Brazil : अंशु नैथानी
8 जनवरी 2023 ,रविवार के दिन ब्राजील की राजधानी ब्रासिलया में पूर्व राष्ट्रपति बोलसोनारो के समर्थकों ने ब्राजील की पार्लियामेंट, सुप्रीम कोर्ट और मिनिस्टर्स के लिए बने भवनों मे तोडफ़ोड़ करते हुए बलपूर्व प्रवेश किया और काफी उत्पात भी मचाया। दुनियाभर में यह खबर छाई हुई है। बोलसोनारो के समर्थकों का आरोप है कि ब्राजील में पिछले दिनो संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में लूला धांधली के कारण चुनाव जीते हैं, वे इसे बर्दाश्त नही करेंगे। बोलसोनारो सहित उनके धुर दक्षिणपंथी समर्थक चुनाव हारने के बाद से ही सोशल मिडिया पर यह दुष्प्रचार करते आ रहे हैं कि ब्राजील के अभिजात वर्ग और मिडिया ने गोलबंदी कर चुनाव को न सिर्फ प्रभावित किया, बल्कि चुनाव के परिणामों में भी हेरफेर की गई। इसी बात को अफवाह और झूठी ख़बर (fake news) के तौर पर फैलाया गया और विजयी राष्ट्रपति लूला को सत्ता से हटाने का षडयंत्र रचते रहे, जिसका दुष्परिणाम लोकतांत्रिक व्यवस्था में वैध रूप से चुनी गई सरकार को अपदस्थ करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है! हालांकि ब्राजील में परिस्थिति अभी नियंत्रण में है, लेकिन धुर दक्षिणपंथी शक्तियां फासिस्ट विचारधारा को अपना हथियार बनाकर लोगों के बीच लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव जीतने वाले लूला को हटाने पर आमदा हैं। बोलसोनारो के समर्थकों की मांग है कि ब्राजील की सेना हस्तक्षेप कर
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राष्ट्रपति लूला को पदभार लेने से रोके। ब्राजील की घटना ने दो साल पहले 06 जनवरी 2021 को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद की घटना को लोगों के जेहन में फिर से ताजा कर दिया है। 06 जनवरी 2021 को यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के
‘कैपिटल हिल’ बिल्डिंग पर डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने उत्पात मचाते हुए सारी सुरक्षा व्यवस्था को तोडक़र बिल्डिंग के अन्दर घुस कर तबाही मचाई थी। विश्व के सबसे मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्र अमेरिका के इतिहास में यह एक अप्रत्याशित घटना थी, जिससे पूरा विश्व हतप्रभ रह गया! फासिस्ट ताकतें धुर दक्षिणपंथी खेमों के सहारे अलग-अलग रूप में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को धता बताते हुए कई देशों में सत्ता पर क़ाबिज है और कई देशों में ट्रम्प और बोलसोनारो जैसों की समर्थक शक्तियां लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करने पर आमादा हैं।
लोकतांत्रिक अधिकार दो धारी तलवार
आखिर सवाल उठता है कि लोकतंत्र की सफल कार्यशैली का परीक्षण क्या है? लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था के तहत पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव का संपन्न होना। इसके लिए हरेक देश में चुनाव संपन्न कराने के लिए स्वायत्त संस्थाएं कार्य करती है। भारत में यह काम भारतीय निर्वाचन आयोग करता है। लेकिन समय-समय पर निर्वाचन आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठते रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा द्वन्द यह भी सवाल खड़ा करता है कि चुनाव कितना निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संपन्न हुआ है। अगर सत्ताधारी दल और चुनाव आयोग की सांठगांठ (nexus) को लेकर विवाद खड़ा होता है तो सुप्रीम कोर्ट को इस बाबत विशेष निगरानी बनाये रखना चाहिए और मामले को गंभीरता से देखना चाहिए।
पश्चिम के लोकतंत्र में ये बहुत हदतक सफल रहा है, लेकिन वहां भी काफी घालमेल देखने को मिल रहा है। धुरदक्षिणपंथियों ने अलग-अलग तरीके से सत्ता हथियाने का अनोखा तरीका निकाला है। विश्व की बड़ी शक्तियों में गिने जाने वाले देश- रूस और चीन में सत्ता पर एक ही व्यक्ति का लंबे समय से शासनाध्यक्ष बने रहना, न सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है, बल्कि विश्व शांति के लिए भी अच्छी बात नही है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि इस बात से अमेरिका को क्लिन-चिट नही दी जा सकती है। यूक्रेन युद्ध को अमेरिका ने किस तरह रूस के साथ छद्म युद्ध का रूप दे रखा है, कोई छिपी हुई बात नही है। अमेरिका अपने सामरिक और आर्थिक हितों की खातिर पूरे विश्व में बहरूपिये की तरह अपनी चाल चलता रहता है। उसे वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था से कोई सरोकार नही है, अपना हित साधने के लिए वह कभी तानाशाहों का समर्थन करता है, तो कभी लोकतंत्र के नाम पर कठपुतली सरकार चलाना चाहता है।
विश्व के दर्जनों देश में धुरदक्षिणपंथियों का वर्चस्व बढ़ा है। खासकर यूरोपीय देश- इटली, फ्रांस, स्वीडन, हंगरी,पोलैंड। यूरोप की राजनीति में राष्ट्रवाद एक विशेषता के तौर पर रही है। लेकिन हाल के वर्षों में मतदाताओं के कुछ खास वर्गों का समर्थन राईट विंग और पॉपयुलिस्ट पार्टियों की तरफ रहा है। यह ट्रेंड लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नही है और न ही यह विश्व शांति की दिशा मे साकारात्मक माना जायेगा।
ब्राजील की घटना पर भारत के प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘प्रजातांत्रिक परम्परा का सम्मान हर किसी को करना चाहिए’। अमेरिका में डेमोक्रेट पार्टी को मेरीलैंड से प्रतिनिधित्व करने वाले जैमी रस्किन कहते हैं कि ‘ विश्व भर के प्रजातंत्रों को आवश्यक रूप से जल्द कदम उठाना चाहिए कि ब्राजील कांग्रेस को खत्म करने के लिए धुरदक्षिणपंथी विद्रोह को किसी तरह का कोई समर्थन नहीं है। ट्रम्प के 06 जनवरी 2021 के बाद दंगाई फासिस्ट मॉडल की जगह जेल की सलाखों के पीछे है’।
लेखिका : वरिष्ठ पत्रकार व चेतना मंच की मैनेजिंग एडिटर हैं।