Saturday, 23 November 2024

पोंगल का त्यौहार, प्रकृति और परंपराओं का अदभुत संगम  

पोंगल का त्यौहार, प्रकृति और परंपराओं का अदभुत संगम  

पोंगल का त्यौहार, प्रकृति और परंपराओं का अदभुत संगम  

Pongal  Festivals 2024: पोंगल का पर्व मकर संक्रांति के समय पर ही मनाया जाता है. इस दिन को सूर्य के उत्तरायण होने के रुप में भी पूजा जाता है. लोक परंपराओं का यह पोंगल उत्सव दक्षिण भारत में बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाते देखा जा सकता है.

भारत के दक्षिण प्रांत आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक जैसे स्थानों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पोंगल को चार दिनों तक चलने वाला लोक उत्सव भी कहा जाता है. इस उत्सव के हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा की जाती है.
पोंगल के हर दिन में होता है नया उत्साह 

पोंगल का त्यौहार काफी जोश एवं उत्साह के साथ मनाया जाने वाला दिन है. यह उत्सव चार दिनों तक मनाया जाता है. इस समय पर आस्था के अलग अलग रंग दिखाई देते हैं. पोंगल के दिन से नववर्ष की शुरुआत को भी देखा जाता है. इस दिन से सुख एवं प्रचुरता का आरंभ होना माना गया है. पोंगल का पर्व काफी जोश एवं उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है. यह उत्सव चार दिनों तक चलता है. इस समय पर अलग अलग रंग दिखाई देते हैं.

पोंगल तमिल नववर्ष की शुरुआत का समय 

Pongal  Festivals 2024
पोंगल का त्यौहार नव वर्ष की सुगबुहागट को दिखाता है जिसे तमिल पंचांग के अनुसार विशेष माना गया है.  पोंगल के दिन से तमिल नववर्ष की शुरुआत का होना विशेष होता है. जिस प्रकार अंग्रेजी माह का आरंभ जनवरी के प्रथम दिन से होता है उसी प्रकार तमिल पंचांग गणना में इस पोंगल के दिन को अत्यंत शुभ एवं विशेष माना गया है. लोक कथाओं अनुसार इस दिन से प्रकृति अपने नए रुप में होती है. सभी प्रकार के अंधकार से मुक्ति का समय होता है. प्रकाश हर ओर की वस्तु में जागृति का अंश भर देने वाला होता है.

पहला दिन
तमिल पंचांग गणना के अनुसार पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल के नाम से जाना जाता है. जिसका आरंभ  इस साल 15 जनवरी 2024, के दिन से होगा. मान्यताओं के अनुसार इस दिन इंद्र देव का पूजन किया जाता है.

पोंगल का दूसरा दिन
पोंगल के दूसरे दिन को थाई पोंगल के नाम से जाना जाता है. इस दिन पर सूर्य देव का पूजन होता है. तथा सूर्य देव को दूध से बने मिष्ठान खीर का भोग अर्पित किया जाता है.

पोंगल का तीसरा दिन 
पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के रुप में पूजा जाता है. इस दिन पर किसान अपने पशुओं का पूजन करते हैं. इस दिन कई तरह के पारंपरिक कार्यों का आयोजन भी होता है. इस के मुख्य आयोजन में बैलों की दौड़ जल्लीकट्टू का होना विशेष होता है.

पोंगल का आखिरी दिन
पोंगल के चौथे दिन को कन्या पोंगल के रुप में मनाते हैं. इस दिन घरों को सजाते हैं रंगोली इत्यादि के द्वारा इस उत्सव को अंतिम विदाई देते हैं. सभी लोग एक दूसरे को पोंगल की बधाई देते हुए इस दिन को संपूर्ण करते हैं.
आचार्या राजरानी

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