Puri Jagannath Mandir: बबीता आर्या : हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी ,उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।
माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है।
लकड़ी की मूर्तियों वाला देश का अनोखा मंदिर
पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की काठ की मूर्तियां हैं। लकड़ी की मूर्तियों वाला ये देश का अनोखा मंदिर है। जगन्नाथ मंदिर की ऐसी तमाम विशेषताएं हैं, साथ ही मंदिर से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं जो सदियों से रहस्य बनी हुई हैं।
Puri Jagannath Mandir: उनमें से आज हम आपकों एक रहस्य के बारें में बताने जा रहें है । भगवान जग्गन्नाथ की जब बात होती है तो वहां की रथ यात्रा के बारें मे जरुर जिक्र होता है । कहां जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की बात कही। भगवान जग्गन्नाथ और बलभद्र अपनी बहन को रथ मे बैठा कर नगर दिखाने निकले । इसी दौरान वह गुंडिचा मे अपनी मौसी के यहां भी गयें । तभी से इस रथ यात्रा की परंपरा बन गयी।
Puri Jagannath Mandir: मूर्तियों को हर 12 साल मे बदलने की परंपरा
भगवान जग्गन्नाथ के मंदिर मे भगवान जगन्नाथ,सुभद्रा,और बलभद्र की लकड़ी की मूर्तियां विराजमान है । इन मूर्तियों को हर 12 साल मे बदलने की परंपरा है । इस परंपरा के दौरान पूरे शहर की बिजली बंद करके ब्लैक आउट कर दिया जाता है । ऐसा इसलिये होता है कि यह कार्य पूरी तरह से गोपनीय रखा जा सके।मंदिर के बाहर सीआरपीएफ की सुरक्षा तैनात कर दी जाती है। मंदिर में किसी की भी एंट्री पर पाबंदी होती है। सिर्फ उसी पुजारी को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है जिन्हें मूर्तियां बदलनी होती हैं। जो पुजारी मन्दिर के अंदर जाते है उसे हाथों मे ग्लब्स पहना दियें जाते है और आंखो पर पट्टी बांध दी जाती है । ऐसा इसलिये किया जाता है की पुजारी भी मूर्तियों को ना देख सके । फिर पुजारी मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया शुरु करते है । पुरानी मूर्तियों की जगह नई मूर्तियां लगा दी जाती हैं, लेकिन एक ऐसी चीज है जो कभी नहीं बदली जाती, ये है ब्रह्म पदार्थ। ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में लगा दिया जाता है।
परंपरा के दौरान पूरे शहर की बिजली बंद करके ब्लैक आउट कर दिया जाता है
मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने जब देह का त्याग किया था तो उनके अंतिम संस्कार के दौरान दिल छोड़ कर बाकी शरीर पंच तत्व मे विलीन हो गया। कहते है कि उनका दिल जिंदा रहा और मान्यता है कि उनका दिल ही ब्रह्म पदार्थ है । यहीं ब्रह्म पदार्थ भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर धड़कता है । यदि इसे दूसरी मूर्ति मे रखनें के दौरान किसी पुजारी ने देख लिया तो अनर्थ हो सकता है । कुछ पुजारी अपने अनुभव से बताते हैं कि उनके हाथ मे कुछ उछलता हुआ खरगोश सा प्रतीत होता है । कहा ये भी जाता है कि अगर इस पदार्थ को किसी ने देख लिया तो सामने वाले के शरीर के चीथड़े उड़ जाएंगे।
मंदिर से जुड़े और रोचक तथ्य:
कहा जाता है की जग्गन्नाथ पुरी के मंदिर के ऊपर कभी किसी परिंदो को उड़ते हुए नहीं देखा गया और ना ही किसी परिंदो को मंदिर के गुंबद पर बैठे देखा है । इसलिये मंदिर के ऊपर से किसी हवाईजहाज और हेलीकाप्टर के उड़ने पर मनाही है ।
Puri Jagannath Mandir: अद्भुत मगर सत्य
मंदिर मे एक सिंहद्वार भी है जब श्रद्धालु इस द्वार के बाहर होते है तो समुद्र के लहरों की बहुत तेज अवाज सुनाई देती है लेकिन जब द्वार के अंदर प्रवेश कर जातें हैं तो कोई अवाज नही आती है
सिंहद्वार के बाहर चिताओं की गंध आती है और द्वार के अंदर प्रवेश करने पर गंध आनी बंद हो जाती है । कितनी भी धूप क्यों ना हो इस मंदिर की परछाई कभी नहीं बनती है ।
इसके अलावा मंदिर के शिखर पर जो झंडा लगा है, उसे लेकर भी बड़ा रहस्य है. इस झंडे को हर रोज बदलने का नियम है। मान्यता है कि अगर किसी दिन झंडे को नहीं बदला गया तो शायद मंदिर अगले 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। इसके अलावा ये झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में उड़ता है।
कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इस रसोई में 500 रसोइये और 300 उनके सहयोगी काम करते हैं। यहा बनने वाले प्रसाद के बारें मे कहा जाता है कि ‘जग्गन्नाथ का भात,जगत पसारे हाथ’। इसके अलावा मंदिर में जो प्रसाद बनता है वो लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है। ये प्रसाद सात बर्तनों में बनाया जाता है। सातों बर्तन को एक-के ऊपर एक करके एक-साथ रखा जाता है। यानी सातों बर्तन चूल्हे पर एक सीढ़ी की तरह रखे होते हैं। सबसे हैरानी की बात ये है कि जो बर्तन सबसे ऊपर यानी सातवें नंबर का बर्तन होता है उसमें सबसे पहले प्रसाद बनकर तैयार होता है। इसके बाद छठे, पांचवे, चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले यानी सबसे नीचे के बर्तन का प्रसाद तैयार होता है। इस मंदिर मे कभी भी आ जायें प्रसाद कम नहीं पड़ता है । लेकिन जैसे ही मंदिर बंद होने का समय आता है तो प्रसाद अपने आप खत्म हो जाता है ।
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