भारत की विविध अंतिम संस्कार प्रथाएं, आस्था और परंपरा का संगम

भारत विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की धरती है और इसी विविधता की झलक अंतिम संस्कार की परंपराओं में भी देखने को मिलती है।

Hindu-Muslim-Sikh-Christian funerals
हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई अंतिम संस्कार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar24 Nov 2025 03:11 PM
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बता दें कि अंतिम संस्कार सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि दिवंगत आत्मा के प्रति सम्मान, परिवार के दुख को साझा करने और समाज को एकजुट रखने का माध्यम माना जाता है। अलग-अलग धर्मों में विदाई की विधि भले अलग हो, लेकिन भावनाएं एक ही—सम्मान, शांति और स्मरण।

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार: दाह संस्कार और श्राद्ध की परंपरा

हिंदू परंपरा में अंत्येष्टि आत्मा की परलोक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। यहां दाह संस्कार प्रमुख है, जिसे शरीर से आत्मा की मुक्ति का प्रतीक समझा जाता है। दाह संस्कार के बाद श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य आत्मा की शांति और उसके पोषण से जुड़ा है। यह केवल मृत्यु के तुरंत बाद ही नहीं, बल्कि कई दिनों और वर्षों तक भी निभाए जाते हैं। परिवार एक साथ बैठकर दिवंगत को स्मरण करता है और धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है।

मुस्लिम अंतिम संस्कार: सादगी, समानता और त्वरित दफन

इस्लाम में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया सादगी और पवित्रता से जुड़ी होती है। सबसे पहले गुस्ल किया जाता है, जिसमें परिवार के विश्वसनीय लोग शरीर को सावधानी और सम्मान के साथ धोते हैं। उसके बाद सफेद कपड़े का कफन पहनाया जाता है, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।मस्जिद या घर पर जनाज़े की नमाज़ अदा की जाती है, जिसमें अल्लाह से रहमत और माफी की दुआ मांगी जाती है। इसके बाद आमतौर पर 24 घंटे के भीतर दफन कर दिया जाता है।

सिख धर्म में अंतिम संस्कार: कीर्तन और अरदास के साथ विदाई

सिख परंपरा में अंतिम संस्कार शांत, आध्यात्मिक और बेहद गरिमापूर्ण माना जाता है। अधिकतर सिख परिवार दाह संस्कार करते हैं। अंतिम संस्कार के दौरान संगत और परिवार मिलकर कीर्तन करते हैं और अरदास पढ़कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दुआ करते हैं। इसके बाद ‘अंतिम अरदास’ के साथ परिवार और समुदाय दिवंगत को श्रद्धांजलि देता है।

ईसाई अंतिम संस्कार: प्रार्थना सभा और कब्रिस्तान में दफन

ईसाई समुदाय में अंतिम संस्कार की शुरुआत चर्च में होने वाली प्रार्थना सभा से होती है। परिवार और मित्र दिवंगत व्यक्ति की स्मृतियों को साझा करते हैं और सांत्वना देते हैं। इसके बाद पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में दफनाया जाता है, जो ईश्वर की शरण और शांति का प्रतीक माना जाता है। कई परिवार सातवें दिन, महीने या सालगिरह पर स्मृति सभा आयोजित करते हैं, जहां दिवंगत के जीवन और मूल्यों को याद किया जाता है।

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भारतीय मिट्टी के लिए अधिक उपयुक्त उन्नत पीएसबी स्ट्रेन

फॉस्फोरस की कमी से पौधों में होने वाली दिक्कतों से निपटने के लिए एनबीआरआई ने पहल की और संस्थान ने जीवाणु और कवक संघ माइक्रोब्स तैयार किए हैं। यह माइक्रोब्स मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस को घुलनशील बनाकर पौधों की जड़ों को बढ़ने में मदद करेंगे। जिन्हें हम पीएसबी से भी जानते है।

PSB Soils Agri World
पीएसबी बैक्टीरिया उर्वरक मिट्टी (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar01 Dec 2025 10:40 PM
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आज कृषि जगत में टिकाऊ खेती की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती लागत और मिट्टी की घटती गुणवत्ता ने किसानों को प्रकृति आधारित समाधानों की ओर मुड़ रहा है। इसी क्रम में पीएसबी (फॉस्फोरस घुलनशील जीवाणु) एक भरोसेमंद, कारगर और टिकाऊ विकल्प के रूप में तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं।

फॉस्फोरस पौधों के लिए अनिवार्य, परन्तु मिट्टी में ‘बंद’

फॉस्फोरस पौधों के लिए सबसे आवश्यक मैक्रोन्यूट्रिएंट्स में से एक है। बावजूद इसके, मिट्टी में मौजूद कुल फॉस्फोरस का केवल एक छोटा हिस्सा ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है। अधिकांश फॉस्फोरस कैल्शियम, एल्युमिनियम या आयरन के साथ जुड़कर अघुलनशील रूप ले लेता है, जिसे पौधे अवशोषित नहीं कर पाते।

यहीं पर पीएसबी जैवउर्वरक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

यह सूक्ष्मजीव कार्बनिक अम्ल (जैसे फॉर्मिक, लैक्टिक, एसिटिक आदि) और एंज़ाइम (फॉस्फेटेस, फाइटेज) छोड़कर बंद पड़े फॉस्फोरस को घुलनशील बनाते हैं और पौधों को आसानी से उपलब्ध कराते हैं।

मौजूदा पीएसबी उत्पादों की बड़ी चुनौतियाँ

हालाँकि बाज़ार में लंबे समय से कई पीएसबी उपलब्ध हैं, लेकिन आज भी किसानों को इनकी प्रभावकारिता और स्थिरता को लेकर शिकायतें रहती हैं।

मुख्य कमज़ोरियाँ

  • सीएफयू संख्या का जल्दी कम हो जाना
  • सीमित शेल्फ लाइफ
  • अत्यधिक तापमान या पीएच में कम प्रभाव
  • केवल कैल्शियम से जुड़े फॉस्फेट को ही घुला पाना

किसानों के मन में भरोसा तभी बनेगा जब उत्पाद लगातार, स्थिर और हर प्रकार की मिट्टी में प्रभावी परिणाम दें।

बायोप्राइम का ‘फॉस्फोनेक्सस’—पीएसबी तकनीक में अगली पीढ़ी का समाधान

बायोप्राइम ने वर्षों के शोध के बाद ऐसा पीएसबी उत्पाद विकसित किया है जो पारंपरिक जैवउर्वरकों की सीमाओं को पीछे छोड़ देता है।

1️⃣ व्यापक घुलनशीलता क्षमता – भारतीय मिट्टी के लिए उपयुक्त

जहाँ सामान्य PSB केवल कैल्शियम-बाउंड फॉस्फेट को घुला पाते हैं, वहीं फॉस्फोनेक्सस कैल्शियम, एल्युमिनियम और आयरन—तीनों के साथ बंद फॉस्फेट को घुलनशील कर सकता है। यह क्षमता भारतीय कृषि भूमि के लगभग 65% हिस्से में इसे प्रभावी बनाती है।

2️⃣ उच्च घुलनशीलता – 80–120 ppm (मार्केट से 3–4 गुना अधिक)

बायोप्राइम के शक्तिशाली माइक्रोब्स अत्यधिक प्रतिरोधी हैं और कठिन परिस्थितियों में भी फॉस्फोरस घोलने की क्षमता बनाए रखते हैं।

3️⃣ विस्तृत pH रेंज (4.5–9)

जहाँ सामान्य पीएसबी 4–8 pH के बाहर प्रभाव खो देते हैं, वहीं फॉस्फोनेक्सस अम्लीय से क्षारीय—लगभग हर प्रकार की मिट्टी में समान रूप से काम करता है।

4️⃣ बेहतर तापमान सहनशीलता (24°C–40°C)

भारत जैसी गर्म जलवायु में यह एक बड़ा प्लस पॉइंट है। अन्य उत्पादों में 30–33°C पर सीएफयू गिरने लगता है, जिससे प्रभाव कम हो जाता है।

5️⃣ पौधों की वृद्धि और तनाव सहनशीलता में वृद्धि

बेहतर फॉस्फोरस उपलब्धता

  • मज़बूत जड़ें
  • अधिक पोषक अवशोषण
  • तेज़ फसल विकास
  • कम उर्वरक निर्भरता
  • सूखे/तनाव के प्रति बेहतर प्रतिरोध

कुल मिलाकर, फसल की स्वाभाविक उपज बढ़ती है।

किसानों के लिए भरोसेमंद, टिकाऊ और आधुनिक समाधान

बायोप्राइम का फॉस्फोनेक्सस असंगत फील्ड परिणाम, कम सीएफयू व ताप-संवेदनशीलता जैसी चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करता है। यह भारतीय मिट्टी की विविधता को ध्यान में रखकर बनाया गया अगली पीढ़ी का पीएसबी जैवउर्वरक है।

टिकाऊ कृषि और बेहतर उपज के लिए—बायोप्राइम के साथ जुड़ें!

मिट्टी में बंद पड़े फॉस्फोरस को अनलॉक करें, रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटाएँ और अपनी फसल को दें प्राकृतिक पोषण।

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जस्टिस सूर्यकांत को सुप्रीम कमान, देश के 53वें CJI के रूप में ली शपथ

करीब 15 महीने तक वे सुप्रीम कोर्ट की नेतृत्वकारी भूमिका में रहेंगे और 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर सेवानिवृत्त होंगे। यह पूरा कार्यकाल न्यायपालिका के एजेंडा, संस्थागत सुधारों और आने वाले ऐतिहासिक फैसलों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।

जस्टिस सूर्यकांत बने भारत के 53वें CJI
जस्टिस सूर्यकांत बने भारत के 53वें CJI
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar24 Nov 2025 10:39 AM
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देश की न्यायपालिका की बागडोर अब जस्टिस सूर्यकांत के हाथों में आ गई है। वे भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में सुप्रीम कोर्ट की सबसे ऊंची कुर्सी पर विराजमान हो गए हैं। जस्टिस बी.आर. गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने न सिर्फ यह जिम्मेदारी संभाली, बल्कि अगले करीब 15 महीनों तक देश की न्यायिक दिशा तय करने वाले सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में शुमार हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में अपने अब तक के कार्यकाल के दौरान वे अनुच्छेद 370, पेगासस जासूसी विवाद और बिहार वोटर लिस्ट जैसे कई संवैधानिक रूप से नाज़ुक मामलों की अहम पीठों का हिस्सा रह चुके हैं। रविवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित गरिमामय समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर देश–दुनिया की न्यायिक बिरादरी की मौजूदगी ने इस ऐतिहासिक क्षण को और भी महत्वपूर्ण बना दिया, जहां सात देशों के मुख्य न्यायाधीशों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग पहचान दी।

न्यायिक करियर की झलक

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत का सफर कई बड़े संवैधानिक मुकदमों से होकर गुजरा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं हों, बिहार की वोटर लिस्ट में व्यापक बदलाव को लेकर उठे सवाल हों या फिर पेगासस स्पाइवेयर प्रकरण जैसा संवेदनशील मामला – वे उन अहम पीठों का हिस्सा रहे, जिनके निर्णयों ने भारतीय संविधान की व्याख्या, नागरिक अधिकारों की सीमाओं और लोकतांत्रिक संस्थाओं की जवाबदेही को नई परिभाषा दी। 30 अक्तूबर को उन्हें औपचारिक रूप से CJI-डिज़िग्नेट नामित किया गया और तय संवैधानिक प्रक्रिया के तहत अब वे मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभाल चुके हैं। करीब 15 महीने तक वे सुप्रीम कोर्ट की नेतृत्वकारी भूमिका में रहेंगे और 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर सेवानिवृत्त होंगे। यह पूरा कार्यकाल न्यायपालिका के एजेंडा, संस्थागत सुधारों और आने वाले ऐतिहासिक फैसलों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।

कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत?

10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत की कहानी बार से बेंच तक अपने बूते ऊपर उठने वाले एक स्वनिर्मित विधिवेत्ता की कहानी है। छोटे शहर की कचहरी से शुरू हुआ उनका सफर धीरे–धीरे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां उन्होंने कई राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर अपनी मजबूत न्यायिक छाप छोड़ी। 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से लॉ में मास्टर डिग्री हासिल करते समय वे ‘फर्स्ट क्लास फर्स्ट’ रहे, जिसने उनके शुरुआती करियर को ही एक अलग पहचान दे दी। 5 अक्तूबर 2018 को वे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने, उससे पहले पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज रहते हुए उन्होंने कई चर्चित मामलों में ऐसे फैसले सुनाए, जिन्होंने उन्हें एक कड़े लेकिन मानवीय संवेदनाओं से जुड़े जज के रूप में स्थापित किया।

बड़े फैसलों में सक्रिय भूमिका

सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस सूर्यकांत बार–बार उन मुकदमों के केंद्र में रहे, जहाँ संविधान की आत्मा, नागरिक अधिकार और सत्ता संतुलन जैसे बड़े सवाल दांव पर थे। अभिव्यक्ति की आज़ादी, नागरिकता, संघ–राज्य संबंधों और लोकहित याचिकाओं से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामलों में उनकी राय को बेहद प्रभावी और दिशानिर्धारक माना गया। अनुच्छेद 370, पेगासस प्रकरण और चुनावी सुधार से जुड़े मामलों में दिए गए उनके विचारों ने साफ दिखाया कि उनकी न्यायिक सोच का मूल आधार संवैधानिक मूल्यों की रक्षा, पारदर्शिता और संस्थागत जवाबदेही को मजबूती देना है। हाल में राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई कर रही उस संविधान पीठ में भी वे शामिल हैं, जिसमें राज्यों की विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की भूमिकाओं व शक्तियों की सीमा तय की जा रही है। यह मामला अभी लंबित है, लेकिन न्यायिक गलियारों में यह आम धारणा है कि आने वाला फैसला न सिर्फ संवैधानिक व्याख्या को नई दिशा देगा, बल्कि कई राज्यों के राजनीतिक–प्रशासनिक तंत्र के लिए भी आगे का रास्ता तय करेगा।