Durga Ashtami 2023 : दुर्गा अष्टमी, जिसे महा अष्टमी के रुप में मनाया जाता है, इस वर्ष महाष्टमी 29 मार्च 2023 के दिन शुभ योगों के बनने से दिन का महत्व अत्यंत ही विशेष होगा. इस वर्ष अष्टमी के दिन एक साथ कई योगों के निर्माण के कारण इस दिन पर देश भर में अष्टमी की धूम का अलग ही रंग देखने को मिलेगा.
Durga Ashtami 2023:
अष्टमी के दिन पर दुर्गा पूजा महास्नान और षोडशोपचार द्वारा संपन्न होती है. यह पूजन सप्तमी पूजा के बाद अष्टमी तिथि के दिन होता है. महा अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की शक्तियों का आह्वान किया जाता है. महा अष्टमी पूजा के दौरान देवी दुर्गा के सभी रूपों की पूजा की जाती है.अष्टमी के दिन इस पवित्र पूजा में बलि देने की प्रथा भी रही है जिसे सात्विक रुप से भक्त नारियल, कदलीफल, ककड़ी, या कद्दू इत्यादि के साथ प्रतीकात्मक रुप में माता को रुप में भेंट करते हैं.
अष्टमी तिथि शुभ मुहूर्त संयोग
पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी उदया तिथि अनुसार 29 मार्च 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन शोभन योग और रवि योग जैसे शुभ योगों का निर्माण होगा. बुधवार को पड़ने वाली अष्टमी का रुप अशोकाष्टमी, भवानी उत्पत्ति, बुध अष्टमी के रुप में मनाया जाएगा. इन सभी पर्वों के साथ देवी पूजन होने के कारण यह समय अत्यंत सिद्धदायक होगा तथा इसके द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति भक्तों को प्राप्त होगी.
चैत्र अष्टमी तिथि पर होगा कन्या पूजन
चैत्र माह की अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन होता है. इस दिन पर देवी के स्वरुप रुप में छोटी कन्याओं का पूजन किया जाता है. आइये जानते हैं माता के प्रयेक स्वरुप का कन्या पूजन महत्व
कन्या-पूजन में माँ का स्वरुप कौन सा होता है
अष्टमी की शुभ तिथि समय पर नौ, दस एवं बारह वर्ष तक की कन्या पूजन करने का विधान रहा है. वैसे तो यह आयु एक वर्ष से आरंभ होकर दस वर्ष तक की होती है लेकिन अलग अलग विचारों में यहां उम्र की सीमा 1 या 2 वर्ष कम अधिक रह सकती है. कन्या के अलग अलग आयु अनुरुप माता के नामों का निर्धारण होता है.
दो साल की कन्या को कौमारी के रुप में पूजा जाता है, माता के इस रुप के पूजन द्वारा अन्न धन का सदैव भंडार भरा रहता है.
तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति का रुप माना जाता है, माता का ये रुप सिद्धियों एवं धन धान्य को प्रदान करने वाला होता है.
चार साल की कन्या का रुप कल्याणी है माता का ये रुप कल्याणकारी एवं जीवन में शुभता का रहता है.
पांच साल की कन्या का स्वरुप रोहिणी के रुप में पूजनीय होता है. माता का ये रुप पूजने से घर परिवार में आर्थिक संपन्नता विद्यमान रहती है.
छह साल की कन्या को चण्डिका के रुप में पूजा जाता है, माता का यह रुप पूजने से रोग दोष शांत होते हैं.
आठ साल की कन्या को शाम्भवी रुप में पूजा जाता है. माता का रुप अन्नपूर्णा स्वरुप होता है और दारिद्रय को दूर करने वाला है.
नौ साल की कन्या को देवी दुर्गा के रुप में पूजा जाता है माता का यह रुप शत्रुओं से मुक्ति प्रदान करता है.
दस साल की कन्या का पूजन सुभद्रा स्वरुप में होता है. माता का यह रुप प्रेम और शांति को प्रदान करने वाला होता है.
महा अष्टमी पूजन महत्व
महा अष्टमी का हिंदुओं में बहुत महत्व है. इस दिन मां दुर्गा के अनेक स्वरूपों की पूजा की जाती है. माना जाता है कि मां दुर्गा के रूप उन्हीं से प्रकट हुए थे और ये शक्तियां सृष्टि के संचारण में सहयोग करती हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा ब्रह्मांड की आद्य शक्ति हैं, ब्रह्मांड के निर्माण, संरक्षण और विनाश के पीछे शक्ति का यही रुप निहित है. देवी दुर्गा को दस भुजाओं वाली एक सुंदर महिला के रूप में चित्रित किया गया है जो दैत्यों का संहार करके धर्म की स्थापना करती हैं तथा जीवन को शुभता का आशीर्वाद देती हैं.