Sunday, 16 February 2025

Kanwar Yatra 2023 : कांवड़ को लेकर प्रचलित हैं अनेक कथाएं

Kanwar Yatra 2023 : नोएडा। आज गुरु पूर्णिमा है। कल यानि मंगलवार से सावन का पवित्र महीना शुरू हो जाएगा।…

Kanwar Yatra 2023 : कांवड़ को लेकर प्रचलित हैं अनेक कथाएं

Kanwar Yatra 2023 : नोएडा। आज गुरु पूर्णिमा है। कल यानि मंगलवार से सावन का पवित्र महीना शुरू हो जाएगा। सावन शुरू होते ही सड़कों पर शिवभक्त कांवड़ियों की यात्रा भी शुरू हो जाएगी। मंगलवार से कांधे पर कांवड़ लेकर भक्त सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर गंगाजल लाने निकल पड़ेंगे। रास्ते में उनके ठहरने, विश्राम करने और भोजन के लिए जगह-जगह कैंप की व्यवस्था की गई है। सरकार के आदेश पर कांवड़ियों के स्वास्थ्य की जांच के लिए भी विशेष तौर पर शिविर लगाए गए हैं।

Kanwar Yatra 2023

इस बार बेहद खास है सावन का महीना

इस साल सावन का महीना कई मायनों से बेहद खास है। इस बार आपके पास शिव जी को प्रसन्न करने के लिए पूरे दो माह का समय होगा। अधिमास की वजह से इस बार सावन महीने की शुरुआत 04 जुलाई को होगी और समापन 31 अगस्त 2023 को होगा। भगवान भोले के भक्त उन्हें पूरे 59 दिनों तक जलाभिषेक कर उन्हें प्रसन्न करने के उपाय कर सकते हैं। इस बार सावन में पड़ने वाले सावन सोमवार के व्रतों की संख्या 8 होगी। ऐसे में, भक्त शिवजी की कृपा प्राप्त करने के लिए 8 सावन सोमवार के व्रत रख सकेंगे। वैदिक पंचांग के अनुसार चंद्र वर्ष में 354 और सौर वर्ष में 365 दिन होते हैं। इन दोनों के बीच 11 दिनों का अंतर देखने को मिलता है। हर तीन साल के अंतराल पर पड़ने से यह अंतर 33 दिनों का हो जाता है। इसी प्रकार, प्रत्येक तीसरे साल में 33 दिनों का अलग अतिरिक्त महीना बन जाता है, जिसे अधिमास कहा जाता है। इसकी वजह से ही वर्ष 2023 में सावन दो महीनों का हो रहा है।

क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व

कांवड़ यात्रा एक पवित्र और बेहद ही कठिन यात्रा होती है। इस यात्रा के दौरान भक्त पवित्र स्थानों से गंगाजल लेकर आते हैं। इसके साथ ही भक्त उसी पवित्र स्थान पर गंगा स्नान भी करते हैं। ज्यादातर लोग गौमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार से गंगाजल को लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। एक बात और, भक्त जो कांवड़ लेकर जाते हैं, वो बांस से बनी हुई होती है। इसके दोनों छोरों पर कलश बंधे होते हैं, जिसमें गंगाजल होता है। इन्ही कलश को गंगाजल से भरकर कांवड़ यात्रा को पैदल पूरा किया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग तो नंगे पांव ही यात्रा करते हैं। कुछ लोग अपनी सहूलियत के मुताबिक, बाइक, स्कूटर, साइकिल या मिनी ट्रक में भी पूरा करते हैं।

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कांवड़ यात्रा के नियम

इस यात्रा को लेकर कुछ नियम भी हैं, जो बेहद कठिन होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया अपनी कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है। इसके अलावा बिना नहाए हुए इसको छूना पूरी तरह से वर्जित होता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़ियों के लिए मांस, मदिरा या किसी प्रकार के तामसिक भोजन को ग्रहण करना पूर्णतः वर्जित होता है। इसके अलावा कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे भी नहीं रख सकते हैं।

कांवड़ यात्रा के प्रकार

शास्त्रों में कांवड़ यात्रा के तीन प्रकार बताए गए हैं। पहली है सामान्य कांवड़ यात्रा, इसमें कांवड़िया अपनी जरूरत के हिसाब से और थकान के मुताबिक जगह-जगह रुककर आराम करते हुए इस यात्रा को पूरा कर सकता है। दूसरी है डाक कांवड़ (Dak Kanvar), इस यात्रा में कांवड़िया जब तक भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं कर लेता है, तब तक लगातार चलते रहना होता है। इस यात्रा में कांवड़िया आराम नहीं कर सकता है। तीसरी होती है दांडी कांवड़, इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िया गंगा के किनारे से लेकर जहां पर भी उसे भगवान शिव का जलाभिषेक करना है, वहां तक दंड करते हुए यात्रा करनी होती है। इस यात्रा में कांवड़िये को एक महीने से भी ज्यादा का समय लग जाता है।

Kanwar Yatra 2023

कांवड़ यात्रा की शुरुआत की पौराणिक कथाएं

कांवड़ यात्रा को लेकर कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं। आइये जानते हैं क्यों होती है कांवड़ यात्रा।

भगवान परशुराम थे पहले कावड़िया

कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।

श्रवण कुमार थे पहले कांवड़िया

कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे। जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।

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भगवान राम ने की थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत

कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कांवड़िया थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।

रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत

पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु, विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कांवड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिव मंदिर में शिवजी का जलाभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।

देवताओं ने सर्वप्रथम किया था शिव का जलाभिषेक

कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था। सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।

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