– अंजना भागी
International Girl Child Day : क्या सरकार द्वारा घोषित मुआवजा क्रूरता से मारी गई बेटी की आत्मा को शांति दे पाता है । या यह मृत आत्मा के परिवार के मुह्न पर एक ढक्कन साबित होता है । 11 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर क्या महिलाएं ये प्रण ले सकती हैं कि अब हम बेटी कि परवरिश सिर्फ रैम्प पर चलने वाली बेटी या पतली दुल्हन ससुराल की पसंद के नजरिए से नहीं करेंगे ।
सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता को न्यूनतम 5 लाख, अधिकतम 10 लाख मुआवजा, दुष्कर्म पीड़िता और अप्राकृतिक यौनाचार की शिकार पीड़िता को न्यूनतम 4 लाख और अधिकतम को 7 लाख मुआवजा मिलेगा।
-एसिड अटैक पीड़िता (जिसका चेहरा बिगड़ गया हो) को न्यूनतम 7 लाख और अधिकतम 8 लाख तक मुआवजा मिलेगा।
-एसिड अटैक में चोट 50 फीसद से ज्यादा होने पर न्यूनतम 5 लाख और अधिकतम 8 लाख मुआवजा मिलने का नियम है ।
हर कोई वाकिफ है कई कानून होने के बावजूद बेटियों के साथ गैंगरेप और उनकी हत्याओं का सिलसिला थम ही नहीं रहा है । वहीं आत्मा और शरीर से मर जाने के बाद, बेटी को, मुआवजा जख्मों को और भी गहरा नहीं कर देता है क्या ?
International Girl Child Day :
अभी कुछ समय पूर्व अलवर में नाबालिग बच्ची के साथ 8 लोगों ने गैंगरेप किया उसका अश्लील वीडियो बनाया उसे वायरल करने की धमकी देकर उससे 50 हजार रुपये भी ऐंठ लिए । मै सोचती हूँ 50,000 रुपए नाबालिग बेटी के पास तो होंगे नहीं । कहाँ से आए होंगे परिवार ने ही तो दिये होंगे जरा सोचें इस बेटी को कितनी दुत्कार मिली होगी उसकी पीड़ा की तो कहीं कोई सीमा ही नहीं । परिवार से और आस- पड़ोस के संसार से कैसे मकड़ जाल में फसाई और वो फंस गई होगी । जरा सोचें ये परिस्थितियाँ बनती ही क्यों हैं ? आज हमारा देश विकसित देशों की पंक्ति में अग्रसर है, और पीड़ित महिला की आत्मा तो प्रेत की तरह ही देखती होगी उसके परिवार को मिले मुआवजे के ढक्कन को जिससे उसके परिवार का मुह बंद सा ही हो जाता है और उसके जाने का गम भी दिल में ही दफन होने लगता है । प्रश्न ये भी है की जो बेटी क्रूरता झेलती मर जाती है वह तो कुछ दिन के लिए अमर हो जाती है । बाकी कितनी त्रासदी झेलती हैं । ये उनका दिल ही जाने । ये त्रासदियाँ कुछ बेटियों के तो परिवार से ही शुरू हो जाती हैं ।
International Girl Child Day
मेरे घर के बिलकुल सामने ही एक परचुन की दुकान है । दुकानदार के तीन बच्चे थे दो बेटियाँ एक बेटा । बड़ी और छोटी बेटी, बीच का बच्चा बेटा । बड़ी बेटी लगभग साड़े 4 फुट लंबी और उससे दो साल का छोटा बेटा लगभग साड़े पाँच फुट लंबा । बड़ी बेटी आठवीं कक्षा में पढ़ती थी वह 12-13 साल की लड़की सुबह उठ अपनी माँ का हाथ बँटाती फिर स्कूल जाती । स्कूल से आ खाना खाती साथ ही बड़ी साइकल पर अपने पापा को गरमागरम खाना खिलाने के लिए साइकल चलाती हुई दुकान जाती । पापा खाना खाते, खाने के कुछ समय बाद ही दोपहर को सोने घर चले जाते । बड़ी बेटी दुकानदारी देखती दुकान की सफाई भी कर देती । दोपहर में ग्राहक कम होते हैं इसलिए अपना होमवर्क भी कर लेती । शाम को बड़ी बेटी घर जाती शाम का खाना बनाना उसी की ज़िम्मेदारी थी । मम्मी उसे हमेशा प्यार से समझातीं थीं रानी बेटी तेरी शादी में लाखों रुपया खर्च होगा इसलिए घर का काम काज अच्छी तरह सीख ले । सोम बाजार लगा था रानी बेटी एक बस के आगे के पहिये के नीचे आ दब कर मर गई । बहुत ही कोहराम मचा था । स्कूल बैग, खाने के बर्तन, सब उसी की डैड बॉडी के पास ही छितरे पड़े थे उन दिनों जिस छोटे प्लॉट में वे रहते थे उसकी कीमत लगभग 5 लाख थी ग्राउंड फ्लोर तक ही बना था । बेटी के मरने का 10 लाख का मुआवजा मिला । दुख तो सभी को बहुत था पर उस दुख में ही माता- पिता ने कब वो पुराना घर बेच सड़क का मकान ले लिया उसको तीन मंजिल बना भी दिया। दो फ्लोर किराये पर उठा दिये । एक में वे खुद रहने लगे । बाहर के कमरे में अपनी स्वर्गीय बेटी की तस्वीर टांग उस पर फूलों की माला भी डाली । सभी बहुत दुखी थे । जो भी उनके घर आता बेटी की तस्वीर देखता।
International Girl Child Day
पहले तो परिवार रोने भी लगता था । पर मेहमान जब घर के बाहर जाने के साथ ही पड़ोसियों से काना फुसी शुरू कर देते तब कुछ अटपटा सा लगने लगा था । एक साल बीत गया भाई तो लगभग छह फुट लंबा हो गया था । छोटी बहन भी कुछ इंच बड़ गई थी । भाई ने खेलना लगभग बंद ही कर दिया था । बेइज्जती सी मानने लगा था । दोस्तों में खेलने निकलता तो स्वर्गीय बहन की बात और उनकी समृद्धि की चर्चा साथ – साथ ही शुरू हो जाते थे । दो साल होने को आए पर स्वर्गीय बेटी की दास्तान तो रुक ही नहीं रही थी । आखिरकार बाहर के कमरे से स्वर्गीय बड़ी बेटी की फोटो हटा दी गई उसकी जगह उसकी छोटी फोटो मंदिर में रख दी गई । यह देख अब हमारा कलेजा भी कहीं जल उठता था । मैं सोचने लगी थी क्या मुआवजा परिवार के मुंह बंद करने का ढक्कन तो नहीं ? । चौडी सड़क पहले दोनों तरफ वेंडर्स खड़े हो जाते हैं फिर उनके बाद खरीदने वालों की गाडियाँ । सड़क बचती ही कहाँ है । ऐसे में थकी बेटी टकरा गई होगी । ऐसे ही बेटियों के साथ घृणित अपराध भी हो जाते हैं । जितना क्रूर अपराध, उतना ही पब्लिक तड़पति है उतना ही मोटा मुह बंद करने का ढक्कन( मुआवजा ) हो जाता है । पहले डी टी सी की बसों में महिलाओं के साथ बहुत सी बदतमिजियाँ हो जाती थीं । जब से मार्शल बैठाये हैं इनमें बहुत ज्यादा सुधार आया है । देश विकसित देशों की पंक्ति में अग्रसर है । लेकिन क्या देश की पचास प्रतिशत आबादी यूं ही ड़र ड़र कर जीती रहेगी ? । कपड़ों से हम तुलना करने लगे हैं की लड़का शॉर्ट्स पहनता है तो बेटी क्यों नहीं ? भोजन और स्वास्थ्य से तुलना क्यों नहीं करते?
International Girl Child Day
जिस दिन हमें इस बात पर मान होने लगेगा कि मेरा बेटा 6 फुट लंबा है और मेरी बेटी उससे भी एक इंच आगे जा रही है । महिलाएं भी एक दूसरे का हाथ थामने लगेंगी । तब सरकारी कानून और सशक्त महिला मिलकर इस 50 प्रतिशत आबादी का भला कर पाएंगे । किटटी पार्टी, भजन कीर्तन, सब में महिलाएं एक दूसरे के साथ जानकारियां साझा करें एक दूसरे को जागृत करें । अभी यू.पी पुलिस ने साइबर क्राइम अगेंस्ट वुमेन पर एक बहुत ही उपयोगी कार्यशाला का आयोजन, सेक्टर 108 नोएडा में किया था । बहुत से महिला विद्यालयों की लड़कियां आमंत्रित थीं । में हैरान थी जिनको सबसे ज्यादा ज्ञान की जरूरत थी वे पूरी तरह हंसने -बतियाने और जैसे ही कोई ताली बजाता ज़ोर ज़ोर से हँसते हुए ताली बजाने में मशगूल थीं । यकीनन उनकी अध्यपिकाओं ने पुलिस द्वारा दी गई जानकारी को उनके साथ बार- बार दोहराया होगा । उन नाबालिग बच्चियों को उस कार्यशाला की अहमियत बताते हुए उन फोन नंबर्स को भी लिखवाया होगा । ये भी सच है कि यदि उन बेटियों में पहले ही जिज्ञासा जगाई होती तो उस हाल में उन युवा बच्चियों द्वारा हंसी और चहचहाहट के स्थान पर प्रश्नों की बौछार होती । मेरा तो सभी से एक ही निवेदन है नोएडा की समस्त ज्ञानी जागरूक महिला इसमें आमंत्रित थीं यदि वे ही महिलाओं में उसे साँझा कर एक हो जागरूकता की अलख अपनी बिरादरी के लिए जगाएँ । तो शायद मोटे मुआवजे का दंश किसी मृत आत्मा को न झेलना पड़े । और हम सब अंतरराष्ट्रीय बालिका देवास मनाए और बेटी के जन्म पर थाली भी बजायेँ