Ganga River: देवनदी गंगा ने जह्नु ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लिया । अपनी अलौकिक शक्तियों के कारण वह ब्रह्मा जी की सभा में एकबार सभी देवी देवताओं के साथ उपस्थित थीं ।उस सभा में राजर्षि महाभिष भी उपस्थित थे। अचानक आये हवा के झौंके से गंगा के वस्त्र ऊपर उठ गये । यह देख सभी देवताओं ने अपने नेत्र नीचे कर लिये परंतु राजर्षि महाभिष नि:शंक हो कर उसकी ओर देखते ही रहे। यह देखकरब्रह्मा जी ने राजर्षी महाभिष को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप देते हुये कहा कि जिस गंगा ने तुम्हारे चित्त को भ्रमित कर दिया है वही मनुष्य लोक में तुम्हारे प्रतिकूल आचरण करेगी ।
देवनदी गंगा स्त्री कैसे बनी:-
जब तुम उसके प्रतिकूल आचरण पर क्रोध करोगे तभी गंगा तुम्हारा त्याग कर देगी और तुम शाप मुक्त हो जाओगे । द्वापर युग में राजर्षी महाभिष ने शांतनु के रूप में जन्म लिया और गंगा। ने जह्नु पुत्री बनकर उनके साथ विवाह किया । भरतवंशी महाराज शांतनु हस्तिनापुर साम्राज्य के सम्राट थे। गंंगा ने पहले सात पुत्रों को जन्म देकर गंगा में प्रवाहित कर दिया , पहले तो शांतनु यह सब गंगा की विवाह के समय रखी शर्त की आप मुझे मेरे द्वारा किये जा रहे किसी कार्य को रोकेंग नही, जिस दिन आपने मुझे रोक कर क्रोध किया मैं उसी दिन आपको त्याग दूंगी ।
राजर्षी महाभिष को ब्रह्मा जी का श्राप
जब वह अपने आठवें पुत्र को भी गंगा में प्रवाहित कर रही थीं तो महाराज शांतनु अपने वंश की रक्षा और संतति के मोह को नहीं रोक पाये और उन्होंने गंगा पर उनके इस कार्य के लिये क्रोध किया । तब गंगा ने इस रहस्य को प्रकट करते हुये कि -मुनि वशिष्ठ द्वारा अपनी गायों का वसु देवतओं द्वारा अपहरण किये जाने पर उन्होंने क्रोधित होकर इन्हें मनुष्य योनि मे जन्म लेने का शाप दिया था । जब वह पतित होकर स्वर्ग से नीचे गिर रहे थे तब मार्ग में जाती हुई मैंनें देवनदी के रूप में उनसे इस पतन का कारण पूंछा । तबउन्होंने वशिष्ठ जी के द्वारा दिये शाप का कारण बता कर मुझसे प्रार्थना की थी कि जब आप राजर्षि महाभिष के शांतनु रूप में जन्म लेने पर उनकी पत्नी बनोगी
महाभारत के नारी पात्र:-
उस समय हम वसुओ को अपने पुत्र रूप में जन्म देकर हमारा उद्धार करना । आपके यह सभी पुत्र वसु ही थे जिनको मैनें शापमुक्त किया । अब इसे आपने रोक लिया है । अत: इसका लालन पालन कर स्वर्ग में इसकी शिक्षा पूर्ण होते ही मैं स्वयं इसे अपने साथ लाकर आपको सौंप दूंगी । यह कहती हुई गंगा अपने देवव्रत पुत्र को लेकर महाराज शांतनु का त्याग कर स्वर्ग लोक चली गई । बाद में 16वर्ष की आयु में देवव्रत को देवगुरु बृहस्पति से संपूर्ण शिक्षापूर्ण करने के बाद लाकर महाराज शांतनु को उनके पुत्र देवव्रत जो बाद में अपने पिता की इच्छापूर्ण करने के लिये सत्यवती से विवाह को लेकर आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण की भीषण प्रतिज्ञा कर भीष्म बने । परशुराम जी के साथ अम्बा के कारण हो रहे युद्ध के समय भी गंगा ने दोनों के मध्य आकर इस युद्ध को रोका था । अंत में महाभारत युद्ध के पश्चात इच्छा मृत्यु का वरदान पाये भीष्म के पास वह उनकी शरशैया के समय निरंतर उनके पास रहीं और एक श्रेष्ठ माता का धर्म निभा भीष्म के अंत समय तक अपने पुत्र के साथ रहीं ।
जै गंगा मैया सर्वपापनाशिनी
सर्वहितैषणी सभी का उद्धार करें ।
उषा सक्सेना