Navratri 2023 / उज्जैन: बाबा भोलेनाथ की नगरी उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर से कुछ ही दूरी पर चौबीस खंबा माता मंदिर स्थित है। जहां (Chaubiskhamba Mata Temple) देवी महामाया और महालया को कलेक्टर द्वारा मदिरा की धारा (wine stream) चढ़ाई जाती है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वाह करते हुए प्रात: पूजन पश्चात 27 किलोमीटर लम्बी नगर पूजा प्रारंभ होती, जोकि शाम तक चलती है। इस दौरान विभिन्न देवी, भैरव एवं हनुमान मंदिरों पर पूजन कार्य सम्पन्न किया जाता है। इस नगर पूजा का आयोजन तहसील स्तर पर राजस्व विभाग द्वारा किया जाता है। ऐसा केवल उज्जैन में होता है।
Navratri 2023
इस मंदिर में 12वीं शताब्दी के एक शिलालेख पर लिखा हुआ है कि उस समय के राजा ने यहां पर नागर और चतुर्वेदी व्यापारियों को लाकर बसाया था। नगर की रक्षा के लिए शहर में 24 खंबे भी लगाए गए थे। राजा विक्रमादित्य ने यहां दोनों देवियों को मदिरा की धार चढ़ाने की परंपरा शुरुआत की थी। पुरने समय में यह पूजा जमींदारों और जागीरदारों द्वारा की जाती थी।इसी परंपरा को निभाते हुए अब नगर कलेक्टर मदिरा की धार दोनों माताओं को चढ़ाते हैं।
40 देवी और भैरव मंदिरों में लगेगा मदिरा का भोग
इस बार शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी 29 मार्च बुधवार के दिन यहां पर माता का पूजन-अर्चन किया जाएगा। देवी महामाया और महलाया को मदिरा का भोग लगाने के बाद शहर में स्थित लगभग 40 देवी और भैरव मंदिरों में मदिरा का भोग लगाया जाता है। 24 खंबा से आरंभ होने वाली इस यात्रा का समापन अंकपात मार्ग पर स्थित हांडी फोड़ भैरव पर किया जाता है। जो अमला नगर पूजा के लिए निकलता है, उसमें सबसे आगे ढोल, उसके पीछे झण्डा लिए कोटवार रहता है। एक अन्य कोटवार के हाथ में पीतल का लोटा होता है। इस लोटे के पेंदे में एक छेद रहता है। इस छेद का मुंह सूत के धागे से इस प्रकार से बंद किया जाता है कि लोटे में भरी मदिरा बूंद-बूंद धारा के रूप में जमीन पर गिरे। 27 किलोमीटर तक मदिरा की धारा जमीन पर गिरती रहती है। मान्यता है कि मदिरा पीने के लिए राक्षसगण आते हैं।लोगों का मान्यता है कि देवी लोगों की रक्षा करती हैं और महामारी से बचाकर रखती हैं।
द्वार में लगे हैं कुल 12 खंभे
पूर्व के समय में यह द्वार श्री महाकालेश्वर मंदिर जाने का मुख्य प्रवेश द्वार रहा होगा। ये द्वार उत्तर दिशा की ओर बना हुआ है। इस द्वार में कुल 24 खंभे लगे हुए हैं, इसीलिए इस क्षेत्र को 24 खंभा माता मंदिर कहा जाता है। पूर्व में यहां पाड़ों की बलि दी जाती थी, वर्तमान में यहां बलि प्रथा वर्जित है।
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