डॉ सुशील भाटी
Chat Puja 2022 : सूर्य उपासना का महापर्व हैं- छठ पूजा| यह त्यौहार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश मनाया जाता हैं| सूर्य पूजा का यह त्यौहार क्योकि षष्ठी को मनाया जाता हैं इसलिए लोग इसे सूर्य षष्ठी भी कहते हैं| इस दिन लोग व्रत रखते हैं और संध्या के समय तालाब, नहर या नदी के किनारे, बॉस सूप घर के बने पकवान सजा कर डूबते सूर्य भगवान को अर्ध्य देते हैं| अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता हैं|
Chat Puja 2022 :
सूर्य षष्ठी के दिन सूर्य पूजा के साथ-साथ कार्तिकेय की पत्नी षष्ठी की भी पूजा की जाती हैं| पुराणों में षष्ठी को बालको को अधिष्ठात्री देवी और बालदा कहा गया हैं|लोक मान्यताओ के अनुसार सूर्य षष्ठी के व्रत को करने से समस्त रोग-शोक, संकट और शत्रुओ का नाश होता हैं| निः संतान को पुत्र प्राप्ति होती हैं तथा संतान की आयु बढती हैं| सूर्य षष्ठी के दिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय जयंती भी मनाई जाती हैं और इसे वहाँ कार्तिकेय षष्ठी अथवा स्कन्द षष्ठी कहते हैं | सूर्य, कार्तिकेय और षष्ठी देवी की उपासनाओ की अलग-अलग परम्परों के परस्पर मिलन और सम्मिश्रण का दिन हैं कार्तिक के शुक्ल पक्ष की षष्ठी| इन परम्पराओं के मिलन और सम्मिश्रण सभवतः कुषाण काल में हुआ|
चूकि भारत मे सूर्य और कार्तिकेय की पूजा को कुषाणों ने लोकप्रिय बनाया था, इसलिए इस दिन का ऐतिहासिक सम्बन्ध कुषाणों और उनके वंशज गुर्जरों से हो सकता हैं| कुषाण और उनका नेता कनिष्क (78-101 ई.) सूर्य के उपासक थे| इतिहासकार डी. आर. भंडारकार के अनुसार कुषाणों ने ही मुल्तान स्थित पहले सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था| भारत मे सूर्य देव की पहली मूर्तिया कुषाण काल मे निर्मित हुई हैं| पहली बार कनिष्क ने ही सूर्यदेव का मीरो ‘मिहिर’ के नाम से सोने के सिक्को पर अंकन कराया था| अग्नि और सूर्य पूजा के विशेषज्ञ माने जाने वाले इरान के मग पुरोहित कुषाणों के समय भारत आये थे| बिहार मे मान्यता हैं कि जरासंध के एक पूर्वज को कोढ़ हो गया था, तब मगो को मगध बुलाया गया| मगो ने सूर्य उपासना कर जरासंध के पूर्वज को कोढ़ से मुक्ति दिलाई, तभी से बिहार मे सूर्य उपासना आरम्भ हुई |
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भारत में कार्तिकेय की पूजा को भी कुषाणों ने लोकप्रिय बनाया और उन्होंने भारत मे अनेक कुमारस्थानो (कार्तिकेय के मंदिरों) का निर्माण कराया था| कुषाण सम्राट हुविष्क को उसके कुछ सिक्को पर महासेन ‘कार्तिकेय’ के रूप में चित्रित किया गया हैं| संभवतः हुविष्क को महासेन के नाम से भी जाना जाता था| मान्यताओ के अनुसार कार्तिकेय भगवान शिव और पार्वती के छोटे पुत्र हैं| उनके छह मुख हैं| वे देवताओ के सेना ‘देवसेना’ के अधिपति हैं| इसी कारण उनकी पत्नी षष्ठी को देवसेना भी कहते हैं| षष्ठी देवी प्रकृति का छठा अंश मानी जाती हैं और वे सप्त मातृकाओ में प्रमुख हैं| यह देवी समस्त लोको के बच्चो की रक्षिका और आयु बढाने वाली हैं| इसलिए पुत्र प्राप्ति और उनकी लंबी आयु के लिए देवसेना की पूजा की जाती हैं|
कुषाणों की उपाधि देवपुत्र थी और वो अपने पूर्वजो को देव कहते थे और उनकी मंदिर में मूर्ति रख कर पूजाकरते थे, इन मंदिरों को वो देवकुल कहते थे| एक देवकुल के भग्नावेश कुषाणों की राजधानी रही मथुरा में भी मिले हैं| अतः कुषाण देव उपासक थे| यह भी संभव हैं कि कुषाणों की सेना को देवसेना कहा जाता हो|
देवसेना की पूजा और कुषाणों की देव पूजा का संगम हमें देव-उठान के त्यौहार वाले दिन गुर्जरों के घरों मेंदेखने को मिलता हैं| कनिंघम ने आधुनिक गुर्जरों की पहचान कुषाणों के रूप में की हैं| देव उठान त्यौहार सूर्यषष्ठी के चंद दिन बाद कार्तिक की शुक्ल पक्ष कि एकादशी को होता हैं| पूजा के लिए बनाये गए देवताओं के चित्र के सामने पुरुष सदस्यों के पैरों के निशान बना कर उनके उपस्थिति चिन्हित की जाती हैं| गुर्जरों के लिए यह पूर्वजो को पूजने और जगाने का त्यौहार हैं| गीत के अंत में नख (कुल-गोत्र) के देवताओ के नाम का जयकारा लगाया जाता हैं, जैसे- जागो रे कसानो के देव या जागो रे बैंसलो के देव| देव उठान पूजन के अवसर पर गए जाने वाले मंगल गीत में घर की माताओं और उनके पुत्रो के नाम लिए जाते है और घर में अधिक से अधिक पुत्रो के जन्मने की कामना और प्रार्थना की जाती हैं|
देवसेना और देव उठान में देव शब्द की समानता के साथ पूजा का मकसद- अधिक से अधिक पुत्रो की प्राप्ति और उनकी लंबी आयु की कामना भी समान हैं| दोनों ही त्यौहार कार्तिक के शुक्ल पक्ष में पड़ते हैं|
गुर्जरों के साथ सूर्य षष्ठी का गहरा संबंध जान पड़ता हैं क्योकि सूर्य षष्ठी को प्रतिहार षष्ठी भी कहते हैं| प्रतिहार गुर्जरों का प्रसिद्ध ऐतिहासिक वंश रहा हैं| प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज (836-885 ई.) के नेतृत्व मे गुर्जरों ने उत्तर भारत में अंतिम हिंदू साम्राज्य का निर्माण किया था, जिसकी राजधानी कन्नौज थी| मिहिरभोज ने बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश को जीत कर प्रतिहार साम्राज्य मे मिलाया था, सभवतः इसी कारण पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ भाग को आज तक भोजपुर कहते हैं| सूर्य उपासक गुर्जर और उनका प्रतिहार राज घराना सूर्य वंशी माने जाते हैं| गुर्जरों ने सातवी शताब्दी मे, वर्तमान राजस्थान मे स्थित, गुर्जर देश की राजधानी भीनमाल मे जगस्वामी सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया था| इसी काल के, भडोच के गुर्जरों शासको के, ताम्रपत्रो से पता चलता हैं कि उनका शाही निशान सूर्य था| अतः यह भी संभव हैं कि प्रतिहारो के समय मे ही बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सूर्य उपासना के त्यौहार ‘सूर्य षष्ठी’ को मनाने की परम्परा पड़ी हो और प्रतिहारो से इसके ऐतिहासिक जुड़ाव के कारण सूर्य षष्ठी को प्रतिहार षष्ठी कहा जाता हैं|
गुर्जर समाज मे छठ पूजा का त्यौहार सामान्य तौर पर नहीं होता हैं, परतु राजस्थान के गुर्जरों मे छाठ नाम का एक त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या दीपावली के दिन होता हैं| इस दिन एक नख (गोत्र) के गुर्जर नदी या तालाब के किनारे इक्कट्ठे होते हैं और अपने पूर्वजो को याद करते हैं| पुर्वजो का तर्पण करने के लिए वो उन्हें धूप देते हैं, घर से बने पकवान जल मे प्रवाहित कर उनका भोग लगते हैं तथा सामूहिक रूप से हाथो मे ड़ाब की रस्सी पकड़ कर सूर्य को सात बार अर्ध्य देते हैं| इस समय उनके साथ उनके नवजात शिशु भी साथ होते हैं, जिनके दीर्घायु होने की कामना की जाती हैं| हम देखते हैं कि छाठ और छठ पूजा मे ना केवल नाम की समानता हैं बल्कि इनके रिवाज़ भी एक जैसे हैं| राजस्थान की ‘छाठ परंपरा’ गुर्जरों के बीच से विलोप हो गयी छठ पूजा का अवशेष प्रतीत होती हैं ।
{ लेखक इतिहास के मर्मज्ञ हैं }