Sunday, 30 March 2025

Mahabharat: जिस अर्जुन ने किया अपहरण उसी की सारथी बनी सुभद्रा !

Mahabharat: सुभद्रा कौन थी:- श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव और रोहिणी की पुत्री थी सुभद्रा । महाभारत के प्रमुख नारी पात्रों…

Mahabharat: जिस अर्जुन ने किया अपहरण उसी की सारथी बनी सुभद्रा !

Mahabharat: सुभद्रा कौन थी:- श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव और रोहिणी की पुत्री थी सुभद्रा । महाभारत के प्रमुख नारी पात्रों में एक, बलराम की छोटी और श्री कृष्ण की सौतेली बहिन । श्रीकृष्ण यदि नारायण का अवतार थे तो सुभद्रा स्वयं उनकी ही अंत:शक्ति योगमाया का । जिसने श्रीकृष्ण को कंस से बचाने के लिये यशोदा की पुत्री के रूप में जन्म लिया था । अर्जुन नारायण के सहयोगी नर का रूप ,धर्म की स्थापना के लिये जिनका जन्म हुआ । यह तीनों ही एक दूसरे के पूरक थे । यशोदा की पुत्री के रूप में पहले योगमाया ने जन्म लिया था। जिसे वसुदेव जी श्रीकृष्ण को जन्म लेते ही उनकी रक्षा के लिये नंदबाबा को यमुना पार गोकुल सौंपकर बदले में उस पुत्री को ले आये थे । कंस ने जब उसे हाथ से पकड़ कर दीवाल पर मारना चाहा तो वह उनके हाथ से छूटकर देवी का रूप ले आकाश में जाकर बोली :-“रे पापी!तेरे पाप का घड़ा भर गया ‌तुझे मारने वाला पहले ही जन्म ले चुका ‌। यह कर विंध्याचल पर्वत पर विंध्यवासिनी देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई । बाद में श्रीकृष्ण की सहायता के लिये रोहिणी के गर्भ से जन्म लेकर उनकी और बलराम की प्रिय बहिन बनी ।

Mahabharat: अर्जुन को देख उनकी  शूरवीरता से प्रभावित हो प्रेम करने लगी

एक बार जब वह अपनी बुआ कुन्ती से मिलने हस्तिनापुर आई तो अर्जुन को देखकर उसकी शूरवीरता से प्रभावित हो प्रेम करने लगी । अर्जुन भी सुभद्रा को अपनी चार पत्नियों में सबसे अधिक प्रेम करते थे । किंतु वह कह नही सके । द्रौपदी को स्वयंवर में अर्जुन ने प्रतियोगिता जीत कर प्राप्त किया पर परिस्थितियों वश द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी बनी इसके बाद युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होने पर वह इन्द्रप्रस्थ की महारानी बनी । उसकी एक शर्त थी इन्द्रप्रस्थ में केवल वही महारानी बनकर रहेगी दूसरी किसी भी नारी का प्रवेश वर्जित । पांच पति होने के कारण सभी की एक समय सीमा निर्धारित कर दी गई थी । जिसमें दूसरा कोई एक पति के रहने पर प्रवेश नहीं कर सकता था । एक दिन अनायास ही एक ब्राह्मण की गायों की रक्षा के लिये आपातकाल में अर्जुन ने अपना गांडीव उठाने के लिये जो कि द्रौपदी के कक्ष में था प्रवेश किया। उस समय युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ चौंसर खेल रहे थे । शर्त के अनुसार अर्जुन को बारह वर्ष के लिये वनवास जाना था । इस कारण अर्जुन इन्द्रप्रस्थ छोड़कर चले गये । इस अवधि में उनका विवाह उलूपी और चित्रांगदा से हुआ । दोनों को ही एक एक‌ पुत्र होने पर वह उनकी अनुमति लेकर प्रभास श्रेत्र आये जहां उन्होंने यति का रूप धारण किया था फिर भी श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान लिया ।

बलराम अपनी बहिन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन से करना चाहते थे

Mahabharat: उस समय बलराम जी अपनी बहिन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन से करना चाहते थे । जबकि सुभद्रा अर्जुन को प्रेम करती थी । श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने साथ रथ पर बिठाकर द्वारिका ले गये । जहां अर्जुन ने श्रीकृष्ण से सुभद्रा के प्रति अपने मन की बात कही । श्रीकृष्ण भी सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ नही करना चाहते थे ‌अत: उन्होंने अर्जुन से कहा कि जब सुभद्रा यहां मंदिर में शिव जी की पूजा करने तभी तुम उसका अपहरण कर लेना । मेरा रथ बाहर ही खड़ा रहेगा ।अपने रथका सारथी सुभद्रा को बनाना । अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बात मानते हुये ऐसा ही किया । जब यदुवंशियों और बलराम को इसका पता चला तो वह अर्जुन को पकड़ कर दण्ड देने के लिये उतावले होकर चल पड़े । तभी श्रीकृष्ण ने‌ कहा :-“दाऊ पहले देखिये की रथ कौन चला रहा । सुभद्रा अर्जुन के रथ की सारथी बनी बड़ी कुशलता से उसका संचालन कर रही थी ।

जब अर्जुन ने किया सुभद्रा  का अपहरण

यह देख बलराम समझ गये और उन दोनों को वापिस द्वारिका लाकर प्रसन्नता पूर्वक उनका विवाह किया । विवाह के पश्चात वह एक वर्ष द्वारिका में रहे । अवधि समाप्त होते ही युधिष्ठिर ने उन दोनों को इन्द्रप्रस्थ बुला कर उनकास्वागत किया । यहां द्रौपदी के अतिरिक्त और किसी को रहने की अनुमति न होंने से श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार वह सादा कपड़ों मै एक ग्वालिन का रूप धारण कर कर द्रौपदी से मिली । सबसे पहले उसने द्रौपदी के चरण स्पर्श करते हुये कहा कि मैं श्रीकृष्ण की बहिन सुभद्रा हूं। भैया ने मुझे आपके पास सेवा करने के लिये भेजा है । श्रीकृष्ण के प्रति द्रौपदी के मन में अपार श्रद्धा थी अत:उसने सुभद्रा को अर्जुन की पत्नी के रूप में उन दोनों के प्रेम को देखते हुये अपनी स्वीकृति उन्हें हस्तिनापुर में रहने के लिये प्रदान की ।

Mahabharat: अभिमन्यु को जन्म दिया

सुभद्रा द्रौपदी को अपनी बड़ी बहिन के रूप में मानकर सदा उनका आदर करती । कुछ समय बाद सुभद्रा ने एक पुत्र को जन्म दिया और अभिमन्यु की मां बनी । मात्र सोलह वर्ष की आयु में ही उनका विवाह अपने पिता की इच्छा से विराट की राजकुमारी उत्तरा से हुआ। जिसने महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में फंस कर वीर गति पाये अपने पति अभिमन्यु के अंश को गर्भ में धारण किया था । जो महाभारत के युद्ध के पश्चात अश्वत्थामा द्वारा किये ब्रह्मास्त्र के प्रयोग से गर्भ में ही मृत होगया । उसे भली प्रकार से परीक्षण करने के पश्चात गर्भस्थ शिशु की मृत संजीवनी विद्या के द्वारा श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप धारण कर गर्भ में उसकी रक्षा करते हुये नया जीवन दिया ।

जगन्नाथ पुरी में भी मंदिर मे उन दोनों के मध्य स्थित हैं जीव ब्रह्म के मध्य माया की तरह

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युद्ध के पश्चात सभी के समाप्त हो जाने पर केवल पांच पांडवों के साथ अभिमन्यु पुत्र परीक्षित ही बचे थे ,गांधारी के शाप से सभी यदुवंशियों की आपसमें युद्ध कर मृत्यु होने पर श्रीकृष्ण भी व्याध्र के तीर के अपने पैर में बने पद में लगने से आहत होकर स्वर्ग सिधार गये । जिससे दुखी होकर पांचों पांडव द्रौपदी के साथ सन्यास लेकर हिमालय चले गये । युधिष्ठिर ने सभी भाईयों के साथ सन्यास लेकर जाने से पहले परीक्षित ‌को‌ राजा बनाकर हस्तिनापुर का राज्य सौंप कर अंतिम यात्रा पर गये । राजा परीक्षित ने बहुत समय तक न्यायपूर्वक राज्य किया। बाद में तक्षक नाग के डसने पर उनकी मृत्यु हुई ‌। सुभद्रा अपने भाईयों की एकमात्र प्रिय बहिन थी जो बाद में जगन्नाथ पुरी में भी मंदिर मे उन दोनों के मध्य स्थित हैं जीव ब्रह्म के मध्य माया की तरह । सुभद्रा का इसीलिये महाभारत में महत्वपूर्ण स्थान है ।
उषा सक्सेना

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