कनपुर के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. एके अग्रवाल ने बताया कि यदि शरीर का 1 किलो वजन बढ़ता है तो घुटने पर कम से कम 7 किलो वजन एक्स्ट्रा पड़ने लगता है। घुटनों पर जितना वजन बढ़ता जाएगा, उतना ही आपको चलने फिरने में समस्या खड़ी होगी। गठिया की समस्या 30 से 40 उम्र के युवाओं में भी हो रही है, जबकि पहले के समय में ऐसा बिल्कुल नहीं था। शहरी इलाकों की बात करें तो गठिया बाई से 80 प्रतिशत लोग परेशान है, जबकि ग्रामीण इलाके में महज 10 प्रतिशत लोग ही पीड़ित हैं। लोगों को अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव करना पड़ेगा नहीं तो आने वाली पीढ़ियां इस से बहुत प्रभावित होने वाली है।

जोड़ों की सुरक्षा को रखें इन बातों का ध्यान
जीवनशैली को बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सक्रिय रखें यानी हल्के-फुल्के ही सही शारीरिक श्रम वाले काम करते रहें। जोड़ों को सपोर्ट देने वाली मांसपेशियां मजबूत रहें इसके लिए जीवनशैली में मार्निंग वाक, नियमित व्यायाम और योग को शामिल करें। दूध या दूध से बने उत्पादों के अलावा हर दिन कम से कम आधे घंटे धूप की ङ्क्षसकाई जरूरी है। गर्दन में दर्द व आंखों से पानी निकलने या सूखेपन से बचाव के लिए मोबाइल और लैपटाप का अधिक प्रयोग नहीं करें। कार्यालय में कुर्सी की बैक से पीठ सटाकर सही तरीके से बैठें। यदि लकड़ी वाली कुर्सी हो तो सबसे बेहतर है।

अपनाएं ये खान-पान
हड्डियों के लिए जरूरी आहार जैसे दूध और इसके उत्पाद, दाल, हरी सब्जियां खाने में लेना चाहिए। अगर शाकाहारी नहीं हैं तो, रोज एक अंडा आदि खाना चाहिए। महिलाओं को ज्यादा प्रोटीन, कैल्सियम और विटामिन डी की जरूरत है। हड्डियों के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देने के कारण ही ज्यादातर महिलाएं उम्र बढ़ने पर घुटने और मांसपेशियों के दर्द से परेशान रहती हैं।

यदि आप रोजाना धूप लेते हैं और मोटे अनाज का सेवन करते हैं जैसे मक्का, जौ, चना, बाजरा, ज्वार आदि। इसके सेवन से आपको हड्डी से संबंधित दिक्कत कभी नहीं होगी। लोगों को मोटे अनाज का महत्व समझना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने बताया कि पैक चीजें चिप्स, कोल्ड ड्रिंक, जंक फूड या पैक खाना आदि नहीं खानी चाहिए।

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