भारत की विविध अंतिम संस्कार प्रथाएं, आस्था और परंपरा का संगम
भारत विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की धरती है और इसी विविधता की झलक अंतिम संस्कार की परंपराओं में भी देखने को मिलती है।

बता दें कि अंतिम संस्कार सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि दिवंगत आत्मा के प्रति सम्मान, परिवार के दुख को साझा करने और समाज को एकजुट रखने का माध्यम माना जाता है। अलग-अलग धर्मों में विदाई की विधि भले अलग हो, लेकिन भावनाएं एक ही—सम्मान, शांति और स्मरण।
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार: दाह संस्कार और श्राद्ध की परंपरा
हिंदू परंपरा में अंत्येष्टि आत्मा की परलोक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। यहां दाह संस्कार प्रमुख है, जिसे शरीर से आत्मा की मुक्ति का प्रतीक समझा जाता है। दाह संस्कार के बाद श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य आत्मा की शांति और उसके पोषण से जुड़ा है। यह केवल मृत्यु के तुरंत बाद ही नहीं, बल्कि कई दिनों और वर्षों तक भी निभाए जाते हैं। परिवार एक साथ बैठकर दिवंगत को स्मरण करता है और धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है।
मुस्लिम अंतिम संस्कार: सादगी, समानता और त्वरित दफन
इस्लाम में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया सादगी और पवित्रता से जुड़ी होती है। सबसे पहले गुस्ल किया जाता है, जिसमें परिवार के विश्वसनीय लोग शरीर को सावधानी और सम्मान के साथ धोते हैं। उसके बाद सफेद कपड़े का कफन पहनाया जाता है, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।मस्जिद या घर पर जनाज़े की नमाज़ अदा की जाती है, जिसमें अल्लाह से रहमत और माफी की दुआ मांगी जाती है। इसके बाद आमतौर पर 24 घंटे के भीतर दफन कर दिया जाता है।
सिख धर्म में अंतिम संस्कार: कीर्तन और अरदास के साथ विदाई
सिख परंपरा में अंतिम संस्कार शांत, आध्यात्मिक और बेहद गरिमापूर्ण माना जाता है। अधिकतर सिख परिवार दाह संस्कार करते हैं। अंतिम संस्कार के दौरान संगत और परिवार मिलकर कीर्तन करते हैं और अरदास पढ़कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दुआ करते हैं। इसके बाद ‘अंतिम अरदास’ के साथ परिवार और समुदाय दिवंगत को श्रद्धांजलि देता है।
ईसाई अंतिम संस्कार: प्रार्थना सभा और कब्रिस्तान में दफन
ईसाई समुदाय में अंतिम संस्कार की शुरुआत चर्च में होने वाली प्रार्थना सभा से होती है। परिवार और मित्र दिवंगत व्यक्ति की स्मृतियों को साझा करते हैं और सांत्वना देते हैं। इसके बाद पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में दफनाया जाता है, जो ईश्वर की शरण और शांति का प्रतीक माना जाता है। कई परिवार सातवें दिन, महीने या सालगिरह पर स्मृति सभा आयोजित करते हैं, जहां दिवंगत के जीवन और मूल्यों को याद किया जाता है।
बता दें कि अंतिम संस्कार सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि दिवंगत आत्मा के प्रति सम्मान, परिवार के दुख को साझा करने और समाज को एकजुट रखने का माध्यम माना जाता है। अलग-अलग धर्मों में विदाई की विधि भले अलग हो, लेकिन भावनाएं एक ही—सम्मान, शांति और स्मरण।
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार: दाह संस्कार और श्राद्ध की परंपरा
हिंदू परंपरा में अंत्येष्टि आत्मा की परलोक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। यहां दाह संस्कार प्रमुख है, जिसे शरीर से आत्मा की मुक्ति का प्रतीक समझा जाता है। दाह संस्कार के बाद श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य आत्मा की शांति और उसके पोषण से जुड़ा है। यह केवल मृत्यु के तुरंत बाद ही नहीं, बल्कि कई दिनों और वर्षों तक भी निभाए जाते हैं। परिवार एक साथ बैठकर दिवंगत को स्मरण करता है और धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है।
मुस्लिम अंतिम संस्कार: सादगी, समानता और त्वरित दफन
इस्लाम में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया सादगी और पवित्रता से जुड़ी होती है। सबसे पहले गुस्ल किया जाता है, जिसमें परिवार के विश्वसनीय लोग शरीर को सावधानी और सम्मान के साथ धोते हैं। उसके बाद सफेद कपड़े का कफन पहनाया जाता है, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।मस्जिद या घर पर जनाज़े की नमाज़ अदा की जाती है, जिसमें अल्लाह से रहमत और माफी की दुआ मांगी जाती है। इसके बाद आमतौर पर 24 घंटे के भीतर दफन कर दिया जाता है।
सिख धर्म में अंतिम संस्कार: कीर्तन और अरदास के साथ विदाई
सिख परंपरा में अंतिम संस्कार शांत, आध्यात्मिक और बेहद गरिमापूर्ण माना जाता है। अधिकतर सिख परिवार दाह संस्कार करते हैं। अंतिम संस्कार के दौरान संगत और परिवार मिलकर कीर्तन करते हैं और अरदास पढ़कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दुआ करते हैं। इसके बाद ‘अंतिम अरदास’ के साथ परिवार और समुदाय दिवंगत को श्रद्धांजलि देता है।
ईसाई अंतिम संस्कार: प्रार्थना सभा और कब्रिस्तान में दफन
ईसाई समुदाय में अंतिम संस्कार की शुरुआत चर्च में होने वाली प्रार्थना सभा से होती है। परिवार और मित्र दिवंगत व्यक्ति की स्मृतियों को साझा करते हैं और सांत्वना देते हैं। इसके बाद पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में दफनाया जाता है, जो ईश्वर की शरण और शांति का प्रतीक माना जाता है। कई परिवार सातवें दिन, महीने या सालगिरह पर स्मृति सभा आयोजित करते हैं, जहां दिवंगत के जीवन और मूल्यों को याद किया जाता है।







